हज के मसाइल।Hajj ke Masail

Hajj ke Masail
Hajj ke Masail

अगर वक़्त में गुंजाइश हो और यौमे अरफा से कुछ दिन पहले मक्का में दाखिल होने का इमकान हो तो मुस्तहब है कि खूब अच्छी तरह गुस्ल करके मक्का के बालाई जानिब से दाखिल हो जब मस्जिदे हराम पर पहुंचे तो बाबे बनी शैबा से हरम के अन्दर दाखिल हो और खानए काबा जब नज़र के सामने आए तो दोनों हाथ उठा कर बलन्द आवाज़ से यह दुआ पढ़े।

तर्जमाः- इलाही बेशक तू आफियत बख़्शने वाला है और तेरी ही तरफ से सलामती है ऐ परवरदिगार हम को आफियत के साथ ज़िन्दा रख इलाही इस घर की अज़मत आरै शरफ व वकार और खैर में इज़ाफा फरमा और जो हज और उमरा करने वाले इस ताज़ीम व तकरीम करें इलाही इन की अज़मत शरफ और वकार में भी इजाफा फरमा अल्लाह के लिये बकसरत हम्द व सना है जैसा कि वह इसका मुस्तहिक है और जिस तरह की तेरी जात बुजुर्गी और इज़्ज़त व जलाल के लिए मुनासिब है अल्लाह का शुक्र है जिसने मुझे अपने घर तक पहुंचाया और मुझे उसके लाएक जाना और हर हाल मे अल्लाह का शुक्र है इलाही तुने मुझे अपने घर का हज करने के लिए बुलाया और हम तेरी बारगाह में हाज़िर हो गये इलाही मेरे हज को कबूल फरमा और मेरी ख़ताओं से दर गुज़र फरमा और मेरा हर हाल दुरूस्त फरमा दे तेरे सिवा कोई माबूद नहीं

तवाफ :-

इसके बाद (यानी यह दुआ पढ़ने के बाद इब्तेदाई तवाफ जिसको तवाफे कुदूम कहते हैं।)

बजा लाये अपनी चादर से इज़तबा करे यानी इस तरह ओढ़े की दायां शाना खुला रहे और दायें बगल के नीचे से निकाल कर चादर का पल्लू बायें मुंढे पर डाल ले जिस से बायां शाना छुप जाये, फिर हज़रे असवद के पास आये उसे हाथ से छुए और मुमकिन हो तो बोसा दे वरना हाथों को ही बोसा दे अगर हुजूम के बाइस हजरे असवद को ना छू सके और न उसके करीब पहुंच सके तो दूर ही से उसकी तरफ हाथ से इशारा ही कर दे और यह अलफाज़ जबान से अदा करे

तर्जमाः- मैं अल्लाह के नाम से शुरू करता हूं जो बुजुर्ग है ऐ अल्लाह मैं तुझ पर ईमान लाया तेरी किताब की दिल से तसदीक की और तेरे अहद पर वफा की और तेरे पैगम्बर मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के तरीक की पैरवी की।

तवाफ दायें जानिब से शुरु करे, इसके बाद बैतुल्लाह के दरवाज़े की तरफ लौटे फिर उस पत्थर की तरफ जाए। जिस के ऊपर खाना काबा का परनाला रखा है। तेज़ी और कुव्वत् के साथ छोटे छोटे कदमों के साथ गुज़रे रुक्ने यमानी पर पहुंचे तो उसको हाथ से छू ले उसको बोसा न दे, इसी तरह हजरे असवद तक आए, इस पूरे तवाफ को एक फेरा शुमार करे, दोबारा और सह बारा भी इसी सूरत से चक्कर लगाए और हर तवाफ के दौरान यह दुआ पढ़े-

तर्जमाः ऐ अल्लाह हज कबूल फरमा और इसकी कोशिश के एवज़ मुझे जज़ा दे और मेरे गुनाह माफ फरमा दे।
इसके बाद आहिस्ता आहिस्ता चल कर बाकी चार तवाफ पूरे करे इन बाकी चार तवाफों के दौरान यह दुआ पढ़े। रिश्तों का जोड़ना और काटना।

तर्जमाः-ऐ परवरदिगार बख़्श दे और रहम फरमा और मेरी खता जो तुझे मालूम है उससे दरगुज़र फरमा, तू बड़ी इज़्ज़त और बुजुर्गी वाला है।

ऐ हमारे रब हम को दोनों जहान की भलाई अता कर और दोजख के अजाब से बचा। इस के अलावा दुनिया और दीन की भलाई के लिए जो दुआ करना हो करे।

जो शख़्स तवाफ कुदूम की नीयत करे उसको चाहिए कि वह दुनियावी नजासत और पलीदी से पाक हो सतरे औरत किए हुए हो। आंहजरत सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया, खाना काबा का तवाफ भी नमाज ही है। फर्क सिर्फ इतना है कि अल्लाह ने तवाफ करने वालों को बोलने की इजाजत दे दी है और नमाज़ में बोलने की इजाज़त नहीं है।

तवाफ के बाद :-

तवाफ से फरागत के बाद मकामे इब्राहीम के पीछे पहुंच कर दो रिकअतें मुख्तसर पढ़े पहली रिकअत में सूरह फातिहा के बाद सूरह काफ़िन और दूसरी रिकअत में सूरह इखलास पढ़े फिर लौट कर हजरे असवद छू कर दरवाज़ा से निकल कर कोहे सफा की जानिब चला जाए और इतना ऊंचा चढ़ जाए कि बैतुल्लाह नज़र आने लगे ऊपर चढ़ कर तीन बार अल्लाहु अकबर कह कर यह अलफाज़ कहे।

तर्जमाः- तमाम तारिफ अल्लाह ही के लिए हैं क्योंकि उसी ने हमें हिदायत और रास्ती का रास्ता दिखाया कोई माबूद बरहक नहीं मगर अल्लाह, उसकी ज़ात व सिफात मे कोई उसका शरीक नहीं उसने अपना वादा पूरा कर दिया अपने बन्दे की मदद की काफिरों को शिकस्त दी, वह यकता है उसके सेवा कोई माबूद नहीं और हम सिर्फ उसी की इबादत करते हैं खुलूस के साथ उसकी इताअत करते हैं अगरचे ना गवार हो काफिरों को।

यह दुआ पढ़ने के बाद कोहे सफा से उतर कर लब्बैक कहे दूसरी और तीसरी मरतबा दुआ पढ़े फिर नीचे उतर कर इतना पैदल चले कि उस सब्ज़ मील (मीले अख़ज़र) से जो मस्जिद के करीब खड़ा है छः हाथ का फासला रह जाये फिर तेजी के साथ चल कर बाकी दो सब्ज़ निशानो (पत्थरों) तक पहुंचे उसके बाद हलकी रफ्तार से चल कर मरवा तक पहुंच कर ऊपर चढ़ जावे और जो अमल सफा पर किया था वही मरवा पर करे फिर उससे उतर कर सई करे और दोनों सब्ज़ सुतूनों के दर्मियान दौड़े यहां तक की कोहे सफा पर आ जाये इसके बाद दोबारा फिर उसी तरह करे ऐसा अमल सात बार करे (पहला चक्कर सफा से शुरू करे और मरवा पर खत्म करें जिस तरह तवाफ के वक़्त तहारत ज़रूरी है उसी तरह सफा और मरवा के दर्मियान सई के वक्त भी पाक होना लाज़िम है।

8 जिलहिज्जा :-

जब तवाफे काबा और सई से फारिग हो जाये तो अगर हज्जे तमत्तो की नीयत की है तो अपना सर मुंडा दे या बाल तरशवाये बशर्ते कि कुरबानी का जानवर साथ न हो इस हल्क व कद्र के बाद वह हर काम उसके लिए जाएज़ है जो गैर मोहरीम आदमी कर सकता है ब तरवीया (8 जिलहिज्जा) का दिन आ जाये तो उस रोज़ मक्का से एहराम बांधे और मेना में आये, जुहर, असर, मगरिब, और इशा की नमाज़ें वहीं अदा करे और वहीं रात गुज़ारे, अगले दिन फज्र की नमाज़ भी वहीं अदा करे सूरज तुलू होने के बाद दूसरो के साथ चल कर उस जगह पहुंचे जहां अरफा के दिन लोग खड़े होते हैं।

सूरज ढल जाय तो इमाम खुतबा पढे, खुतबा मे लोगो को बताये की उनको क्या क्या करना चाहिये मसलन वकूफ का हुक्म वकूफ का वक़्त वकूफ की जगह, अरफात से रवानगी मुज़्दलफा मे नमाज़ की अदायगी और शब्बाशी, कंकरीयां मारना, कुरबानी करना, सर मुंडाना बैतुल्लाह का तवाफ वगैरह फिर इमाम के साथ जुहर व असर की नमाजें (एक साथ जमा कर के) पढे मगर इकामत हर नमाज़ की जुदा जुदा कहे फिर इमाम से करीब हो कर जबले रहमत और सख़रात (संगरेज़ों) की तरफ बढ़े और किब्ला रू होकर अल्लाह तआला की हम्द व सना खूब करे अल्लाह की याद अकसर व बेशतर इन अलफाज मे करे यह दुआ पढ़े

तर्जमाः- अल्लाह के सिवा कोइ माबूद नहीं वह वहदहु लाशरिक है उसी की हुकूमत है उसी के लिए हर तारीफ ख़ास है वही जिन्दा करता है और वही मारता है, वही ज़िन्दा है जिसको मौत नहीं आएगी, उसी के हाथ में हर भलाई है वह सब कुछ कर सकता है इलाही मेरे दिल में नूर पैदा कर दे मेरी आखों मे नूर पैदा कर दे मेरे कानों में नूर पैदा कर दे और मेरा काम मेरे लिए आसान फरमा दे।

अगर दिन के वक़्त इमाम के साथ खड़ा नहीं हो सका (यानी वकूफे अरफा नहीं मिल सका) मगर अगले दिन शब कुरबानी की सुबहे सादिक से पहले इमाम के साथ शामिल हो गया तो वकूफ का हुक्म करार दिय जाएगा और अगर उस वक़्त भी इमाम के पास नही पहुंच सका तो हज फौत हो जायेगा।

मुज़दलफा के रास्ते कि तरफ इमाम के साथ सुकून और आहिस्तगी के साथ चलना चाहिये मुज़दलफा मे पहुंच कर इमाम के साथ मगरीब व इशा कि नमाज़ बा जमाअत अदा करे अगर इमाम के साथ अदा न कर सके और वह फौत हो जायें तो फिर तन्हा ही अदा करे और अपना सामान वहीं रखे, वहीं रात गुज़ारे, जहां संगरेज़े आसानी से दस्तेयाब हो जायें वहां से 70 (सत्तर) संगरेज़े ले, यह कंकरियां चने से बड़ी और फनदक (बादाम) से छोटी हों इन संगरेजों को धो लेना’ मुस्तहब है।

जब सुबहे सादिक हो जाये तो तड़के नमाज़ पढ़ कर मशअरे हराम के पास जा कर क्याम करे, अल्लाह की हम्द व सना और तहलील व तकबीर और दुआ में बहुत ज़्यादा मशगूल रहे, मंदर्जा जैल दुआ पढ़े।

ऐ अल्लाह तूने हमें इस जगह खड़ा किया है तूने ही हमें यह जगह दिखाई है, पस जिस तरह तूने हमें यह सीधी राह दिखाई है उस तरह हमको अपने ज़िक्र की तौफीक अता कर हमारी बख़्शिश फरमा और हम पर रहम फरमा जैसा की तूने अपने फरमान के मुताबिक हम से वादा किया है और तेरा वादा सच्चा है, फिर जब तुम लोग अरफात से वापस आने लगो तो मशअरे हराम के पास अल्लाह को याद करो इस तरह याद करो जिस तरह तुम को बतला रखा है और हकीकत में इससे पहले तुम महज़ नावाकिफ थे फिर तुम सब को ज़रूरी है कि उस जगह होकर वापस आओ जहां और लोग जाकर वापस आते हैं और अल्लाह तआला के सामने तौबा करें बेशक अल्लाह तआला माफ फरमा देगा और मेहरबानी फरमाएगा।

जब दिन खूब निकल आये तो मिना को वापस जाये और वादिए मुहस्सिर में तेजी के साथ चले और उपर मिना पहुंच जाये तो जमरए उकबा पर सात कंकरियां मारे, हर कंकरी मारते वक्त तकबीर भी कहे और दोनों हाथों को इतना उठाये कि बगलों कि सफेदी नमूदार हो जाये इस लिए की आंहजरत सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने संगरेज़े इसी तरह मारे थे, यह कंकरिया तुलूआ आफताब के बाद और ज़वाले आफ‌ताब के कब्ल मारना चाहिये, अलबत्ता अय्यामे तशरीक के बकिया दिनों में कंकरियां ज़वाले आफताब के बाद मारना चाहिये कंकरिया मारने के बाद अगर उसके साथ कुरबानी का जानवर है तो उसे ज़िबह करे फिर सर मुंडवाये या बाल तरशवाये अगर औरत है तो वह अपने सर के बालों की लट अंगूली के पौरे के बराबर कटवाये फिर मक्का को चला जाये और गुस्ल या वुजू करके तवाफे ज़ियारत करे (तवाफे ज़ियारत की नीयत करन ज़रूरी है) तवाफ के बाद मकामे इब्राहिम के नीचे दो रिकस्त नमाज पढ़े उसके बाद अगर चाहे तो सफा मरवा का सई करे वरना तवाफे कुदूम के वक़्त जो सई कर चुका है वही काफी है और वह तमाम बातें जो एहराम के वजह से ममनूअ थीं जाएज़ हो जायेंगीं इसके बाद जमजम के तरफ जाये और उसका पानी पिये, पानी पीने के वक्त कहे-

तर्जमाः- बिस्मिल्लाह, इलाही इस पानी को मेरे लिए नफा बख़्श, इल्म, वसीअ रिज़्क, सैरार्व और शिकम सैरी और हर मरज़ से शिफा का बाइस बना दे और मेरे दिल को इससे धोकर अपने मोहब्बत आमेज खौफ से भर दे।

मिना में इसके बाद लौट आये और तीन रात वहीं रहे और अय्यामे तशरीक में तीनो जमरों पर क्करियां इसी तरह मारे जैसा की जिक्र हो चुका है, हर रोज़ इक्कीस (21) कंकरिय मारे, सात कंकरियां तीनों जमरों पर, जमरए ऊला से शुरू करे यह जमरा दूसरे जमरों के बनिसबत मक्का से ज़्यादा फासला पर है।

मस्जिदे खैफ के करीब है सबसे पहले किब्ला रु होकर उस जमरा पर ककरियां मारे, मारते वक़्त जमरए ऊला बायीं जानिब होना चाहिये। यह कंकरिया मारने के बाद ‘जमरा से आगे कुछ पढ़ कर ठहर जाये ताकि दूसरों की कंकरिया उस को लग जायें यहां इतनी देर ठहर कर दुआ करता रहे जितनी देर मे सूरए बकर पढ़ी जाती। फिर जमरए बुसता के पास पहुंच कर उसके बायीं तरफ ठहर कर किब्ला रू होकर कंकरिया मारे और हसबे साबिक दुआ करे फिर जमरए अख़ीर यानी जमरए उक्बा के पास पहुंचकर उसर बायीं तरफ खड़ा हो और किब्ला रू होकर कंकरिया मारे फिर वादी में उतर जाये तवक्कुफ करे मगर जल्द फरागत पाना चाहे तो तीसरे दिन संगरेज़े न फेंके बल्कि जो उसके पास है उनको ज़मीन में दफ़्न कर दे, फिर उस जगह से मक्का की जानिब रवाना हो, वादीए अब्ता पहुंच कर जुहर, अस्र, मग़रिब और एशा की नमाज़ें अदा करे, थोडी देर के लिये सो जाए फिर मक्का में दाखिल हो, फिर मक्का के अन्दर या किसी दूसरी जगह इस तरह ठहरे जैसे जाहिर या अबतह में क्याम किया था।

ख़ाना काबा में :-

जब ख़ाना काबा में दाखिल हो तो बरहना पा दाखिल हो, अन्दर पहुंच कर नमाजे नफ़्ल अदा करे इत्मीनान से खूब सैर हो कर आबे जम ज़म पिये आबे ज़म ज़म पीते वक़्त ज़्यादती इल्म, बख़्शिशे गुनाह और रज़ाए इलाही के हुसूल की नीयत करे, हुजूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया है कि “जिस बात के लिए जमजम का पानी पिया जाये उसी के लिए है” अपनी तवज्जोह और निगाह को ज़यादा तर खानए काबा ही की तरफ रखे। बाज़ अहादीस में आया है कि खाना काबा को देखना इबादत है।

ख़ाना काबा को विदाअ किये बगैर उससे बाहर ना आए तवाफे विदाअ इस तरह है कि सात बार तवाफ करके रूक्ने यमानी और खाना काबा के दरवाज़े के दर्मीयान खड़ा हो कर यह दुआ पढ़े।

तर्जमाः-ऐ अल्लाह यह तेरा ही घर है और मैं तेरा बन्दा हूं और तेरे बंदे और तेरी लौंडी का बेटा हूं जिस चीज़ पर तूने मुझे कुदरत दी उस पर तूने मुझे सवार कराया और तूने मुझे अपने शहरों की सैर कराई यहां तक कि मुझे अपनी नेमत तक पहुंचा दिया और जो इबादत मुझ पर फर्ज़ थी उसके अदा करने में मेरी मदद फरमाई अगर तू मुझ से राजी हुआ तो और राजी हो और अगर मेरी किसी कोताही के बाइस तु मुझसे राज़ी नहीं हुआ तो इससे पहले कि मैं तेरे इस घर से वापस जाऊं तू अपनी रजामंदी से मुझ पर एहसान फरमा यह मेरे रूख़सत होने का वक़्त है अगर तू मुझे इस हालत में इजाज़त दे दे कि मैं तेरे और तेरे घर के एवज़ न किसी दूसरे घर को इख़्तियार करूंगा और न किसी दूसरे को अपना रब बनाऊंगा इलाही मेरे बदन की आफियत, मेरे जिस्म की सेहत और मेरे दीन की भलाई अता फरमा मेरे लिए दुनिया और आखिरत की खैर को जमा फरमा दे, बेशक तू हर शय पर कुदरत रखने वाला है।

इसके बाद रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम पर दरूद भेजे और रवाना हो जाये, मक्के में क्याम न करे अगर कयाम करे तो भेड़ जिबह करे।

अदमे गुंजाइशे वक्त :-

अगर वक़्त की गुंजाइश न हो और ख़तरा हो कि अरफात का क्याम फौत हो जायगा तो इस सूरत मे इब्तिदा अरफात ही से कर दे बशर्ते कि मीकात से एहराम बांधा हो और वहां खड़ा रहे यहां तक कि आफ‌ताब गुरुब हो जाये गुरूबे आफ‌ताब के बाद रवाना होकर वही अमल करे जो मुज़दलफा में शब बाशी के ज़िम्न मे बयान हो चुका है फिर मिना में संगरेज़े दाल कर मक्का आ जाये और दो तवाफ करे।

अव्वल तवाफ में तवाफे कुदूम की नीयत करे और दूसरे तवाफ में ज़ियारत की। फिर सफा और मरवा के दर्मियान सई करे, अब उसके लिए हर वह चीज़ जो पहले ममनूअ थी हलाल हो जायेगीं, फिर तीन दिन तक कंकरियाँ मारने के लिए मिना में लौट आए और बकिया आमाल की तकमील करे (यानी वह तमाम अफ्आले हज बजा लाये जो पहले बयान हो चुके हैं।

अल्लाह रबबुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।

इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें। ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।

क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।

खुदा हाफिज…

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