22/06/2025
सूरतों के फज़ाइल और वजीफे। 20250615 183508 0000

सूरतों के फज़ाइल और वजीफे।Surato ke fazaiel aur wajife.

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Surato ke fazaiel aur wajife.
Surato ke fazaiel aur wajife.

हज़रत अनस रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है की नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया की जब तूने अपने बिस्तर पर पहलू रखा और सूरे फातिहा और सूरे इख्लास पढ़ी तो मौत के अलावा हर चीज़ से बेखौफ हो गया। और आयतल कुर्सी भी पढें। इस के पढ़ने वाले के लिए अल्लाह तआला की जानिब से रात भर एक मुहाफिज़ फरिश्ता मुकर्रर रहेगा और कोई उसके पास न आएगा। (मस्नून दुआ)

हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसूद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है के नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया के सूरे बकरा की आखरी दो आयतें ‘आमनर्रसूलु’ से खत्मे सूरत तक जो शख़्स रात को पढ़ लेगा तो ये दोनों आयतें उसके लिए काफी होंगी यानी वो हर शर और मकर से महफूज़ रहेगा। (बुखारी व मुस्लिम)

एक हदीस में है के सूरे बकरा की आखरी दो आयतें ‘आमनर्रसूल’ से आखिर तक जिस घर में पढ़ी जाएं तीन दिन तक शैतान उस घर के करीब नहीं आता। (हसन हुसैन)

हज़रत उस्मान गनी रजियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं की जो शख़्स सूरे आले इमरान की आखरी ग्यारह आयतें ‘इन्न फी खलकिस्समावाति’ से आखिर तक किसी रात पढ़ ले तो उसे रात भर नमाज़ पढने का सवाब मिलेगा। (मोतबर)

सूरे कहफ का जुमा के दिन पढ़ना ज़मीन व आसमान तक नूर पैदा करता है, आठ दिन तक नूर बराबर कायम रहता है। फिर उसके पढ़ने वाले को ये सारा नूर कब्र में और कब्र के बाद क़यामत में दिया जाएगा। (मोतबर)

◇ एक रिवायत में हैं के जिस ने सूरे सजदा और तबारकल्लज़ी को मगरिब और इशा के दरमियान पढा गोया उस ने लैलतुल कद्र में कयाम किया। एक रिवायत में है के जिस ने इन दोनों सूरतों को पढा उस के लिए सत्तर नेकियाँ लिखी जाती हैं और सत्तर बुराईयाँ दूर की जाती हैं। (फज़ाइले कुरआन)

एक रिवायत में है की जो शख़्स सूरे यासीन को सिर्फ अल्लाह की रज़ा के वास्ते पढ़ें उस के पहले सब गुनाह मआफ हो जाते हैं। (फज़ाइले कुरआन)

जिस शख़्स ने शबे जुमा को सूरे दुखान पढ़ीं उसके लिए सत्तर हज़ार फरिश्ते अस्तगफार करते हैं और उसके तमाम गुनाह मआफ कर दिए जाते हैं और अल्लाह उसके लिए जन्नत में घर बनाएगा।

एक रिवायत में है की जो शख़्स सूरे हदीद, सूरे वाकिया और सूरे रहमान पढ़ता है वो जन्नतुल फिरदौस में रहने वालों में पुकारा जाता है। (फज़ाइले कुरआन)शहीद और ऐहसासे ज़ख़्म।

सूरे जुमा शबे जुमा में पढ़नी चाहिए।

एक हदीस में है की सूरे तबारकल्लज़ी का हर रात को पढ़ते रहना अज़ाबे कब्र से निजात का सबब है और अज़ाबे जहन्नम से भी। (फज़ाइले आमाल)

सूरे मुज़म्मिल का एक मर्तबा रोज़ाना इशा की नमाज़ के बाद पढ़ना फाके से बफज़ले तआला महफूज़ रखता है। (तिब्बे रुहानी)

सूरे अन्नबा का असर की नमाज़ के बाद पढ़ना दिन में यकीन और नूरे इमान पैदा करता है और इन्शा अल्लाह खातमा बिलखैर होने का सबब होता है। (मोतबर)

जो शख़्स सूरे अलकाफिरुन को खुलूसे दिल से बाद नमाज़े फजर या बाद नमाज़े इशा ग्यारह मर्तबा पढ़नें का मामूल बनाले, उसके दिल से बुग्ज़, हसद, कीना, झूठ, फरेब, निफाक गोया हर किस्म की अख़लाकी बुराई निकल जाएगी और शैतानी वसवसों से महफूज़ रहेगा और उसका खात्मा इमान पर होगा और दिल इबादत की तरफ बेहद मायल होगा। अगर कोई बच्चा नमाज़ पढने में कोताही करता हो तो घर का कोई फर्द 21 रोज़ तक इस सूरत को 21 मर्तबा रोज़ाना पढ़ कर पानी पर दम करके पिलाए इन्शा अल्लाह नमाज़ पढने में इस्तेकामत पैदा हो जाएगी।

सूरे नसर की तिलावत हर किस्म की मुराद पूरी होने के लिए बहुत मुफीद है बशर्ते के इस सूरत को अलैहदा बैठ कर 123 मर्तबा पढ़ा जाए और हर नमाज़ के बाद अगर इसे सात मर्तबा पढने का मामूल बना लिया जाए तो हर मुश्किल आसान होती चली जाएगी।

जो शख्स सूरे इख्लास को एक हज़ार मर्तबा रोज़ाना बाद नमाज़े इशा 125 दिन तक पढ़े तो उसकी हर जायज़ हाजत पूरी होगी। और जो शख़्स रोज़ाना 111 मर्तबा पढ़नें का मामूल बनाले वो इन्शा अल्लाह महबूबूल खलाईक हो जाएगा। इसके अलावा इस सूरत को पढ़ने का बेपनाह अज्र मिलेगा।

जो शख्स सूरे फलक रात को सोते वक्त पढ़ कर अपने उपर दम करे तो इन्शा अल्लाह हर तरह के डर, खौफ और मुसीबत से महफूज़ रहेगा। हुजु़र सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इरशाद है की सूरे फलक से बहेतर कोई दुआ पनाह के मुताल्लिक नहीं है।

जो शख्स रात को सोते वक्त सूरे फातिहा, आयतुल कुर्सी, सूरे इख्लास, सूरे फलक और सूरे नास एक एक मर्तबा पढ़ कर अपने हाथों पर दम करके दोनों हाथों को चेहरे और सर से लेकर पेट और टांगों तक फेर दे इन्शा अल्लाह वो रात भर जिन्नात और शयातीन के शर से और दीगर आफाते समावी से महफूज़ और अल्लाह की पनाह में रहेगा।

अल्लाह से एक दिली दुआ…

ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।

प्यारे भाइयों और बहनों :-

अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।

क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
खुदा हाफिज़…..

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