आज के नवजवानों में तरह तरह की बुराईयों जन्म ले चुकी है जिस की सब से बड़ी वजह दीन की तअलीम से दूरी है इस के अलावा फ़िल्में देखने का आम चलन, औरतों और कुँवारी लड़कियों का बेपर्दा, सज- धज कर सड़कों पर खुले आम घुमना वगैरा वग़ैरा जैसी बुराईयाँ हैं ।
आज के मॉडर्न नवजवान जिना (बलत्कार) ग़ैर औरतो से छेड़ छाड़ जैसे गुनाह को गुनाह ही नहीं समझते यहाँ तक की कुछ नवजवान तो पेशावर औरतों के पास जाने में भी कोई शर्म व झिझक तक महसूस नहीं करते बल्कि इसे मर्दानगी का सुबूत व Certificate समझते है, और जो शख्स येह सब नहीं करता वोह इन अय्याशों की नज़र में बेवकुफ, बुज़दिल ना मर्द समझा जाता है । आह ! किस कदर जहालत है येह ।
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इरशाद फरमाता हैं- तर्जमा :- और मुसलमान औरतों को हुक्म दो अपनी निगाहें कुछ नींची रखे और पारसाई की हिफाज़त करे और अपना बनाओ न दिखाए मगर जितना खूद ही ज़ाहिर है और दुपट्टे अपने गिरेबानों पर डाले रहें और अपना सिंगार जाहिर न करे मगर अपने शौहरों पर। (तर्जुमा :- कन्जुल ईमान, पारा 18, सूरए नूर आयत 31 )Aaj ka Mahaol aur Buraiyan.
इस आयते करीमा में अल्लाह रब्बुल ईज्ज़त ने साफ़ साफ़ हुक्म दिया है कि अपनी निगाहें नीचे रखें अपना बनाव सिंगार अपने शौहर के लिए ही करे गैर मर्दों के लिए नहीं, और अपने सीने और सर पर डुपट्टे डाले रहे । लेकिन आज मामला उल्टा ही नज़र आ रहा है ।कुव्वत (ताक़त) की बरबादी।
अक्सर औरतें घर में तो गन्दी बैठी रहती हैं लेकिन जब बाहर निकलना होता हैं तो खूब बन संवर कर निकलती है- गोया गन्दगी उनके अपने शौहर के लिए और सिंगार व सफाई गैर मर्दों के लिए ।
हदीसे पाक में सरकार सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम ने औरतों को घर में साफ और सज धज कर रहने का हुक्म दिया ताकि शौहर अपनी बीवी को ही पसंद करे और गैर औरतों की तरफ न जाए, लेकिन अफसोस आज मामला ही उल्टा हो चुका है।
हदीस :- रसूले करीम सल्लल्लाहो तआला अलैह व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया-
“औरत, औरत है यानी छुपाने की चीज़ है जब वोह निकलती है तो उसे शैतान झॉक कर देखता है यानी उसे देखना शैतानी काम है”। (तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द 1 बाब नं. 796, हदीस नं. 1173, सफा नं. 600) Aaj ka Mahaol aur Buraiyan.
कबूतर बाजी में मर्द और औरतें दोनों कुसूरवार है। मर्द ऐसे कि वोह उनसे बद निगाही करते हैं उन्हें छेड़ कर उन की बेईज्ज़ती करते है । और औरतें इस तरह कि वोह बे पर्दा सड़कों पर खुले आम निकलती है ताकि मर्द उसे देखे ।निकाह का बयान।
हदीस :- आका सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम-फ़रमाते है “जिस गैर औरत को जान बूझ कर देखा जाए और जो औरत अपने को जान बूझ कर गैर मर्दों को दिखलाए उस मर्द और औरत पर अल्लाह की लअनत” ।(मिशकात शरीफ, fजल्द 2 होस नं. 2991,17)
हदीस :- हज़रत मैमूना बिन सआद रीअल्लाहो अन्हुमा से रिवायत है हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम ने इरशाद फरमाया–
” अपने शौहर के सिवा दूसरों के लिए जिनत के साथ दामन घसिटते हुए (इतराकर) चलने वाली जब मर्द गैर औरत को देखता है और औरत गैर मर्द को देखती हैं दोनों की आँखें जिना करती है” । औरत कियामत के अंधेरों की तरह है जिसमें कोई रौशनी न हो” । (तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द 1 बाब नं. 791, हदीस नं. 1166, सफा 597 )
हदीस :- हमारे आका सरकारे मदीना सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया “मर्द का गैर औरतों को और औरत का गैर मर्दों को देखना आँखों का जिना है, पैरों से उस की तरफ चलना पैरों का जिना है कानों से उस की बात सुनना कानों का जिना है,
ज़बान से उस के साथ बातें करना ज़बान का जिना है दिल में ना जाइज़ मिलाप की तमन्ना करना दिल का जिना है, हाथों से उसे छूना हाथ का जिना है । (अबू दाऊद शरीफ, जिल्द 2, बाब नं. 121, हदीस नं. 385, सफा नं. 147) Aaj ka Mahaol aur Buraiyan.
हदीस :- हज़रत जरीर बिन अब्दुल्लाह(र.अ)का बयान है की “मैं ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम से अचानक नज़र पढ़ जाने के मुत्अल्लिक पुछा तो फरमाया कि ” अपनी नज़र फेर लिया करो”। –(मिश्कात शरीफ, जिल्द 2 हदीस नं. 2970, सफा नं. 23) तिब्बे नबवी ।(दवाओ का नुस्खा)
हदीस :- हमारे आका सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम फरमाते है “जब गैर मर्द और गैर औरत तनहाई में किसी जगह एक साथ होते है तो उन में तीसरा शैतान होता है”।
हदीस :- सरकारे मदीना मल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया -“तन्हा गैर औरत के पास जाने से परहेज़ करो”। एक सहाबी ने सवाल किया “या रसूलुल्लाह ! देवर के बारे में क्या इरशाद है” ? फ़रमाया ” देवर तो मौत है”! (बुख़ारी शरीफ, जिल्द 3, बाब नं. 141, हदीस नं. 216, सफा नं 108)
अब आप खुद अन्दाज़ा लगाईये जब देवर के सामने भी भाभी को आने से मना किया गया और यहाँ तक कि उसे मौत की तरह बताया तो फिर भला बताईये सड़कों पर शादियों में, और दिगर मुकामात पर गैर मर्दों का औरतों के सामने आना और औरतों का गैर मर्दों के सामने बे हिजाब आना किस कदर ख़तरनाक होगा ।Aaj ka Mahaol aur Buraiyan.
लिहाजा माँ बाप पर ज़िम्मेदारी है कि वोह अपनी जवान कुँवारी लड़कियों को पर्दा करवाए और बे फ़ज़ूल बाज़ारों और सड़कों पर घुमने से रोके । इसी तरह शादी शुदा मर्दों पर भी जरूरी है कि वोह अपनी औरतों को पर्दा करवाए ।
इमाम गज़ाली रजि अल्लाहो तआला अन्हो ने क्या खूब फ़रमाया है, फरमाते हैं-“मर्द अपनी औरत को घर की छत और दरवाज़े पर न जाने दे ताकि वोह गैर मर्द को और गैर मर्द उस को न देख सके और खिड़की दरवाज़े से मर्दों का तमाशा देखने की इजाजत न दे कि तमाम आफते आँख से पैदा होती है घर में बैठे नहीं पैदा होती बल्कि खिड़की, रौशनदान छत दरवाजे से पैदा होती है । (कीम्या-ए-सआदत, सफा नं. 263) सूरते इन्जाल यानी मनी का निकलते रहना।
हदीस :- हज़रत उम्मे सलमा रजि अल्लाहो अन्हा फरमाती “एक दिन एक नाबीना (अन्धा) सहाबी सरकार सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम से मिलने आए मैं और सरकार की दूसरी बीवीयाँ वही बैठी थी सरकार ने इरशाद फ़रमाया-“पर्दा कर लो” फरमाती है हम ने अर्ज़ किया — “या रसूलुल्लाह ! येह तो हमें देख नहीं सकते ” ? फ़रमाया–“तुम तो अन्धी नहीं हो तुम तो देख सकती हो” ।( अबूदाऊद, जिल्द 3, बाब नं. 258, हदीस नं. 711, सफा 246, तिभिजी, जि. 2 स. 279)
अब ज़रा अंदाज़ा लगाईये जब नाबीना से भी सरकार सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम ने अपनी अज़वाहे मुतहरात (बीवीयों) को पर्दा करवाया तो क्या आज की इन औरतों को पर्दा करना जरूरी न होंगा ? यकीनन ज़रूरी होगा । वरना अज़ाबे कब्र व दोजख उनके लिए तैयार है ।
हदीस :- सरकारे दो आलम सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया–“जब मर्द के सामने कोई अजनबी औरत आती हैं तो शैतान की सूरत में आती है जब तुम में से कोई किसी अजनबी औरत को देखे और वोह उसे अच्छी मअलूम हो तो चाहिये कि , अपनी बीवी से सोहबत करलें ताकि गुनाह से बच जाए तुम्हारी बीवी के पास भी वही चीज़ मौजूद है जो उस अजनबी औरत के पास मौजूद है और अगर किसी के पास बीवी न हो तो वोह रोज़ा रखे कि रोज़ा गुनाह से रोकने वाला और हवस को मिटाने वाला है। (तिर्मिजी शरीफ, जिल्द 1, सफा नं. 594, मिशकात शरीफ, जिल्द 2, सफा नं. 73) Aaj ka Mahaol aur Buraiyan.
मसअला :– कुछ औरतें अपने मर्दों के सामने मनीहार चड़ीयाँ बेचने वालों के हाथ से चूड़ीयाँ पहनती है, येह हराम हराम- हराम है । हाथ दिखाना गैर मर्द को हराम है। उस के हाथ में हाथ देना हराम है । जो मर्द अपनी औरतों के साथ इसे जाइज़ रखते हैं दैयूस यानी बेगैरत इनसान है । (फतावा-ए-रज़वीया, जिल्द 9 सफा नं. 208)
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क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।
खुदा हाफिज…