
सैय्यदना हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम अल्लाह तआला के पैग़म्बर थे। अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त ने उनको माल दिया, औलाद दी, हत्ताकि हर तरह की नेमतें दी थीं। शैतान कहने लगा कि उनकी सारी इबादतें इसलिए हैं कि उनको दुनिया का माल व दौलत मिला हुआ है, ज़रा लेकर देखें तो फिर पता चले।
अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त के चाहने से उनका जितना माल था वह सारा का सारा माल किसी वजह से बर्बाद हो गया। कहने लगा, औलाद तो है। ऐसी बीमारी आई कि उनकी जितनी औलाद थी वह सारी की सारी उनकी आँखों के सामने मर गई। शैतान कहने लगा, सेहत तो है। अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त ने उनके जिस्म पर चेचक के दानों की तरह दाने निकाल दिए। यहाँ तक कि उनकी ज़बाने और आँखों के सिवा पूरा जिस्म उन दानों से भर गया। वह दाने इतने बड़े ज़ख़्म बन गए कि उसमें कीड़े भी पड़ गए।
मुफस्सिीरीन ने लिखा है कि इस बीमारी में अठारह साल गुज़र गए और हर दिन अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त की तरफ से सब्र की वजह से उनके दर्जात बुलंद होते, ज़बान से कोई शिकवा व शिकायत की कोई बात न निकलती। यहाँ तक कि अगर कोई कीड़ा जिस्म के ज़ख़्म से गिरता था तो वह उसको भी उठाकर
वापस रख देते थे कि जब मेरे जिस्म को अल्लाह तआला ने तेरी ग़िज़ा बनाया तो नीचे क्यों गिर रहा है।
अट्ठारह साल के बाद शैतान बहुत परेशान हुआ कि यह तो अल्लाह के ऐसे ख़ास बंदे हैं कि इतनी आज़माईशों में भी अपनी ज़बान से कोई बेसब्री या नाशुक्री का लफ़्ज़ नहीं निकाला। शैतान को परेशान देखकर उसके चेलों ने उसे कहा कि मियाँ! तुम ने जिस तरह उनके बाप को भूल में डाला था, क्यों न हम उन पर वही गुर आज़माएं। कहने लगा, हाँ। लिहाज़ा वह उनकी बीवी के पास एक हकीम और तबीब की शक्ल में गया और कहने लगा कि देखो मैं तुम्हें एक बात बताने के लिए आया हूँ ताकि तुम्हारे मियाँ को सेहत हासिल हो जाए।
वह खुश हुई, हर बीवी चाहती है कि शौहर को सेहत मिले। कहने लगा कि उसका इलाज मेरे पास मौजूद है मगर हमारे यहाँ दस्तूर यह है कि जैसे तुम अर्श के खुदा को सज्दा करते हो, एक दफा मुझे भी सज्दा कर लो तो मैं एक ऐसा इलाज आज़माऊँगा कि तुम्हारा शौहर सेहतमंद हो जाएगा। बीवी ने सुना तो ख़ामोश हो गई। कहने लगीं कि मैं उनके पास जाऊँगी और उनसे पूछेंगी।
लिहाज़ा तफ्सीर में लिखा है कि वह आपके पास आयीं और उन्होंने आकार पूछा। हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम को बड़ा गुस्सा आया और फरमाया, तूने उस वक़्त उस मरदूद को क्यों न कहा कि तू शैतान है, यह क्यों कहा कि पूछकर बताऊँगी? अगर अल्लाह ने मुझे सेहत दे दी तो मैं तुझे सौ कोड़े लगाऊँगा कि तूने ईमानी गैरत क्यों नहीं दिखाई और ऐसे शैतान मरदूद को उसी वक़्त मुँह पर जवाब क्यों न दे मारा।
आपका जवाब सुनकर शैतान और ना उम्मीद हो गया। सोचने लगा कि दो चार साल और इसी तरह गुज़रें तो हो सकता है कि यह बीमारी से परेशान हो जाएं। एक दिन उसने क्या सुना कि हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम दुआ मांग रहे थे कि ऐ अल्लाह! मेरी जिंदगी का जो वक़्त गुज़रा वह तो गुज़र गया, जब यह बीमारी और ग़म तेरी ही तरफ से है तो अगर आप मुझे सौ साल की ज़िंदगी भी देंगे तो मैं सौ साल भी इस हाल में आपको नहीं भूलूँगा।
जब शैतान ने यह सुना तो वह कहने लगा कि वाकई यह अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त के वह ख़ास बंदे हैं कि जिनके ऊपर मेरा कोई दांव नहीं चल सकता। अल्लाह तआला ने फिर अपने प्यारे नबी अलैहिस्सलाम को सेहत दी। बीमारी की हालत में बीवी को कहा था कि सौ कोड़े लगाऊँगा। लिहाज़ा बात भी पूरी करनी थी। अब अल्लाह तआला ने उनकी बीवी के ऊपर रहम खाया और हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम से कहा कि तुम पेड़ की एक छोटी-छोटी, पतली-पतली टहनियाँ मिसवाक के बराबर इकट्ठी कर लो और एक सौ को बांधकर उसके जिस्म पर एक दफा मारोगे तो सौ कोड़े समझे जाएंगे।
यहाँ से एक बात निकली कि जब परवरदिगार आलम किसी बंदे की गलती और कोताही को माफ करना चाहते हैं तो रब्बे करीम उसका रास्ता खुद बता दिया करते हैं। हदीस पाक में आया है कि अल्लाह तआला जब किसी बंदे की बख़्शिश करना चाहते हैं तो उसके किरामन कातिबीन यानी जो फरिश्ते रोज़ाना बदल रहे होते हैं नेकी और बुराई लिखने वाले, उन में से नेकी के फरिश्ते को तो रोज़ाना बदलते रहते हैं मगर गुनाह लिखने वाले फरिश्ते को नहीं बदलते, वह वही फरिश्ता रहता है।अल्लाह तआला की अज़ीम नेमत।
इस तरह उसकी ज़िंदगी में नेकी का फरिश्ता रोज़ाना आकर बदल रहा होता है और गुनाहों वाला फरिश्ता एक ही रहता है। कयामत के दिन उस बंदे के आमालनामे में गुनाह तो लिखे होंगे और उन गुनाहों पर गवाही देने के लिए एक फरिश्ता होगा। जबकि उसकी नेकियों की गवाही देने के लिए जितने उसकी ज़िंदगी के दिन थे उतने ही फरिश्ते खड़े होंगे। रब्बे करीम फरमाएंगे मेरे बंदे की नेकियों पर जब इतने गवाह हैं तो मैं उसके गुनाहों वाले एक गवाह को कैसे कुबूल कर लूँ। लिहाज़ा अल्लाह तआला फरमाएंगे कि जाओ मैंने इस बंदे को माफ फरमा दिया।
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
खुदा हाफिज़…..