02/06/2025
तौबा की एक सच्ची आह और अल्लाह की रहमत। 20250525 154748 0000

तौबा की एक सच्ची आह और अल्लाह की रहमत। Tauba ki ek sacchi Aah aur allah ki Rahmat.

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Tauba ki ek sacchi Aah aur allah ki Rahmat.
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तौबा की एक सच्ची आह और अल्लाह की रहमत।

हज़रत उमर फारूक रज़ियल्लाहु अन्हु के ज़माने का एक बूढ़ा आदमी मुसलमान हुआ और ताबईन में से हुआ। उसने अपनी जिंदगी गाना गाने में गुज़ार दी थी। उसकी आवाज़ बड़ी अच्छी थी। जब वह गाना गाता था तो लोग उसके दीवाने थे।

उसके चारों तरफ सैंकड़ों लोगों का मजमा होता था। उसकी आमदनी बेशुमार थी। उसकी औलाद नहीं थी और उसकी बीवी भी मर गई थी। जब वह बूढ़ा हो गया तो दांत गिर गए जिसकी वजह से वह गा ही नहीं सकता था। उसकी आमदनी का ज़रिया ख़त्म हो गया। वह ” मांगने के लिए वाकिफ लोगों के पास जाता रहा।

वह कुछ अरसा तो उसे देते रहे। लेकिन कुछ अरसे के बाद उन्होंने भी मना कर दिया। जब सब दोस्तों ने न कर दी तो कई-कई दिन तक खाने को न मिलता। उसको अपनी जवानी की याद आती कि मैं इतना हसीन था, मेरी आवाज़ कोयल की तरह थी। जब मैं गाता था तो हज़ारों लोग मेरी आवाज़ पर मरते थे और मेरी झलक देखने को तरसते थे लेकिन आज मैं धक्के खाता फिरता हूँ और कोई बंदा मुझे एक वक़्त का खाना देने को तैयार नहीं है।

इस बुढ़ापे और कमज़ोरी और भूख की हालत में उसका दिल बड़ा ही खट्टा हुआ। उसने सोचा कि काश! यह रातें मैं अल्लाह के लिए जागा करता तो अल्लाह तआला मुझे कभी अपने दरबार से न धुतकारते लेकिन मैंने तो अपनी जवानी बर्बाद कर दी। न हुस्न व जमाल रहा न माल रहा और न ही कुछ और मेरे पल्ले रहा। अब मैं अपने रब को कैसे मनाऊँ?

वह इसी सोच में गुम होकर जन्नतुलबकी में चले गए और कब्रों के बीच की जगह में बैठकर अपनी जवानी को याद करके रोने लग गए। उन्होंने रोते-रोते दुआ मांगी,”रब्बे करीम! मैंने अपनी जवानी बर्बाद कर दी। अब मेरे पास कुछ भी नहीं कि मैं आपके हुज़ूर पेश कर सकूँ। मेरे मुँह में दांत नहीं, पेट में आंत नहीं। अब मैं बूढ़ा हूँ, लाठी के सहारे चलकर आया हूँ। न आँखों में रोशनी है न कानों में सुनवाई। ऐ मालिक! अब मैं शर्मिन्दा हूँ मगर यहाँ आकर बैठता हूँ ताकि मैं अपनी क़ब्र के करीब हो जाऊँ।”

यह वाकिआ मौलाना रोम रहमतुल्लाहि ताअला अलैहि ने लिखा है। वह फरमाते हैं कि जब वह आदमी अपने गुनाहों पर नादिम व शर्मिन्दा होकर रोया तो उसकी आँख लग गई। थोड़ी देर बाद वह उठा तो देखा कि सामने से एक आदमी चला आ रहा है। जब उसने देखा कि वह अमीरुल मुमिनीन हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु थे और उन्होंने अपने सर पर कुछ उठाया हुआ था।औरतों की नमाज पढ़ने का तरीक़ा।

वह डर गया कि अब अमीरुल मुमिनीन आ गए हैं। वह तो मुझ जैसे का दुर्रे से इंतिज़ाम करते हैं। ऐसा न हो कि मुझे भी चंद दुर्रे लग जाएं।

हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने उसे देख लिया और कुछ आगे चले गए। थोड़ी देर बाद लौटकर दोबारा उसकी तरफ आए। जब उसने उन्हें दोबारा अपनी तरफ आते हुए देखा तो और ज़्यादा डर गया कि यह फिर मेरी तरफ आ रहे हैं। पता नहीं मेरा क्या बनेगा। जब हज़रत उमर रजियल्लाहु अन्हु उसके पास आए तो उन्होंने वह गठरी अपने सर से उतारकर उसके सामने रखी और फरमाने लगे, “भाई खाना खाओ।”

वह बूढ़ा हैरान हुआ कि अमीरुल मुमिनीन मुझे खाना पेश कर रहे हैं। उसने पूछा, “ऐ अमीरुल मुमिनीन! आप मेरे लिए खाना कैसे लाए?” हज़रत उमर रजियल्लाहु अन्हु ने फरमाया, “दोपहर का वक़्त था, मैं कैलुला कर रहा था कि मुझे ख़्वाब में अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त की तरफ से पैग़ाम दिया गया कि मेरा एक दोस्त कब्रिस्तान में परेशान बैठा है, वह भूखा है, उमर ! जाओ और मेरे उस दोस्त को खाना खिलाकर आओ।

जब मेरी आँख खुली तो मैंने सोचा कि अल्लाह का दोस्त है। चुनाँचे मैंने अपनी बीवी से कहा जो खाना तैयार है वह दे दो। उसने खाना बांध दिया। मैंने कहा मैं अल्लाह के दोस्त के पास जा रहा हूँ, लिहाज़ा खाना हाथों में नहीं बल्कि अपने सर पर उठाकर ले जाता हूँ ताकि अल्लाह के दोस्त का इकराम हो सके। इसलिए उमर खाना सर पर उठाकर आया है। ऐ अल्लाह के दोस्त खाना खालो।”

जब उसने यह सुना तो कहने लगा, अच्छा, मैंने अभी थोड़ी देर पहले अपने रब के सामने तौबा की थी। मेरा परवरदिगार कितना करीम है कि उसने मेरे तमाम गुनाहों के बावजूद मेरी नदामत को कुबूल कर लिया और वक़्त के अमीरुल मुमिनीन को ख़्वाब में हुक्म दिया कि जाओ मेरे दोस्त को खाना खिलाकर आओ। ऐ अल्लाइ ! तू कितना करीम है।

इस बात को सुनकर वह बूढ़ा इतना रोया कि वहीं रोते-रोते हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के सामने उसने अपनी जान अल्लाह के हवाले कर दी, अल्लाहु अकबर। अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त बड़े कद्रदान हैं। जिस तरह अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त कद्रदान है, अल्लाह तआला हमें भी यह सिफ़्त अता फरमा दे।

अल्लाह रब्बुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक़ आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे ज़िन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।

Tauba ki ek sacchi Aah aur allah ki Rahmat इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें। ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।

क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।

खुदा हाफिज…

ये भी देखिए:शैतान का वसवसा।

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