शरीअत में एक हुक्म तो लिबास और सतर का है और ये हुक्म मर्द व औरत दोनों के लिए है। मर्दों के लिए नाफ़ से घुटने तक अपनी बीवी के सिवा हर एक से छिपाने का हुक्म है और औरतों के लिये चेहरा और गट्टे तक हाथ और टखने तक पैर के सिवा पूरा बदन अपने शौहर के सिवा हर एक से छिपाने का हुक्म है।
हदीस:- रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया- चेहरा और गट्टे तक हाथ के सिवा बालिग़ औरत के बदन का कोई हिस्सा नज़र न आना चाहिए।’ (अबू दाऊद शरीफ)
इतना बारीक और चुस्त लिबास भी पहनना हराम है, जिससे बदन अंदर से झलकने लगे या बदन की बनावट मालूम होने लगे ।
Satar aur parde ka huqm.
हदीस:- हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की साली हज़रत अस्मा बिन्ते अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हा एक बार हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने बारीक लिबास पहन कर हाज़िर हुई तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फौरन नज़र फेर ली, फ़रमाया-‘अपने चेहरे और हाथ की तरफ़ इशारा करते हुए हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, ऐ अस्मा ! बालिग़ औरत के बदन का कोई हिस्सा नज़र न आना चाहिए।’ (अबू दाऊद शरीफ़)
उम्मुल मोमिनीन हज़रत आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा की ख़िदमत में उनकी भतीजी हफ़्सा बिन्ते अब्दुर्रहमान बारीक ओढ़नी ओढ़कर हाज़िर हुई तो हज़रत आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने इस बारीक ओढ़नी को फाड़ दिया और मोटी ओढ़नी इनको उढ़ा दी ।(मिश्कात, किताबुल्-लिबास)
आज मुसलमान घरानों में औरतें ठीक वही लिबास पहनती हैं, जिस के बारे में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फ़रमाया था, जहन्नमियों की दो किस्में हैं, जिनको मैंने देखा नहीं है, इसके बाद दोनों किस्मों की निशानियाँ बतायी गयी हैं। दूसरी किस्म के जहन्नमियों की निशानियाँ इन लफ़्जों में हैं ।
Satar aur parde ka huqm.
और जो औरतें कपड़े पहन कर भी नंगी ही रहें, दूसरों को रिझाएं और खुद भी दूसरों पर रीझें, उनके सर पर बालो की आराइश ऊंटनी के कोहानों की तरह हो, नाज़ से गरदन टेढ़ी करके चलें, वे जन्नत में दाखिल न होंगी, न उसकी खुश्बू पाएंगी, हालांकि जन्नत की खुश्बू बहुत दूर से आती है।’
(मिश्कात, किताबुल जिनायात )
चेहरा और हाथ-पैर के सिवा पूरा बदन छिपाने के बाद भी औरत का फ़ितरी हुस्न या ज़ेवर और लिबास वगैरह का बनाव सिंगार, जो खुद-ब-खुद बिला इरादा ज़ाहिर जो जाता हो, औरत अपने बाप, ससुर, बेटे, भाई, भतीजे, भांजे के सामने तो इस ज़ीनत और बनाव- सिंगार को ज़ाहिर कर सकती है, मगर इनके सिवा जितने मर्द हैं, उनके सामने ज़ाहिर करने की इजाज़त नहीं है।
हदीस:- हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया है अजनबियों में बन-संवर कर नाज़ व अंदाज़ से चलने वाली औरत ऐसी है, जैसी कियामत के दिन तारीकी कि उसमें कोई नूर नहीं।’ (तिर्मिज़ी)
खुद कुरआन पाक में अल्लाह तआला फ़रमाता है: तर्जुमा- और औरतें अपनी ज़ीनत को ज़ाहिर न करें, सिवाए उस ज़ीनत के, जो अपने आप ज़ाहिर हो जाए और अपने सीने पर दोपट्टे ओढ़े रहा करें।’ (सूरः नूर, पारा 17)
Satar aur parde ka huqm.
इस आयत का साफ़ मतलब यह है कि तुम अपनी तरफ़ से अपना बनाव-सिंघार और ज़ीनत व आराइश ग़ैरों से छिपाने की कोशिश करो, फिर भी अगर कोई चीज़ ज़ाहिर हो जाए, मगर तुममें यह जज़्बा और शौक हरगिज़ न हो कि अपना बनाव-सिंघार गैरों को दिखाओ,
सर और सीना ख़ास तौर पर ज़ीनत की जगह है, इसलिए इसको ढांकने और छिपाने की भी ख़ास ताकीद की गई है।
यह तो सतर का वह हुक्म है, जिसमें औरत अपने शौहर के सिवा महरम या गैर महरम किसी मर्द के सामने अपने चेहरे, हाथ और पैर के सिवा बदन का कोई हिस्सा नहीं खोल सकती। इसके बाद दूसरा हुक्म परदे का है।
जिन रिश्तेदारों के सामने चेहरा और हाथ-पैर खुला रखने की इजाज़त दी गयी है। उनके अलावा और जितने मर्द हैं, उनके सामने खुले चेहरे के साथ औरत को आने की इजाज़त नहीं है। किसी ज़रूरत से घर से बाहर जाना हो, तो इस तरह बाहर निकलना चाहिए कि चेहरा नज़र न आए। कुरआन मजीद में है-
तर्जुमा: अपने ऊपर अपनी चादरों से घूंघट डाल लिया करो।”
(सूरः अहज़ाब) इस आयत में ख़ास चेहरे को छिपाने का हुक्म है, क्योंकि घूंघट डालने का मक्सद चेहरे को छिपाना है, अब यह घूंघट से छिपाया जाए या बुर्के की नक़ाब से या किसी और तरीके से ।
यह हुक्म किसी ज़रूरत और मजबूरी से बाहर जाने के लिए है, सिर्फ तफ़रीह या बगैर मजबूरी के बाज़ार करने के लिए नहीं है । काम को पूरा करना या कराना शौहर का फ़र्ज़ है । हाँ अगर शौहर या कोई दूसरा मर्द न हो तो मजबूरन इसकी भी इजाज़त हैं।
Satar aur parde ka huqm.
आज की हमारी बहनें जिस तरह बन-ठन कर अपना हुस्न और बनाव सिंघार दिखाने के लिए बाहर आज़ादी से घूमती-फिरती हैं, कदीम जाहिलिय्यत में भी इसी तरह घूमा करती थीं। अल्लाह तआला ने हुक्म किया कि तुम वकार के साथ अपने घरों में जमी बैठी रहो।
कुरआन पाक में इर्शाद है: तर्जुमा-और अपने घरों में जमी रहो, कदीम जाहिलियत के तरीके पर अपने को दिखाती मत फिरो ।” (सूर अहज़ाब)
इस आयत के नाज़िल होने के बाद मुसलमान औरतें अपने चेहरे पर नकाब डालने लगीं और खुले चेहरे के साथ घुमने फिरने का रिवाज बन्द हो गया और बे-ज़रूरत घर से बाहर निकलना ही रुक गया।
Satar aur parde ka huqm.
अल्लाह तआला मुसलमान औरतों को तौफ़ीक़ दे कि कुरआन व हदीस के अहकाम के मुताबिक़ अपने सतर और परदे का एहतिमाम रखें और मौजूदा दौर की बेहयाई और बेपरदगी से बचें। आमीन
इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।
क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।
खुदा हाफिज…