इस्लाम में दुल्हा दुल्हन को सजाने का रसम।Islam me Dulha Dulhan ko Sajane ka Rasam.

Islam me Dulha Dulhan ko Sajane ka Rasam.

शादी के मौके पर दुल्हन, दूल्हे को मेहन्दी लगाई जाती है कंगन पहनाया जाता है और निकाह के दिन सेहरा बांन्धा जाता है और जेवरात से सजाया जाता है।

लिहाजा यहाँ मासाइल बयान कर देना निहायत ही ज़रूरी है औरतों को हाथ, पाव में मेहन्दी लगाना जाइज़ है लेकिन बिला ज़रूरत छोटी बच्चियों के हाथ, पांव में मेहन्दी नही लगाना चाहिये ,बड़ी लड़कियों के हाथ पांव में मेहन्दी लगा सकते हैं ।

इस मस्अले से पता चला कि औरतें और लड़कियाँ मेहन्दी लगा सकती है चाहे शादी का दिन हो या और कोई खुशी का मौका।

सरकारे मदीना सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया- औरतों को चाहिये के हाथ और पांव पर मेहन्दी लगाए ताकि मर्दों के हाथ की तरह हाथ न हो, और अगर किसी वजह से या वो एहतियाती में किसी गैर मर्द को दिख जाए तो उसे पता न चले कि औरत किस रंग की है यानी गोरी है या काली क्योंकि हाथों के रंग को देख कर भी इन्सान चेहरे के रंग का अन्दाज़ा लगा लेता है” ।

एक हदीस में इरशाद हुआ के “ज्यादा न हो तो मेहन्दी से नाखून ही रंगीन रखें”।Islam me Dulha Dulhan ko Sajane ka Rasam.

लिहाजा औरतों को मेहन्दी लगाना बेशक जाइज़ है और इसी तरह हर किस्म के ज़ेवरात भी जाइज़ है चुनानचे दुल्हन को मेहन्दी लगाने, जेवरात से सजाने में काई हर्ज नहीं। लेकिन मर्दों को येह सब हराम है चाहे दूल्हा ही क्यों न हो ।

मसअला :- हाथ पावं में बल्कि सिर्फ नाखूनों में ही मेहन्दी लगाना मर्द के लिए हराम है । निकाह और मेहर की अहमियत।

शहज़ादा-ए-आला हज़रत हुज़ूर मुफ्ती-ए-आज़मे हिन्द रहमतुल्लाह तआला अलैह के फतावा-ए में है कि आप से फतवा पूछा गया-

सवाल :- दूल्हे को मेहन्दी लगाना दुरूस्त है या नहीं ? दूल्हा चांदी के जेवर पहनता है, कंगन बांधता है इस सूरत में निकाह पढ़ा दिया तो दुरूस्त है या नहीं ?

जवाब :- इस सवाल के जवाब में आप ने फतवा दिया कि मर्द को हाथ पाव में मेहन्दी लगाना ना जाइज़ है- जेवर पहनना गुनाह है- कंगन हिन्दुओं की रस्म है येह सब चीजें पहले उतरवाए फिर निकाह पढ़ाए क्योंकि जितनी देर निकाह में होंगी उतना देर वोह दूल्हा और गुनाह में रहेगा। और बुरे काम को कुदरत (ताक़त) होते हुए न रोकना और देर करना बहुत गुनाह है, बाकी अगर जेवर पहने हुए निकाह हुआ तो निकाह हो जाएगा । (फतावा-ए-मुस्तफाविया, जिल्द 3 सफा नं. 175)

सेहरा पहनना मुबाह है यानी पहेने तो न कोई सवाब और अगर न पहने तो न कोई गुनाह । यह जो लोगों में मशहूर हैं की सेहरा पहनना हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम की सुन्नत है, गलत है और सरासर झूठ है।

कौल :- मुजद्दिदे आजम सैय्यिदना आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा ख़ाँ रजिअल्लाहो तआला अन्हु इरशाद फरमाते है-“सेहरा न शरीअत में मना है न शरीअत में जरूरी या मुस्तहब (अच्छा काम ) बल्कि एक दुनियावी रस्म है, की तो क्या ! न की तो क्या ! इसके सिवा जो कोई इसे हराम गुनाह व बिदस्त व जलालत बताए वोह सख़्त झूटा सरा सर मक्कार है ।

और जो उसे जरूरी लाज़िम (समझे) और तर्क को सेहरा न पहनने को बुरा जाने और सेहरा न पहनने वालों का मज़ाक उडाए वोह निरा जाहिल है । दुल्हे का सेहरा ख़ालिस अस्ली फूलों का होना चाहिये । गुलाब के फूल हो तो बहुत बेहतर है कि गुलाब के फूल सरकार सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम को बहुत पसंद थे। 

सेहरे में चमक वाली पन्नियां न हो कि येह जीनत है और मर्द को जीनत यानी ऐसा लिबास जो चमकदार हो उसका इस्तेमाल हराम है। दुल्हन के सहरे में अगर येह चमक वाली पन्नियाँ हो तो कोई हर्ज नहीं । इसी तरह आज कल सेहरे में रूपये (नोट) वग़ैरा लगाते हैं येह फ़ुज़ूल खर्ची और गुरूर व तकब्बुर की निशानी है जो शरीअत में जाइज़ नहीं, लिहाजा अगर सेहरा पहनना ही हो तो सिर्फ खुशबूदार फूलों का हो हो। वरना एक गुलाब के फूलों का हार भी काफी है । Islam me Dulha Dulhan ko Sajane ka Rasam.

दुलहन दुल्हे को सजाते वक़्त दुआ :-

दुल्हन को जो औरतें सजाएं उन्हें चाहिये कि वोह दुल्हन को दुआए दें । हदीसे पाक में है- उम्मुल मोमेनीन हज़रत आएशा सिद्दीका रदी अल्लाहो तआला अन्हा इरशाद फरमाती हैं:- हुजूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम से जब मेरा निकाह हुआ तो मेरी वालिदा माजिदा मुझे सरकार के दौलत कदे पर लाई वहाँ अनसार की कुछ औरतें मौजूद थी उन्होंने मुझे सजाया और दुआ दी – दुआ :- अलल ख़ैरी वल बराकते व आला ख़ैरे-तअएरिन ,तर्जमा :- खैरो बरकत हो अल्लाह तुम्हारा नसीब अच्छा करे।(बुख़ारी शरीफ, जिल्द 3, बाब नं. 87,) 

लिहाजा हमारी इस्लामी बहनों को भी चाहिये के जब भी वोह किसी की शादी के मौके पर जाए दुल्हन सजाते वक्त या फिर उस से मुलाकात के वक्त इन अलफाज़ों से बरकत की दुआ करे । इसी तरह दूल्हे के दोस्तों को भी चाहिये के वोह दूल्हे को सजाते या सेहरा बांधते वक्त यही दुआ दे । बुखारी शरीफ़ की एक दूसरी रिवायत में है कि हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम ने हज़रते अब्दुर्रहमान बिन औफ रजिअल्लाह अल्लाहो तआला अन्हु को उन की शादी पर इसी तरह बरकात की दुआ इरशाद फरमाई थी । शादी के बाद माँ-बाप से मिलने की फज़ीलत।

अल्लाह रबबूल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे,हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम (स.व) से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे,आमीन।

इन हदीसों को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।

क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।

खुदा हाफिज…

 

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