ज़कात का बयान।Zakaat ka Bayan

Zakat ka bayan

अल्लाह तआला का फ़रमान है:- तर्जुमा:- नमाज़ दुरुस्ती से अदा करो और ज़कात दो । (सूरः बक़रह 2, आयत 43 )

वजाहतः इससे ज़कात का फर्ज़ होना साबित हुआ। कुरआन मजीद में 82 जगह ज़कात का ज़िक्र आया है, इस्लाम का यह एक अहम रुक्न (हिस्सा) है।

हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हज़रत मुआज बिन जबल रज़ियल्लाहु अन्हु को यमन की तरफ हाकिम बनाकर भेजा और फरमाया पहले तुम उन्हें दावत देना इस बात की कि अल्लाह तआला के सिवा कोई सच्चा माबूद नहीं और मैं अल्लाह तआला का रसूल हूँ।

फिर अगर वे इसको मान लें तो उनसे यह कहना कि अल्लाह तआला ने हर दिन-रात में उन पर पाँच नमाजें फर्ज़ की हैं। फिर अगर वे इसको भी मान लें तो उनको यह बतलाना कि अल्लाह तआला ने उन पर माल का सदका ( ज़कात) फर्ज़ किया है, जो उनके मालदारों से लिया जायेगा और उन्हीं के मोहताजों को दिया जायेगा ,सदक़ा और खैरात क्या है?

वज़ाहत:- अपने जानने वालों और अपने शहर में अगर ज़रूरत-मन्द लोग मौजूद हों तो दूसरे शहरों में ज़कात भेजना ख़िलाफे शरीअत है।

हज़रत अबू अय्यूब रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि एक आदमी ने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से अर्ज़ किया कि कोई ऐसा अमल बतलाईये जो मुझे जन्नत में ले जाये, लोग कहने लगे इसको क्या हुआ है (इसके पूछने की क्या ज़रूरत है ) ? आपने फ़रमाया- ज़रूरत क्यों नहीं यह तो बड़ी अहम बात है।zakaat ka bayan

फिर फरमाया- अल्लाह तआला के सिवा किसी की इबादत न करो और उसके साथ किसी को शरीक न ठहराओ, और नमाज़ दुरुस्तगी से (यानी खूब अच्छी तरह) अदा करो और ज़कात देते रहो, सिला-रहमी करो, रिश्तेदारों से मिलते रहो और उनका ख्याल रखो।

वज़ाहत :- इस हदीस से साबित हुआ कि शिर्क न करने वाला, ज़कात देने वाला और बाकी इस हदीस के दूसरे काम करने वाला जन्नत में जायेगा। अल्लाह तआला के हुक्म व इजाज़त से।

हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि एक गाँव वाला नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया और कहने लगा- मुझे ऐसा अमल बतलाईये कि जब मैं उसको करूँ तो जन्नत में दाखिल हो जाऊँ।

आपने फरमाया- अल्लाह तआला की इबादत करो और उसके साथ किसी को शरीक न ठहराओ, और फर्ज़ नमाज़ दुरुस्ती से अदा करते रहो और फर्ज़ ज़कात देते रहो, और रमज़ान के रोज़े रखते रहो। वह देहाती कहने लगा- कसम है उसकी जिसके हाथ में मेरी जान है मैं इनमें कोई इजाफा नहीं करूँगा ( और न ही कमी करूँगा)।

जब वह पीठ मोड़कर चला तो आपने फरमाया- अगर किसी को जन्नती आदमी देखना अच्छा लगता हो तो वह इस शख़्स को देख ले।

हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं जब आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की वफात हो गई और हज़रत अबू बक्र सिद्दीक खलीफा हुए और अरब के कई लोग काफिर हो गये यानी ( ज़कात देने से इनकार किया) तो हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़ ने उनसे लड़ना चाहा ।

हज़रत उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने कहा- तुम उन लोगों से कैसे लड़ोगे ? आपने तो यूँ फ़रमाया था कि मुझे लोगों से लड़ने का उस वक्त तक हुक्म है जब तक वे ‘ला इला-ह इल्लल्लाहु’ न कहें, जब यह कहने लगें तो उन्होंने अपने माल जान को मुझसे बचा लिया सिवाय किसी हक के बदल (किसास या हद) के,।zakaat ka bayan

अब उनका हिसाब अल्लाह तआला पर रहेगा। हज़रत अबू बक्र सिद्दीक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने कहा मैं तो अल्लाह की क़सम जो कोई नमाज़ और ज़कात में फर्क समझेगा उससे ज़रूर लडूंगा, क्योंकि ज़कात माल का हक है (जैसे नमाज़ बदन का हक है।

अल्लाह की कसम अगर ये लोग बकरी का बच्चा जो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को दिया करते थे मुझको न देंगे तो मैं उसके न देने पर इनसे ज़रूर लड़ूगा। इस पर हज़रत उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने कहा- अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की कसम अल्लाह तआला ने हज़रत अबू बक्र सिद्दीक का सीना इस्लाम के लिये खोल दिया है, मैं समझ गया कि यही हक है।सदक़ा करने की फज़ीलत।

वजाहतः यह ख़्याल उनका अल्लाह तआला की तरफ से था हर नेक आदमी को अल्लाह तआला की तरफ से इल्हाम हो सकता है इल्हाम के मायने हैं किसी नेक अमल का ख़्याल ज़ेहन में आना ।

हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया कियामत के दिन वो ऊँट जिनकी दुनिया में ज़कात न दी हो खूब मोटे-ताज़े बनकर आयेंगे और अपने मालिक को पाँव से रौंदेंगे, और इसी तरह वो बकरियाँ भी जिनकी ज़कात न दी हो,

अच्छी मोटी-ताज़ी बनकर अपने मालिक को खुरों से रौंदेंगी और सींघों से मारेंगी। आपने फ़रमाया बकरियों का एक हक यह भी है कि चरागाह पर उनका दूध दूहा जाये। आपने फ़रमाया ऐसा न हो कि तुम में से कोई क़ियामत के दिन बकरी को अपनी गर्दन पर लादे हुए लाये,

वह भायें भायें कर रही हो और वह शख्स मुझको पुकार कर कहे ‘मुहम्मद ! मुझको बचाओ’ मैं कहूँगा मैं कुछ नहीं कर सकता, मैंने तो अल्लाह तआला का हुक्म तुमको पहुँचा दिया था और ऐसा न हो कि कोई शख़्स ऊँट अपनी गर्दन पर लादे हुए आये, वह बड़-बड़ कर रहा हो,zakaat ka bayan

फिर वह शख्स कहे ‘मुहम्मद ! मुझको छुड़ाओ’ मैं कहूँगा ‘मैं कुछ नहीं कर सकता मैंने तो अल्लाह तआला का हुक्म तुमको पहुँचा दिया था’ ।

वजाहत:- चरागाह चारा खिलाने की जगह पर दूध इसलिये दूहा जाये कि वहाँ मुसाफिर और मोहताज लोग भी होते हैं और उनको भी सदके के तौर पर कुछ दूध देना बेहतर है, इसके अलावा जानवरों की हर साल ज़कात देनी भी फ़र्ज़ है अगर वो जानवर ज़कात के निसाब को पहुँच गये हों।

हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया- अल्लाह तआला जिसको माल दे और वह उसकी ज़कात अदा न करे तो क़ियामत के दिन उसका माल एक गंजे साँप की शक्ल बनकर जिसकी आँखों पर दो काले टीके (दाग़ ) होंगे उसके गले का तौक बन जायेगा,

फिर उसकी दोनों बाछें पकड़कर कहेगा मैं तेरा माल हूँ मैं तेरा ख़ज़ाना हूँ। उसके बाद आपने सूरः आले इमरान की आयत नम्बर 180 पढ़ी-

तर्जुमा-लोगों को अल्लाह तआला ने अपने फल से माल दिया है और वे उसमें कन्जूसी करते हैं तो यह कन्जूसी अपने लिये बेहतर न समझें, बल्कि यह उनके हक में बहुत बुरी है, जिस माल में वे कन्जूसी करते हैं वह क़ियामत के दिन बहुत जल्दी उनके गले का तौक बनने वाला है उनकी कन्जूसी की वजह से। (सूरः आले इमरान 3, आयत 180)zakaat ka bayan

हज़रत खालिद बिन असलम रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि एक देहाती ने हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से पूछा-जिस शख्स ने चाँदी-सोना जमा करके रखा फिर उसकी ज़कात न दी तो उसकी ख़राबी होगी। यह ज़कात के फ़र्ज़ होने का हुक्म उतरने से पहले की है। जब ज़कात फर्ज़ हुई तो अल्लाह तआला ने मालों को उसके ज़रिये पाक कर दिया।

वजाहत: जिस माल पर ज़कात अदा कर दी जाये वह कन्ज़ (छुपाया हुआ माल) नहीं है, और जिस माल पर ज़कात न दी जाये वह कन्ज़ है। ज़कात माल को पाक कर देती है, ज़कात के अलावा भी सदका खैरात करने से आने वाली मुसीबतें रुक जाती हैं, इसलिये रोज़ाना कुछ न कुछ सदका ज़रूर करें चाहे एक पैसा ही क्यों न हो।

हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया- दो आदमियों पर रश्क कर सकते हैं, एक उस शख़्स पर जिसको अल्लाह तआला ने माल दिया और नेक कामों में खर्च करने की तौफ़ीक़ भी दी हो।

दूसरे उस शख्स पर जिसको अल्लाह तआला ने कुरआन और हदीस का इल्म दिया, वह खुद भी उस पर अमल करता है और दूसरों को भी सिखाता है।

वजाहत: किसी की खुशहाली, शादमानी, खूबसूरती और सेहत को देखकर यह इच्छा करना कि उससे छिनकर ये चीजें मुझे मिल जायें, हसद ( उससे जलना) है जो बड़ा गुनाह है, लेकिन यह इच्छा और दुआ करना कि अल्लाह तआला उसके माल में भी बरकत दे और मुझे भी यह सब कुछ अल्लाह करीम अपनी रहमत और फ़ज़्ल से दे दे, यह जायज़ है।फातिहा पढ़ने की फज़िलत।

हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया जो शख्स हलाल कमाई से एक खजूर के बराबर सदका करे, और अल्लाह तआला सिर्फ हलाल कमाई का सदका कुबूल करता है,

तो अल्लाह तआला उसको अपने दायें हाथ में लेता है, फिर सदक़ा करने वाले के माल में इज़ाफ़ा करता है बिल्कुल इसी तरह जैसे कोई तुम में से जानवर का बच्चा पालता है, यहाँ तक कि उसका सदका पहाड़ के बराबर हो जाता है।

हज़रत हारिसा बिन वहब रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है। कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया- खैरात करो क्योंकि एक ज़माना तुम पर ऐसा आने वाला है जब आदमी खैरात लेकर निकलेगा और उसको कोई ऐसा शख़्स न मिलेगा जो (खैरात) कुबूल करे।

वजाहत :- जिसको भी देने लगेगा वह कहेगा मुझे इसकी कोई ज़रूरत नहीं है, इसलिये इस वक़्त को ग़नीमत जानते हुए खूब ख़ैरात करें क्योंकि आजकल ज़रूरत-मन्द लोग बहुत मौजूद हैं।

हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया कियामत उस वक़्त तक कायम न होगी जब तक कि माल व दौलत की बेहतात ( बहुत ज़्यादा अधिकता) न हो जाये और मालदार को यह फिक्र रहेगी कि उसकी खैरात कौन लेगा, और किसी को खैरात देने लगेगा तो वह कहेगा ‘मुझे इसकी ज़रूरत नहीं है।’

वजाहत:- कियामत के करीब जब ज़मीन अपने ख़ज़ाने उगल देगी तब यह हालत पेश आयेगी।

हज़रत अदी बिन हातिम रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया- (दोज़ख की ) आग से बचो (सदका देकर अरगचे खजूर का एक टुकड़ा ही क्यों न हो।

वजाहत: हर रोज़ सदका व खैरात गरीब लोगों को भी करना चाहिये चाहे एक पैसा रोज़ाना ही क्यों ना हो। अल्लाह तआला सवाब नीयत और हालात के हिसाब से अता फरमाते हैं। अधिक तफसील के लिये पढ़िये तफसीर (सूरः हश्र 59, आयत 9)zakaat ka bayan

हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि एक शख़्स नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया और कहने लगा या रसूलल्लाह ! किस सदके में ज्यादा सवाब मिलेगा? आपने फ़रमाया- तन्दुरुस्ती की हालत में, जब तुम्हें माल की तमन्ना व इच्छा भी हो,

मोहताजी का डर भी हो, खैरात करो, और इतनी देर मत करो कि जान हलक में आ पहुँचे उस वक्त तुम कहो कि फलाँ को इतना देना और फलाँ को इतना । अब तो फलाँ का माल हो ही चुका

वजाहतः सदका व खैरात में जल्दी करनी चाहिये, क्योंकि हमें मालूम नहीं कि कल हमारी ज़िन्दगी में आती भी है या नहीं। यह अल्लाह रब्बुल्- इज़्ज़त का करम है कि उसने मरने से पहले-पहले (जब तक होश व हवास में हो) अपने माल की तिहाई वसीयत तक करने की इजाज़त दे दी है।

याद रखिये वसीयत वारिस के लिये नहीं है बल्कि गैर-वारिस के लिये है मसलन मदरसा, कुँआ बनवाना, मस्जिद बनवाना वगैरह ।

हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पाक बीवियों ने आपसे पूछा- हम में से सब से पहले आपसे कौन मिलेगी? आपने फ़रमाया जिसके हाथ ज़्यादा लम्बे हैं। फिर वे एक छड़ी लेकर अपने-अपने हाथ नापने लगीं तो हज़रत सौदा रज़ियल्लाहु अन्हा के हाथ सबसे ज्यादा लम्बे निकले।

बाद में जब सब बीवियों में पहले हज़रत ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा का इन्तिकाल हुआ तब हमें मालूम हुआ कि हाथ की लम्बाई से खैरात करना मुराद था, और हज़रत ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा सबसे पहले आप से मिलीं क्योंकि खैरात करना उनको बहुत पसन्द था।

वजाहतः- उम्मुल – मोमिनीन हज़रत ज़ैनब रज़ियल्लाहु अन्हा अपने हाथ से मेहनत व मशक्कत करके जो कुछ कमातीं उसे अल्लाह के रास्ते में खैरात कर देती थीं।

इन हदीसों को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।

क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।

खुदा हाफिज…

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