सवालः – अल्लाह तआला फ़रिश्ते को वही किस तरह करते थे?
जवाबः – अल्लाह तआला जब फ़रिश्ते को किसी नबी के पास वही लेकर भेजते तो उसको रूहानी तौर पर वही का इलका करते या वह फ़रिश्ता लौहे महफूज़ से याद करके लाता और नबी को सुना देता। (उम्दतुलकारी शरह अल-बुखारी अलमुसम्मा बिलऐनी पेज 174, भाग 2)
सवालः – कुरआन करीम जिस तर्तीब से लौहे महफूज़ में है उसी तर्तीब पर नाज़िल हुआ या दूसरी तर्तीब पर ?
जवाबः- हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि कुरआन करीम शबे क़द्र में इकट्ठा एक ही मर्तबा लौहे महफूज़ से आसमाने दुनिया पर नाज़िल किया गया और वहः मवाक़े नुजूम के मुताबिक़ था, यानी जिस तरह ब-इख़्तिलाफ़े वाक़िआत उसे नाज़िल किया जाना इरादा-ए-इलाही में था उसी के मुवाफ़िक़ नुज़ूल की तर्तीब थी, लौहे महफूज़ में जिस तर्तीब से लिखा हुआ है उसी तर्तीब से नाज़िल नहीं हुआ ।(अल-इतकान फ़ी उलूमिल कुरआन भाग-1, पेज 54)
सवालः – पिछले अंबिया जिनकी ज़बानें अरबी ज़बान के अलावा थीं उनके पास हज़रत जिबरील अलैहिस्सलाम किस ज़बान में वही लेकर आते थे ?
जवाबः – अल्लाह तआला के यहां से हज़रत जिबरील अलैहिस्सलाम वही अरबी ज़बान में लेकर आते थे फिर हर नबी अपनी ज़बान में तर्जुमा करके क़ौम को बतलाता, क़ौम को समझाता और अहकामे खुदावन्दी की तब्लीग करता था।(अल-इतक़ान, भाग-1, पेज 60)
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….