ये तो सच है कि वक़्त बर्बाद करना एक तरह की खुदकशी है, फ़र्क़ सिर्फ इतना है कि खुदकशी हमेशा के लिए ज़िन्दगी से महरूम कर देती है और वक़्त की बर्बादी एक महदूद ज़माने’ तक ज़िन्दा को मुर्दा बना देती है, यही मिनट, घन्टा और दिन जो गफलत और बेकारी में गुज़र जाता है, अगर इंसान हिसाब करे तो उनकी मजमूई तादाद महीनों बल्कि बरसों तक पहुंचती है।
अगर किसी से कहा जाए कि आपकी उम्र से दस पाँच साल कम कर दिए गये तो यक़ीनन उसको सख्त सदमा होगा लेकिन वह मुअत्तल बैंठा हुआ खुद अपनी उमरे अज़ीज़ को बर्बाद कर रहा है, मगर उसके ज़वाल पर इसको कुछ अफसोस नहीं होता।
अगरचे वक़्त का बेकार खोना उम्र का कम करना है, लेकिन अगर यही एक नुक्सान होता तो चन्दा ग़म न था, लेकिन बहुत बड़ा नुक्सान और ख़सारा यह है कि बेकार आदमी तरह-तरह के जिस्मानी व रूहानी मज़ों में मुब्तला हो जाता है, हिर्स व तमअ, जुल्म व सितम, जुए-बाज़ी, ज़िनाकारी और शराबनोशी अक्सर वही लोग करते हैं जो ख़ाली और बेकार रहते हैं।
जब तक इंसान की तबीयत दिल व दिमाग़ नेक और फायदे के काम में मश्गूल न होगा उसका मीलान ज़रूर बदी और मासियत की तरफ रहेगा। तो इंसान उसी वक़्त सही इंसान बन सकता है, जब वह अपने वक़्त पर निगरान रहे, एक लम्हा भी फुज़ूल न खोए, हर काम के लिए एक वक़्त और हर वक़्त के लिए एक काम मुक़र्रर कर दे।
वक़्त ख़ाम मसालहे की तरह है जिससे आप जो कुछ चाहें बना सकते हैं, वक़्त वह सरमाया है जो हर शख़्स को अल्लाह तआला की तरफ से यक्साँ तरह अता किया गया है, इस सरमाए. को मुनासिब मौक़े पर काम में लाते हैं। जिस्मानी राहत और रूहानी मसर्रत उनही को नसीब होती है, वक़्त ही के सही इस्तेमाल से एक वहशी मुहज़्ज़ब बन जाता है, इसकी बरकत से जाहिल, आलिम, मुफ़्लिस, तवंगार, नादान दाना बनते हैं, लेकिन वक़्त ऐसी दौलत है जो शाह व गदा, अमीर व गरीब, ताक़तवर और कमज़ोर सबको एक-सा मिलता है।
अगर आप गौर करेंगे तो नब्बे फीसद लोग सही तौर पर यह नहीं जानते कि वह अपने वक़्त का ज़्यादा हिस्सा कहाँ और क्यों काम में लाते हैं, जो शख़्स दोनों हाथ अपनी जेबों में डालकर वक़्त को बर्बाद करता है तो वह बहुत जल्द अपने हाथ दूसरों की जेब में डालेगा।
खूबसूरत वाक़िआ:-अल्लाह की रहमत का अनोखा इनाम।
आपकी कमियाबी का वाहिद इलाज यह है कि आपका वक़्त कभी ख़ाली नहीं होना चाहिए। सुस्ती नाम की कोई चीज़ न हो इसलिए कि सुस्ती नसों को इस तरह खा जाती है जिस तरह लोहे को जंग। जिन्दा आदमी के लिए बेकारी ज़िन्दा मर जाना है।
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….
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