ईमान किसे कहते हैं
हमारा एतकाद है कि जबान से इक़रार दिल से यकीन और अरकान पर अमल करने का नाम ईमान है। ईमान ताअत से बढ़ता है और मासियत से कम होता है इल्म से ईमान में कुव्वत आती है और जहालत से कमज़ोर होता है और तौफीक़े ईलाही से वकूअ पज़ीर होता है। अल्लाह तआला का इरशाद है:
तहकीक़ जो लोग ईमान लाए तो उनका ईमान ज्यादा होता है और खुश होते हैं। इस तरह जो चीज़ ज़्यादा होती है वह घट भी सकती है अल्लाह तआला का इरशाद है जब उन के सामने आयात पढ़ी जाती हैं तो उन का ईमान बढ़ता है।
एक और जगह इरशाद होता है : ताकि वह लोग जिन को किताब दी गई यकीन कर लें और वह लोग जो ईमान लाए उन का ईमान मज़बूत हो जाए।
हजरत इब्ने अब्बास, हज़रत अबू हुरैरा और हज़रत अबू दरदा रज़ियल्लाहो अन्हो से मरवी है कि ईमान कम भी
होता है और ज़्यादा भी होता है इस के अलावा इस सिलसिले में दीगर अक्वाल भी हैं जिन की तफ़सील तवालत का बाइस है। अशायरा कहते हैं कि ईमान में कमी व बेसी नहीं होती। Imaan ki Fazilat.
ईमान के मानी :
लोगत में ईमान के मानी दिल से किसी चीज़ के तसदीक करने और जिस पर यक़ीन हो उसे हासिल करने के हैं। शरीयत में ईमान के मानी हैं अल्लाह तआला के वजूद का यकीन करना उसके असमा व सिफात को पहचानना और उन पर यक़ीन रखना, फराइज़, वाजिबात और नवाफिल का अदा करना, गुनाहों और मआसी से इजतेनाब करना, अगर ईमान को मज़हब, शरीयत और मिल्लत से मौसूम किया जाए तो जाएज़ है इस लिए कि दीन वही है जिस का इत्तेबा किया जाए और ताआत के साथ मुहर्रमात व ममनूआत से इजतेनाब किया जाए यही ईमान की तारीफ है।
इस्लाम की तारीफ़ :
इस्लाम की तरीफ अगरचे ईमान के साथ की जा सकती है क्योंकि हर ईमान यकीनन इस्लाम है लेकिन हर इस्लाम ईमान नहीं इस लिए कि इस्लाम के मानी मुतीअ और फरमाबरदार होने के हैं हर मोमिन अहकामे ईलाही का मुतीअ व फरमाबरदार है लेकिन हर मुसलमान अल्लाह तआला पर ईमान रखने वाला नहीं क्योंकि अकसर मुसलमान तलवार के ख़ौफ़ से इस्लाम कबूल कर लेते हैं।
ईमान का लफ़्ज़ बहुत से कौली और फेअली सिफात पर हावी है और इसके दायरे में अल्लाह तआला की तमाम इबादतें शामिल हैं। लफ़्ज़ इस्लाम का मतलब है ज़बान से कलमए शहादत अदा करना और दिल से इसकी तस्दीक करना और पांचों इबादतें अदा करना। हज़रत इमाम अहमद ने ईमान को इस्लाम से अलग करार दिया है क्योंकि हज़रत उमर रज़ियल्लाहो अन्हो से मरवी है कि एक रोज़ मैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर था कि एक शख़्स वारिद हुआ जिस के कपड़े बहुत सफेद और बाल बहुत सियाह थे। Imaan ki Fazilat.
सफर की कोई अलामत उससे ज़ाहिर नहीं थी हम में से कोई शख़्स उस को नहीं पहचानता था वह शख़्स आते ही रसूले खुदा सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के सामने बैठ गया और अपने जानू रसूल के जानू से मिला कर बैठ गया अपने दोनों हाथ अपने घुटनो पर रख लिए और कहा ऐ मोहम्मद ! अल्लाह के रसूल! इस्लाम क्या है ?
आंहज़रत सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया इस्लाम यह है कि तू कलमए शहादत पढ़े यानी अश्हदु अल ला इलाहा इल्लल्लाहु व अश्हदु अन्ना मोहम्मदन अब्दहु व रसूलहु कहे, नमाज़ पन्जगाना अदा करता रहे, ज़कात अदा करता रहे, रमज़ान के रोज़े रखे, ताक़त हो तो हज भी अदा करे।
यह सुन कर उस शख़्स ने जवाब दिया ऐ मोहम्मद ! आप ने बिल्कुल सच फरमाया उसके इस जवाब से लोग बहुत हैरान हुए कि खुद ही पूछता है और खुद ही तसदीक करता है फिर उस ने कहा मुझे ईमान के मुताल्लिक बताइये। आंहजरत सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया ईमान यह है कि तू अल्लाह तआला उसके फरिश्तों, उस की किताबों, उसके पैग़म्बरों, कियामत और नेकी व बदी की तक़दीर (अनदाजे) पर ईमान लाए, उसने यह सुन कर कहा आप ने सच फरमाया। किस जानवर को मारना जायज़ और नाजायज़ है।
उस शख़्स ने फिर कहा ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम एहसान (खूबी) क्या है?
हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने जवाब में फरमाया एहसान यह है कि तुम अल्लाह की इबादत इस तरह करो गोया तुम उसको देख रहे हो अगर ऐसा न हो सके तो दिल में यह जरूर यक़ीन करो कि अल्लाह तआला तुम को देख रहा है। उस ने फिर दरयाफ्त किया या रसूलल्लाह कियामत के दिन का हाल बयान फरमाया आपने जवाब दिया क़ियामत का हाल जिससे दरयाफ्त किया जा रहा है वह दरयाफ्त करने वाले से ज़्यादा क़ियामत का हाल नहीं जानता।
उस शख़्स ने कहा क़ियामत की कुछ निशानियां ही बता दीजिए हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया क़ियामत की अलामतों में से यह है कि लौंडिया अपने आकाओं को जनेंगी और मुफलिस पांव से नंगे बदन से बरहना बकरियों के चराने वाले आलीशान इमारतों पर फख्र करते नज़र आयेंगे।
रावी फरमाते हैं इस के बाद हम कुछ देर ठहरे रहे आंहज़रत सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने कुछ देर के बाद मुझ से फरमाया, उमर ! जानते हो यह साइल कौन था? मैंने जवाब दिया अल्लाह और उसका रसूल बेहतर जानता है, आप ने फ़रमाया यह जिब्रील अलैहिस्सलाम थे और तुम लोगों को दीन सिखाने आये थे।
हदीस के दूसरे अलफाज़ यह हैं वह जिब्रील थे तुम को तुम्हारे दीनी उमूर सिखाने आए थे इससे पहले वह जब कभी जिस शक्ल में आए मैंने उन को पहचान लिया लेकिन उस मरतबा में उस शक्ल में उन को फौरन नहीं पहचान सका। Imaan ki Fazilat.
गौर तलब अम्र यह है जिब्रील अलैहिस्सलाम ने ईमान और इस्लाम के मुताल्लिक अलग अलग सवाल करके दोनों में तफरीक कर दी चुनांचे रसूलुल्लाह ने दोनों सवालों के अलग अलग जवाबात इरशाद फरमाये। इमाम अहमद के पेशे नज़र एक आराबी वाली हदीस भी थी।
एक आराबी ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम से अर्ज किया कि या रसूलल्लाह ! आप ने फ्लां को अता किया और मुझे मना फरमाया उसके इस सवाल पर हुजूरे आला ने इरशाद फरमाया कि वह मोमिन था। आराबी ने अर्ज किया कि मैं भी तो मोमिन हूं। हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि तुम मुस्लिम हो। इमाम अहमद अल्लाह तआला के उस इरशाद को भी सनद के तौर पर लाते हैं।
आराब (देहाती) कहते हैं कि हम ईमान लाए हैं ऐ पैग़म्बर आप उन से कह दीजिए कि तुम लोग ईमान नहीं लाए कहो हम इस्लाम लाए हैं अभी तक ईमान तुम्हारे दिलों में दाखिल नहीं हुआ है
ईमान में ज़्यादती (इज़ाफा) सिर्फ रोज़े नमाज़ से नहीं होती बल्कि दिली यक़ीन के बाद अवामिर व नवाही की पाबंदी, तकदीर को मानना, अल्लाह के किसी फेअल पर एतराज़ न करना, अल्लाह ने तकसीमे रिज़्क का जो वादा फरमाया है उस पर एतेमाद रखना और शक न करना, अल्लाह पर भरोसा रखना और अपनी कुव्वत और ताक़त पर तकिया न करना, मुसीबतों पर सब्र और नेमतों पर शुक्र बजा लाना, अल्लाह को आयूब से पाक जानना और किसी किस्म की किसी हाल में उस पर तोहमत न लगाना। Imaan ki Fazilat.
इमाम अहमद से दरयाफ्त किया गया कि ईमान मखलूक है या गैरे मख़लूक। आप ने जवाब दिया जिस ने ईमान को मख़लूक कहा वह काफिर हो गया क्योंकि ऐसा कहने वाला लोगों को वहम में मुब्तला करता है क्योंकि इस कौल से कुरआन के मखलूक होने का इस कुरआन के साथ ईहाम और तअरीज़ है जो यह कहे कि ईमान गैरे बिदअती है इस लिए कि इस कौल से यह वहम लाहिक होता है कि रास्ते का दूर करना और आज़ा के तमाम अफआल गैर मख़लूक हैं,
इस तरह इस जवाब से इमाम मौसूफ ने दोनों गरोहों की तरदीद फरमा दी है और इमाम साहब ने एक हदीस बयान फरमाई कि हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया ईमान की सत्तर से कुछ ज़्यादा खसलतें हैं जिन में सब से अफज़ल कलमए तौहीद और सबसे अदना खसलत रास्ते से ईजा दूर करने वाली चीज़ का हटा देना है।
इमाम साहब का मसलक है कि जिस चीज़ का जिक्र न कुरआन में हो न आंहज़रत सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने उस बारे में कुछ फरमाया हो यानी हदीस मौजूद न हो न सहाबा कराम ने इस सिलसिले में कुछ कहा हो उसमें अपनी तरफ से राय देना बिदअत और दीन में नई बात पैदा करना है।
मोमिन होने का दावा :
किसी मोमिन के लिए जाएज नहीं कि वह कहे “मैं यकीनन मोमिन हूं” बल्कि कहे मैं इन्शाअल्लाह मोमिन हूं। मोतजला के नजदीक यह कहना कि मैं सच्चा मोमिन हूं जाइज़ है, यकीनन मोमिन कहने से इस लिए मना किया गया है कि हज़रत उमर रज़ियल्लाहो अन्हो ने फरमाया, जो शख़्स यकीनी तौर पर कहे कि मैं मोमिन हूं वह काफिर है। Imaan ki Fazilat.
हज़रत हसन बसरी रज़ियल्लाहो अन्हो से रिवायत है कि हजरत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहो अन्हो के सामने बयान किया गया कि फलां शख़्स कहता है कि मैं कतई मोमिन हूं, हज़रत ने फरमाया उससे पूछो जन्नत में जाएगा या दोज़ख में, लोगों ने उससे पूछा तो उस ने कहा कि अल्लाह ही खूब वाकिफ है।
इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहो अन्हो ने फरमाया दूसरी बात को अल्लाह के सुपुर्द कर दिया पहली बात मोमिन होने को भी अल्लाह के सुपुर्द क्यों नहीं कर दिया यानी पहले ही कह देता कि मेरा मोमिन होना अल्लाह ही को मालूम है। यकीनन सच्चा मोमिन वही होगा जो अल्लाह तआला के नज़दीक मोमिन है और वही जन्नती भी होगा और इस का एतबार उस वक़्त है जब ईमान पर खात्मा हो और किसी को ईमान पर खात्मा होने की खबर नहीं।
इस लिए मुनासिब यही है कि डरता भी रहे और उम्मीद भी रखे आमाल की दुरूस्ती भी करता रहे और अन्देशा के साथ साथ उम्मीदवार भी रहे यहां तक कि नेक आमाल पर खात्मा हो जाए, लोग जिन आमाल में ज़िन्दगी गुजारते हैं उन्हीं पर उनका खात्मा होता है और जिन आमाल पर खात्मा होगा उन्हीं पर हश्र होगा।
हदीस शरीफ में आया है कि हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया जैसे ज़िन्दा रहोगे वैसे ही मरोगे और जैसे मरोगे वैसे ही उठाए जाओगे। हमारा भी एतकाद है कि बन्दे के तमाम आमाल अल्लाह के पैदा करदा हैं और उनके कमाये हुए हैं ख़्वाह नेक हों या बद, अच्छे हों या बुरे, जो आमाल ताअत व मासियत के हैं उस का यह मतलब नहीं कि अल्लाह ने मासियत का हुक्म दिया है बल्कि मानी यह हैं कि अल्लाह ने किसी के गुनहगार होने का फैसला और अंदाज़ा कर लिया है। अफ़आल मुकद्दर उनके कस्द व इरादे के मुताबिक कर दिया है। तौबा करने की फज़िलत।
किसमत व तक़दीर :
हमारा अक़ीदा है कि अल्लाह ने रिज़्क पैदा फरमा कर उस को तकसीम कर दिया जो रिज्क मुकद्दर में कर दिया है उस को न कोई बन्द कर सकता है और न कोई उसका रोकने वाला है। रिज़्क (मकसूम) न कोई बढ़ा सकता है न उसे कोई कम कर सकता है न उस का नर्म सख़्त हो सकता है और न सख़्त नर्म, कल का रिज्क आज नहीं खाया जा सकता। जैद की किसमत उम्र की तरफ मुन्तकिल नहीं हो सकती, अल्लाह हराम रिज़्क भी देता है और हलाल भी।
इस क मतलब यह नहीं कि उसने हराम को मुबाह कर दिया है बल्कि यह मतलब है कि हराम रिज़्क को भी वह बदन की गिज़ा और जिस्म की कुव्वत बना देता है। उसी तरह कातिल मकतूल के ज़िन्दगी मुनकतअ करता बल्कि मकतूल अपनी मौत आप मरता है यही हाल उस शख़्स का है जो पानी में डूब जाता है या उस पर दीवार गिर जाती है या पहाड़ की बुलन्दी से फेंक दिय जाता है या कोई दरिन्दा उस को खा जाता है यह सब अपनी मौत से मरते हैं ।
मुसलमानों और मोमिनों की हिदायत याबी और काफिरों की जलालत और गुमराही अल्लाह ही की तरफ से। यह सब उसी का फेअल और उसी का सन्नाई है उस के मिल्क में कोई शरीक नहीं। अल्लाह तआला का इरशाद है। Imaan ki Fazilat.
उन आमाल का बदला है जो वह करते रहे हैं इसी के साथ मजीद इरशाद फरमाया तुम्हारे सब्र करने के एवज़ में जैसा तुम करते हो वैसा ही बदला दिया जाएगा और जैसा करोगे वैसा ही सवाब पाओगे।
दोज़खियों से पूछा तुम का दोज़ख में किस चीज़ ने दाखिल किया उन्होंने कहा हम नमाज पढ़ने वालों में न थे और न हम मिसकीन को खाना देते थे। फिर इरशाद फरमाया। यह वह आग है जिस को तुम झुटलाते थे।
इसी सिलसिले में इरशाद फरमायाः उसके एवज़ जो तेरे दोनों हाथ पहले कर चुके हैं। इन आयात के अलावा दूसरी आयात है जिनमें अल्लाह तआला ने जज़ा को इन्सान के अफआल से मुताल्लिक फरमाया है, बन्दे का कसब करना इस से साबित होता है। जहमीया फिरके के लोग इस के खिलाफ है। वह कहते हैं कि बन्दों के कसब का वजूद नहीं, इन्सानी अमल ऐसा है जैसे इस दरवाज़ा का खुलना और बन्द होना यानी गैर एख्तियारी, खोलने वाला चाहता है तो दरवाजा खुलता है और बन्द करना चाहता है तो बन्द कर देता है।
वह उस दरख्त की मानिन्द हैं जो हिलाया जाता है और हरकत दिया जाता है दरख़्त मजबूर है उस की हरकत उस के एख्तियार से नहीं होती यह लोग हक़ के मुनकिर हैं और किताब व सुन्नत की तरदीद करते हैं।
क़दरिया का नज़रिया :
कदरिया (मुअतजला) काइल हैं कि इंसान अपने आमाल का खुद खालिक है अल्लाह उन्हें ग़ारत करे। यह उम्मत मोहम्मदिया के मजूसी हैं उन्होंने इन्सानों को अल्लाह का शरीक ठहराया है और अल्लाह की तरफ इज्ज़ की निसबत करते हैं। उन्होंने अल्लाह के मुल्क में ऐसी चीज़ों के वजूद को तसलीम किया है जो अल्लाह की कुदरत और इरादे से बाहर है हालांकि अल्लाह उससे बहुत बुलन्द और बरतर है।
इरशाद फरमाता है। अल्लाह ने तुम को और तुम्हारे आमाल को पैदा किया है। जब बदला इंसान के आमाल पर वाकेअ है तो अल्लाह की तरफ से तख़लीक भी आशमाल पर होगी यानी जब जज़ा व सजा का खालिक अल्लाह तआला है तो आमाल की तखलीक भी अल्लाह तआला ही का काम होगा यह जाइज नहीं की कहा जाए उस मुन्दर्जा बाला नस से मुराद वह काम हैं जो बन्दे पत्थरों पर बनाते हैं (बुतों की मूरतें) क्योंकि पत्थर तो जिस्म हैं, किसी जिस्म को करने का कुछ मफहूम नहीं बल्कि करने का ताल्लुक उन आमाल से है जो इन्सान करता है। Imaan ki Fazilat.
पस आमाल वह हैं जो इन्सान करता है (न कि जामिद अजसाम) हकीकत में तखलीके इलाही इन्सान के आमाल की राजेअ है वह हरकत हो या सुकूत। खुदावन्दे आलम का इरशाद हैः
वह लोग हमेशा इखतेलाफ में पड़े रहेंगे सिवाय उन लोगों के जिन लोगों पर आप का रब रहम फरमाये उन को तो अल्लाह ने उसी इखतेलाफ करने के लिए पैदा किया है।
दूसरी जगह इस तरह इरशाद होता हैः क्या उन्होंने अल्लाह के ऐसे शरीक बना रखे हैं जिन्होने अल्लाह की तख़लीक की तरह मख़लूक पैदा किया जिसकी बिना पर अल्लाह तआला की मख़लूक और मफरूज़ा शरीकों
की मखलूक में इम्तियाज नहीं रहा, आप फरमा दीजिए कि अल्लाह हर चीज़ का ख़ालिक है।
इस सिलसिले में इरशाद हुआ क्या अल्लाह के सिवा कोई और खालिक है जो ज़मीन और आसमान से तुम को रिज़्क देता है।
मुशरिकों की हालत बयान फरमाते हुए इरशाद फरमाया। अगर उन्हें कोई भलाई पहुंच जाए तो यह कहें यह अल्लाह की तरफ से है और अगर बुराई पहुंच जाए तो कहें यह तुम्हारी जानिब से है उन से कह दीजिए कि सब खुदा की जानिब से है,उन लोगों को क्या हुआ है कि यह बात समझने की कोशिश नहीं करते।
हज़रत हुजैफा रज़ियल्लाहो अन्हो से मरवी हदीस में है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है “अल्लाह ने हर कारीगर को और उस की सनअत को पैदा किया यहां तक की कसाब को और उसके ज़िबह करने के फेअल को भी।
हजरत इब्ने अब्बास ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम से रिवायत बयान की कि हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि अल्लाह तआला फरमाता है कि मैंने ही खैर व शर को पैदा किया, उन लोगों की खुश खबरी हो जिन के हाथों पर मैंने नेकी मुकद्दर फरमाई और उन की खराबी हो जिन के हाथों पर मैंने शर पैदा किया। हुस्ने अख़लाक की फज़िलत।
हज़रत इमाम अहमद से दरयाप्त किया गया कि जिन आमाल की वजह से लोग अल्लाह की रजामन्दी या नाराज़गी के मसतौजिब होते हैं क्या उन में कोई अमल अल्लाह की तरफ से होता है या बन्दों की तरफ से? इमाम अहमद ने जवाब में फरमाया वह पैदा किये हुए अल्लाह के हैं और किए हुए बन्दों के। Imaan ki Fazilat.
मुसलमान गुनाह से काफिर नहीं होता :
हमारा भी अकीदा यही है कि मोमिन कितने ही सगीरा या कबीरा गुनाह करे लेकिन वह काफिर नहीं होता ख़्वाह वह तौबा के बगैर ही मर जाए बशर्ते कि तौहीद व ईमान को तर्क न किया हो। इस सूरत में उस का मामला अल्लाह के सुपुर्द होगा चाहे वह बख़्श दे और जन्नत में दाखिल फरमा दे और चाहे तो सज़ा दे और दोज़ख में भेज दे।
लिहाजा तुम को अल्लाह तआला और उस की मखलूक के दर्मियान दखल न देना चाहिये जब तक अल्लाह उसके अन्जाम की ख़बर खुद न दे।
अल्लाह रबबूल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।
इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें। ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।
क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।
खुदा हाफिज…