
कुरान व अहादीस की रोशनी में ये बात पूरी तरह से वाज़ेह हो चुकी है कि इन्सान को दुनियाँ में अल्लाह तआला ने सिर्फ अपनी इबादत और नेक अमल करने के लिए पैदा फ़रमाया और दुनियाँ को इन्सान के लिए और इन्सान को आखिरत के लिए पैदा फ़रमाया तो सबसे पहले हमें ये बात ज़हन नशीन कर लेनी चाहिए कि हम सिर्फ़ अल्लाह की इबादत और नेक अमल करने के लिए दुनियाँ में भेजे गये हैं और हमें दुनियाँ के लिए नहीं बल्कि आख़िरत के लिए पैदा किया गया है इसके अलावा हमारा दुनियाँ में आने का और कोई दूसरा मक़सद नहीं है तो हमें चाहिये अपने मक्सद को जानते और मानते हुए और इसी मक्सद के मुताबिक दुनियाँ में अपने कामों को अंजाम दें।
दुनियाँ में हमें जो नेअमतें मयस्सर हुई हैं जैसे माल औलाद बीवी व मकानात व ताक़त व हुस्नों जमाल वगैराह व दीगर तमाम चीज़ें ये सब हमें ऐशो इशरत के लिये नही दी गईं बल्कि इन तमाम चीजों से हमारे आमाल और हमारी आजमाइशें जुड़ी हुई हैं और इन चीज़ों के ज़रिये अल्लाह तआला हमें आज़माता है और देखता है कि कौन बन्दा कैसे अमल करता है।
जैसे किसी शख़्स को अल्लाह तआला ने खूबसूरत बीवी अता की तो उसे उस खूबसूरत बीवी के ज़रिये अल्लाह तआला आज़माइश में डालता है और देखता है कि बन्दा अपनी बीवी की मुहब्बत में कैसे अमल करता है हमें याद रखता है या नहीं और मेरा ज़िक्र करता है या नहीं और मेरा शुक्र अदा करता है या नहीं और मुझसे सबसे ज़्यादा मुहब्बत करता है या अपनी बीवी से करता है और बन्दा मेरा गुलाम रहता है या अपनी बीवी का और मेरे और मेरे महबूब के रास्ते पर चलता है या अपनी बीवी के बताये रास्ते पर चलता है और बन्दा मेरा हुक्म मानता है या अपनी बीवी का हुक्म मानता है तो इस तरह उसकी आज़माइश की जाती है और इसके ज़रिये उस बन्दे के आमाल देखे जाते हैं और उसे उसके आमाल के मुताबिक सवाब या अज़ाब दिया जायेगा।
और इसी तरह जब किसी शख़्स को अल्लाह तआला बसूरत बीवी नहीं देता तो उसे भी आज़माया जाता है और अल्लाह तआला देखता है क्या बन्दा मेरी अता पर राज़ी है या वो दूसरों की औरतों को देखकर गमगीन होता है और सोचता है कि मुझे फलाँ औरत जैसी खूबसूरत बीवी अता क्यों नहीं हुई और क्या उसे अपने दुनियाँ में आने का मक़सद याद है या भूल गया कि मैने उसे अपनी इबादत और नेक अमल के लिए दुनियाँ में भेजा न कि खूबसूरत बीवी के साथ ऐशो आराम के लिए भेजा।
अगर वो शख़्स अपने दुनियाँ में आने का मक़सद याद रखता है और कहता कि मुझे मेरे रब ने जो कुछ भी अता किया है मैं उस पर राज़ी हूँ और वो अल्लाह तआला का शुक्र अदा करता है और सब्र पर क़ायम रहता है और कहता कि मैं सिर्फ रब तआला की इबादत और नेक अमल के लिए पैदा किया गया हूँ और जिस काम के लिए मैं पैदा किया गया सिर्फ वही काम करूँगा जैसे रोज़ा, नमाज़, हज वगैराह और दीगर तमाम अच्छे काम करूँगा और बुराई और गुनाहों से दूर रहूँगा और रहा मामला मेरी बीवी का तो मैं उसके लिए पैदा नहीं किया गया जो मैं उसके बारे में सोचूँ और फिक्र करूँ और वो इस तरह नेक अमल करता है और अल्लाह व रसूल की इताअत करता है और वो अल्लाह तआला के इम्तिहान में पास हो जाता है और जन्नत का मुस्तहिक बन जाता है जहाँ उसे खूबसूरत हसीन बीवी के अलावा हुस्नो जमाल की पैकर बड़ी बड़ी आँखों वाली हूरें अता होंगी और बेशुमार नेअमतें उसे मिलेंगी।
इसी तरह माल का मामला है कि जब अल्लाह तआला किसी को माल देता है तो उसे माल के ज़रिये आज़माता है कि मेरे अता किये हुये माल को बन्दा किस तरह खर्च करता है कितना मेरी राह मे ख़र्च करता है और कितना गुरबा मसाकीन और फुक्रा में ख़र्च करता है और उस माल पर मेरा शुक्र अदा करता है या नहीं और अपने माल की ज़कात निकालता या नहीं और इसी तरह गरीब को भी आज़माता है कि वो सब्र करता है या नहीं और अपने इस हाल पर राज़ी है या नहीं और इन्सान का खुद का जिस्म भी आज़माइश है और अल्लाह तआला देखता है कि बन्दा अपने जिस्म को किस काम में लगाता है बुराई या गुनाह की तरफ या इबादत और नेक काम की तरफ लगाता है।
और इसी तरह औलाद भी आज़माइश है और अल्लाह तआला देखता है कि बन्दा औलाद की मुहब्बत में कितना मुब्तिला होता है और उस मुहब्बत के बाइस वो कैसे अमल करता है वो गुमराही के रास्ते पर चलता है या मेरे और मेरे महबूब सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के रास्ते पर चलता है और मेरा शुक्र गुज़ार बन्दा बनता है या औलाद की मुहब्बत में हमें भूल जाता है और मेरा ज़िक्र छोड़ देता है और औलाद की तालीम व तरबियत के लिये कैसे अमल करता है हलाल रोज़ी कमाता या हराम और अपने दिल में ख़ौफे खुदा रखता या मखलूक का ख़ौफ़ रखता और औलाद की मुहब्बत उस पर ग़ालिब आती या फिर अल्लाह की मुहब्बत को तरजीह व अहमियत देता और कायनात की हर शैः पर अल्लाह की मुहब्बत को ग़ालिब रखता इसी तरह इन्सान की ज़िन्दगी से जुड़ी हर चीज़ आज़माइश है और दुनियाँ की तमाम चीजें कुछ वक़्त इस्तेमाल के लिये हैं हमेशगी के लिये नहीं हैं और अल्लाह तआला अपने बन्दों को आज़माइश में डालकर उसके आमालों की जाँच करता है कि बन्दा दुन्यावी अशया (चीज़ों) मे मुब्तिला होकर कैसे अमल करता है इसलिये हमें चाहिये कि पूरी तरह से ज़हन मे बिठालें कि दुनियाँ और जो कुछ उसमें मौजूद है वो सब हमारे लिये आज़माइश है और हमें अल्लाह तआला ने अपनी इबादत व नेक आमाल के लिये पैदा फरमाया और अगर दुनियाँ में हमें कोई नेअमत न मिलें तो हमे चाहिये कि गमगीन न हों और न अफसोस करें बल्कि सब्र करें और अपने इम्तिहान को नेक आमाल के ज़रिये पास करें ताकि जन्नत में मिलने वाली अज़ीम दायमी नेअमतों के मुस्तहिक बन जायें और जब हम किसी दूसरे के पास वो नेअमत देखें जो हमारे पास नहीं है तो हमें चाहिये कि हसद न करें बल्कि ये ख़्याल करें कि हम इन नेअमतों के हासिल करने और उनके इस्तेमाल के लिये पैदा नहीं किये गये हैं बल्कि नेक अमल और इबादत के लिये पैदा किये गये हैं तो इस तरह हम सब्र और रब की रज़ा पर कायम रह सकते हैं और बुराई और गुनाह से बच सकते हैं और इस तरह हम किसी भी नेअमत के न मिलने पर रंजीदा व गमगीन न होंगे।
और कोई भी शख़्स उस वक़्त तक कामिल मोमिन नहीं हो सकता और न सिराते मुस्तकीम पा सकता है जब तक कि वो दुनियाँ को इम्तिहान गाह न जानें और अपने दुनियाँ में आने के मक्सद के मुताबिक अमल न करे इसलिये हमें चाहिये कि दुनियाँ में हमें जो कुछ अता हो उस पर राज़ी रहें और अल्लाह तआला का शुक्र बजा लायें और जो चीज़ हमें दुनियाँ में न मिले उस पर सब्र करें और हर हाल में सिर्फ़ और सिर्फ़ नेक अमल करें।
कुरान मजीद में अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है- बेशक तुम्हारे माल और तुम्हारी औलाद सब आज़माइश हैं।(सू०-तगाबुन-15)
इरशादे बारी तआला है- और जो ईमान लाये और अच्छे काम किये वो जन्नत वाले हैं और उन्हें वहाँ हमेशा रहना है। (सू०-बकरह-82)
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त फरमाता है- बेशक जो ईमान लाये और अच्छे काम किये वही तमाम मखलूक में बेहतर हैं। (सू०-बइयना-7)
इरशादे खुदा वन्दी है- तुम्हें जो कुछ भी (माल व मताअ) दिया गया है वो दुन्यावी ज़िन्दगी का यानी चन्द दिनों का फायदा है और जो कुछ अल्लाह तआला के पास है वही बेहतर है और बाकी रहने वाला है ये उन लोगों के लिये है जो ईमान लाते और अपने रब पर भरोसा करते हैं और जो कबीरा (बड़े) गुनाहों और बेहयाई के कामों से बचते हैं और जब उन्हें गुस्सा आता है तो माफ कर देते हैं और वो जिन्होंने अपने रब का हुक्म माना और नमाज़ कायम रखते हैं और उनका काम आपसी मशवरे से होता है और हमारे दिये हुये (माल) से हमारी राह में ख़र्च करते हैं। (सू०-शूरा-36-38)
मुन्दरजा बाला आयात से वाज़ेह हुआ कि अल्लाह तआला के नज़दीक वही लोग बेहतर हैं जो नेक काम करते हैं और अल्लाह तआला ने उनके लिये जन्नत को आरास्ता किया है जिसमें वो हमेशा हमेशा रहेंगें और उसमें वो कसीर नेअमतें और लज़्ज़तें पायेंगे जो न किसी आँख ने देखी और न किसी कान ने सुनी और ये उनके नेक आमालों के बाइस उन्हें अता की जायेगी।
क़यामत के दिन आमालों की पुरसिश यानी पूछ होगी और जो लोग दुनियाँ में अच्छे आमाल करते हैं तो क़यामत के दिन हिसाब उन्हें खौफ ज़दा नहीं करेगा और कयामत की सख़्तियों और तकलीफों से वो महफूज़ रहेंगें और जो लोग बुरे आमाल करते हैं तो वो उस दिन की सख़्तियों और तकलीफों में मुब्तिला होंगें और अल्लाह तआला ने इन्सान की तख़लीक जिस काम के लिये की है अगर बन्दा वो काम नहीं करेगा तो वो अल्लाह के ग़ज़ब का शिकार होगा और अल्लाह तआला हमारी शक्लों और मालों को नहीं देखता बल्कि वो तो सिर्फ हमारे आमालों को देखता है।
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया-बेशक अल्लाह तआला तुम्हारी शक्ल और तुम्हारे माल को नहीं देखता बल्कि वो सिर्फ तुम्हारे आमाल को देखता है। (सही मुस्लिम-2/317)
सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया-इन्सान के तीन दोस्त हैं एक जो मौत तक साथ रहता है वो माल है दूसरा वो जो कब्र तक साथ रहता है वो उसके घर वाले हैं तीसरा वो जो मैदाने हशर तक साथ रहता है वो उसका अमल है। (मुस्नद अहमद-3/110)
हमारे दोस्त, रिश्तेदार, घर वाले, हमारे माँ बाप और हमारी औलाद और वो माल जो दुनियाँ में हमने कमाया वो आखिरत में हमारे साथी और मददगार न होंगें बल्कि हमारे साथी और मददगार सिर्फ हमारे आमाल होंगे।
कुरान मजीद में अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है-और डरो उस दिन से जिसमें अल्लाह की तरफ फिरोगे और हर जान को उसके आमाल का पूरा पूरा बदला दिया जायेगा और उन पर जुल्म नहीं किया जायेगा (सू०-बकरह-281)
जो लोग अल्लाह व रसूल की नाफरमानी करते और बुरे काम करते हैं वो लोग अपने बुरे आमालों के बाइस सख़्त अज़ाब से घिरे होंगे और अल्लाह तआला से अर्ज़ करेंगे कि हमें वापस दुनियाँ में भेज दे ताकि हम अच्छे काम करें लेकिन वापस लौटना मुमकिन न होगा।
खूबसूरत वाक़िआ:-इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन।
कुरान मजीद में अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है-जब मुजरिम अपने रब के पास अपने सरों को झुकाये हुये कहेंगे ऐ मेरे रब हमने देखा और सुना हमें वापस लौटा दे ताकि हम अच्छे काम करें।(सू०-सजदा-12)
और जो लोग दुनियाँ में मुसीबतो परेशानी से दो चार होने के बावजूद अल्लाह तआला की रज़ा के लिये नेक अमल करते हैं तो अल्लाह तआला उन लोगो से राज़ी होता है और उनकी दुआओं को कुबूल फरमाता है और उन्हें उनके नेक अमल का बेहतर सिला(बदला) अता फरमाता है।
कुरान मजीद में अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है- और अल्लाह तआला दुआ कुबूल फरमाता है उनकी जो ईमान लाये और अच्छे काम किये और उन्हें अपने फ़ज़्ल से और इनाम देता है और काफ़िरो के लिये सख़्त अज़ाब है।(सू०-शूरा-26)
इरशादे बारी तआला है-बेशक जो लोग ईमान लाये और नेक अमल किये यकीनन हम उनके अज्र को ज़ाया नहीं करते जिनके काम अच्छे हों।(सू०-कहफ-30)
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया-दो किस्म के लोग हैं जो काबिले रश्क हैं एक वो जिनको अल्लाह तआला ने माल दिया और वो राहे खुदा में खर्च करते हैं दूसरे वो जिनको अल्लाह तआला ने इल्म दिया और वो उस पर अमल करते हैं। (मुस्नद अहमद-1/385)
पस हमें चाहिये कि नेक आमाल को अपनी ज़िन्दगी का मक़सद बनालें और अल्लाह व रसूल के अहकामात और सुन्नतों पर कसरत से अमल करें ताकि हमारा खात्मा बा ईमान और बा खैर हो और हमें अल्लाह व रसूल की कुर्बत हासिल हो।
सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया-जिसने मेरी सुन्नतों से मुहब्बत की उसने मुझ से मुहब्बत की और वो जन्नत में मेरे साथ होगा (तिर्मिज़ी-4/309)
इन्सान को चाहिए कि तन्हाई में बैठकर गौरो फिक्र करे कि वो जिस घर में रहता है उसी घर से उसकी मइयत भी निकलेगी और जिस आँगन में वो चलता फिरता है उसी आँगन में उसका आखिरी गुस्ल होगा और वो जिस बिस्तर पर लेटता है वो बिस्तर एक दिन उसे छोड़ देगा और वो ख़ाक पर लेटेगा और वो लोग जिनसे वो बेहद मुहब्बत करता है और जिनके लिये वो माल जमा करता है वो तमाम लोग उसके लिये बेगाने हो जायेंगें और वो जिस घर से मुहब्बत करता है उसी घर से एक दिन निकाला जायेगा और जिस मिट्टी को वो अपने तन और कपड़ों से जुदा रखता है और उससे नफ़रत करता है उसी मिट्टी के वो सुपुर्द किया जायेगा और कब्र की तन्हाई में उसका साथी व दोस्त और मददगार सिर्फ़ उसके आमाल होंगें इसलिये हमें चाहिये कि कसरत से नेक अमल करें।
बाज़ लोग कहते हैं कि अल्लाह तआला अपने नेक बन्दों की दुआयें कुबूल नहीं करता और उन्हें परेशानियों में मुब्तिला रखता है तो इसमें हिकमते इलाही है कि अल्लाह तआला अपने नेक बन्दों की हर दुआ इसलिये कुबूल नहीं करता कि कहीं उस पर उसकी तमन्नाओं और ख्वाहिशों का गलबा न हो जाये जो उसकी हलाकत का सबब बने और उसकी परेशानियाँ उसकी आज़माइश है जिस तरह सोना तपने के बाद खरा और कुन्दन बनकर निकलता है इसी तरह अल्लाह तआला अपने बन्दों को परेशानियों में मुब्तिला रखकर आज़माता है कि बन्दा अपने ईमान पर कितना मज़बूत और मेरी रज़ा पर कितना राज़ी है।
इन्सान के ईमान और नेकियों में जिस कदर इज़ाफा होता है उसी कदर उस पर मुसीबतो परेशानियों का नुजूल होता है और उसकी मज़ीद आज़माइश होती है और जब वो सब्र और ज़ब्त से काम लेता है और अपने रब की रज़ा पर राज़ी रहता है तो अल्लाह तआला उसे तमाम परेशानियों से निजात अता फरमाता है और उसके दरजात को बुलन्द करता है और वो राहतों और मशर्रतों से बहरावर हो जाता है और फिर वो कुर्बे इलाही की मन्ज़िल पर फाइज़ हो जाता है और ये उसके हक में बेहतर साबित होता है और अल्लाह तआला अपने मुकर्रब बन्दों को दुनियाँ व आख़िरत में किसी तरह का अज़ाब नहीं देता।
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….