मदीना मुनव्वरा बड़ी फ़ज़ीलतों वाला शहर है जहाँ सरवरे कायनात रहमते दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम जलवये अफ़रोज़ है जहाँ बेशुमार रिश्तों की आमद होती है और बेशुमार रहमतों और बरकतों का नुज़ूल होता है तो जब हम उनके रोज़े मुबारक में हाज़िरी का शरफ पायें तो बा अदब और एहतराम के साथ रोज़े मुबारक में हाज़िर हों और रोज़ये अक़दस में खुशूज़ व खुजूअ के साथ दाखिल हों और शोर शराबा व तेज़ आवाज़ में कलाम न करें बल्कि इस तरह पेश आयें कि वो हमारे आका है और हम उनके गुलाम हैं।
और वो तरीक़ा इख़्तियार करें जो आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की हयाते तइयबा में तमाम सहाबा किराम रजिअल्लाहु तआला अन्हुम का तरीक़ा था कि जब सहाबा किराम रज़ियल्लाहु तआला अन्हुम हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के सामने पेश होते तो उनकी ताज़ीम व अदब और एहतराम किया करते थे और उन्होंने कभी ऊँची आवाज़ में आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से कलाम न किया और इसके अलावा दुरूदो सलाम के नज़राने पेश करें और दुआ अस्तग़फार व नमाज़ और कुरान मजीद की तिलावत में मशगूल रहें और कोई ऐसा काम न करें जो शरई तौर पर नाजाइज़ व हराम हो और मस्जिदे नबवी में ज़्यादा से ज़्यादा नमाज़ पढ़ें क्योंकि इस मस्जिद में नमाज़ पढ़ने का सवाब हज़ार गुना ज़्यादा मिलता है।
और हर बुरी और ममनूअ बातों को तर्क कर दें हुस्ने अखलाक को इख़्तियार करें और किसी को अज़ियत न पहुँचायें बल्कि लोगों की मदद करें और उनके साथ नरमी बरतें और ये अकीदा रखें कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम हमारी हाज़िरी और जियारत को जानते हैं।
हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु ने फरमाया जो शख़्स मेरी कब्र के नज़दीक मुझ पर दुरूद पढ़े मैं उसको जानता हूँ। (अलकौलुल बदीअ-154)
और खास बात ये है कि जब मदीना मुनव्वरा जाने का इरादा करें तो सिर्फ ये नीयत करें कि हम हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के रोज़े मुबारक की ज़ियारत को जा रहे है क्योंकि इस नीयत के सबब हमें हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की कुरबत मिलती है जो क़यामत के दिन शफाअत का सबब बनेगी।
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया- जिसने मेरी कब्र की ज़ियारत की उसके लिये मेरी शफाअत वाजिब हो गई। (मजमउज्ज़वाइद-4/2)
सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इरशादे गिरामी है मेरी इस मस्जिद (नबवी) में एक नमाज़ मस्जिदे हराम के अलावा दीगर मस्जिद से एक हज़ार नमाज़ों से बेहतर है।(सही मुस्लिम-1/447)
फ़रमाने रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम है-जिसने मदीना तइयबा की सख़्ती और शिद्दत पर सब्र किया मैं क़यामत के दिन उसकी सिफारिश करूँगा। (सही मुस्लिम-1/444)
मदीना वो शहर है जिसे अल्लाह तआला ने अपने महबूब के लिये पसन्द फरमाया और जब मदीने की ज़मीन पर चलें तो बड़े सुकून और संजीदगी के साथ कदम रखें और तसव्वुर में लायें कि इस ज़मीन पर मेरे मुस्तफा के कदम मुबारक लगे हैं और मदीना मुनववरा की किसी चीज़ को ज़रर व नुकसान न पहुँचायें।
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया- जिस शख़्स ने अहले मदीना के साथ ज़र्रा बराबर भी ज़्यादती का इरादा किया तो अल्लाह तआला उसे दोज़ख की आग में डालकर यूँ ख़त्म कर देगा जैसे नमक पानी में घुलकर ख़त्म हो जाता है।(सही मुस्लिम-1/445)
एक और मकाम पर आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया जिसने मदीना में कोई हादसा बपा किया उस पर अल्लाह तआला और रिश्तों और तमाम लोगों की लानत है उसके न नफिल कुबूल किये जायेंगे न फर्ज़ । (सही बुखारी-1/251)
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….