
मर्द को चाहिये कि कम से कम चार माह में एक बार अपनी बीवी से सोहबत ज़रूर करे, बिला वजह औरत को छोड़ कर बहुत दिन सफर में न रहे।
जो लोग शादी करके बीवी से अलग थलग रहते हैं और औरत के साथ उसके बिस्तर का हक़ अदा नहीं करते, वे हक्कुल इबाद में गिरफ़्तार और बहुत बड़े गुनाहगार हैं।
अगर शौहर किसी मजबूरी से अपनी औरत के उस हक़ को अदा न कर सके तो शौहर पर लाज़िम है कि औरत से उसके इस हक़ को माफ कराये।
औरत के इस हक़ की कितनी अहमियत है, इस बारे में हज़रत अमीरूल मोमिनीन उमर फारूक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का एक वाकिआ बहुत ज़्यादा इबरतनाक और नसीहत आमेज़ है।
एक मर्तबा रात के वक़्त हस्बे मअमूल हज़रत फारूके आज़म रज़ियल्लाहु अन्हु रिआया की ख़बरगीरी के लिये शहरे मदीना में गश्त फरमा रहे थे कि अचानक एक मकान से दर्दनाक अश्आर पढ़ने की आवाज़ सुनी। किसी को देखने और छूने का बयान।
आप उसी जगह खड़े हो गए और गौर से सुनने लगे तो एक औरत दर्द भरे लहजे में कुछ अशआर पढ़ रही थी जिनका मफ़्हूम यह है “खुदा की कसम !
अगर खुदा के अज़ाब का खौफ न होता तो बिला शुबाह इस चारपाई के किनारे जुम्बिश में हो जाते”। अमीरूल मोमिनीन ने सुबह को जब तहक़ीकात की तो मालूम हुआ कि इस औरत का शौहर जिहाद के सिलसिले में कई माह से बाहर गया हुआ है और यह औरत उसको याद कर के फिराक के ग़म में ये अशआर पढ़ रही है।
अमीरूल मोमिनीन के दिल पर इसका इतना गहरा असर पड़ा कि सुबह ही को उसके शौहर की तलब के लिये कासिद रवाना कर दिया। इसके बाद आप अपनी साहिबज़ादी हज़रत हफ़्सा रज़ियल्लाहु अन्हा के पास तशरीफ़ ले गए और उनसे फरमाया मुझे एक मुश्किल मसअला दरपेश है, तुम उसको हल कर दो।
मसअला यह है ” औरत बगैर मर्द के कितने दिन सब्र कर सकती है?” उन्होंने जवाब दिया ” तीन माह या ज़्यादा से ज़्यादा चार माह” वहाँ से वापस आकर आपने तमाम सिपह सालारों को यह फरमान लिख कर भेजा “कोई शादी शुदा फौजी चार माह से ज़्यादा अपनी बीवी से जुदा न रहे”।
(तारीखुल खुलफा पेज 97)
औरत को छोड़ कर सफर में जाना या किसी मुलाज़िमत में जाना अगर ज़रूरत से हो तो जाइज़ है, इसकी कोई हद नहीं। अलबत्ता बेज़रूरत चार माह से ज़ाइद जुदा रहना मना है।
(फतावा रज़विया जिल्द 5 पेज 569)
अल्लाह रबबुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।
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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।
खुदा हाफिज…
One thought on “बीवी से अलग रहने की मुद्दत। Biwi Se Alag Rahane ki muddat.”