
खुशी के मौक़ों पर खुशी जरूर मनाइए । खुशी इनसान का फ़ितरी तक़ाज़ा और जरूरत है। दीन फ़ितरी जरूरतों की अहमियत को महसूस करता है और कुछ फ़ायदेमंद हदों और शर्तों के साथ उन जरूरतों को पूरा करने पर उभारता । दीन कभी यह पसन्द नहीं करता कि आप बनावटी वक़ार यानी बड़प्पन, अनचाही संजीदगी, हर वक़्त की मुर्दादिली और दुखी चेहरा बनाए रखने पर अपने किरदार की कशिश को ख़त्म कर दें।
वह ख़ुशी के तमाम जायज़ मौक़ों पर खुशी मनाने का पूरा-पूरा हक़ देता है और यह चाहता है कि आप हमेशा बुलन्द हौसलों, ताज़ा वलवलों और नई उमंगों के साथ ताज़ा दम रहें । जायज़ मौक़ों पर खुशी न ज़ाहिर करना और ख़ुशी मनाने को दीनी वक़ार के ख़िलाफ समझना, दीन की समझ से महरूमी है ।
आपको किसी दीनी फर्ज़ को अंजाम देने की तौफ़ीक़ मिले, आप या आपका कोई रिश्तेदार इल्म व फज़्ल में ऊँची जगह पा ले, खुदा आपको माल व दौलत या किसी और नेमत से नवाजे, आप किसी लंबे सफ़र से खैरियत के साथ घर वापस आएँ, आपका कोई रिश्तेदार किसी दूर की जगह के सफ़र से आए आपके यहाँ किसी इज्जतदार मेहमान का आना हो, आपके यहाँ शादी-ब्याह या बच्चे की पैदाइश हो, किसी रिश्तेदार की सेहत या खैरियत की ख़बर मिले या मुसलमानों की कामयाबी की खुशखबरी सुनें या कोई त्योहार हो, इस तरह के तमाम मौक़ों पर खुशी मनाना आपका हक़ है । इस्लाम न सिर्फ खुशी मनाने की इजाजत देता है, बल्कि उसको दीनदारी भी क़रार देता है ।
हज़रत काब बिन मालिक रजियल्लाहु तआला अन्हु का बयान है कि जब अल्लाह ने मेरी तौबा क़बूल कर ली और मुझे खुशखबरी मिली तो मैं तुरन्त नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में पहुँचा । मैंने जाकर सलाम किया। उस वक़्त नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का चेहरा खुशी से जगमगा रहा था और नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को जब भी कोई खुशी हासिल होती तो आपका चेहरा इस तरह चमकता कि जैसे चाँद का कोई टुकड़ा है, और हम आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के चेहरे की रौनक़ और चमक से समझ जाते कि आप इस वक़्त बहुत खुश हैं।(रियाजुस्सालिहीन)
त्योहार के मौके पर एहतिमाम के साथ खूब खुलकर खुशी मनाइए और तबीयत को जरा आज़ाद छोड़ दीजिए। नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जब मदीने तशरीफ़ ले आए तो फरमाया- “तुम साल में दो दिन खुशियाँ मनाया करते थे । अब खुदा ने तुमको उससे बेहतर दो दिन दे दिए यानी ‘ईदुल फित्र’ और ‘ईदुल अज़्हा’ ।”
इस लिए साल के इन दो इस्लामी त्योहारों में पूरी-पूरी खुशी जाहिर कीजिए और मिल-जुलकर कुछ खुली तबीयत से कुछ हँसी-खुशी के काम कुदरती ढंग से अपनाइए। इसी लिए इन त्योहारों में रोज़ा रखने से मना किया गया है। नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इरशाद है-“ये दिन खाने-पीने, आपसी खुशी का मज़ा उठाने और खुदा को याद करने के हैं।” (शरहे मआनिल आसार)
ईद के दिन सफ़ाई-सुथराई और नहाने-धोने का एहतिमाम कीजिए। हैसियत के मुताबिक़ अच्छे से अच्छा कपड़ा पहनिए, ख़ुश्बू लगाइए, अच्छे खाने खाइए और बच्चों को मौक़ा दीजिए कि वे जायज़ क़िस्म के सैर-सपाटों और खेलों से मन बहलाएँ और खुलकर खुशी मनाएँ ।
हजरत आइशा रजियल्लाहु तआला अन्हा का बयान है कि ईद का दिन था। कुछ लड़कियाँ बैठी वो गीत गा रही थीं जो बुआस की लड़ाई के मौक़े पर अनसार ने गाए थे कि इसी बीच हज़रत अबू बक्र रजियल्लाहु तआला अन्हु तशरीफ़ ले आए। बोले, “नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के घर में यह गाना-बजाना ?” नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, “अबू बक्र ! रहने दो। हर क़ौम के लिए त्योहार का दिन होता है और आज हमारी ईद का दिन है।”
एक बार ईद के दिन कुछ हब्शी बाजीगर फ़ौजी करतब दिखा रहे थे। नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने ये करतब खुद भी देखे और हज़रत आइशा रजियल्लाहु तआला अन्हा को भी अपनी आड़ में लेकर दिखाए। आप इन बाजीगरों को शाबाशी भी देते जाते थे । जब आइशा रजियल्लाहु तआला अन्हा देखते-देखते थक गईं तो आपने फ़रमाया, “अच्छा अब जाओ ।” (बुखारी)
खुशी मनाने में इस्लामी ज़ौक़ और इस्लामी हिदायतों और आदाब का ज़रूर ख़याल रखिए । जब आपको कोई खुशी मिले तो खुशी देनेवाले परवरदिगार का शुक्रिया अदा कीजिए । उसके हुज़ूर शुक्राने का सज्दा कीजिए । ख़ुशी के बहाव में कोई ऐसा काम या रवैया न अपनाइए जो इस्लामी मिज़ाज से मेल न खाए और इस्लामी तहजीब और हिदायतों के ख़िलाफ़ हो । खुशी जरूर ज़ाहिर कीजिए, लेकिन हदों का ख़याल ज़रूर रखिए । खुशी जाहिर करने में इतना आगे न बढ़िए कि घमण्ड ज़ाहिर होने लगे और नियाज़मंदी, बन्दगी और आजिज़ी के जज़्बे दबने लगें, कुरआन में है।
तर्जुमा: “और उन नेमतों को पाकर इतराने न लगो, जो खुदा ने दी हैं। खुदा इतरानेवाले और बड़ाई जतानेवाले को नापसन्द करता है।”(कुरआन, 57:23)
और खुशी में इतने फूल न जाइए कि खुदा की याद से ग़ाफ़िल होने लगें । मोमिन की खुशी यह है कि वह खुशी देनेवाले को और ज्यादा याद करे । उसके हुजूर शुक्र का सज्दा अदा कीजिए और अपने कामों से, बातों से, खुदा के फज़्ल व करम और अज़मत व जलाल का और ज्यादा इजहार करें ।
रमजान के महीने भर के रोजे रखकर, रात में कुरआन की तिलावत और तरावीह की तौफ़ीक़ पाकर जब आप ईद का चाँद देखते हैं तो खुशी से झूम उठते हैं कि ख़ुदा ने जो हुक्म दिया था, आप ख़ुदा की मदद से उसे पूरा करने में कामयाब हुए और तुरन्त अपने माल में से अपने ग़रीब और मुहताज भाइयों का हिस्सा उनको पहुँचा देते हैं कि अगर आप की इबादतों में कोई कोताही हो गई हो और बन्दगी का हक़ अदा करने में कोई भूल हुई हो,
तो उसकी कमी पूरी हो जाए और खुदा के ग़रीब बन्दे भी ईद की ख़ुशी में शामिल होकर, मिल-जुलकर कर खुशी जाहिर कर सकें और फिर आप ख़ुदा की इस तौफ़ीक़ पर ईद की सुबह को दोगाना शुक्र अदा करके अपनी खुशी सही-सही जाहिर करते हैं और इसी तरह ईदुल अज़्हा के दिन हज़रत इबराहीम अलैहिस्सलाम और हज़रत इसमाईल अलैहिस्सलाम की अज़ीम और बेमिसाल कुरबानी की याद मनाकर और कुरबानी के जज्बों से अपने सीने को भरा पाकर सज्द-ए-शुक्र बजा लाते हैं।
और फिर आपकी हर एक बस्ती में, सारे गली-कूचे और सड़क ‘अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, ला इला-ह इल्लल्लाहु वल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर व लिल्लाहिल हम्द’ की आवाज़ों से गूंज उठते हैं और जब आप खुदा की शरीअत के मुताबिक़ ईद के दिनों में अच्छा खाते, अच्छा पहनते और ख़ुशी जाहिर करने के लिए जायज़ तरीक़ों को अपनाते हैं तो आपकी ये सारी सरगर्मियाँ अल्लाह का जिक्र बन जाती हैं।
अपनी खुशी में दूसरों को भी शामिल कीजिए और इसी तरह दूसरों की खुशी में खुद भी शिरकत करके उनकी खुशियों में बढ़ोत्तरी कीजिए और खुशी के मौक़ों पर मुबारकबाद देने का भी एहतिमाम कीजिए ।
हजरत काब बिन मालिक रजियल्लाहु तआला अन्हु की तौबा जब क़बूल हुई और मुसलमानों को मालूम हुआ तो लोग जत्थे के जत्थे उनके पास मुबारकबाद देने के लिए पहुँचने लगे और खुशी जाहिर करने लगे, यहाँ तक कि हजरत तलहा रजियल्लाहु तआला अन्हु की मुबारकबाद और खुशी जाहिर करने से तो हज़रत काब रजियल्लाहु तआला अन्हु पर इतना असर पड़ा कि जिन्दगी भर याद करते रहे ।
हजरत काब रजियल्लाहु तआला अन्हु ने जब बुढ़ापे के ज़माने में अपने बेटे अब्दुल्लाह को अपनी आज़माइश और तौबा का वाकिआ सुनाया तो खास तौर पर हजरत तलहा रजियल्लाहु तआला अन्हु की खुशी का जिक्र किया और फ़रमाया कि मैं तलहा की मुबारकबाद और उनके खुशी के जज़्बों को कभी नहीं भूल सकता ।
खुद नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने भी जब हज़रत काब रजियल्लाहु तआला अन्हु को तौबा क़बूल कर लिए जाने की खुशखबरी सुनाई तो बेहद खुशी जाहिर करते हुए फ़रमाया-“काब ! यह तुम्हारी ज़िन्दगी का सबसे ज्यादा खुशी का दिन है।”(रियाजुस्सालिहीन)
किसी की शादी हो या किसी के यहाँ बच्चा पैदा हो या इसी तरह की कोई खुशी हासिल हो, तो खुशी में शिरकत कीजिए और मुबारकबाद दीजिए ।
हजरत अबू हुरैरा रजियल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते हैं कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जब किसी के निकाह पर उसको मुबारकबाद देते तो यूँ फरमाते-
बा-र-कल्लाहु ल-क व बा-र-क अलैकुमा व ज-म-अ बै-नकुमा फ़ी खैर । “खुदा तुम्हें खुशहाल रखे और तुम दोनों पर बरकतें उतारें और अच्छे तरीके से तुम दोनों का निबाह करे ।”(तिरमिज़ी)
एक बार हजरत हुसैन रजियल्लाहु तआला अन्हु ने किसी बच्चे की पैदाइश पर मुबारकबाद देने का तरीक़ा सिखाते हुए फ़रमाया कि यूँ कहा करो-“खुदा तुम्हें अपनी इस देन में खैर व बरकत दे। अपनी शुक्रगुजारी की तुम्हें तौफ़ीक़ बख़्शे, बच्चे को जवानी की बहारें दिखाए और उसको तुम्हारा फ़रमाँबरदार उठाए ।”
खूबसूरत वाक़िआ:-कलिमा-ए-तौहीद के फज़ाइल।
जब आपका कोई रिश्तेदार या जान-पहचान का कोई आदमी किसी दूर के सफ़र से आए तो उसका इस्तेकबाल कीजिए और उसके खैरियत के साथ वापस आ जाने और अपने मक़सद में क़ामयाब होने पर खुशी जाहिर कीजिए और अगर वह खैरियत से वापस होने पर खुशी का कोई जश्न मनाए तो उसमें शिरकत कीजिए और जब आप किसी सफ़र से खैरियत के साथ वतन वापस पहुँचें और इस खुशी में कोई जश्न मनाएँ तो इस खुशी में भी क़रीबी लोगों को शरीक करें, अलबत्ता ना-मुनासिब खर्च, फिजूलखर्ची और दिखावे से बचिए और कोई ऐसा खर्च हरगिज़ न कीजिए, जो आपकी ताक़त से ज्यादा हो ।
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जब तबूक की लड़ाई से वापस तशरीफ़ लाए, तो मुसलमान मर्द और बच्चे आपके इस्तेकबाल के लिए सनीयतुल विदाअ तक पहुँचे । (अबू दाऊद)
और जब आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मक्का से हिजरत करके मदीना पहुँचे और दक्षिण की ओर से शहर में दाखिल होने लगे तो मुसलमान मर्द, औरतें, बच्चे, बच्चियाँ सभी आपका इस्तेकबाल करने के लिए निकल आए थे और अनसार की बच्चियाँ खुशी से यह गीत गा रही थीं :-“(आज) हम पर चौदहवी का चाँद निकला (दक्षिणी पहाड़ी) सनीयतुल विदाअ से ।
हम पर शुक्र वाजिब है उस दावत व तालीम का कि दावत देनेवाले ने हमें ख़ुदा की ओर बुलाया । ऐ हमारे बीच भेजे जानेवाले रसूल ! आप ऐसा दीन लाए हैं, जिसकी हम पैरवी करेंगे।”
एक बार नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम किसी सफ़र से मदीना पहुँचे तो आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अपने ऊँट जिब्ह करके लोगों की दावत फ़रमाई ।(अबू दाऊद)
शादी-ब्याह के मौके पर भी खुशी मनाइए और इस खुशी में अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को भी शरीक कीजिए। इस मौके पर नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने कुछ अच्छे गीत गाने और दफ़ बजाने की भी इजाजत दी है। इसका मक़सद ख़ुशी के जज्बों की तस्कीन भी है और निकाह का आम एलान और शोहरत भी ।
हजरत आइशा रजियल्लाहु तआला अन्हा ने अपने रिश्ते की एक औरत का किसी अनसारी से शादी किया । जब उसको विदा किया तो नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया – “लोगों ने उनके साथ कोई लौंडी क्यों नहीं भेज दी जो दफ़ बजाती और कुछ गीत गाती जाती ?”(बुखारी)
जब हज़रत रुबैअ बिन्त मुअव्वज रजियल्लाहु तआला अन्हु का निकाह हुआ तो उनके पास कुछ लड़कियाँ बैठी दफ़ बजा रही थीं और अपने उन बुजुर्गों की तारीफ़ में कुछ गीत गा रही थीं जो बद्र की लड़ाई में शहीद हुए थे । एक लड़की ने एक लड़ी पढ़ी-“हमारे बीच एक ऐसा नबी है जो कल होनेवाली बात को जानता है।”
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने सुना तो फ़रमाया, “इसको छोड़ दो और वही गाओ जो पहले गा रही थीं।”(बुखारी)
शादी-ब्याह की खुशी में अपनी हैसियत और ताक़त के मुताबिक़ अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को कुछ खिलाने-पिलाने का भी एहतिमाम कीजिए । नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने खुद अपनी शादी में भी वलीमे की दावत की और दूसरों को भी इसपर उभारा । आपका इरशाद है-“और कुछ न हो तो एक बकरी ही ज़िब्ह करके खिला दो ।”(बुखारी)
शादी में शिरकत का मौक़ा न हो तो कम से कम मुबारकबाद का पैग़ाम ज़रूर भेजिए । निकाह, शादी और इसी तरह के दूसरे खुशी के मौक़ों पर तोहफे देने से ताल्लुक़ात में ताज़गी और मज़बूती पैदा होती है और मुहब्बत में गर्मी और बढ़ती है। हाँ, इसे ज़रूर ध्यान में रखिए कि तोहफ़ा अपनी हैसियत के मुताबिक़ हो और दिखावे से बचते हुए अपने इखलास की जाँच ज़रूर करते रहिए ।
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….