
सूरज या चाँद में गरहन लगे तो खुदा की याद में लग जाइए, उससे दुआएँ कीजिए. तकबीर’ व तहलील और सदक़ा व खैरात कीजिए। इन भले कामों की बरकत से ख़ुदा मुसीबतों और आफ़तों को टाल देता है।
हज़रत मुग़ीरह बिन शोबा रजियल्लाहु तआला अन्हु कहते हैं कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया-“सूरज और चाँद खुदा की दो निशानियाँ हैं। किसी के मरने या पैदा होने से उनमें गरहन नहीं लगता । जब तुम देखो कि उनमें गरहन लग गया है तो ख़ुदा को पुकारो, उससे दुआएँ करो और नमाज़ पढ़ो. यहाँ तक कि सूरज या चाँद साफ़ हो जाए।” (बुखारी, मुस्लिम)
जब सूरज में गरहन लगे तो मस्जिद में जमाअत के साथ नमाज़ पढ़िए. लेकिन उस नमाज़ के लिए अज़ान और इक़ामत न कहिए, यूँ ही लोगों को दूसरे साधनों से जमा कर लीजिए और जब चाँद गरहन लगे तो अपने तौर पर नफ़्लें पढ़िए. जमाअत न कीजिए !
सूरज गरहन में जब जमाअत के साथ दो रक्अत नफ़्ल पढ़ें. तो उसमें लम्बी क़िरात कीजिए और उस वक़्त तक नमाज़ में लगे रहिए, जब तक कि सूरज साफ़ न हो जाए और क़िरात बुलन्द आवाज़ में कीजिए ।
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के दौर में एक बार सूरज गरहन पड़ा । इत्तिफ़ाक़ से उसी दिन आपके एक दूध पीते बच्चे हजरत इबराहीम रजियल्लाहु तआला अन्हु का भी इंतिक़ाल हुआ । लोगों ने कहना शुरू किया चूँकि हज़रत इबराहीम बिन मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इंतिक़ाल हुआ है, इसलिए यह सूरज गरहन पड़ा है तो नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने लोगों को जमा किया, दो रक्अत नमाज़ पढ़ाई।
इस नमाज़ में आपने निहायत लम्बी क़िरात की । सूरा बक़रा के जितना कुरआन पढ़ा, लम्बे रुकू और सज्दे किए। नमाज़ से फ़ारिग़ हुए तो सूरज गरहन साफ़ हो चुका था। इसके बाद आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने लोगों को बताया-“सूरज और चाँद खुदा की दो निशानियाँ हैं। इनमें किसी के मरने या पैदा होने से गरहन नहीं लगता। लोगो ! जब तुम्हें कोई ऐसा मौक़ा पेश आए तो खुदा के ज़िक्र में लग जाओ, उसी से दुआएँ माँगो, तकबीर’ व तहलील में लगे रहो, नमाज़ पढ़ो और सदक़ा व खैरात करो ।”(बुखारी, मुस्लिम)
हजरत अब्दुर्रहमान बिन समुरह रजियल्लाहु तआला अन्हु कहते हैं कि नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के मुबारक जमाने में एक बार सूरज गरहन लगा। मैं मदीने के बाहर तीर अन्दाजी कर रहा था । मैंने तुरन्त तीरों को फेंक दिया कि देखूँ आज इस हादसे में नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम क्या अमल करते हैं ? चुनाँचे मैं नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुआ ।
आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अपने हाथ उठाए खुदा की हम्द व तस्बीह, तक्बीर व तहलील और दुआ व फ़रियाद में लगे हुए थे। फिर आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने दो रक्अत नमाज़ पढ़ी और उसमें दो लम्बी-लम्बी सूरतें पढ़ीं और उस वक़्त तक लगे रहे, जब तक कि सूरज साफ़ न हो गया ।
सहाबा किराम रजियल्लाहु तआला अन्हुम भी चाँद गरहन और सूरज गरहन में नमाज़ पढ़ते । एक बार मदीने में गरहन लगा तो हज़रत अब्दुल्लाह बिन जुबैर रजियल्लाहु तआला अन्हु ने नमाज़ पढ़ी । एक और मौके पर गरहन लगा तो हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजियल्लाहु तआला अन्हु ने लोगों को जमा किया और जमाअत से नमाज़ पढ़ाई ।
खूबसूरत वाक़िआ:-तिजारत भी इबादत है।
सूरज गरहन की नमाज़ में पहली रकअत में सूरा फ़ातिहा के बाद सूरा अनक़बूत पढ़िए और दूसरी रक्अत में सूरा रूम पढ़िए । इन सूरतों का पढ़ना मस्नून है, अलबत्ता जरूरी नहीं है, दूसरी सूरतें भी पढ़ी जा सकती हैं ।
सूरज गरहन की बाजमाअत नमाज़ में अगर औरतें शरीक होना चाहें और शरीक करने की आसानी हो तो जरूर शरीक कीजिए और बच्चों को भी उभारिए, ताकि शुरू ही से उनके दिलों पर तौहीद का नक़्शा बैठे और तौहीद के खिलाफ कोई विचार पनपने न पाए ।
जिन वक़्तों में नमाज़ पढ़ने को शरीअत मना करती है यानी सूरज निकलने के वक़्त, सूरज डूबने के वक़्त और ज़वाल के वक़्तों में अगर सूरज गरहन हो तो नमाज़ न पढ़िए, लेकिन ज़िक्र व तस्बीह ज़रूर कीजिए । ग़रीबों और फ़क़ीरों को सदक़ा व खैरात दीजिए और अगर सूरज के निकलने के वक़्त और ज़वाल के वक़्त के निकल जाने के बाद भी गरहन बाक़ी रहे तो फिर नमाज़ भी पढ़िए ।
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….