क़ब्र में जाने की तैयारी और नसीहत। Qabr Mein Jaane ki Taiyari aur Naseehat.1

Qabr Mein Jaane ki Taiyari aur Naseehat.
Qabr Mein Jaane ki Taiyari aur Naseehat.

हज़रत नूह अलैहिस्सलाम की बेटे को नसीहत :-

हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने अपने बेटे साम को नसीहत फरमाई मेरे प्यारे बेटे क़ब्र में इस हाल में हरगिज़ ना दाखिल होना कि तेरे दिल में ज़र्रा बराबर तकब्बुर हो इसलिये कि किब्रियाई (तकब्बुर) की चादर अल्लाह तआला के लिये मख़्तस है जो शख़्स अल्लाह तआला की इस चादर को फाड़ने की कोशिश करता है अल्लाह तआला उस पर ग़ज़बनाक हो जाता है ऐ मेरे प्यारे बेटे क़ब्र में इस हाल में हरगिज़ दाखिल ना होना कि तेरे दिल में ज़र्रा बराबर रहमते इलाही से ना उम्मीदी हो इसलिये कि (बदबख़्त) गुमराह आदमी ही अल्लाह तआला की रहमत से ना उम्मीद होता है। (किताबुज़्ज़ोहद)

क़ब्र के बारे में हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम का फरमान :-

हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम अपने हवारियों के हमराह क़ब्रिस्तान में एक क़ब्र पर खड़े थे इसी मौक़ा पर आपके हवारियों ने क़ब्र की तारीकी उसकी तंगी और उसकी वहशत का ज़िक्र किया तो हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने इरशाद फरमाया कि तुम अपनी माँओं के पेट में इससे भी ज़्यादा तंग व तारीक मुक़ाम पर थे जब अल्लाह तआला फराख़ करना चाहता है फराख़ कर देता है (किताबुज़्ज़ोहद)

क़ब्र के बारे में अकाबरीन के एकवाल :-

क़ब्र चूंकि इबरत का मुक़ाम है इसलिये अकाबरीन ने इसके बारे में बड़ी बसीरत अंगेज़ बातें कही हैं ताकि इंसान क़ब्र के मुक़ाम को पहचान कर इसके लिये नेक आमाल से कुछ तैयारी कर ले क़ब्र के बारे में अकाबिर सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हु और औलिया रहमतुल्लाहि अलैहि के चन्द एक़वाल मुन्दरजा जैल है।

हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहो अन्हु का इरशाद :-

क़ब्र के बारे में आप रज़ियल्लाहो अन्हु का इरशाद मुन्दर्जा जैल है हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहो अन्हु फरमाते हैं कि तोशय आमाल के बगैर क़ब्र में दाखिल होने वाले की मिसाल उस शख़्स की सी है जो समुंद्र में बगैर कशती उतर जाय।

हज़रत उस्मान गनी रज़ियल्लाहु अन्हु का फरमान :-

हज़रत उस्मान गनी रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया है कि जब क़ब्र का ज़िक्र सुनता हूँ या मेरा किसी क़ब्र के पास से गुज़र होता है तो क़ब्र के मोताअलिक़ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्ल्म के इरशादात याद आ जाते हैं और मैं घबरा उठता हूँ और बे अख्तयार आँखें आंसूओं से तर हो जाती हैं।

हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहो अन्हु से रिवायत है कि उनका यह हाल था जब वह किसी क़ब्र के पास खड़े होते तो इस क़दर रोते की उनकी दाढ़ी आंसूओं से तर हो जाती उनसे पूछा गया कि आप जब जन्नत और जहन्नम का ज़िक्र करते हैं तो नहीं रोते और क़ब्र की वजह से रोते हैं फरमाया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्ल्म फरमाते थे कि क़ब्र आख़िरत की मंजिलों में से पहली मंजिल है अगर बन्दा इससे नजात पा गया तो आईन्दा पेश आने वाली मंज़िलें इससे आसान हैं और अगर क़ब्र की मंज़िल से बन्दा नजात ना पार सका तो इससे बाद की मंज़िलें और ज़्यादा सख़्त और कठिन हैं नीज़ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ये भी फरमाते थे कि क़ब्र के मंज़र से मैंने कोई ख़ौफनाक मज़र नही देखा। (तिर्मिज़ी)

हज़रत उस्मान रज़ियल्लाहो अन्हु फरमाते हैं कि चार चीजें ऐसी हैं ज़ाहिर तो फज़ीलत का दर्जा रखता है और बातिन फर्ज़ का हुक्म रखता है। खुदा के नेक बन्दों से ताल्लुक्क़ रखना फज़ीलत है लेकिन उनके नक्शे क़दम पर चलना फर्ज़ है कुरआन करीम की तिलावत फज़ीलत है लेकिन इस पर अमल करना फर्ज़ है क़ब्रों की ज़ियारत करना फज़ीलत है लेकिन खुद क़ब्र में पहुंचने की तैयारी करना फ़र्ज़ है बीमार की बीमारपुर्सी करना भी फज़ीलत है लेकिन इससे इबरत हासिल करना फर्ज़ है।

हज़रत अली रजियल्लाहु अन्हु का इरशाद :-

हज़रत कमील रदियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि एक मर्तबा हज़रत अली रजियल्लाहु अन्हु के हमराह क़ब्रिस्तान पहुंचा आपने एक क़ब्र की तरफ मोतवज्जह होकर फरमाया ऐ अहले क़बूर ऐ क़ब्रों के गड्ढ़ों में बोसीदा हो जाने वालों ऐ वहशत और तन्हाई से हमकिनार लोगो कुछ बताओ तुम्हारा क्या हाल है यहाँ किस तरह गुज़र हो रही है फिर खुद ही यों गोया हुए कि तुम्हारे बाद तुम्हारे माल तक़सीम हो गये औलादें यतीम हो गई बीवीयों ने दूसरे शौहर कर लिये इसके बाद मुझसे मोखातिब हुए और फरमाया कमील, अगर इन लोगों को बोलने की ताक़त होती और यह कलाम कर सकते तो यह इस तरह कहते कि दुनिया की माल व दौलत की निस्बत बेहतरीन ज़ादे राह तक़वा है। एक कफ़न चोर के टूटे दिल पर मग़फिरत।

इंसान का यही अमल और नाफे सरमाया है जो कि राह-आख़िरत में काम आता है। यह फरमाया और अशकबार हो गये फिर फरमाया ऐ कमील रज़ियल्लाहु अन्हु क़ब्र अमल का सन्दूक़ है यानी इंसान के आमाल क़ब्र में उसके साथ होते हैं इंसान अच्छा या बुरा जो अमल करता है यानी क़ब्र इस सन्दूक़ में महफूज़ रहता है।

हज़रत ख़्वाजा हसन बसरी रहमतुल्लाहि अलैहि का क़ौल :-

हज़रत हसन बसरी रहमतुल्लाहि अलैहि एक बार जनाज़े की नमाज़ पढ़ने लगे तो जब लोग दफ़न से फ़ारिग हो गये और क़ब्र दुरूस्त कर चुके तो आप उस क़ब्र पर बैठ कर बहुत रोये। फिर आपने हाजरीन से फरमाया कि ऐ लोगों सुनो अव्वल और आख़िर क़ब्र है दुनिया के आख़िर क़ब्र और आख़िरत के अव्वल क़ब्र है और फिर तुम ऐसे आलम से क्यों नहीं डरते जिसके अव्वल क़ब्र है और जब तुम्हारा अव्वल व आखिर यह है तो ऐ ग़ाफिलों, अव्वल व आख़िर को दुरूस्त कर लो आपके इस वाअज़ से लोग बहुत मोतासिर हुए और सब रोने लगे। (तज़किरतुल औलिया)

हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाहि अलैहि का इरशाद :-

मुहम्मद बिन कआब क़रतबी का कहना है कि हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाहि अलैहि जब खलीफा हुए तो मुझे बुलाने के लिये मेरे पास एक आदमी भेजा और मैं उस वक़्त मदीने में था मैं आपके पास हाज़िर हुआ मैं उन्हें हैरत की नज़र से देख रहा था मेरी आँख उन पर जमी हुई थी आपने फरमाया ऐ इब्ने काअब तुम मेरी तरफ इस तरह देख रहे हो कि इस तरह तुम्हें देखने की आदत नहीं है।

मैंने कहा कि मैं ताअज्जुब से देख रहा हूँ आपने फरमाया तुम किस लिये मोताज़िब हो मैंने अर्ज किया या अमीरूल मोमिनीन मैं आपके बदन के रंग और जिस्म को लागरी और सर के बाल झड़ जाने पर तआजुब कर रहा हूँ आपने फरमाया तुम्हारा उस वक़्त क्या हाल होगा जब तुम मुझे क़ब्र में बेयारो दगार पड़ा हुआ देखोगे जहाँ कोई पुरसाने हाल ना होगा और जब मेरी आँखें ढलक कर रूखसारों पर पड़ रही होंगी और जब मेरी नाक से बदबूदार माद्दाह बह रहा होगा यह कैसा मंजर होगा कि हर कोई देखने वाला हैरान होगा। (किताबुज़्ज़ोहद)

हज़रत बहलूल का क़ब्र के बारे में इरशाद :-

हज़रत सरी सक़्ती रहमतुल्लाहि अलैहि का कहना है कि मैं एक रोज़ क़ब्रिस्तान से गुज़रा तो मैंने देखा कि बहलूल अपने दोनों पावों एक क़ब्र में लटकाए हुए मिटटी से खेल रहे हैं मैने कहा आप यहाँ बहलूल ने जवाब दिया मैं उन लोगों के पास हूँ जिनसे मुझे कोई तकलीफ नहीं पहुंचती और जब मैं उनके पास से चला जाता हूँ तो वह मेरी ग़ीबत नहीं करते मैंने कहा ऐ बहलूल रोटी मंहगी हो गई है कहने लगे खुदा की क़सम मुझे कुछ परवाह नहीं अगरचे एक रोटी एक मिस्क़ाल के बराबर क्यों न हो जाय हम पर तो यह फर्ज़ है कि हम उस अल्लाह की इबादत करें जैसा कि उसने हमें हुक्म दिया है और उसके ज़िम्मे हमारा रिज़्क़ है जैसा कि उसने हमसे वादा किया है

इसके बाद वह मेरे पास से यह अशआर पढ़ता हुआ रुख़सत हुआ ऐ वह शख़्स जो दुनिया और ज़ीनत से मुस्तफीद हो रहा है और आँखें इस दुनिया की लज़्ज़तों में महवियत के बाअस बेदार हैं अफसोस तू अपनी उम्र ऐसी चीज़ के हुसूल में ज़ाया कर रहा है जिसे तू हासिल नहीं कर सकता तो जब अल्लाह तआला के हुज़ूर पेश होगा तो उसे क्या जवाब देगा।

क़ब्र की तारीकी :-

बगदाद में एक बुजुर्ग रहते थे उनका नाम अबू अली था एक मर्तबा वह बगदाद के मोहल्ला महज़म में जा रहे थे कि एक शख़्स जिसका नाम ख़लफ़ बिन सालिम था मैंने ने पूछा कि ऐ अबू अली आपके पास रहने की कोई जगह है उन्होंने कहा जी हाँ सालिम ने कहा वह कहाँ है अबू अली ने फरमाया वह ऐसा घर है जहाँ अमीर व गरीब शाह व गदा सब बराबर हैं और वह क़ब्रिस्तान हैं ।

सालिम ने पूछा ऐ अबू अली रात की तारीकी में किस तरह वक़्त गुज़ारते हो अबू अली ने कहा मैं क़ब्र की तारीकी और उसकी वहशत यानी तन्हाई को कसरत से याद करता रहता हूँ इस तरह रात के अंधेरे में वक़्त गुज़ारना मुझ पर सहल हो जाता है मैंने कहा आपने क़ब्रिस्तान में कोई नागवार चीज़ भी देखी होगी फरमाया मुमकिन है लेकिन आख़िरत (क़यामत) का ख़ौफ मुझे क़ब्रिस्तान के ख़ौफ से मुस्तग़नी (लापरवाह) कर देता है।

साबित बनानी रहमतुल्लाहि अलैहि का क़ौल :-

हज़रत साबित बनानी रहमतुल्लाहि अलैहि का क़ौल है कि एक मर्तबा मैं क़ब्रिस्तान में दाखिल हुआ जब वहाँ से निकलने का इरादा किया तो मुझे एक आवाज सुनाई दी कहने वाला कह रहा था ऐ साबित-खबरदार यहाँ रहने वालों की खामोशी से धोखा ना खाना इनमें कितने ऐसे हैं जो निहायत ग़म ज़दा हैं।(अहियाउल उलूम जि. 4) सरवरे काएनात की इबादात।

Qabr Mein Jaane ki Taiyari aur Naseehat.

हिकायत :-

हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाहि अलैहि एक मर्तबा एक जनाज़ा के साथ तशरीफ ले गये और कब्रिस्तान में पहुंचकर अलग एक जगह बैठकर कुछ सोचने लगे। किसी ने अर्ज़ किया अमीरूल मोमिनीन आप इस जनाज़ा के वली थे आप ही अलग बैठ गये? फरमाया हाँ मुझे एक क़ब्र ने आवाज़ दी और मुझे यह कहा ऐ उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाहि अलैहि तू मुझसे यह नहीं पूछता कि मैं इन आने वालों के साथ क्या क्या करती हूँ?

मैंने कहा तू ज़रूर बता उसने कहा उसके कफ़न फाड़ देती हूँ बदन के टुकड़े टुकड़े कर देती हूँ खून सारा चूस लेती हूँ गोश्त खा लेती हूँ और बताऊं कि आदमी के जोड़ों के साथ क्या करती हूँ मूढों को बाहों से जुदा कर देती हूँ और सुरीनों को रानो से अलग कर देती हूँ और रानों को गुठनों से और गुठनों को पिंडलियों से और पिंडलियों को पावों से जुदा जुदा कर देती हूँ ।

यह फरमाकर उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाहि अलैहि रोने लगे और फरमाया कि दुनिया का क़याम बहुत ही थोड़ा है और इसका धोका बहुत ज़्यादा है इसमें जो अज़ीज़ है आखिरत में ज़लील है इसमें जो दौलत वाला है वह आखिरत में फ़क़ीर है इसका जवान बहुत जल्द बूढ़ा हो जायगा इसका ज़िन्दह बहुत जल्द मर जायगा इसका तुम्हारी तरफ मोतवज़्ज़ह होना तुमको धोखे में ना डाल दे हालांकि तुम देख रहे हो कि यह कितनी जल्दी मुँह फेर लेती है और बेवकूफ वह है जो इसके धोके में फंस जाय ।

कहाँ गये इसके वह दिलदादह जिन्होंने बड़े-बड़े शहर आबाद किये बड़ी बड़ी नहरें निकाली बड़े-बड़े बाग लगाये और बहुत थोड़े दिन रहकर सब को छोड़ कर चल दिये वह अपनी सेहत और तन्दुरूस्ती से धोखे में पड़े कि सेहत के बेहतर होने से उनमें निशात पैदा हुआ और इससे गुनाहों में मुबतला हुए वह लोग खुदा की क़सम दुनिया में माल की कसरत से क़ाबिले रशक थे बावजूदे कि माल के कमाने में उनको रूकावटें पेश आती थीं मगर फिर भी खूब कमाते थे इन पर लोग हसद करते थे।

लेकिन वह बेफिक्री से माल को जमा करते रहते थे और उसके जमा करने में हर प्रकार की तकलीफ को खुशी से बरदाश्त करते थे लेकिन अब देख लो कि मिटटी ने उनके बदनों का क्या बना डाला और ख़ाक ने उनके बदनों का क्या बना दिया कीड़ों ने उनके जोड़ों और हडिडयों का क्या हाल किया वह लोग दुनिया में ऊँची ऊँची मसहरियों और ऊँचे ऊँचे फरशों और नरम नरम गददों पर नौकरों और ख़ादिमों के दरमियान आराम करते थे।

लेकिन अब क्या हो रहा है आवाज़ देकर उनसे पूछा कि क्या गुज़र रही है गरीब अमीर सब एक मैदान में पड़े हुए हैं मालदार से पूछ कि इसके माल ने क्या काम दिया फ़क़ीर से पूछा कि उनके फिक्र ने क्या नुक़सान किया उनकी ज़बान का हाल पूछ कि बहुत चहकती थी उनके आँखों को देख जो हर तरफ देखती थीं उनकी नर्म नर्म खालों का हाल दरियाफ़्त कर उनकी खूबसूरत और दिलरूबा चेहरों का हाल पूछ क्या हुआ?

उनके नाजुक बदन को मालूम कर कहाँ गया और कीड़ों ने सबका क्या हशर किया उनके रंग काले कर दिये उन का गोश्त खा लिया उनके मुँह पर मिटटी डाल दी आज़ा को अलग अलग कर दिया जोड़ों को तोड़ दिया वह कहाँ हैं उनके खुददाम जो हर वक़्त हाज़िर हूँ जी कहते थे कहाँ हैं उनके खेमे और वह कमरे जिनमें आराम करते थे कहाँ हैं उनके वह माल और ख़ज़ाने जिनको जोड़ जोड़कर रखते थे उनके खुददाम ने उनको क़ब्र में खाने के लिये कोई तोशा भी ना दिया और उनकी क़ब्र में कोई बिस्तर भी न बिछा दिया कोई तकिया भी न रख दिया ज़मीन ही पर डाल दिया कोई दरख़्त फूल फुलवारी भी ना लगायी आह-अब वह अकेले पड़े हैं अंधेरे में पड़े हैं उनके लिये अब दिन रात बराबर है।

दोस्तों से मिल नही सकते किसी को अपने पास बुला नही सकते कितने नाजुक बदन मर्द, नाजुक बदन औरतें आज उनके बदन बोसीदह हैं उनके आज़ा एक दूसरे से जुदा हैं आँखें निकलकर मुँह पर गिर गई गर्दन जुदा हुई पड़ी है मुँह में पानी पीप भरा पड़ा है और सारे बदन में कीड़े चल रहे हैं वह इस हाल में पड़े हैं और उनकी बीवीयों ने दूसरे निकाह कर लिये वह मज़े उड़ा रही हैं बेटों ने मकानों पर कब्ज़ा कर लिया वारिसों ने माल तक़सीम कर लिया मगर बाज़ खुश नसीब क़ब्र में ऐसे भी हैं जो अपनी क़ब्रों में लज़्ज़तें उड़ा रहे हैं तरो ताज़ा चेहरों के साथ राहत व आराम में हैं।

लेकिन ये वही लोग हैं जिन्होंने इस धोका के घर में उस घर को याद रखा इसकी उम्मीदों से उसकी उम्मीदों को मोक़ददम किया और अपने लिये तोशा जमा किया और अपने पहुंचने से पहले अपने जाने का सामान कर दिया ऐ वह शख़्स जो कल को क़ब्र में ज़रूर जायेगा तुझे इस दुनिया के साथ आख़िर किस चीज़ ने धोका में डाल रखा है तुझे उम्मीद है कि यह कमबख्त दुनिया तेरे साथ रहेगी क्या तुझे यह उम्मीद है कि तू इस कोच के घर में हमेशा रहेगा तेरे यह वसी मैदान तेरे बाग़ों के पके हुए फल तेरे नरम नरम बिस्तर तेरे गर्मी सर्दी के जोड़े यह सब के सब एक दम रखे रह जायेंगे। सहाबियात का इश्के रसूल ।

जब मलाकुल मौत आकर मोसल्लत हो जायगा कोई चीज़ इसको ना हरा सकेगी पसीनों पर पसीने आने लगेंगे प्यास की शिददत बढ़ जाएगी और जानकुनी की सख्ती में करवटें बदलता रह जायगा अफसोस सद अफसोस ए वह शख़्स जो आज मरते वक़्त अपने भाई की आँख बन्द कर रहा है अपने बेटे की आँख बन्द कर रहा है अपने बाप की आँख बन्द कर रहा है इन में से किसी को नहला रहा है किसी को कफ़न दे रहा है किसी के जनाज़े के साथ जा रहा है किसी को क़ब्र के गड्ढे में डाल रहा है कल को तुझे भी यह सब पेश आना है और भी इस क़िस्म की बातें फरमाई फिर दो शेर पढ़े जिनका तर्जुमा यह है।

आदमी ऐसी चीज़ के साथ खुश होता है जो अनक़रीब फ़ना होने वाली है और लम्बी लम्बी आरजूओं और दुनिया की उम्मीदों में मशगूल रहता है। अरे बेवकूफ ख़्वाब की लज़्ज़तों से धोका में नहीं पड़ा करते तेरा दिन सारा गफलत में गुज़रता है और तेरी रात सोने में गुज़रती है और मौत तेरे ऊपर सवार है आज तू वह काम कर रहा है कि कल को इन पर रंज करेगा दुनिया में चौपाये इसी तरह ज़िन्दगी गुज़ारते हैं जिस तरह तू गुज़ार रहा है।” कहते हैं कि इस वाक़िया के बाद एक हफ़्ता भी ना गुज़रा था कि हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रहमतुल्लाहि अलैहि का विसाल हो गया।

असल आबादी :-

एक घोड़ सवार ने जीते हुए एक शख्स से पूछा भई आबादी यहाँ से कितनी दूर है उस शख्स ने जवाब दिया आप अपनी दाईं तरफ देखिये वह देखिये सामने आबादी नज़र आ रही है घोड़ सवार ने उधर देखा तो उसे एक वसी व अरीज़ क़ब्रिस्तान नज़र आया घोड़ सवार ने दिल में सोचा कि यह शख़्स या तो दीवाना है और या कोई मर्द कामिल फिर उसने इससे कहा कि भई मैंने आबादी का पूछा है और तुम क़ब्रिस्तान बता रहे हो यह क्या बात? तो वह बोला यह इसलिये कि मैंने दूसरे तमाम मुक़ामात के लोगों को यहाँ आते देखा है और यहाँ से किसी को जाते नहीं देखा और आबादी कहते ही इस मुक़ाम को है जहाँ दूर-दूर से लोग आएं और वहाँ से फिर वीराने को ना जायें तो मेरी नज़र में सही मानों में आबादी यही है (रौजुलफाईक़)

इस हिकायत से मालूम हुआ कि हर एक को एक दिन मरना है और अपने शानदार मकान और शहर छोड़कर क़ब्र में जाना है जिसे हम आबादी कहते हैं उसे एक दिन आबादी का सामना होगा असल आबादी तो क़ब्रिस्तान में है जहाँ आहिस्ता आहिस्ता सब लोग जमा हो रहे हैं।

अल्लाह रबबुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।

इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें। ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।

क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।

खुदा हाफिज…

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