मौजूदा ज़माने में ज्यादा बच्चों को मुसीबत समझा जा रहा है। ज़्यादा बच्चे पैदा न हो इस के लिए आज कल निरोध (Condom) कापर-टी, और माला ड़ी, नामी खाने की गोलियाँ, वगैरा जैसी चीजें इस्तेमाल में लाई जाती है ।
सरकार सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम के ज़माने जाहिरी में सहाबा ए किराम “अज़ल” किया करते थे ।
अज़ल यानी क्या ?
अज़ल उसे कहते हैं कि औरत से सोहबत करते वक्त जब इन्जाल होना यानी मनी का निकलना करीब हो तो मर्द अपना ऊज़ू-ए-तनासुल (लिंग) औरत की शर्मगाह से निकाल कर मनी बाहर गिरा दें। इस तरह जब मर्द की मनी औरत की शर्मगाह में नहीं गिरती तो हमल ही नहीं ठहरता ।Shariyat me condom ka istemal.
हदीसों के मुताले ( अध्ययन) से पता चलता है कि हुज़ूरे अकदस सल्लल्लाहो आला अलैहि व सल्लम के जाहिरी ज़माने में भी लोग औलाद की पैदाईश को रोकने के लिए अज़ल किया करते थे ।
चुनानचे हदीसे पाक में हैं- हज़रत जाबिर रज अल्लाहो तआला अन्हो फ़रमाते है- “हम नबी ए करीम सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम के मुबारक ज़माने में अज़ल किया करते थे हालाँकि कुरआने करीम नाज़िल हो रहा था “।
— (मुस्लिम शरीफ, बहवाला मिशकात शरीफ जिल्द 2 हदीस नं. 3046, सफा नं. 87) सैय्यदना इमाम मुहम्मद गुजाली अल्लाह तआला अन्ह अपनी तस्नीफ “कीम्या ए-सआदत” में इरशाद फरमाते हैं- “सही येह ही है कि अज़ल हराम नहीं”।
इमाम तिर्मिजी रजि अल्लाहो तआला अन्हो फ़रमाते है- “हज़रत जाबिर रजिअल्लाहो तआला अन्हो की यह हदीस हसन सही है”। हज़रत जाबिर रजि अल्लाहो तआला अन्हो के इस क़ौल से मअलूम हुआ कि सहाबा-ए-किराम, अजल किया करते थे ।
और उस जमाने में जबकि कुरआने करीम नाजिल हो रहा था लेकिन कोई ऐसी आयत नही नाज़िल हुई जिस में सहाबा-ए-किराम ए किराम को अज़ल करने से मना कर दिया जाता । चुनानचे “मुस्लिम शरीफ” में इन्हीं हज़रत जाबिर रजिअल्लाहो तआला अन्हो से यह रिवायत नकल है कि-
“अजल के मुअल्लिक हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम को ख़बर पहुँची लेकिन आप ने हमें मना नहीं फरमाया” ।(कौम्या-ए-सआदत, सफा नं. 267) Shariyat me condom ka istemal.
हदीस : मोता “इमाम मालिक” में है— “हज़रत आमीर बिन सईद बिन अबी वक्कास ने हजरत सआद बिन अबीवक्कास रजि अल्लाह तआला अन्हो से रिवायत किया है कि वोह अजल किया करते थे”। हदीस उसी (मोता इमाम मालिक) में हैं
“हज़रत अबू अय्यूब अन्सारी रजिअल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है कि वोह अजल किया करते थे” ।
हदीस : उसी (मोता इमाम मालिक) में है हज़रत हमीद बिन कैस मक्की रजिअल्लाहो तआला अन्हो का बयान है कि “हजरत इब्ने अब्बास रजियल्लाहो तआला अन्हुमा अजल के बारे में पूछा गया तो उन्हों कहा- “मैं अज़ल करता हूँ” । (मोता शरीफ, जिल्द 2 बाब नं. 34, हदीस नं. 96,97,100, सफा 475)
अज़ल करने का मकसद यह होता है कि हमल न ठहरे यानी औलाद की पैदाइश को रोका जा सके इस मकसद के लिए मर्द अपनी मनी को औरत की शर्मगाह में जाने से रोकता है।
यही मकसद निरोध से भी हासिल होता है निरोध यानी रबड़ की थैली (Frunch Lether) जो सोहबत के वक्त मर्द अपने ऊजू-ए-तनासुल पर चढ़ा लेते है और सोहबत करते है मनी इस रबड़ की थैली में ही रह जाती है औरत की शर्मगाह में नही पहुँचती ।Shariyat me condom ka istemal.
चुनानचे इस बुनयाद पर यह कहा जा सकता है जिस तरह अजल ना जाइज़ नहीं उसी तरह निरोध का इस्तेमाल भी ना जाइज़ नहीं होंगा ! क्योंकि अज़ल और निरोध दोनों से एक ही मकसद हासिल होता है ।
अहादीस व फिकही मसाइल की मुसतनद किताबों में येह बात नकल हैं कि अज़ल अपनी बीवी की इजाजत के बगैर नहीं कर सकता येह मकरूह हैं ।
हदीस :- इमाम अब्दुल रज्जाक और “बयहकी ” हज़रत इब्ने अब्बास और इमाम तिर्मिज़ी, हज़रत मालिक बिन अनस रजि अल्लाहो तआला अन्हुम से रिवायत लाए हैं कि- “आज़ाद औरत यानी बीवी से बगैर उस की इजाज़त के अजल मना है”।(बयहकी शरीफ, तिर्मिज़ी शरीफ, जिल्द 1 बाब नं. 773 हदीस नं. 1134, सफा नं. 583)
हदीस : हज़रत ऊमर रजि अल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है की “रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम ने आज़ाद औरत (जो गुलाम न हो बल्कि बीवी हो) उससे बगैर उसकी इजाज़त के अजल करने से मना फरमाया “कोई अपनी बीवी से अजल न करे मगर उसकी इजाज़त से”।(इब्ने माजा शरीफ, जिल्द 1 बाब नं. 618, हदीस नं. 7997, सफा नं. 539)
इमाम मालिक रीयल्लल्लाहो तआला अन्हो फ़रमाते हैं-
इस से पता चला कि औरत से सोहबत से पहले अजल करने की या निरोध के इस्तेमाल की इजाज़त जरूरी है। इस की एक वजह यह है कि सोहबत दरअस्ल औरत का हक है और ब जाहिर सोहबत वो ही मानी जाएगी जिस में अजल न हो।
अब चुँकि मनी शर्मगाह में गिराना नहीं चहता इसलिए औरत से उस की इजाज़त ले और अगर वोह अज़ल या निरोध के इस्तेमाल से इन्कार कर दे तो फिर अजल या निरोध का इस्तेमाल नहीं कर सकता ।
जैसा कि आप ने पढ़ा अजल ना जाइज़ नहीं वहीं ऐसी अहादीसे पाक भी मिलती है जिस से येह मअलूम होता है कि अजल बेकार और ना पसंदीदा काम है। सरकार सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम ने अजल से मना न फरमाया लेकिन इसे अच्छा भी नहीं समझा और न ही पसंद फरमाया है बल्कि आप ने ज्यादा औलादें पैदा करने की मुसलमानों को तअलीम फरमाई।
हदीस :- हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रजिअल्लाहू तआला अन्हु से अजल के बारे में पूछा गया तो आप ने फरमाया-“रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व सल्लम ने फरमाया ” अगर अल्लाह तआला ने किसी चीज के जहूर का अहद किया तो पत्थर में छुपी छुपाई है तो वोह ज़रूर निकल कर रहेगी” ।(मुस्नदे इमामे आजम, बाब नं. 127, सफा नं. 222 ) Shariyat me condom ka istemal.
इस हदीसे मुबारका से मअलूम हुआ कि अज़ल से कोई फायदा नहीं ।आप ने फरमाया-(इमाम अहमद)
हदीस : हज़रत अनस रजि अल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है कि – “अगर तू उस पानी को जिस से बच्चा पैदा होता हैं किसी चट्टान पर डाल दें तो अल्लाह तआला चाहे तो उस से भी बच्चा पैदा कर देगा”।
हदीस हज़रत अबू साईद खुदरी रजिल्लाहो तआला अन्हों से :- रिवायत है कि “हमें कुछ कैदी औरतें हाथ आई जिन्हें गुलाम बना लिया गया तो हम उनसे अजल किया करते थे हम ने अजल करने के बारे में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम से पूछा तो आप ने तीन मरतबा इरशाद फरमाया-“तुम अज़ल करते हो ! एैसी रूह नहीं जो कियामत तक आने वाली हो मगर वोह ज़रूर आ कर रहेगी” ।(बुखारी शरीफ, जिल्द 3 बाब नं. 126, हदीस नं. 194, राफा नं. 101)
हदीस :- हज़रत इमाम नाफे रजिअल्लाहो अन्हो से रिवायत है-“हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रजि अल्लाहो अन्हो अजल नहीं करते थे और अजल को ना पसंद फ़रमाते थे। (मोता शरीफ, जिल्द 2 बाब नं. 34 हदीस नं. 98, सफा में 475 )
चुनानचे इन हदीसों से साबित होता है कि अज़ल ( और इस जमाने में निरोध, कापर-टी, माला-ड़ी वगैरा का इस्तेमाल ) बे फुजूल बेकार व ना पसंदिदह काम है । ऐसे बहुत से वाकिआत का सुबूत मिलता है कि बच्चा पैदा न हो उसे रोकने के लिए लोगों को सारी अहतियातें, और तदबीरे धरी की धरी रह गई और हमल ठहर गया और बच्चा भी पैदा हुआ।
हदीस : एक शख्स हुजूर सल्ललाहू अलैहि व सल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुआ और अर्ज किया “या रसूलुल्लाह ! मेरी एक ख़देमा (कनीज) है जिस से मैं अजल करता हूँ मैं नहीं चाहता कि वाह हमला रहे”। आप ने फरमाया- “तू चाहे तो अजल कर लें अगर तकदीर में है तो खुद ब खुद बच्चा पैदा होगा”
फिर वोह शख्स कुछ अर्से के बाद हाज़िर हुआ और अर्ज कि या रसूलुल्लाह ! उसे तो बच्चा पैदा हो गया” आप ने फरमाया- “मैं ने ता कह दिया था कि जो कुछ उस के मुकद्दर में है वोह उस को जरूर मिलेगा “। ( अबूदाऊद शरीफ, जिल्द 2 बाब नं. 126, हदीस नं. 406, सफा नं. 154)Shariyat me condom ka istemal.
इस से पता चला कि अगर तकदीर में बच्चे लिखे हुए है तो इन्सान कितना भी चाहे दुनिया में आने से नहीं रोक सकता । हकीमों ने लिखा है कि मर्द की मनी के एक कतरे में लाखों बच्चा पैदा करने वाले कीड़े होते हैं जो मर्द के ऊजू-ए-तना सुल (लिंग) से चिम्टे रह जाते हैं और मर्द इन्जाल करने के बाद फिर सोहबत कर लेते हैं,
दूसरी बार सोहबत के दौरान मनी न भी निकले तो वाह पहले सोहबत करते वक्त के वोह किड़े जो मर्द के ऊजू-ए-तनासुल से चिम्टे हुए होते हैं औरत की शर्मगाह में लग जाते है और इस तरह भी न चाहते हुए हमल ठहर जाता है और इन्सान की सारी कोशिश बेकार साबित होती है। लिहाजा बेहतर यह है कि निरोध का इस्तेमाल न करे कि यही अफज़ल है ।
हदीस : मुस्लिम शरीफ की एक हदीस में है कि रसूले अकरम सल्लल्लाहो तआला अलैहि व सल्लम ने इरशाद फरमाया-
‘अज़ल करना एक छोटी किस्म का बच्चे को ज़िन्दा ज़मीन में दफना देना है” ।(मुस्लिम शरीफ व हवाला मिश्कात शरीफ, जिल्द 2 हदीस नं. 3051, सफा नं. 89)
मसअला :- आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खाँ रजिअल्लाहो तआला अन्हो “फ़्तावा-ए-रज़वीया” में फरमाते है-“ऐसी दवा का इस्तेमाल जिस से हमल न होने पाए अगर किसी शदीद शरीअत में काबिले क़ुबूल जरूरत के सबब हो तो हर्ज नहीं वरना सख्त बुरा व ना पसंदिदह है”।
(फतावा-ए-रज़वीया, जिल्द 9 निस्फ आखिर, सफा नं. 298)
हकीमों ने लिखा है कि-हमल न ठहरे इस के लिए सब से ज्यादा आसान तरीका येह है कि औरत के हैज़ (माहवारी) के शुरू होने से एक हफ्ते पहले और हैज़ से औरत जिस दिन से पाक हो जाए उस के बाद एक हफ्ते तक, इस दौरान सोहबत करने से हमल नहीं ठहरता और येह दिन महफ़ूज़ होते हैं क्योंकि इन दिनों में (यानी हैज़ शुरू होने से एक हफ्ते पहले और हैज़ के बाद एक हफ्ते तक) औरत के जिस्म में बैज़ा बच्चा पैदा करने वाले अंडे (OVA) नहीं होते । जिस की वजह से बच्चा पैदा न होने के ज्यादा इम्कानात (Chances ) होते है ।Shariyat me condom ka istemal.
इन हदीसो को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।
क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।
खुदा हाफिज…