12/07/2025
बेमिस्ल शहादत। 20250613 184647 0000

बेमिस्ल शहादत। Bemisl Shahadat.

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Bemisl Shahadat.
Bemisl Shahadat.

इस्लाम की नशर व इशाअत और उस की बका के लिये बेशुमार मुसलमान अब तक शहीद किये गए मगर इन तमाम लोगों में सैय्युिदश-शुहदा हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की शहादत बेमिस्ल है कि आप जैसी मुसीबतें किसी दूसरे शहीद ने नहीं उठाईं।

आप तीन दिन के भूके प्यासे शहीद किये गए, इस हाल में कि आप के तमाम रुफका, अज़ीज़ व अकारिब व अहल व अयाल भी सब भूके प्यासे थे और छोटे बच्चे पानी के लिये तड़प रहे थे। यह आप के लिये और ज़्यादा मुसीबत की बात थी इस लिये कि इंसान अपनी भूक व प्यास तो बर्दाश्त कर लेता है लेकिन अहल व अयाल और खास कर छोटे बच्चों की भूक व प्यास उसे पागल बना देती है।

और जब पानी का वुजूद नहीं होता तो प्यास की तकलीफ़ कम होती है लेकिन जब कि पानी की बोहतात हो जिसे आम लोग हर तरह से इस्तेमाल कर रहे हों यहां तक कि जानवर भी उस से सैराब हो रहे हों मगर कोई शख़्स जो तीन दिन का भूका प्यासा हो उसे न पीने दिया जाए तो उस के लिये ज़्यादा तकलीफ़ की बात है।

और मैदाने करबला में यही नक्शा था कि आदमी और जानवर सभी लोग दरियाए फुरात से सैराब हो रहे थे, मगर इमामे आली मकाम और उनके तमाम रुफका पर पानी बन्द कर दिया गया था यहां तक कि आप अपने बीमारों और छोटे बच्चों को भी एक कतरा नहीं पिला सकते थे।

* उस की कुदरत जानवर तक आब से सैराब हों,
* प्यास की शिद्दत में तड़पे बे ज़बाने अहले बैत।

और फिर गैर ऐसा करे तो तकलीफ़ का ऐहसास कम होगा और यहां हाल यह है कि खाना पानी रोकने वाले अपने को मुसलमान ही कहलाते हैं, कलमा पढ़ते हैं, नमाज़ें अदा करते हैं और उनके नाना जान का इस्मे गरामी अज़ानों में बुलन्द करते हैं मगर नवासे पर जुल्म व सितम का पहाड़ तोड़ते हैं।

अगर्चे हज़रत उस्माने गनी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु पर भी पानी बन्द कर दिया गया था मगर वह अपने घर और अपने वतन में थे और इमामे आली मकाम अपने घर से दूर और बे वतन हैं, इस के साथ तेज़ धूप, तपती हुई ज़मीन और गर्म हवाओं के थपेड़ें भी हैं।हज़रत नूह अलैहिस्सलाम और उनकी क़ौम।

और आप को यह अंदेशा भी दामनगीर था कि मेरी शहादत के बाद मेरा तमाम साज़ व सामान लूट लिया जाएगा, खेमा जला दिया जाएगा, मस्तूरात बेसहारा हो जायेंगीं और उन्हें कैद कर लिया जाएगा।

इन हालात में अगर रुस्तम भी होता तो उस के हौसले पस्त हो जाते और वह अपनी गर्दन झुका देता लेकिन सैय्यिदुश शुहदा हज़रत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु उन मसाइब व आलाम के हुजूम में भी बातिल के मुकाबिले के लिये सब्र व रज़ा का पहाड़ बन कर काइम रहे और आप के पाए इस्तिक़्लाल में लग़ज़िश नहीं पैदा हुई यहां तक कि 73 ज़ख़्म खा कर शहीद हो गए और आप की लाशे मुबारक घोड़ों की टापों से रौन्दी भी गई।

आप की यह शहादत बे मिस्ल है जिस ने यज़ीदिय्यत को मुर्दा कर दिया, उसे दुनिया में नहीं फैलने दिया और दीने इस्लाम को मस्ख होने से बचा लिया। इसी लिय सुल्तानुल हिन्द हज़रत ख़्वाजा गरीब नवाज़ अजमेरी रहमतुल्लाहि तआला अलैह फरमाते हैं:
शाह अस्त हुसैन बादशाह, अस्त हुसैन,
दीन अस्त हुसैन दीं पनाह अस्त हुसैन।
सर दाद, नदाद दस्त दर दस्ते यज़ीद
हक़्का़ कि बिनाएं ला इलाह अस्त हुसैन।

अल्लाह से एक दिली दुआ…

ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।

प्यारे भाइयों और बहनों :-

अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।

क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
खुदा हाफिज़…..

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