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18/10/2025
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नज़र की हिफाज़त ही इमान की निशानी है|Nazar ki hifazat hi iman ki nishani hai.

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Nazar ki hifazat hi iman ki nishani hai.
Nazar ki hifazat hi iman ki nishani hai.

एक उसूल ज़ेहन में रख लें। अफ़सोस के साथ मुझे कहना पड़ रहा है कि मर्द हमेशा मौका-परस्त (Opportunist) होते हैं। यह तयशुदा बात है। आज़माई हुई बात है आपको इसे आज़माने की ज़रूरत नहीं।

उसूल बना लें कि मर्द हमेशा मौका-परस्त होते हैं औरत के मामले में मर्द अट्ठारह साल का जवान हो या अस्सी साल का बूढ़ा हो, सबकी हालत एक जैसी होती है। जब बेपर्दा औरत निकलती है तो एक ही वक़्त में उसको जवान बेटा भी लालच की नज़र से देख रहा होता है और उसका सफेद बालों वाला बाप भी उस लड़की को लालच की नज़र से देख रहा होता है।

औरत, मर्द की एक कमज़ोरी है इसलिए नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि मुझे अपनी उम्मत के मर्दों पर सबसे ज़्यादा जिस चीज़ का ख़तरा है वह औरत का फितना है।

इसलिए यह औरत की ज़िम्मेदारी है कि वह अपने आपको बचाये। शरीअत ने मर्दों को भी कहा कि वे अपनी निगाहों का लिहाज़ करें ख़्याल रखें। औरत को भी कहा कि वे भी अपनी निगाहों का ख़्याला रखें।

आजकल की जवान बच्चियाँ समझती हैं कि नज़रों को नीचे करना तो मर्द का काम है, वे क्यों हमारी तरफ देखते हैं। और इस चीज़ को भूल जाती हैं कि उनमें भी नफ़्स है और उनके साथ भी शैतान है। उनकी नज़र भी अगर गैर-मर्द पर पड़ेगी तो उनके लिये भी फितने में पड़ने का ख़तरा है। कुरआन मजीद में फरमायाः

कि पर्दे में रहना बीबियो ! यह उन मर्दों के दिलों के लिए भी पाकीज़गी के लिए अच्छा है और तुम्हारे दिलों की पाकीज़गी के लिए भी अच्छा है।

तो दिलों के भेद जानने वाले अल्लाह ने फैसला फरमा दिया कि जब भी इनसान नज़र की कोताही करता है तो मर्द के अन्दर भी इससे गुनाह आता है और औरत के दिल में भी गुनाह के ख़्यालात आते हैं। लिहाज़ा किसी को राबिया बसरी बनने की ज़रूरत नहीं।

कुरआन मजीद की तालीमात को कबूल करने की ज़रूरत है और इस बात को मान लेना चाहिए कि औरत के लिए भी अपनी नज़र की हिफाज़त करना ज़रूरी है, मर्द के लिए भी अपनी नज़र की हिफाज़त करना ज़रूरी है।

खूबसूरत वाक़िआ:-एक अन्धे की कीमती नसीहत|

इसलिये मर्द को भी मना किया गया और औरत को भी मना किया गया। तो जवान बच्ची के लिए दुनिया का सबसे बड़ा अहम काम और फर्ज़ उसका अपनी इज़्ज़त व अस्मत की हिफाज़त है।

अल्लाह से एक दिली दुआ…

ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।

प्यारे भाइयों और बहनों :-

अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।

क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….

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