इश्के रसूल सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम में सहाबियात रज़ियल्लाहु अन्नाहुम ने भी आला और नुमाया मिसालें पेश कीं। उनके सीने इश्के नबी सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम से भरे हुए थे। उनके पाकीज़ा दिल इस नेमत के हासिल होने पर मसरूर थे। कुछ मिसालें नीचे लिखी हैं :
(1) जंगे ओहद में यह खबर चारों तरफ फैल गई कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम शहीद हो गए। मदीने में औरतें गम की शिद्दत में रोती हुई घरों से बाहर निकल आयीं। एक अन्सारिया सहाबिया कहने लगीं कि मैं इस बात को उस वक़्त तक तसलीम नहीं करूंगी जब तक कि खुद उसकी तसदीक न कर लूँ। लिहाज़ा वह ऊँट पर सवार होकर ओहद की तरफ निकल पड़ीं। जब मैदान जंग के करीब पहुँचीं तो एक सहाबी सामने से आते हुए दिखाई दिए।
उनसे पूछने लगीं, क्या हाल है? उन्होंने कहा मालूम नहीं लेकिम तुम्हारे भाई की लाश फलाँ जगह पड़ी है। वह इस ख़बर को सुनकर ज़रा भी न घबरायीं पूछने लगीं मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का क्या हाल है? उन्होंने जवाब दिया मालूम नहीं मगर तुम्हारे वालिद की लाश फलाँ जगह मैंने देखी है। यह ख़बर सुनकर भी परेशान नहीं हुई बल्कि आगे बढ़कर तीसरे सहाबी से पूछा, मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का क्या हाल है? उन्होंने बताया कि मैंने तुम्हारे शौहर की लाश फलाँ जगह पड़ी देखी है।
यह खबर सुनकर भी वह टस से मस न हुई। फिर पूछा कि मुझे नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम की खैरियत के बारे में बताओ। किसी ने कहा नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को फ्लॉ जगह खैरियत से देखा है। यह सुनकर वह तेज़ी से उस तरफ को रवाना हुई। जब नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम को सामने ठीक-ठाक देखा तो आप के करीब पहुँचकर चादर का एक कोना पकड़कर हर मुसीबत नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम के बाद आसान है।
इससे पता चलता है कि सहाबियात के दिलों में जो मुहब्बत नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिए थी वह बाप, भाई और शौहर की मुहब्बत से भी ज़्यादा थी। यही ईमाने कामिल की निशानी बताई गयी है। (सीरत इब्ने हिशाम)
(2) एक बार नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने सहाबा किराम को हुक्म दिया कि वे जिहाद करें। मदीने के हर घर में जिहाद की तैयारियाँ ज़ोरों पर थीं। एक घर में एक सहाबिया अपने मासूम छोटे बच्चे को लेकर ज़ार व कतार रो रही थीं। उसके शौहर पहले किसी जिहाद में शहीद हो गए थे। अब घर में कोई ऐसा मर्द नहीं था कि जिसको यह तैयार करके नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम के साथ जिहाद में भेजतीं।
जब बहुत देर तक रोती रहीं और तबियत भर आई तो अपने मासूम बच्चे को सीने से लगाया और मस्जिदे नबवी में नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम के ख़िदमत में हाज़िर हुई। अपने बेटे को नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम की गोद में डालकर कहा ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम! मेरे बेटे को भी जिहाद के लिए क़ुबूल फरमाएं। नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने हैरान होकर फरमाया यह मासूम बच्चा जिहाद में कैसे जा सकता है? वह रोकर कहने लगीं कि मेरे घर में कोई बड़ा मर्द नहीं कि जिसको भेज सकूँ।
आप इसी को किसी मुजाहिद के हवाले कर दीजिए जिसके हाथ में ढाल न हो ताकि जब वह मुजाहिद कुफ्फार के समाने मुकाबले के लिए जाए और काफिर तीरों की बारिश बरसाएं तो वह मुजाहिद तीरों से बचने के लिए मेरे बेटे को आगे कर दे। मेरा बेटा तीरों को रोकने के काम आ सकता है। सुब्हानअल्लाह! तारीखे इन्सानियत ऐसी मिसाल पेश नहीं कर सकती कि औरत और माँ जैसी शफीक हस्ती फरमाने नबी को सुनकर उस पर अमल करने के लिए इतनी बेकार हुई कि मासूम बच्चे को शहादत के लिए पेश कर देती है।
(3) सैय्यदा आएशा रज़ियल्लाहु अन्हा की ख़िदमत में एक औरत हाज़िर हुई और अर्ज़ किया कि मुझे नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम की कब्र मुबारक की ज़ियारत करा दें। हज़रत आएशा ने हुज्रा मुबारक खोला। वह सहाबिया इश्के नबी में ऐसी मगलूब थीं कि ज़ियारत करके रोती रहीं और रोते रोते इन्तिकाल फरमा गई। (शिफाए शरीफ)
(4) उम्मुल मुमिनीन उम्मे हबीबा रज़ियल्लाहु अन्हा के वालिद अबू सुफियान सुलह हुदैबिया के ज़माने में मदीना आए। अपनी बेटी से मिलने गए। करीब पड़े बिस्तर पर बैठने लगे तो उम्मे हबीबा ने जल्दी से बिस्तर उलट दिया। अबूसुफियान ने पूछा बेटी मेहमान के आने पर बिस्तर बिछाते हैं, बिस्तर लपेटते तो नहीं। उम्मे हबीबा ने कहा अब्बा जान! यह बिस्तर अल्लाह के प्यारे और पाक महबूब का है और आप मुश्रिक होने की वजह से नापाक हैं। लिहाज़ा इस बिस्तर पर नहीं बैठ सकते। सरवरे काएनात की इबादात।
अबू सुफियान को इसका बड़ा रंज हुआ मगर उम्मे हबीबा के दिल में जो मुहब्बत और अज़मत अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की थी उसके सामने जिस्मानी रिश्ते कोई हैसियत नहीं रखते थे। कुर्बान जाएं उनके प्यारे अमल पर कि फैसला कर लिया कि बाप छूटता है तो छूट जाए मगर महबूब का दामन हाथ से न छूटने पाए।
(5) एक सहाबी रबिया असलमी बहुत गरीब नौजवान थे। एक बार तज़्किरा चला कि उन्हें कोई अपनी बेटी का रिश्ता देने के लिए तैयार नहीं है। नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने अन्सार के एक कबीले की निशानदेही की कि उनके पास जाकर रिश्ता मांगो। वह गए और बताया कि मैं नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मशवरे से हाज़िर हुआ हूँ ताकि मेरा निकाह फलाँ लड़की से कर दिया जाए। बाप ने कहा बहुत अच्छा हम लड़की से मालूम कर लें। जब पूछा तो वह लड़की कहने लगी अब्बू जान! यह मत देखो कि आया कौन है यह देखो कि भेजने वाला कौन है लिहाज़ा फौरन निकाह कर दिया गया।
(6) फातिमा बिन्ते कैस एक हसीन व जमील सहाबिया थीं। उनके लिए अब्दुर्रहमान बिन औफ जैसे दौलतमंद सहाबी का रिश्ता आया। जब उन्होंने नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम से मशवरा किया तो आप सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि उसामा से निकाह कर लो। हज़रत फातिमा ने आपको अपनी किस्मत का मालिक बना दिया और अर्ज़ किया ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम! मेरा मामला आपके अख़्तियार में है जिससे चाहें निकाह कर दें यानी मेरे लिए यही खुशी काफी है कि आप सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम के हाथों से मेरा निकाह होगा।
(निसाई शरीफ, किताबुन्निकाह)
(7) नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम की सबसे बड़ी बेटी हज़रत ज़ैनब रज़ियल्लाहो अन्हा ऐलाने नबुव्वत से दस साल पहले पैदा हुई। जब जवानी की उम्र को पहुँची तो अपने ख़ालाज़ाद भाई अबुल आस बिन रबीअ से निकाह हुआ। हिजरत के वक़्त नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम के साथ नहीं जा सकीं। उनके शौहर बदर की लड़ाई में काफिरों की तरफ शरीक हुए और मुसलमानों के हाथ गिरफ्तार हुए। मक्का वालों ने अपने कैदियों के लिए फिदए भेजे तो हज़रत ज़ैनब ने भी अपने शौहर की रिहाई के लिए माल भेजा जिसमें वह हार भी था जो हज़रत ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने उनको जहेज़ में दिया था।
नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने जब वह हार देखा तो हज़रत ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा की याद ताज़ा हो गई। सहाबा के मशवरे में यह तय पाया गया कि अबुल आस को बगैर फिदए छोड़ दिया जाए। इस शर्त पर कि वह वापस जाकर हज़रत ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा को मदीना भेज दें। नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने दो आदमी हज़रत ज़ैनब को लेने के लिए साथ कर दिए ताकि वे मक्का से बाहर ठहर जाएं और अबुलआस हज़रत ज़ैनब को उनके पास पहुँचा दें।
हज़रत ज़ैनब जब अपने देवर कनाना के साथ बैठकर रवाना हुईं तो कुफ्फार आग बगूला हो गए। चुनाँचे उन्होंने हज़रत ज़ैनब को भाला मारा जिससे वह ज़ख्मी होकर गिरीं। क्योंकि हमल से थीं इस वजह से हमल भी जाए हो गया। कनाना ने नेज़ों से मुकाबला किया। अबूसुफियान ने कहा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बेटी और इस तरह खुलेआम जाए यह हमें गवारा नहीं। इस वक़्त वापस चलो फिर चुपके से भेज देना।
कुछ दिन के बाद हज़रत ज़ैनब को रवाना किया गया। जैनब रज़ियल्लाहु अन्हा का ज़ख़्म कई साल तक रहा और आखिरकार इस वजह से वफात हुई। नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने फरमाया कि वह मेरी सबसे अच्छी बेटी थी जो मेरी मुहब्बत में सताई गई।
(8) जंगे ओहद में उम्मे अम्मारा रज़ियल्लाहु अन्हा अपने शौहर हज़रत ज़ैद बिन आसिम और अपने दो बेटों अम्मार और अब्दुल्लाह के साथ जंग में शरीक हुईं। जब काफिरों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर हल्ला बोल दिया तो यह नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम के करीब आकर हमला रोकने वाले सहाबा में शामिल हो गयीं। इब्ने कमिया मलऊन ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर तलवार का वार करना चाहा तो इन्होंने उसको अपने कांधों पर रोका जिससे बहुत गहरा जख्म आया।
उम्मे अम्मारा ने पलट कर इब्ने कमिया मलऊन था कि वह दो टुकड़े हो जाता मगर उसने दो ज़िरहें पहन रखी थीं लिहाजा बच निकला। उम्मे अम्मारा के सर और जिस्म पर तेरह ज़ख़्म लगे। उनके बेटे अब्दुल्लाह को भी एक ऐसा ज़ख़्म लगा कि खून बंद नहीं होता था। उम्मे अम्मारा रज़ियल्लाहु अन्हा अपना कपड़ा फाड़कर ज़ख़्म पर बाँधा और कहा बेटा उठो और अपने नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हिफाज़त करो। इतने में वह काफिर जिसने ज़ख्म लगाया था फिर करीब आया। नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने फरमाया कि तेरे बेटे को ज़ख्मी करने वाला यही काफिर है।
उम्मे अम्मारा ने झपटकर उसकी टांग पर तलवार का ऐसा वार किया वह गिर पड़ा और वह चल न सका और सर के बल घिसटता हुआ भागा। नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने देखा तो मुस्कुराकर फरमाया उम्मे अम्मारा! तू अल्लाह का शुक्र अदा कर कि जिसने तुम्हें जिहाद की तौफीक बख़्शी। उम्मे अम्मारा रज़ियल्लाहु अन्हा ने मौका ग़नीमत समझते हुए दिल की हसरत ज़ाहिर की ऐ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आप दुआ फरमाएं कि हम लोगों को जन्नत में आपकी ख़िदमत गुज़ारी का मौका मिल जाए।
नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने इस वक़्त उनके लिए, उनके शौहर के लिए और उनके दोनों बेटों के लिए दुआ की, ऐ अल्लाह इन सबको जन्नत में मेरा रफीक बना दे। उम्मे अम्मारा रज़ियल्लाहु अन्हा ज़िन्दगी भर यह बात ऐलान के साथ करती थीं कि नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम की दुआ के बाद दुनिया की बड़ी से बड़ी मुसीबत भी कोई हैसियत नहीं रखती।
(9) हज़रत अनस रज़िअल्लाहु अन्हु की वालिदा उम्मे सुलैम घर के बच्चों को शीशी देकर भेजतीं कि जब नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम कैलूला फरमाएं और आपके जिस्म मुबारक से पसीना आए तो उसके कतरे इस शीशी में जमा कर लें। लिहाज़ा वह इस पसीने को अपनी खुशबू में शामिल करतीं और फिर अपने जिस्म और कपड़ों पर वह खुशबू लगाती थीं।(बुखारी किताबुलइस्तेज़ान)
(10) ग़ज़वए खैबर में नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने एक सहाबिया को अपने दस्ते मुबारक से हार पहनाया। वह इसकी इतनी कद्र करती थीं कि उम्र भर उसको गले से जुदा न किया और जब इन्तिकाल कर गयीं तो वसीयत की कि वह हार उनके साथ दफन किया जाए।
(11) हज़रत सलमी रज़ियल्लाहु अन्हा एक सहाबिया थीं। उन्होंने नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम की इतनी खिदमत की कि खादम-ए- रसूल का लकब हासिल हुआ। उनकी वालिदा के एक गुलाम हज़रत सफीना थे। उन्होंने उनको इस शर्त पर आज़ाद करना चाहा कि सारी ज़िन्दगी नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम की ख़िदमत करें। हज़रत सफीना रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा कि आप यह शर्त न लगाएं तो भी मैं सारी ज़िन्दगी इस दर की चाकरी में गुज़ारता। (अबूदाऊद किताबुत्तिब)
(12)उम्मे अतिया रज़ियल्लाहु अन्हा एक सहाबिया थीं। जब भी नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम का नामे नामी, इस्मे गिरामी उनकी ज़बान पर आता तो कहतीं, “मेरा बाप कुर्बान।” इससे अन्दाज़ा लगाया जा सकता है कि उनके दिल में इश्के नबवी की शिद्दत का आलम क्या होगा। (निसाई शरीफ किताबुल-महीज़)
(13) एक दिन नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु के मकान पर तशरीफ लाए। उन्होंने बीवी से कहा कि देखो नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम की दावत का खूब एहतिमाम करो। आप सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम को कोई तकलीफ न पहुँचे। उन्हें तुम्हारी सूरत भी नज़र न आए। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कैलूला फरमाया तो आपके लिए बकरी के बच्चे का भुना हुआ गोश्त तैयार था। खुलफाए राशिदीन की ख़िलाफत।
जब आप खाना खाने लगे तो बनू सलमी के लोग दूर ही से आपके दीदार से मुशर्रफ होते रहे कि आपको तकलीफ न हो। जब नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम रुख़्सत होने लगे तो हज़रत जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु की बीवी ने पर्दे के पीछे से कहा या रसूलुल्लाह! मेरे लिए और मेरे शौहर के लिए रहमत के नाज़िल होने की दुआ करें। आपने रहमत की दुआ फरमाई तो हज़रत जाबिर की बीवी खुशी से फूली न समायीं।
(14) हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हज्जतुल-विदा के लिए तशरीफ ले गए तो सब बीवियाँ साथ थीं। रास्ते में हज़रत सफिया रज़ियल्लाहु अन्हा का ऊँट थककर बैठ गया और चलता ही नहीं था। वह रोने लगीं। आपको ख़बर हुई तो आपने दस्ते मुबारक से उनके आँसू पोंछे। अजीब इत्तिफाक कि जिस कद्र दिलासा देते वह उतना और रोतीं। जब काफी देर तक चुप नहीं हुईं तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनसे रुख फेर लिया। तमाम सहाबा को पड़ाव डालने का हुक्म दिया और खुद भी अपना खेमा लगावाया।
हज़रत सफिया को एहसास हुआ कि शायद नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम मेरी वजह से खफा हो गए। अब नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मनाने और राज़ी करने की तदबीर सोचने लगीं। इस ग़र्ज़ से हज़रत आएशा रज़ियल्लाहु अन्हा के पास गईं और कहा कि तुमको मालूम है कि मैं अपनी बारी का दिन किसी चीज़ के बदले में नहीं दे सकती लेकिन अगर आप रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मुझसे राज़ी कर दें तो मैं अपनी बारी आपको देती हूँ।
हज़रत आएशा ने अमादगी ज़ाहिर की और एक दुपट्टा ओढ़ा जो जाफरानी रंग का रगा हुआ था। फिर उस पर पानी छिड़का ताकि खुशबू फैले उसके बाद नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास गयीं और खेमे का पर्दा उठाया। नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने फरमाया, आएशा! यह तुम्हारा दिन नहीं है। बोलीं ये अल्लाह का फज़्ल है जिसको चाहता है देता है।(मुसनद इब्ने हंबल 6/338)
(15) एक बार नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम मस्जिद से बाहर निकले रास्ते में मर्द व औरतें फरागत पर घर जा रहे थे। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने औरतों को मुखातिब होकर फरमाया कि तुम पीछे रहो और एक तरफ रहो, बीच रास्ते से न गुज़रो। उसके बाद यह हाल हो गया कि औरतें इस कद्र गली के किनारे चलती थीं कि उनके कपड़े दीवारों से उलझ जाया करते थे।(अबूदाऊद किताबुलअदन)
(16) नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने शौहर के अलावा दूसरे महरम मर्दों की वफात पर तीन दिन सोग के लिए तय फरमाए हैं। सहाबियात इसकी बहुत शिद्दत से पाबन्दी करती थीं। सैय्यदा जैनब बिन्ते जहश के भाई का इन्तिकाल हो गया तो चौथे रोज़ उन्होंने खुशबू मंगाकर लगाई और फरमाया कि मुझे इसकी ज़रूरत न थी लेकिन नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम का फरमान सुना है कि शौहर के सिवा तीन दिन से ज़्यादा किसी का सोग जाएज़ नहीं। इसलिए इस हुक्म की तामील थी।(अबूदाऊद)।
(17) एक बार नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने पानी या दूध पीकर हज़रत उम्मे हानी रज़ियल्लाहु अन्हा को इनायत फरमाया। उन्होंने अर्ज़ किया कि अगरचे मैं ज़े से हूँ लेकिन आपका झूठा वापस करना पसंद नहीं करती। यानी मक़सद यह था कि मैं रोज़े की कज़ा फिर कर लूँगी और पानी पी लिया।(मुसनद अहमद बिन हंबल 6/343)
(18) एक दिन हज़रत हुजैफा रज़ियल्लाहु अन्हु की वालिदा ने उनसे पूछा बेटा तुम मुझे अपने काम में मशगूल नज़र आते हो। तुमने नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम की ज़ियारत कब की थी? उन्होंने कहा इतने दिनों पहले। इस पर उनकी वालिदा ने उनको बुरा भला कहा। बोले मैं अभी जाकर मग़रिब की नमाज़ नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम के साथ अदा करता हूँ और अपने लिए और आपके लिए मग़फिरत की दरख्वास्त करता हूँ।(तिर्मिज़ी किताबुलमनाकिब)
(19) जब नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने इस दारे फानी से पर्दा फरमाया तो हज़रत आएशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने इस अज़ीम हादसे पर अपने रंज व ग़म का इज़्हार करते हुए फरमाया, हाय अफसोस वह प्यारे नबी जिसने फक्र को गिना पर और मिस्कीनी को मालदारी पर तरजीह दी। अफसोस वह काएनात को समझाने वाला जो गुनाहगार उम्मत की फिकर में पूरी रात आराम से न सो सके। हम से रुख़्सत हो गए। जिसने हमेशा सब्र व इस्तिकामत से अपने नफ़्स के साथ मुकाबला किया जिसने बुराईयों की तरफ कभी ध्यान न दिया और जिसने नेकी और एहसान के दरवाज़े ज़रूरतमंदों पर कभी बंद न किए, जिस रोशन ज़मीर के दामन पर दुश्मनों की ज़्यादतियों का गर्द व गुबार कभी न बैठा।
(20)सैय्यदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम के पर्दा फरमाने पर कहा, मेरे वालिद गरामी ने दावते हक़ को कुबूल फरमाया और फिरदौसे बरीं में नुजूल फरमाया। इलाही ! रूहे फातिमा को जल्दी रूहे मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मिला दे। इलाही! मुझे दीदारे रसूल से मसरूर बना दे, इलाही! मुझे इस मुसीबत को झेलने के सवाब से महरूम न फरमाना और रोज़े महसर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शफाअत नसीब करना।
(21) हज़रत उम्मे ऐमन रज़ियल्लाहु अन्हा एक दिन नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को याद करके रोने लगीं। हज़रत अबू बक्र सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया कि आप क्यों रोती हैं? कहा कि बताओ नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम के लिए अल्लाह तआला के पास बेहतर नेमतें मौजूद नहीं हैं? उन्होंने कहा बिल्कुल हैं। फरमाया मैं इसलिए रो रही हूँ कि नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम की जुदाई के बाद ‘वही’ का सिलसिला बंद हो गया। इसपर हज़रत अबूबक्र और हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा भी रो पड़े। (इश्के रसूल स० 46-94) एक कफ़न चोर के टूटे दिल पर मग़फिरत।
अल्लाह रबबुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।
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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।
खुदा हाफिज…