
खुदा ने उन लोगों को अपना महबूब क़रार दिया है जो पाकी और सफ़ाई पर पूरा-पूरा ध्यान देते हैं और नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इरशाद है- “पाकी और सफ़ाई आधा ईमान है।”
यानी आधा ईमान तो यह है कि आदमी रूह को पाक-साफ़ रखे और आधा ईमान यह है कि आदमी जिस्म की सफाई और पाकी का ख़याल रखे ।
रूह की पाकी यह है कि उसको कुफ्र व शिर्क और ख़ुदा की नाफ़रमानी और गुमराही की गन्दगियों से पाक करके साफ़-सुथरे अक़ीदे और पाकीज़ा अख़लाक़ से सजाया जाए और जिस्म की पाकी और सफ़ाई यह है कि उसको जाहिरी नापाकियों से पाक व साफ़ रखकर सफ़ाई और सलीके के आदाब से सजाया जाए
सोकर उठने के बाद हाथ धोए बगैर पानी के बरतन में हाथ न डालिए । क्या मालूम सोते में आपका हाथ कहाँ-कहाँ पड़ा हो ?
गुस्लखाने की ज़मीन पर पेशाब करने से परहेज़ कीजिए, खासतौर से उस वक़्त, जबकि गुस्लखाने की ज़मीन कच्ची हो ।
ज़रूरतों से फ़ारिग होने के लिए न क़िबला रुख बैठिए और न क़िबले की तरफ़ पीठ कीजिए । फ़ारिग़ होने के बाद ढे़ले और पानी से इस्तिंजा कीजिए या सिर्फ़ पानी से पाकी हासिल कीजिए। लीद, हड्डी और कोयले वगैरह से इस्तिंजा न कीजिए और इस्तिंजा के बाद साबुन या मिट्टी से खूब अच्छी तरह हाथ धो लीजिए ।
जब पेशाब-पाखाने की जरूरत हो तो खाना खाने न बैठिए, फारिग होने के बाद खाना खाइए ।
खाना वगैरह खाने के लिए दाहिना हाथ इस्तेमाल कीजिए । वुजू में दाएँ हाथ से काम लीजिए और इस्तिंजा करने और नाक वगैरह साफ़ करने के लिए बाएँ हाथ का इस्तेमाल कीजिए ।
नर्म जगह पर पेशाब कीजिए ताकि छीटें न उड़ें और हमेशा बैठकर पेशाब कीजिए । हाँ. अगर ज़मीन बैठने के लायक़ न हो या कोई वाक़ई मजबूरी हो तो खड़े होकर पेशाब कर सकते हैं, लेकिन आम हालात में यह बड़ी गंदी आदत है. जिससे सख़्ती के साथ परहेज़ करना चाहिए ।
नदी, नहर के घाट पर. आम रास्तों पर और छायादार जगहों पर हाजत पूरी करने के लिए न बैठिए, इससे दूसरे लोगों को तकलीफ़ भी होगी और अदब व तहजीब के ख़िलाफ़ भी है ।
जब पाखाना जाना हो तो जूता पहनकर और सर को टोपी वगैरह से ढाँपकर जाइए और जाते वक़्त यह दुआ पढ़िए-
अल्लाहुम्मा इन्नी अऊजुवि-क मिनल खुबुसि वल खबाइस ।
(बुखारी, मुस्लिम)
“ऐ अल्लाह ! तेरी पनाह चाहता हूँ शैतानों से उन शैतानों से भी जो नर हैं और उनसे भी जो मादा हैं।”
और जब पाखाने से बाहर आएँ तो यह दुआ पढ़िए-
अल-हम्दु लिल्लाहिल्लजी अज-ह-व अन्निल अजा व आफ़ानी । “खुदा का शुक्र है. जिसने मुझसे तकलीफ़ दूर फ़रमाई और मुझे आफ़ियत (कुशलता) बख़्शी ।”(नसई, इब्ने माजा)
नाक साफ़ करने या बलगम थूकने के लिए एहतियात के साथ उगालदान इस्तेमाल कीजिए या लोगों से नज़र बचाकर अपनी ज़रूरतें पूरी कीजिए ।
बार-बार नाक में उँगली डालने और नाक की गन्दगी निकालने से परहेज़ कीजिए। अगर नाक साफ़ करने की जरूरत हो, तो लोगों की नजर से बचकर अच्छी तरह इतमीनान से सफ़ाई कर लीजिए ।
रूमाल में बलगम थूककर मलने से सख़्ती के साथ परहेज़ कीजिए । यह बड़ी घिनौनी आदत है, अलावा इसके कि कोई मजबूरी हो ।
मुँह में पान भरकर इस तरह बातें न कीजिए कि सामने वाले आदमी पर छींटें पड़ें और उसे तकलीफ़ हो । इसी तरह अगर तम्बाकू और पान ज्यादा खाते हों, तो मुँह साफ़ रखने पर भी बहुत ज्यादा ध्यान दीजिए और इसका भी खयाल रखिए कि बात करते वक्त अपना मुँह सामने वाले आदमी के क़रीब न ले जाएँ ।
वुजू काफ़ी एहतिमाम के साथ कीजिए और अगर हर वक़्त मुमकिन न हो तो ज्यादा से ज्यादा बावुजू रहने की कोशिश कीजिए। जहाँ पानी न मिले, तयम्मुम कर लीजिए । ‘बिसमिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम’ कहकर वुजू शुरू कीजिए और वुजू के बीच यह दुआ पढ़िए-
अश्हदु अल्लाइला-ह-इल्लल्लाहु वह-दहू ला शरी-क-लहू व अश्हदु अन-न मुहम्मदन अबदुहू व रसूलुहू अल्लाहुम्मज-अलनी मिनत्तव्वाबी-न वज-अलनी मिनल मु-त-तहहिरीन (तिरमिजी)
.”मैं गवाही देता हूँ कि ख़ुदा के सिवा कोई माबूद नहीं, वह अकेला है, उसका कोई शरीक नहीं और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ख़ुदा के बन्दे और उसके रसूल हैं। ऐ खुदा ! मुझे उन लोगों में शामिल कर, जो बहुत ज्यादा तौबा करने वाले और बहुत ज़्यादा पाक-साफ़ रहने वाले हैं।”
और वुजू करने के बाद यह दुआ पढ़िए-
सुब्हा-न-क अल्लाहुम-म व बिहम्दि-क अश्हदु अल्लाइला-ह इल्ला अन-त अस्तफ़िरु-क व अतूबु इलै-क ! (नसई)
“ऐ अल्लाह ! तू पाक व बरतर है, अपनी हम्द व सना के साथ । मैं गवाही देता हूँ कि कोई माबूद नहीं मगर तू ही है। मैं तुझसे मग़फिरत चाहता हूँ और तेरी तरफ रुजू करता हूँ।”
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इरशाद है-“क़यामत के दिन मेरी उम्मत की निशानी यह होगी कि उनकी पेशानियाँ और वुजू के आजा (अंग) नूर से जगमगा रहे होंगे, तो जो आदमी अपने नूर को बढ़ाना चाहे, बढ़ा ले ।”
(बुखारी, मुस्लिम)
पाबन्दी के साथ मिस्वाक कीजिए। नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इरशाद है कि अगर मुझे उम्मत की तकलीफ़ का ख़याल न होता तो मैं हर वुजू में उनको मिस्वाक करने का हुक्म देता । एक बार आपके पास कुछ लोग आए जिनके दाँत पीले हो रहे थे। आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने देखा, तो ताकीद फरमाई कि मिस्वाक किया करो ।
सप्ताह में एक बार तो जरूर ही गुस्ल (स्नान) कीजिए । जुमा के दिन गुस्ल का एहतिमाम कीजिए और साफ़-सुथरे कपड़े पहनकर जुमा की नमाज़ में शिरकत कीजिए । नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया -“अमानत की अदाएगी आदमी को जन्नत में ले जाती है।”
सहाबा रजियल्लाहु अन्हुमा ने पूछा, “ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ! अमानत से क्या मतलब है ?”
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया-“नापाकी से पाक होने के लिए गुस्ल करना, इससे बढ़कर खुदा ने कोई अमानत मुकर्रर नहीं की है। इसलिए जब आदमी को नहाने की जरूरत हो जाए तो गुस्ल करे ।”
नापाकी की हालत में न मसजिद में जाइए और न मसजिद में से गुज़रिए और अगर कोई शक्ल मुमकिन ही न हो तो तयम्मुम करके मसजिद में जाइए या गुज़रिए ।
खूबसूरत बयान:- इस्लाम की रौशनी में मेहमान नवाज़ी के आदाब।
बालों में तेल डालने और कंघा करने का भी एहतिमाम कीजिए । दाढ़ी के बढ़े हुए बेढंगे बालों को कैंची से ठीक कर लीजिए। आँखों में सुरमा भी लगाइए । नाखून कटवाने और साफ़ रखने का भी एहतिमाम कीजिए और सादगी और सन्तुलन के साथ मुनासिब साज-सज्जा का एहतिमाम कीजिए ।
छींकते वक़्त मुँह पर रूमाल रख लीजिए, ताकि किसी पर छींट न पड़े । छींकने के बाद ‘अल-हम्दु लिल्लाह’ (खुदा का शुक्र है) कहिए। सुनने वाला ‘यर्हमुकल्लाह’ (खुदा आप पर रहम फ़रमाए) कहे और उसके जवाब में ‘यहदीकल्लाह’ (ख़ुदा आप को हिदायत दे) कहिए ।
खुशबू का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल कीजिए। नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम खुशबू को बहुत पसन्द करते थे। आप सोकर उठने के बाद जब जरूरतों से फ़ारिग होते तो खुशबू जरूर लगाते ।
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
खुदा हाफिज़…..