वलीमा करना सुन्नते मौकेदाह हैं । जान बुझ कर वलीमा न करने वाला सख्त गुनाहगार है।(कीम्या-ए-सआदत, सफा नं. 2611)
वलीमा येह है कि सुहाग रात की सुबह को अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और मोहल्ले के लोगों को अपनी हैसियत के मुताबिक दावत करे, दावत करने वालों का मकसद सुन्नत पर अमल करना हो ।(कानूने शरीअत, जिल्द 2. सफा नं. 185)
हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ रजिअल्लाह तआला अन्हु का बयान है की मुझ से नबी ए करीम सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया-“वलीमा करो चाहे एक ही बकरी हो” । (बुखारी शरीफ जिल्द 3 सफा नं. 85. मांता शरीफ, जिल्द 2 सफा 434)Walime ka Dawat kabhi inkar mat karna.
हैसियत हो तो वलीमे में कम से कम एक बकरी या बकरे का गोश्त ज़रूर हो कि सरकार सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने इसे पसंद फ़रमाया लेकिन अगर हैसियत न हो तो फिर अपनी हैसियत के मुताबिक किसी भी किस्म का खाना पका सकते हैं यह भी जाइज़ है एक हदीसे पाक में है-
हज़रत सफिया बिन्ते शैबा रीअल्लाह तआला अन्हा फरमाती हैं की- नबी-ए-करीम सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम ने अपनी बाज़ अज़वाजे मुतहहरात (बीवीयों) का वलीमा दो सेर जौ के साथ किया था” ।
सैय्यदना इमाम मुहम्मद गज़ाली रदी अल्लाहो तआला अन्हु
“कीम्या -ए-सआदत” में इरशाद फरमाते है- “वलीमा में ताख़ीर (देरी) करना ठीक नहीं अगर किसी शरअई वजह से ताख़ीर हो जाए तो एक हफ्ते के अन्दर अन्दर वलीमा कर लेना चाहिये उस से ज्यादा दिन गुज़रने न पाए” ।
(कीम्या-ए-सआदत, सफा नं. 261)
हज़रत इब्ने मस्ऊद रदी अल्लाहो ताअला अन्हो से रिवायत है के नबी-ए-करीम सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया-पहले दिन का खाना यानी सुहाग रात के दूसरे रोज वलीमा करना वाजिब है, दूसरे दिन का सुन्नत है, और तीसरे दिन का खाना सुनाने और शोहरत के लिए है,
और जो कोई सुनाने के लिए काम करेगा अल्लाह तआला उसे सुनाएगा । यानी इस की सजा उसे मिलेगी इमाम तिर्मिज़ी रजिअल्लाहो तआला अन्हो फरमाते है- “येह हदीस गरीब व जईफ है” । (तिर्मिजी शरीफ, जिल्द 1 बाब नं. 746, हदीस नं. 1089, सफा 559 )Walime ka Dawat kabhi inkar mat karna.
दावत कुबूल करना :- दावत कुबूल करना सुन्नत है । हदीस :- हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रजिअल्लाहो तआला अन्हुमा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया-“जब तुम में से किसी को वलीमा खाने के लिए बुलाया जाए तो वोह हाज़िर हो जाए
हदीस :- हज़रत अबूहुरैरा रजिअल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है हुज़ूरे अकरम सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया-“जो दावत क़ुबूल न करे उसने अल्लाह तआला व रसूल सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम की ना फ़रमानी की” । (बुखारी शरीफ, जिल्द 3 बाब नं 102, हदीस नं. 163. सफा 88 )
बिन दावत जाना= दावत में बगैर बुलाए नहीं जाना चाहिये। आज कल आम तौर पर कई लोग दावतों में बिन बुलाए ही चले जाते हैं और उन्हें न ही शर्म आती है न ही अपनी इज्ज़त का कुछ ख्याल होता है । गोया- “मान न मान मैं तेरा महमान”
हदीस = सरकारे मदीना सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम ने इरशाद फरमाया-“दावत में जाओ जब की बुलाएं तो जाओ” और फ़रमाया– “जो बगैर बुलाए दावत में गया वोह चोर हो कर घुसा और गारतगीरी कर के लुटेरे की सूरत में बाहर निकला” । यानी गुनाहों को साथ ले कर निकला। ( अबूदाऊद शरीफ, जिल्द 3. बाब नं 127, हदीस नं. 342, सफा 130)Walime ka Dawat kabhi inkar mat karna.
बुरा वलीमा= हदीसे पाक में उस वलीमे को बहुत बुरा बताया गया है जिस में सब अमीर यानी रूपये पैसे वाले ही हो और कोई ग़रीब न बुलाया जाए या जिस में गरीबों के लिए अलग किस्म का खाना और अमीरों के लिए अलग किस्म का खाना रखा जाए
हज़रत अबूहुरैरा रजि अल्लाहो तआला अन्हो रिवायत करते है, रसूले खुदा सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम ने इरशाद फरमाया–“सब से बुरा वलीमा का वोह खाना है जिस में अमीरों को तो बुलाया जाए और ग़रीबों को नजर अन्दाज़ कर दिया जाए” ।
आज कल टेबल कुर्सी पर जूते पहने हुए खाना खाना फैशन बन गया हैं। याद रखिये येह हमारी शरीअत में जाइज़ नहीं, टेबल कुर्सी पर खिलाने वाले खाने वाले दोनों सख्त गुनाहगार है । हदीस :- हज़रत अनस रदी अल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम ने इरशाद फ़रमाया–“जब खाना खाने बैठो तो , जूते उतार लो के इस में तुम्हारे पाव के लिए ज्यादा राहत हैं। और येह अच्छी सुन्नत है” । (तबरानी शरीफ.)Walime ka Dawat kabhi inkar mat karna.
टेबल कुर्सी पर खाना खाने के मुत्अल्लिक मुजद्दिदे आजम इमाम अहमद रज़ा खाँ रजिअल्लाहो तआला अन्हो इरशाद फरमाते हैं- “टेबल कुर्सी पर जूता पहने हुए खाना खाना ईसाइयों की नकल है इस से दूर भागे और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम का वोह इरशाद याद करे कि “जो किसी कौम से मुशाबेहत ( नकल) पैदा करे वोह उन्हीं में से है ।(फातवा-ए-अफरीका. सफा नं. 531)
मस्अला :-भूक से कम खाना सुन्नत है। भूक भर कर खाना मुबाह है, यानी न सवाब है न गुनाह, और भूक से ज्यादा खाना हराम है। ज्यादा खाने का मतलब यह है की इतना खाया जिस से पेट ख़राब होने (बदहज़मी ) का गुमान है ।
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क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।
खुदा हाफिज…