
हज़रत राबिआ बसरिया रहमतुल्लाहि ताअला अलैह जो कि औलिया कामिलीन में से थीं किसी शख़्स ने पूछा कि अल्लाह तआला की तलब का रास्ता आपके हाथ कैसे लगा? यानी खुदा की तलब की शुरूआत क्योंकर हुई?
फरमाया कि मैं सात बरस की थी कि बसरा में क़हत पड़ा, मेरे माँ-बाप की वफात हो गई और मेरी बहनें मुत्तफर्रिक़ हो गईं और मुझे राबिआ इसलिए कहते हैं कि मेरी तीन बहनें और चौथी मैं थी, तो मैं एक ज़ालिम के हाथ पड़ी उसने मुझको छः दिरहम में बेच डाला। जिस शख़्स ने मुझको ख़रीदा था वह मुझसे सख्त से सख़्त काम लेता था।
एक रोज़ मैं कोठे से गिर पड़ी और मेरा हाथ टूट गया। मैंने अपना चेहरा ज़मीन पर रखा और अर्ज़ किया। बारे खुदायाः मैं एक गरीब यतीम लड़की हूँ एक शख़्स की क़ैदी पड़ी हूँ, मुझपर रहम फरमा, मैं तेरी रज़ा चाहती हूँ, अगर तू राज़ी है तो फिर मुझे कोई फिक्र नहीं। उसके जवाब में मैंने एक आवाज़ सुनी कि ऐ ज़ईफा! ग़म मत खा कि कल को तुझे एक ऐसा मर्तबा हासिल होगा कि मुक़र्रिबान आसमान तुझको अच्छा जानने लगेंगी।
उसके बाद मैं अपने मालिक के घर आई तो मैंने रोज़ा रखना शुरू किया और शब को एक गोशे में जाकर इबादत में मशगूल हुई। एक मर्तबा मैं आधी रात को हक़ तआला से मुनाजात कर रही थी और यह कह रही थी इलाही तू जानता है कि मेरे दिल की ख़्वाहिश तेरे फरमान की मुवाफ़िक़त में है और मेरी आँख की रौशनी तेरी ख़िदमत करने में है और तू मेरी नीयत को जानता ही है कि अगर मेरे ज़िम्मे मख़्लूक़ की ख़िदमत न होती तो घड़ी भर के लिए भी तेरी इबादत से आसूदा न होती।
खूबसूरत वाक़िआ:-जब माँ ने कहा तुम दोनों मेरे काम के न बने।
लेकिन तूने मुझको एक मख़्लूक़ के हाथ कैद कर दिया है। यह दुआ कर रही थी कि मेरे मालिक ने मेरे सर पर एक क़न्दील नूर की बगैर ज़ंज़ीर के लटकी हुई देखी जिसके सबब सारा घर रौशन हो गया था। दूसरे दिन मालिक ने मुझे बुलाया और आज़ाद कर दिया मैंने वीराने की राह ली जहाँ कोई आदमी न था और अपने रब की इबादत में मशगूल हो गई। चुनांचे हर रात हज़ार रकात नमाज़ पढ़ती थी। – (मिसाली खुवातीन, मुहम्मद इस्हाक़ मुलतानी)
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….