नाज़’ की वजह से ‘अज़वाज मुतहरात” भी हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से लौट-पौट कर लिया करती थीं और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बात का जवाब दे दिया करती थीं। पूरे दिन बात नहीं करती थीं और अपनी मांगों को ऊंची आवाज़ में उठाती थीं ।
क्योंकि औरतों को अपने हक़ की मांग करने में सख्ती करने और गिड़गिड़ाने का हक़ है। शेखी, अदा, लगावट ,हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बीवियां एक बार हज़रत आइशा रज़ि० और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में कुछ झगड़ा हो गया,
और दोनों ने हज़रत अबूबक्र सिद्दीक रजिअल्लाह अन्हु को जज बनाया हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि पहले आप बयान करेंगी या पहले मैं बयान करूं।
हज़रत आयशा सिद्दीक़ा रजिअल्लाह ने कहा, पहले आप बयान कीजिए, लेकिन सच सच बोलिएगा। यह सुन कर हज़रत अबूबक्र सिद्दीक रज़ि. को गुस्सा आ गया और आपने हज़रत आइशा रज़ि. को तमांचा (थप्पड़ मारा और फरमाया ऐ नफ़्स की दुश्मन क्या हुजूर सल्ल. झूठ बोल सकते हैं?Aurat ka Naaz karna.
हज़रत आइशा रज़ि. ने आपके गुस्से की तेज़ी से डर कर हुजूर सल्ल. की पीठ के पीछे पनाह ली। हुजूर सल्ल. ने अबूबक्र रज़ि. को रोक कर फ़रमाया, ऐ अबूबक्र हमने तुम को इसलिए नहीं बुलाया था।इस्लाम में बीवी के हुकूक।
किस्सा-ए- इफ्क में आया है कि जब हज़रत आइशा रज़ि. की बराअत ( सफाई, छुटकारा ) एक महीने बाद अल्लाह ने नाज़िल फरमाई तो हज़रत आइशा की वालिदा माजिदा ‘रज़ि. ने फ़रमाया, ‘खड़ी हो जाओ और हुजूर का शुक्रिया अदा करो।’
हज़रत आइशा ने पहले फरमाया कि मैं हुजूर के शुक्रिए के लिए हरगिज़ न खड़ी होऊंगी और हुजूर से कहा, न आप का शुक्रिया है और न किसी और का मैं उस अल्लाह तआला का शुक्रिया अदा करती हूं जिसने मेरी बराअत नाज़िल फरमाई।(बुखारी)Aurat ka Naaz karna.
और फतहुलबारी में अस्वद से रिवायत है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत आइशा रज़ि. का हाथ थाम लिया। हज़रत आइशा रज़ि. ने गुस्से से हुजूर सल्ल. का हाथ झटक कर अपना हाथ छुड़ा लिया। इस पर हज़रत अबूबक्र रज़ि. ने हज़रत आइशा रज़ि. को झिड़का।
प्यारे नबी सल्ल. का तरीका
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हज़रत आइशा रज़ि. को खुश करने के लिए उनकी सहेलियों को गुड़िया खेलने के लिए भेज देते थे और कभी-कभी अपने आप भी पूछते थे ‘यह कैसी गुड़िया है?
चुनांचे एक बार एक गुड़िया घोड़े की शक्ल की दिखाई दी, जिसके दो बाजू लगे थे। आपने पूछा ‘यह घोड़ा कैसा है और इसके बाजू कैसे हैं?” हज़रत आइशा रज़ि. ने जवाब दिया कि क्या सुलैमान अलैहिस्सलाम के घोड़े के बाजू न थे। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बहुत हंसे। (अबूदाऊद)
अक्सर हज़रत आइशा रज़ि. फरमाती हैं कि जब हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम घर में होते तो घर के कामों में औरतों का हाथ बंटाते थे। (बुखारी शरीफ)
और एक बार अपनी आड़ में पर्दा कर के हब्शियों का जंगली खेल देर तक दिखाते रहे। (बुखारी शरीफ)Aurat ka Naaz karna.
हज़रत आइशा रज़ि. फरमाती हैं कि एक बार मेरी और हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दौड़ हुई। मैं आगे निकल गई। बहुत दिनों के बाद फिर एक बार दौड़ हुई तो हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आगे निकल गये,हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया-लो यह उस का बदला है। (अबूदाऊद)
एक बार अज़वाज मुतहहरात को खुश करने के लिए आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मारिया किन्तिया लौंडी को अपने ऊपर हराम कर लिया और एक बार औरतों के कहने से शहद के लिए फ़रमाया कि कभी नहीं पीउंगा। इस पर अल्लाह की तंबीह इस तरह नाज़िल हुई,
‘आप इन चीज़ों को अपनी बीवियों की खुशी चाहने के लिए अपने ऊपर हराम क्यों करते हैं।’ (कुरआन मजीद) बड़ी बच्चियों के लिए खास हिदायात।
और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि औरतों से इनकी बेटियों के मामले में (शादी वगैरह के बारे में) मश्वरा कर लिया करो। (अबूदाऊद)
हुजूर सल्ल. ने फरमाया कि हर झूठ लिखा जाता है। मगर तीन झूट नहीं लिखे जाते। पहला वह जो मर्द अपनी बीवी और औलाद को खुश करने के लिए बोले, दूसरा जो दो मुसलमानों में मेल-मिलाप कराने के लिए बोला जाए, तीसरा वह जो काफिरों की लड़ाई में जीतने के लिए बोले ।
अगर औरत के हुस्न में कोई बात पसन्द न हो तो उसका ज़िक्र न करे इससे उसको दुख होगा। अगर एक बात नापसन्द हो तो और बहुत सी बातें पसन्द भी होंगी, बेऐब ख़ुदा है।Aurat ka Naaz karna.
ना ही औरत के सामने किसी और औरत का हुस्न व जमाल बयान करे इससे भी उस को दुख होगा और औरत को मर्द पर भरोसा नहीं रहेगा। यह भी जाहिली या जानवर पन है कि जब जी भर गया तो औरत दिल से उतर गयी बस बेरुख़ी के मामले करने लगे और दुख पर दुख व तक्लीफ पर तक्लीफ देने लगे।
यह बहुत अफ़सोस की बात है। बल्कि ऐसी हालत में तो ख़ूब (खुल) कर हंसी मज़ाक करना वाजिब होगा, जिस से औरत यही समझे कि मेरा मर्द मुझे बहुत चाहता है और उसको मर्द पर पूरा यकीन रहे ।
नोट- अगर शरीफ औरतों के हुकूक अदा करने की ताकत या हिम्मत न हो तो फिर किसी मुसलमान लौंडी (दासी) से निकाह (शादी) करना चाहिए। या लौंडी ख़रीदनी चाहिए। अगर इसकी भी ताकत न हो तो फस्द खुलवाये और रोज़े पर रोज़ा रखे।
अल्लाह रबबूल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे,हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम (स.व) से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे,आमीन।Aurat ka Naaz karna.
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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।
खुदा हाफिज…