सदक़ा करने की फज़ीलत।Sadqa karne ki fazilat.

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अल्लाह की राह में खर्च करना बड़े सवाब का काम हैं। जो लोग अल्लाह की राह में अपनी दौलत खर्च करते हैं अल्लाह ऐसे लोगों को बहुत पसंद करता हैं।

अगर अल्लाह ने आप को दौलत से नवाज़ा हैं और आप उस दौलत को अपने ऐशो आराम और दुनियावी रंगो रौनक में खर्च कर रहे हो तो ऐसी दौलत का भी कोई फ़ायदा नहीं हैं।

उल्टा आप अपनी आख़िरत को बिगाड़ रहे हो। अपनी आख़िरत सुधारने के लिए हम सब को चाहिए की हम अपनी दौलत अल्लाह की राह में खर्च करे यानि की ज़कात खैरात या सदके में खर्च करे अपनी दौलत का कुछ हिस्सा गरीब लोगों की मदद करने में लगाए।Sadqa karne ki fazilat.

अल्लाह की राह में खर्च करने के क्या फायदे हैं ? अल्लाह की राह में अपना माल खर्च करने की बड़ी फ़ज़ीलत हैं। जो आदमी सवाब की नियत से अपना माल खर्च करता हैं। वह शख्स अल्लाह के बहुत नज़दीक रहता हैं।

अल्लाह ऐसे लोगों को हर मुसीबत और परेशानी से बचाता हैं। अपनी ज़रूरत होते हुए भी अल्लाह की राह में अपना माल खर्च करना बेहतरीन सदक़ा कहलाता हैं।

अपने माल में से एक रूपए खर्च करके किसी गरीब को देना मौत के वक़्त के सौ रूपए खर्च करने से बेहतर हैं। आजकल की दुनिया में अक्सर देखने में आता हैं की अच्छे दिनों में लोग सदक़ा खैरात की तरफ बिलकुल ध्यान नहीं देते।

ऐसे लोग ये सोचते हैं की मैं कमा रहा हूँ तो अपने ऊपर ही खर्च करूँ या अपने परिवार के लिए खर्च करूँ। लेकिन ऐसे लोगों की जब मौत करीब आती हैं या वह किसी बीमारी से परेशान हो जाते हैं तब वह सदक़ा खैरात की तरफ ध्यान देते हैं। Sadqa karne ki fazilat.

ऐसे लोग अल्लाह को बिलकुल पसंद नहीं। आजकल देखा जाता हैं की लोग जब किसी बीमारी से परेशान हो जाते हैं या कोई मुसीबत में फंस जाते हैं तब वह अपना माल सदक़ा खैरात में लगाते हैं। लेकिन जब सब कुछ अच्छा चल रहा होता हैं तो वह ऐसा कुछ नहीं करते।

सदक़ा किन मुसीबतों से बचाता हैं?

आजकल लोग बड़ी बड़ी बीमारियों जैसे कैंसर, हार्ट से जुडी बीमारी या डिप्रेशन से परेशान हैं या जो लोग अचानक से कंगाल हो जाते हैं उसकी पीछे सबसे बड़ी वजह यही हैं की वह अपना माल अल्लाह की राह में खर्च नहीं करते।

ऐसे लोग जब ऐसी मुसीबत में फंस जाते हैं या किसी बीमारी के शिकार हो जाते हैं तब लाखो रूपए हॉस्पिटल में लगाकर अपना इलाज करवाते हैं फिर भी बिलकुल सही नहीं होते। Sadqa karne ki fazilat.

अगर हम अपने माल का कुछ हिस्सा सदक़ा खैरात में लगा दे तो बेशक इन सारी मुसीबतों से बच सकते हैं। लाखो रूपए अपने इलाज में लगाने से बेहतर हैं अपने माल का कुछ हिस्सा सदक़ा खैरात ज़कात या फ़ितरा में लगाए।

अगर आप दिन के 100 रूपए भी कमाते हैं तो उसमे से एक रूपया या 5 रुपये रोज़ किसी गरीब को दे दें तो वह गरीब जो आपको दुआ देगा उस दुआ से आप हज़ारों मुसीबतों से बच सकते हैं।

अल्लाह के रसूल (स.व)फरमाते हैं की सदक़ा और खैरात आपको बलाओं से महफूज़ रखता हैं सदक़ा खैरात करने से आप बड़ी से बड़ी मुसीबतों से बच सकते हो सदक़ा बलाओं को टाल देता हैं। Sadqa karne ki fazilat.

Sadqa karne ki fazilat.

माल पैसा खर्च करना ही सदक़ा नहीं बल्कि सवाब का छोटे से छोटा काम भी सदक़ा कहलाता हैं।

अल्लाह के रसूल (स.व)फरमाते हैं इन्साफ करना भी सदक़ा हैं। किसी को सवारी पर सवार करने में मदद कर देना भी सदक़ा हैं। रास्ते में पड़ी तकलीफ देने वाली चीज़ को हटा देना भी सदक़ा हैं। जो आदमी खेती करता हैं और हज़ारों लोगों को अपनी मेहनत से उगाया अनाज देता हैं वह भी सदक़ा हैं। किसी ने छांव के लिए पेड़ लगा दिया ये भी एक तरह का सदक़ा हैं। परिंदो को खाना देना भी सदक़ा हैं। अपने भाई से मुस्कुरा कर बात करना भी सदक़ा हैं। किसी को अच्छी या नेक सलाह देना और किसी को गलत काम से रोकना भी सदक़ा हैं।

हदीस शरीफ में हैं जिस शख्स ने किसी शख्स को जिसके पास पहनने के लिए कपड़ा नहीं था उसे कपड़ा पहनाया और उसकी इज़्ज़त बढ़ाई अल्लाह तआला ऐसा करने वाले शख्स को जन्नत का जोड़ा पहनायेगा।Sadqa karne ki fazilat.

जिसने किसी भूके को खाना खिलाया अल्लाह उसे जन्नत के फल खिलायेगा जिसने किसी प्यासे को पानी पिलाया और उसकी प्यास बुझाई अल्लाह तआल उसे जन्नती शरबत पिलायेगा।

सदक़ा की बरकत से अल्लाह का अज़ाब ठंडा हो जाता हैं। अगर अल्लाह को राज़ी रखना चाहते हो तो सदक़ा खैरात करते रहो ताकि उसकी बदौलत आपको दुनिया और आख़िरत में खुशहाली मिल सके और ज़िंदा रहते आपको किसी मुसीबत का सामना न करना पड़े।

अल्लाह हमें अपने माल का कुछ हिस्सा सदक़ा और खैरात में लगाने की तौफीक अता फरमाए आमीन।

इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें।ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।

क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।

खुदा हाफिज…

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