बेटियों के लिए ज़रूरी हिदायात।Betiyon ke liye zaroori hidayat.

Betiyoun ke liye zaroori hidayat

हज़रत अबू सईद ख़ुदरी (र.अ)से रिवायत है कि नबी करीम(स.व)ने इरशाद फरमाया : जिस शख़्स की तीन बेटियाँ या तीन बहनें हों या दो बेटियाँ या दो बहनें हों, और वह उनके साथ बहुत अच्छे तरीक़े से ज़िंदगी गुज़ारे यानी उनके जो हुकूक शरीयत ने मोक़र्रर फरमाए हैं वह अदा करे,

उनके साथ एहसान और बेहतर सुलूक का मामला करे, उनके साथ अच्छा बरताऊ करे और उनके हुकूक़ की अदाईगी के सिलसिले में अल्लाह तआला से डरता रहे तो अल्लाह तआला उसकी बदौलत उसको जन्नत में दाख़िल फरमाएगा ।(तिरमिज़ी शरीफ)

Betiyon ke liye zaroori hidayat.

छोटी बच्चियों को बचपन से हया करना, पर्दे में रहना सिखाएँ, अगर हया की चादर ओढ़ ली या माँ बाप ने उढ़ा दिया तो बचपन से बुढ़ापे तक हर हाल में उसकी आबरु और उसका वक़ार महफूज़ रहेगा फिर दुनिया के साथ साथ आख़िरत में भी कामयाबी मिलेगी इनशा अल्लाह ।

छोटी बच्चियों को बचपन ही से अल्लाह और उसके रसूल की मोहब्बत और उसके अहकाम की पाबंदी सिखाएँ । अमल में कोताही पर अल्लाह तआला का ख़ौफ़ दिलाएँ।

इबादत:-

छोटी बच्चियों में इबादत व रियाज़त का शौक़ पैदा करना चाहिए ताकि बालिग़ होने पर इबादत व रियाज़त में कोताही ना करें।

इस्तिक़ामत :- ताकि हालात चाहे जैसे हों लेकिन वह साबित क़दम रहे और अल्लाह तआला और उसके रसूल पर तवक्कुल (भरोसा) करें।

ज़ोहद फिद्दुनीया :- यानी दुनिया से दूरी और उसकी हिर्स व हवस से दिल ख़ाली रहे ताकि किसी के लालच में आ कर अपनी ज़िंदगी तबाह व बर्बाद ना करें।

आख़िरत की मोहब्बत :– ताकि दुनिया ना मिलने पर ग़म ना हो और आख़िरत पाने की ख़ाहिश से अल्लाह की रज़ा पर राज़ी रहे।औरत का नाज़ करना। Aurat ka Naaz karna.

ख़िदमत :- छोटी बच्चियों में ख़िदमत का जज़्बा पैदा करना चाहिए। यूं तो फ़ितरी तौर पर होता ही है बस ज़रा और उसको बढ़ा दें ताकि उसके ज़रिये माँ बाप के यहाँ और शादी के बाद शौहर के यहाँ हर किसी के दिल में अपना घर बना सके ।

ज़िद :- छोटी बच्चियों को बचपन ही से ज़िद जैसी ख़तरनाक बीमारी से बचाएं, उसके अंदर ज़िद हरगिज़ ना आने दे फिर उसे सब्र व शुक्र के साथ साथ ख़ुश रहना भी सिखाएँ ।

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लिबास :- बच्चियों के कपड़ों में भी यह ख़याल रखा जाए कि जानदार की तस्वीर न हो, ग़ैर मुस्लिमों के किसी शेआर की तस्वीर न हो, लड़कों के मुशाबा लड़की का लिबास न हो । याद रहे कि बच्ची ख़ुद मुकल्लफ नहीं लेकिन वालिदैन मुकल्लफ हैं।

लिहाज़ा अगर वह ग़ैर इस्लामी लिबास पहनाते हैं तो उनसे अल्लाह तआला इस का मूआख़ज़ा करेगा । आज कल बच्चियों को फिल्मों, ड्रामों वाले लिबास पहनाए जाते हैं जोकि समाज में बच्चियों के साथ बढ़ती हुई ज़ियादती व दरिंदगी के असबाब में से एक यह भी शुमार होता है। जब बच्चियों में बचपन ही से इस तरह के लिबास की आदत दिलवाएँगे तो बड़ी हो कर हरगिज़ मोहज़्ज़ब लिबास पहनने को तैयार नहीं होंगी।

अगर आप को अपनी बच्चियों से मोहब्बत है तो उनको बचपन ही से मगरबी लिबास से दूर रखें। ढीले ढाले मोहज़्ज़ब लिबास पहनने की आदत और कम से कम सिर मोकम्मल ढाँकने की आदत डालें ताकि भेड़ियों के निगाहे बद और हवस का शिकार होने से बची रहें।

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मोहब्बत का यह सुबूत हरगिज़ नहीं कि आप बेटी की परवरिश ना मोकम्मल महंगी लिबास पहना कर करते रहे और उसकी यह बुरी आदत बाद में आप को मुश्किल में डालने के साथ साथ आज़ाबे कब्र व हशर का सबब बने ।

बच्चियों को उरियाँ (अधूरा) लिबास और बेपरदगी के ख़तरात और उसके सबब से बच्चियों के साथ होने वाली ज़ियादतियों से आगाह करते रहें ।

वह बच्चियाँ जिनकी उम्र सात साल से कम होती है उनके लिए परदा नहीं लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उन्हें नंगा रखा जाये या दूसरे लोगों के सामने उन्हें कपड़े बदलवाए जाएँ या ग़ैर इस्लामी लिबास की आदत डाली जाये।

बच्ची में बचपन ही से हया पैदा करने के लिए उसे न तो दूसरों के सामने कपड़े बदलवायें, न नहलाएँ, न नाफ़ से घुटनों तक के हिस्से में दूसरों के सामने दावा वग़ैरा लगाएँ ताकि उसे यह पता हो कि इस जगह को दूसरों के सामने नंगा करना बुरी बात है ।

आज कल के दौर में बच्चियों को फैशन कराना एक आम रिवाज बन चुका है। औरतों ने फितनों को ख़ुद इतना बढ़ा दिया है कि अल्लाह बचाए ! जब माँयें ब्यूटिपार्लर से मेकअप करवा कर आती हैं तो वह अपनी सात आठ साल की बच्चियों को भी वहीं मेकअप करवाती हैं या बच्चियाँ मेकअप कराने की ज़िद्द करती हैं।

नतीजा यह कि पाँच पाँच छह छह साल की बच्चियों के साथ दरिंदगी के वाक्यात रुनमा हो रहे हैं । इस लिए फ़ितनों से बचने के लिए बच्चियों को सादा और मोहज़्ज़ब लिबास पहनाना चाहिए।घर ख़र्चों का बयान। Ghar kharcho ka Bayan.

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खेल-कूद माँ बाप को चाहिए कि छोटी बच्चियों के खेल-कूद में भी निगरानी करें। क्यूँकि आज कल फिल्मों ड्रामों की फहश तस्वीरें कम उम्र की बच्चियों में भी अपना असर उतार चुकी हैं। इस लिए जहां तक मुमकिन हो माँ बाप अपनी बच्चियों को फिल्मों ड्रमों से दूर रखने के साथ ख़राब साथियों के साथ खेल-कूद की इजाज़त हरगिज़ न दें ।

तालीम :- बच्चियों को तालीमे क़ुरान और अदब के साथ जहाँ तक हो सके अच्छी से अच्छी दीगर तालीम भी दिलवाएँ । बेटियों की तालीम किस क़दर ज़रूरी है बस इस से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि अहले अक़ल कहते हैं।

कि अगर एक औरत तालीम याफ़्ता हो गई तो गोया कि एक क़बीला तालीम याफ़्ता हो गया। बच्चों का पहला मदरसा व स्कूल माँ की गोद है । बच्चे सब कुछ यानी अदब, अक़ल, तकब्बुर सब वहीं सीखते हैं। लिहाज़ा बेटियों की तालीम का ख़ूब ख़याल रखें मगर ऐसी ख़लत मलत जगह से महफूज़ रखें जहाँ बुराइयाँ आम हों ।

ऐसी तालीम किस काम की जिस से फितना जन्म ले और इज्ज़त व आबरू महफूज़ ना हो और बच्चियाँ कहीं मुंह दिखाने के क़ाबिल ना हो । उरियानी, फहशगोई, बदकारियाँ उनके ज़ेहन व दिमाग़ में आए तो ऐसी तालीम और ऐसी जगह से दूर रखें वरना दुनिया व आख़िरत दोनों में माँ बाप की पकड़ होगी और सख़्त से सख़्त अज़ाब में गिरफ्तार होंगे।

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ग़म गुसारी :-
छोटी बच्चियों को ग़म गुसारी की तालीम दें ताकि अपने माँ बाप और रिश्तेदारों के ग़म को अपना ग़म समझे और उनके ग़म दूर करने और सब्र करने में मददगार बन कर हर दिल अज़ीज़ रहे ।

माँ बाप को चाहिए कि बच्चियों के सामने किसी तरह की वे हयाई की बात या काम न करे। मसलन फहशगोई (बुरी बात बोलना ) गाली गलोच, झगड़ा लड़ाई न करे। इस लिए कि ऐसा करने से आप की तरबियत बेअसर होगी और बच्चियों में यह आदत ब आसानी जल्द आ जाने का ख़तरा है।

माँ बाप को चाहिए कि अपनी बच्चियों के सामने एक दूसरे को ताना न दे और एक दूसरे को ज़लील न करे बल्कि एक दूसरे की इज्ज़त व क़दर करे ताकि बच्चियों की निगाह में माँ बाप की अज़मत बरक़रार रहे और उनकी तरबियत अच्छी से अच्छी हो सके ।

माँ बाप को चाहिए कि अपने किरदार को बच्चियों के सामने बहुत पाक और सुथरा रखे इस से आप की बच्चियों के किरदार भी आला (बुलंद) होंगे ।

Betiyon ke liye zaroori hidayat.

घरेलू काम :- माँ बाप को चाहिए कि छोटी बच्चियों से घर के कामों में मदद लें और बच्चियों को भी चाहिए कि घर के कामों में अपनी माँ का हाथ बटाए ताकि घरेलू काम काज की आदत बने ।

माँ बाप की बात ख़ूब तवज्जो से सुने और किसी क़िस्म का मामला होतो माँ बाप के सिवा किसी को मालूम न होने दे ।

ज़रूरी हिदायत को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।

क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।

खुदा हाफिज…

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