
कुरआन मजीद में एक कौम का ज़िक्र है जिसे क़ौमे तबा कहते हैं। मुफस्सिरीन ने लिखा है के उस ज़माने में उनके दोनों तरफ बागात होते थे। फलों की इतनी ज़्यादती थी कि उनके यहाँ का दस्तूर था कि जहाँ से भी कोई फल तोड़ना चाहता था तो तोड़ सकता था।
कोई मनाही नहीं थी। इस तरह वह हर वक़्त फल खाया करते थे। अल्लाह तआला ने उस कौम से फरमाया मेरे बंदो ! मेरी दी हुई नेमतें खाओ और मेरा शुक्र अदा करो। मगर वह नाशुक्रे निकले और कहने लगे, ऐ अल्लाह! हर तरफ हरियाली है, बागात और फल हैं। हम तो देख-देखकर तंग आ गए हैं।
हम एक शहर से दूसरे शहर का सफ़र करते हैं तो पता ही नहीं चलता क्योंकि हर तरफ पेड़ होते हैं और दूसरा शहर आ जाता है। बीच में अगर कोई वीराना होता तो पता चलता कि हम एक शहर से दूसरे शहर में जा रहे हैं। जब उन्होंने नाशुक्री की यह बात की तो अल्लाह तआला ने ज़मीन के अंदर के पानी को सुखा दिया।
जब पानी सूख गया तो सब बागात के पेड़ सूख गए और नतीजा यह निकला कि वह अल्लाह तआला की नेमतों से महरूम कर दिए गए और खाने को भी तरसने लगे। अल्लाह तआला कुरआन पाक में इसका ज़िक्र फरमाते हैं। मेरे दोस्तो! क़यामत के दिन आप यह नहीं कह सकेंगे कि हमें कोई कुरआन सुनाने वाला नहीं आया था।
जो हमें खोल-खोल कर बताता कि हम पर अल्लाह तआला की कितनी-कितनी नेमतें हैं। अल्लाह तआला फरमाते हैं : कौमे तबा के घरों में बड़ी निशानियाँ हैं। वह जिन रास्तों पर चलते थे उनके दाईं तरफ बागात होते थे और बाईं तरफ भी बागात होते थे।
और फरमाया कि मेरा दिया हुआ रिज्क खाओ। और मेरा शुक्र अदा करो, कितना पाकीज़ा शहर है। तुमसे कोई कोताही हो जाए तो माफी मांग लेना। तुम्हारा परवरदिगार तो मग़फिरत करने वाला है। मगर वह इस नेमत की कद्र न कर सके और कहने लगे, ऐ अल्लाह! दर्मियान में कोई खुली जगह और वीराने होते ताकि एक शहर से दूसरे शहर जाते हुए पता चलता कि सफर क्या है? लिहाज़ा अल्लाह तआला ने उनके बाग़ात को ख़त्म कर दिया। और फरमा दिया : उन्होंने नेमतों की नाक़द्री की और हमने उनको नेमतों की नाकूद्री का यह बदला दिया और नाशुक्रों का यही बदला होता है।दो नाशुक्रों का अंजाम।
अल्लाह रब्बुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक़ आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे ज़िन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।
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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।
खुदा हाफिज…