फ़क़ीह अबुल्लैस समरकंदी रहमतुल्लाहि तआला अलैह ने तंबीहुल ग़ाफ़िलीन में एक किस्सा लिखा है। फरमाते हैं कि एक बार हज़रत उमर रज़ियल्लाहो अन्हो नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िरी के लिए आए तो रास्ते में उन्होंने एक नौजवान को देखा जो बहुत ज़ार व कतार रो रहा था।
उसको रोता देखकर हज़रत उमर रज़ियल्लाहो अन्हो का दिल पसीज गया। उन्होंने पूछा, ऐ नौजवान ! क्या हुआ? वह कहने लगा, “मुझसे एक बहोत बड़ा गुनाह हो गया है। अब मैं अल्लाह के अज़ाब से डर रहा हूँ कि मैं क्या कर बैठा। सख़्त परेशान हूँ। लिहाज़ा मेहरबानी फरमा कर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में मेरी सिफारिश फरमा दीजिए।
हज़रत उमर रज़ियल्लाहो अन्हो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हुए तो रो रहे थे। नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया, उमर ! क्यों रो रहे हो? अर्ज किया, ऐ अल्लाह के महबूब! मैं आपकी ख़िदमत में हाज़िर हो रहा था। रास्ते में एक नौजवान को देखा जो कोई बड़ा गुनाह कर बैठा था। वह बहुत रो रहा था। उसकी आह व ज़ारी ने मुझे भी रुला दिया।
नबी अलैहिस्सलाम ने अंदर आने की इजाज़त अता फरमा दी तो वह नौजवान आपकी खिदमत में हाज़िर हुआ और वहाँ भी रोना शुरू कर दिया यहाँ तक कि वह फूट-फूट कर रोने लगा। नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया, ऐ नौजवान ! क्या हुआ? उसने कहा, ऐ अल्लाह के नबी सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ! मैं बहुत बड़ा गुनाह कर बैठा हूँ।
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, “क्या तेरा गुनाह बड़ा है या अल्लाह का अर्श बड़ा है? वह कहने लगा, ऐ अल्लाह के नबी! मेरा गुनाह बड़ा है। नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, तेरा गुनाह बड़ा है या कुर्सी बड़ी है?
वह कहने लगा, ऐ अल्लाह के नबी! मेरा गुनाह बड़ा है। नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, क्या तूने शिर्क किया है? उसने अर्ज़ किया, ऐ अल्लाह के नबी। मैंने शिर्क तो नहीं किया। नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, क्या तूने अल्लाह के किसी बंदे को कत्ल कर दिया है?
उसने अर्ज़ किया, ऐ अल्लाह के नबी सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम! मैंने किसी बंदे को कत्ल भी नहीं किया। नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, तो फिर ऐसा कौन सा गुनाह है कि जिसको तू इतना बड़ा समझ रहा है?
उसने अर्ज किया, ऐ अल्लाह के महबूब ! मेरा गुनाह बहुत बड़ा है। मैं कई साल से कफ़न चोरी का काम करता था। मुर्दों के कफ़न उतारकर बेचता और अपनी ज़रूरत पूरी करता। कुछ दिन पहले अंसार की एक नौजवान लड़की दफन की गई। मैंने अपनी आदत के मुताबिक रात को जाकर उसका का कफ़न उतारा और जब कफ़न उताकर जाने लगा तो शैतान ग़ालिब आया और उसने मेरी शहवत को उभार दिया।
मैं पलटा और मैंने उस मुर्दा लड़की के साथ ज़िना किया। जब ज़िना करके उठने लगा तो मुझे युं आवाज़ आई कि जैसे वह लड़की बोल रही हो और कह रही हो कि ऐ अल्लाह के बंदे ! तूने मुझे मुर्दों के मजमे में नंगा कर दिया और कल कियामत के दिन अल्लाह के हुज़ूर हालते जनाबत में खड़ा होने के लिए मजबूर कर दिया। अब उसकी आवाज़ की वजह से मेरे दिल पर ऐसा रौब है कि मैं समझता हूँ कि मुझ पर अल्लाह तआला का कोई ग़ज़ब है और मैं अल्लाह की पकड़ में हूँ।
जब नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह सुना तो आपको भी बड़ा ताज्जुब हुआ और आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया, तूने बहुत बड़ा गुनाह किया है। तूने मुर्दा लड़की के साथ ऐसा सुलूक किया। जब अल्लाह के महबूब ने भी फरमा दिया कि यह एक बड़ा गुनाह है तो वह नौजवान उठा और रोता हुआ बाहर चला गया। उसने सोचा कि इस वक़्त अल्लाह के महबूब नाराज़ हैं। कहीं कोई ऐसी बात आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के प्यारे मुँह से न निकल जाए जो मेरी बर्बादी का सबब बन जाए। निकाह ,मुबाशरत ,हमल, वलीमा के आदाब ।
इसलिए वह बाहर चला गया। जब वह वहाँ से निकला तो सीधा पहाड़ों में चला गया। वह नौजवान चालीस दिन तक नमाज़ें पढ़ता रहा। सज्दे करता रहा और माफी मांगता रहा। उसके दिल को आग लगी हुई थी। वह रो रोकर अल्लाह को मना रहा था। वह अल्लाह के सामने आजिज़ी करता कि ऐ अल्लाह! मेरे मालिक ! मैं आपके महबूब की ख़िदमत में हाज़िर हुआ और उन्होंने भी फरमाया, कि यह तो बहुत बड़ा गुनाह है।
ऐ अल्लाह! मैं अब कहाँ जाऊँ? मेरा तो तेरे सिवा कोई नहीं। जब उसने चालीस दिन माफी मांगी और अल्लाह तआला को मनाया तो नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम तशरीफ लाए। हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने आपकी ख़िदमत में अल्लाह तआला के सलाम पेश किए और अर्ज़ किया ऐ अल्लाह के महबूब ! अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त ने पूछा है कि ऐ महबूब बताइए कि क्या मख्लूक को आपने पैदा की है या मैंने पैदा की है?
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया, अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त ने मुझे भी और सारी मख़्लूक को भी पैदा फरमाया। फिर जिब्रील अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया, अल्लाह तआला ने पूछा है कि क्या मख्लूक को आप रिज़्क देते हैं या मैं देता हूँ?
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया, मुझे भी और सारी मख़्लूक को भी अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त ही रिज़्क अता फरमाते हैं। जब ये बातें हो गयीं तो तीसरी बात पूछी गई कि मख्लूक को मैंने माफ करना है या किसी और ने करना है? नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने अपनी मख्लूक को माफ करना है। महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जब यह फ़रमाया तो हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया कि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने पैग़ाम भेजा है कि ऐ महबूब ! उस बंदे ने मेरे सामने रो-रो कर इतनी माफी मांगी कि मैंने उस बंदे के गुनाह को माफ कर दिया, सुब्हानअल्लाह ! सुब्हानअल्लाह।
फिर अल्लाह के महबूब ने एक सहाबी को भेजा कि उस नौजवान के पास जाओ और उसको खुशखबरी सुना दो कि तेरी आजिज़ी अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के यहाँ कुबूल हो गई और परवरदिगार ने तेरी मग़फिरत का पैग़ाम भेज दिया है।
अल्लाह रबबुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।
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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।
खुदा हाफिज…