02/06/2025
कुर्बानी के जानवर का बयान। 20250523 203631 0000

कुर्बानी के जानवर का बयान। Qurbani ke janwar ka bayan.

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Qurbani ke janwar ka bayan.
Qurbani ke janwar ka bayan.

कुर्बानी के जानवर तीन किस्म के है। ऊँट, गाय, बकरी । हर किस्म में इसकी जितनी नौइयतें (किस्में) हैं सब दाखिल है। नर और मादा खस्सी व गैर-खस्सी सबका एक हुक्म है यानी सब की कुर्बानी हो सकती है। भैंस, गाय में शुमार है। उसकी भी कुर्बानी हो सकती है। भेड़ व दुंबा बकरी में दाखिल है उनकी भी कुर्बानी हो सकती है।

मसअला :- वहशी जानवर जैसे नील गाय और हिरण इन की कुर्बानी नहीं हो सकती। वहशी और घरेलू जानवर से मिल कर बच्चा पैदा हुआ, मस्लन… हिरण और बकरी मे से माँ का ऐतेबार है यानी उस बच्चे की माँ बकरी है तो जाइज है और बकरे और हिरनी से पैदा हुआ है तो नाजाइज है।

मसअला :- कुर्बानी के जानवर की उम्र येह होनी चाहिये। ऊँट पाँच साल का, गाय दो साल की, बकरी एक साल की, इससे कम उम्र की हो तो कुर्बानी जाइज नहीं। ज्यादा हो तो जाइज, बल्कि अफजल है। हाँ दुंबा या भेड़ का बच्चा अगर इतना बडा हो कि दुर से देखने में साल भर का मालूम होता हो तो उसकी कुर्बानी जाइज है।

मसअला :- मेंढा भेड़ से और कुंबा दुबी से अफजल है जबकि दोनों की कीमत एक हो और दोनों मे गोश्त बराबर हो। बकरी बकरे से अफ़ज़ल है ऊँटनी ऊँट से और गाय बैल से अफजल है जबकि गोश्त और कीमत में बराबर हो।

मसअला :- कुर्बानी के जानवर को ऐब से खाली होना चाहिये। अगर थोडा सा ऐब हो तो कुर्बानी हो जायेगी मगर मकरूह होगी और ज्यादा ऐब हो तो होगी ही नहीं जिसके पैदाइशी सींग न हो उस की कुर्बानी जाइज है और अगर सींग थे मगर टूट गया और मेंग तक टुटा है तो नाजाइज है इससे कम टूटा है तो जाइज है।

जिस जानवर में जुनून (पागलपन) है अगर इस हद का है कि वोह जानवर चरता भी नहीं है तो उसकी कुर्बानी नाजाइज है और इस हद का नहीं है तो जाइज है। खस्सी यानी जिस के खुसये निकाल लिये गये हो या मजबूब यानी जिस के खुसये और अजु तनासुल काट लिये गये हों उनकी कुर्बानी जाइज है। इतना बुढा कि बच्च्चा देने के काबिल न रहा या दागा हुआ जानवर या जिसका दुध न उतरता हो उन सबकी कुर्बानी जाइज है।

खारिशी (खुजली वाला) जानवर की कुर्बानी जाइज फरबा हो और इतना लागर हो कि हडडी में मग्ज न रहा तो कुर्बानी जाइज नहीं। कुर्बानी के मसाइल।

मसअला :- भिंगे जानवर की कुर्बानी जाईज है। अन्धे जानवर की कुर्बानी जाइज नहीं और काना जानवर जिसका कानापन जाहिर हो उसकी कुर्बानी भी नाजाइज है इतना लागर जिस की हडडीयों में मग्ज न हो और लंगडा जो कुर्बान-गाह- तक अपने पाँव से न जा सके और इतना बीमार जिसकी बीमारी जाहिर हो और जिसके कान या दुम या चक्की (घुटने की हडडी) कटे हो यानी वोह अजू तिहाई से ज्यादा कटा हो उन सबकी कुर्बानी नाजाइज़ है।

कान दुम या चक्की (घुटने की हडडी) इससे कम कटी हो तो जाईज है। जिस जानवर के पैदाईशी कान न हो या एक कान न हो उसकी कुर्बानी नाजाइज है और जिसके कान छोटे हो उसकी जाइज है।

मसअला :- जिसके दांत न हो या जिसके थन कटे हो या खुश्क यानी जिसके थन में दुध न हो उसकी कुर्बानी नाजाइज है। बकरी में एक थन का खुश्क होना नाजाइज होने के लिये काफी है और गाय भैंस में दो खुश्क हो तो नाजाइज़ है जिसकी नाक कटी हो या इलाज के ज़रिये उसका दुध खुश्क (सुखा) कर दिया हो और खुन्सा जानवर यानी जिसमें नर व मादा दोनों की अलामतें हो और जल्लाला जो सिर्फ गलीज (गंदगी) खाता हो उन सबकी कुर्बानी नाजाइज है।

मसअला :- भेंड़ या दुंबे की ऊन काट ली गई हो उसकी कुर्बानी जाइज है और जिस जानवर का एक पाव काट लिया गया हो उसकी कुर्बानी नाजाइज है।

मसअला :- मुस्तहब येह है कि कुर्बानी का जानवर खूब फरबा (मोटा) और खुबसूरत और बडा हो और अगर बकरी की किस्म में से कुर्बानी करनी है तो बगैर सींग वाला चितकबरा मेंढा हो जिसके खुसये को काट कर खस्सी कर दिया हो कि

हदीसे पाक में है हुज़ूर नबीये करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने ऐसे मेंढे की कुर्बानी फरमाई।

जिब्ह करने से पहले छुरी को तेज कर लिया जाये और जिब्ह के बाद जब तक जानवर ठंडा न हो जाये उसके तमाम अअजा से रूह निकल न जाये। उस वक्त तक हाथ पाँव न काटे और न चमडा उतारें और बेहतर येह है कि अपनी कुर्बानी के वक्त हाजिर हो।

हदीस शरीफ में है कि हुज़ूर नबीये करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रत फातिमा रजियल्लाहु तआला अन्हा से फरमाया: खडी हो जाओ और अपनी कुर्बानी के पास हाजिर हो कि उसके पहले खून के कतरे मे जो कुछ गुनाह किये है सब की मगफिरत हो जायेगी। इसपर हजरत अबू सईद खुदरी रजियल्लाहु अन्हु ने अर्ज किया: या नबी अल्लाह ! यह आप की आल के लिये खास है या आप की आल के लिये भी और आम मुस्लिमीन के लिये भी ? फरमायाः मेरी आल के लिये खास भी है और आम मुस्लिमीन के लिये आम भी है।

मसअला :- कुर्बानी का जानवर मुसलमान से जिब्ह कराना चाहिये अगर किसी मजूसी या दुसरे काफिर या मुर्शिक से कुर्बानी का जानवर जिब्ह करा दिया तो कुर्बानी नहीं होगी बल्कि वोह जानवर हराम व मुर्दार है।

मसअला :- कुर्बानी का गोश्त काफिर को न दे कि यहाँ हरबी है।

मसअला :- कुर्बानी अगर मन्नत की है तो उसका गोश्त न खूद खा सकता है न मालदारों को खिला सकता है। बल्कि उसको सदका कर देना वाजिब है। वोह मन्नत मानने वाला फकीर हो या गनी दोनों का एक ही हुक्म है।

मसअला :- कुर्बानी का चमडा और उसकी झोल (जो कपडा उस पर डाला हो) और रस्सी और उसके गले में हार डाला है वोह हार उन सब चीजों को सदका कर दे।

मसअला :- कुर्बानी का चमडा, गोश्त या उसमें की कोई चीज कसॉब या जिब्ह करने वाले को उजरत में नहीं दे सकता कि उसको उजरत में देना भी बेचने के मअना में है

मसअला :- भेंड़ के किसी जगह के बाल निशानी के लिये काट लिये है उन बालों को फेंक देना या किसी को हिबा कर देना नाजाइज है बल्कि उन्हें सदका कर दें।

मसअला :- जानवर दूध वाला है तो उसके थन पर ठंडा पानी छिड़के कि दुध खुश्क हो जाये। अगर उससे काम न चले तो जानवर को दोह कर दुध सदका कर दे।

मसअला :- कुर्बानी की और उसके पेट में जिन्दा बच्चा निकला है तो उसे भी जिब्ह कर दे और उसे सर्फ (काम) में ला सकता है और मरा हुआ बच्चा हो तो उसे फेंक दे कि वोह मुर्दार है।

मसअला :- दुसरे से जिब्ह कराया और खुद अपना हाथ भी छूरी पर रख दिया कि दोनों ने मिल कर जिब्ह किया तो दोनों पर बिस्मिलला कहना वाजिब है। एक ने भी कस्दन (जान बूझ कर) छोड़ दी या येह ख्याल कर के छोड़ दी कि दुसरे ने कह ली मुझे कहने की क्या जरूरत? तो दोनों सूरतों में जानवर हलाल न हुआ।

अल्लाह रब्बुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक़ आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे ज़िन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।

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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।

खुदा हाफिज…

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