जब बच्चा बोलना शुरू करे तो उस को सब से पहले कलमा शरीफ सिखाए”। पहले ज़माने में माँएँ अपने बच्चों को अल्लाह, अल्लाह कह कर सुलाती थी अब घर के रेडियो, टीवी और बाजे वग़ैरा बजा कर सुलाती है।
कुछ बेवकूफ़ अपने बच्चों को गाली बकना सिखाते हैं और उस पर बड़े खुश होते है । (मआजल्लाह)बच्चों के सामने ऐसी हरकतें न करें जिस से बच्चों के इख़्लाक़ ख़राब हो क्योंकि बच्चों में नकल करने की ज़्यादा आदत होती है वोह जो कुछ अपने माँ बाप को करते हुए देखते है वोह खुद भी वही करने लगते हैं,
इस लिए उनके सामने नमाजें पढ़े, कुरआन की तिलावत करे ताकि येह सब देख कर वोह भी ऐसा ही करे। बच्चों को झूटी कहानियाँ व किस्से सुनाने की बजाए बुजुर्गाने दीन के सच्चे वाकिआत सुनाए ताकि उन के दिल व दिमाग पर इस का अच्छा असर पड़े और उनके दिलों में इस्लाम से मुहब्बत पैदा हो ।Bachche ki Taleem wa Tarbiyat.
माँ बाप का फर्ज़ है कि अपनी औलाद की तअलीम व तरबियत के बारे में अपनी ज़िम्मेदारी का ख़ास ख्याल रखे। दुनियावी तअलीम से पहले शरई आदाब सिखाए और मज़हबी तअलीम दें। अगर इस में जरा भी कोताही करेगा तो कियामत के रोज़ औलाद से ही पूछ न होंगी बल्कि माँ बाप भी पकड़े जाएगे । बड़ी बच्चियों के लिए खास हिदायात।
रब तआला इरशाद फ़रमाता है तर्जमा :- अए ईमान वालों अपनी जानों और अपने घर वालों को उस आग से बचाओं ।
सूरह :- इस आयत की तफ़्सीर में हज़रत इब्ने अब्बास रजियल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है कि-“तुम खुद गुनाहों से बचो, ख़ुदा की फ़रमाबरदारी करो अपनी औलाद को भलाई का हुक्म दो, बुराई से मना करो और शरई आदाब सिखाओं और मजहबी तअलीम दो।
जब बच्चा होश सम्भाले तो किसी बअमल मुक्तकी परहेज़गार आलिम या हाफिज़ के पास बीठा कर कुरआने पाक और उर्दू की दीनी किताबें जरूर पढ़ाए ।
अगर अल्लाह तआला ने आप को एक से ज्यादा लड़के दिये हैं तो कम अज़ कम एक लड़के को ज़रूर आलिमे दीन या हाफिज़ क़ुरआन बनाए । हदीसे पाक में हैं– – “बरोज़े कियामत एक हाफिज़ अपनी तीन पीड़ियों को और एक आलिमे दीन अपनी सात पुशतों (पिड़ियों) को बख़्शवाऐगा “।Bachche ki Taleem wa Tarbiyat.
येह ख्याल गलत है कि आलिमे दीन को रोटी नहीं मिलती । जरूरी नहीं कोई दुनियावी इल्म हासिल करे तो उसे रोटी (यानी रोज़गार) भी मिल जाए । सैकड़ों गिरेजवेट मारे मारे फिरते नज़र आते है । यकीनन हर किसी को वोह ही मिलता है जो अल्लाह तआला ने उस की किस्मत में लिख दिया है ।(इस्लामी जिन्दगी, सफा नं. 24)
जब बच्चा सात (7) साल की उमर का हो जाए तो उसे नमाज़ पढ़वाए और नमाज़ न पढ़ने पर मुनासिब सजा भी दें और नव (9) बरस की उमर में उसका बिस्तर अलग कर दें ।(हिस्ने हसीन, सफा नं. 167) औलाद की तरबियत कैसे करें?
बच्चों को बुरे लोगों में बैठने, बुरे बदमाश लड़कों में खेलने से रोके उस पर इतनी सख्ती भी न करे कि वाह बागी हो जाए और इस कदर लाड़ प्यार भी न करे कि वोह ज़िद्दी व गुस्ताख़ बन जाए। मुहब्बत के वक्त मुहब्बत से पेश आए और सख्ती के वक्त सख्ती से पेश आए ।Bachche ki Taleem wa Tarbiyat.
बच्चों से मुहब्बत करना सुन्नते रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम है। अगर एक से ज्यादा बच्चे हो तो सब बच्चों के साथ बराबरी और इन्साफ का सुलूक करें चाहे वोह लड़का हो या लड़की ।तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द 1 बाब नं. 1299, हदीस नं. 2018, सफा नं. 913)
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया- -“अल्लाह तआला पसंद करता है कि तुम अपनी औलाद के दरमियान अदल (बराबरी व इन्साफ) करो यहाँ तक कि उनका बोसा (चुमने) में भी बराबरी रखो” । (कानूने शरीअत, जिल्द 2, सफा नं. 243)
हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम ने इरशाद फरमाया-“कोई बाप अपनी औलाद को इससे बेहतर तोहफा नहीं दे सकता कि वोह उसको अच्छी तअलीम दे”।
आका सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लमऔर फ़रमाते है “तोहफे देने में अपनी औलाद के दरमियान इन्साफ़ करो (यानी सब बच्चों को बराबर बराबर दो) जिस तरह तुम खूद येह चाहते हो कि वोह सब तुम्हारे साथ एहसान व मेहरबानी में इन्साफ़ करे” । (तबरानी शरीफ) मुसलमान भाइयों के हुक़ूक़।
औलाद के हुकूक में से सब से अहम हक़ येह है कि उन्हें हलाल कमाई से खिलाएँ हराम की कमाई से खुद भी बचे और अपनी औलाद को भी बचाए ।Bachche ki Taleem wa Tarbiyat.
अल्लाह रब्बुल ईज्ज़त अपने हबीब और हमारे आका व मौला सल्लल्लाहो तआला व आलैहि व असहाबेही व बारिक व सल्लिम के सदके तुफैल में हमें सिराते मुस्तकीम पर चलने की तौफीक अता फरमाए और सुन्नियत हनफियत व मस्लके आला हजरत पर मज़बूती से कायम व दायम रखें और ईमान के साथ अहले सुन्नत व जमाअत पर मौत नसीब फरमाए । । आमीन ।
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क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।
खुदा हाफिज…