16/11/2025
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तसबीहाते फातिमा | Tasbihate Fatima

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सोते वक़्त और फर्ज़ नमाज़ के बाद तसबीह तहमीद और तकबीर

हदीस :- हज़रत अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का बयान है कि एक बार हज़रत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुई और चक्की पीसने के निशान जो उनके हाथों में थे उनको दिखाकर अपनी तकलीफ ज़ाहिर करने का इरादा किया।

मकसद यह था कि कोई गुलाम या बाँदी मिल जाये और वजह यह थी कि हज़रत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने सुना था कि आजकल आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के पास गुलाम-बाँदी आए हुए हैं। हज़रत फातिमा नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के घर पहुँची तो वहाँ आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम तशरीफ न रखते थे, लिहाज़ा मुलाकात न हो सकी।

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जिसकी वजह से अपनी दरख्वास्त हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा से कह आईं। जब हुजूरे अक्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम तशरीफ लाये तो हज़रत आयशा रजियल्लाहु तआला अन्हा ने अर्ज़ कर दिया कि हज़रत फातिमा तशरीफ लायी थीं वह ऐसी-ऐसी बात कह गयी हैं कि मुझे चक्की पीसने की वजह से तक़लीफ है, अगर ख़िदमत के लिये कोई गुलाम या बाँदी मिल जाये तो मेहनत के काम से नजात मिल जाये।

हज़रत अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि यह बात सुनकर आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम रात को हमारे पास तशरीफ लाये, उस वक़्त हम दोनों मियाँ-बीवी सोने के लिये लेट चुके थे। आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के अदब के लिये उठने लगे तो फरमाया तुम दोनों अपनी-अपनी जगह पर रहो।

हमारे करीब तशरीफ लाये और मेरे और सैय्यदा फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा के दरमियान बैठ गये, और इतने करीब मिलकर बैठ गये कि मुबारक कदम की ठण्डक मुझे अपने पेट पर महसूस हो गयी। फिर आपने इरशाद फरमाया कि क्या मैं तुम दोनों को उससे बेहतर न बता दूँ जो तुमने मुझसे सवाल किया? तुम ऐसा किया करो कि रात को सोने के लिये लेटो तो 33 बार सुब्हानल्लाह और 33 बार अल्हम्दु लिल्लाह और 34 बार अल्लाहु अकबर पढ़ लिया करो। यह तुम्हारे लिये ख़ादिम से बेहतर है। (मिश्कात शरीफ पेज 209)

तशरीहः मुस्लिम शरीफ की एक रिवायत में है कि हुजूरे अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा को इस मौके पर (फर्ज़) नमाज़ के बाद भी यह तसबीहात पढ़ने को इरशाद फरमाया। फर्ज़ नमाज़ के बाद और सोते वक़्त इन तसबीहात को पाबन्दी से पढ़ना चाहिये।

बुजुर्गों ने बताया है और तर्जुबा किया गया है कि चूँकि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने ख़ादिम देने के बजाय सोते वक्त इन तसबीहात के पढ़ने का इरशाद फरमाया था इसलिये सोते वक़्त इनके पढ़ने से एक तरह की कुव्वत हासिल होती है और दिन भर की थकान, मेहनत और काम-काज की दुखन दूर हो जाती है।

हज़रत अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने फरमाया कि जब से मैंने यह वज़ीफा हुजूरे अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सुना कभी इसको नहीं छोड़ा। अलबत्ता जंगे सिफ्फीन के मौके पर भूल गया था, फिर आख़िर रात में याद आया तो इन कलिमात को पढ़ लिया। (अबू दाऊद)

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हज़रत अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के इस अमल से यह भी मालूम हुआ कि अगर शुरू रात में सोते वक़्त पढ़ने से यह तसबीहात रह जायें तो बाद में जब भी मौका लगे रात को किसी भी वक़्त पढ़ ली जाये।

अल्लाह से एक दिली दुआ…

ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।

प्यारे भाइयों और बहनों :-

अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।

क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….

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