31/05/2025
नबी ए पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का विसाल शरीफ। 20250514 013659 0000

नबी-ए-पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का विसाल शरीफ। Nabi-e-Pak sallallahu alaihi wasallam ka wishal Sharif.

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Nabi-e-Pak sallallahu alaihi wasallam ka wishal Sharif.
Nabi-e-Pak sallallahu alaihi wasallam ka wishal Sharif.

जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्र चालीस साल थी आपको रेसालत से सर्फराज़ फरमाया गया। यानी हक़ तआला ने अपना रसूल बना कर सारे आलम की तरफ मबऊस फरमा दिया।

“वमा अरसलनाका इल्ला काफ़्फ़तन लिन्नासे बशरीरौं व नज़ीरा।” और कामिल तेइस साल तक आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बड़ी मेहनत और जांफिशानी और जफाकशी के साथ फ्राएज-ए-रिसालत को अदा फरमाया।

और इसके लिये बड़ी बड़ी अज़ीयतें बर्दाश्त कीं। पागल व मजनून का ख़िताब दिया गया। राह में काँटे बिछाये गये। ज़ख़्मों से लहूलुहान किया गया। दन्दाने मुबारक शहीद किये गये। कूड़े करकट डाले गये। लेकिन आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हमेशा खन्दः पेशानी से इन तमाम मसाएब का मुकाबला किया और यह दुआ फरमाते रहे।

“अल्लाहुम्मा इहदे कौमी फइन्नहुम ला यअलमून।” चुनान्चे मुद्दते कलील ही में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तालीम व तरबियत ने खुदा परस्तों की एक बड़ी जमात तैयार कर दी जो आला तरीन एखलाक और कामिल तरीन जुद्द व तक्वा में इस मर्तबा में थे कि तारीखे आलम इनकी मिसाल पेश करने से आजिज़ है।

ऐलाने नबूवत के बाद तेरह साल तक आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मक्का मोकर्रमा में कयाम फरमाया। फिर हिजरत के हुक्म के नुजूल के बाद आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मदीना मुनव्वरा तशरीफ लाये। दस बरस मदीना मुनव्वरा में कयाम रहा।

और इसी दस साल में उन्नीस लड़ाइयाँ भी आप को काफिरों से लड़नी पड़ीं। मोअजेज़ाते खवारिक जो आपसे सादिर हुए उनका शुमार नहीं। इस मौजू पर मुस्तकिल रिसाले व किताबें तस्नीफ की गयी हैं। रहती दुनिया तक कुरआन सब से बड़ा एजाज़ है जो यह चैलेन्ज कराया है।

“इन कुनतुम फी रैबिम् मिम्मा नज़्ज़लना अला अब्देना फातू बेसूरतिम् मिम् मिसलेही।” ऐलाने नबूव्बत के बारहवें साल जबकि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्र शरीफ इक्यावन साल नौ माह की थी तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मेराज अता की गयी। आसमानों पर तलब किया गया। जन्नत व दोजख की सैर करायी गयी। आलमे मलकूत के अजायबात और आयाते कुबरा का मुशाहदा करा दिया गया।हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और शैतान। Hazrat Musa alaihissalam aur Shaitan.

जब उम्र शरीफ तिरसठ साल की हुयी और हिजरत का ग्यारहवाँ साल शुरू हुआ तो बारहवीं रबीउल अव्वल को दोशम्बा के दिन चाश्त के वक्त चौदह दिन अलील रहकर इस आलम से रेहलत फरमायी और रफीके आला के जवारे इज़्ज़त में सकूनत अख्तियार की। जब रूह ने जिस्म अतहर से आला इल्लीयीन की – तरफ परवाज़ की तो यह अल्फाज जबान पर जारी थे।

“अल्ला हुम्मा फीररफीकिल आला।” हज़रत अली रजिअल्लाहो अन्हो ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को गुस्ल दिया। हज़रत अब्बास व फज़ल बिन अब्बास हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पहलू बदलने में हज़रत अली की मदद करते थे। और कसम बिन अब्बास और ओसामा और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के गुलाम शोकरान पानी डाल रहे थे। हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कफ़न में तीन सूती कपड़े समूल के बने हुए थे। जिनमें कमीज़ व अमामा न था।

शब चहार शंबा में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को दफन किया गया ताख़ीर की – वजह कई उमूर थे चुनान्चे मोहाजिरीन व अन्सार मे बैअत के बारे में इख्तिलाफ पैदा हो गया। इस इख्तिलाफ का फैसला होते ही इस अम्र में इख्तिलाफ अदा हुआ कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को कहाँ दफन किया जाय।

कब्र शरीफ में लहद चाहिए या शिक। आखिर कार हज़रत अबूतलहा अन्सारी रजियल्लाहु अन्हु ने लहद खोदी। नमाज़ जनाजा हुजरा शरीफ के अन्दर ही बगैर इमामत अलग अलग पढ़ी गयी। अखीर में हज़रत सिद्दीक अकबर रजिअल्लाहो अन्हो ने जनाज़ा मोकद्दस पर नमाज़ पढ़ी फिर किसी ने न पढ़ी। कि बाद सलात वली फिर एआदा नमाज जनाजा का अख्तियार नहीं।

मबसूत इमाम शमशुल आएमा सरखसी में है और बहीकी और तिबरानी मोअज्जम औसत में हज़रत अब्दुल्ला बिन मसऊद रजिअल्लाहो अन्हो से रावी है कि रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया : जब मेरे गुस्ल व कफन से फारिग हो मुझे तख़्त पर रख कर बाहर चले आओ सब से पहले जिब्रईल मुझपर सलात करेंगे फिर मीकाईल फिर इसराफील फिर मलेकुल मौत अपने सारे लश्करों के साथ फिर गिरोह गिरोह मेरे पास हाजिर हो कर मुझपर दुरूद व सलाम अर्ज़ करते जाओ।

आखिरी वसीयत जो आपने फरमायी थी वह यह थी कि नमाज़ की हिफाजत करना और अपने लौंडी और गुलामों के साथ नेक सलूक करना। मुश्रिकीन को जजीर-ए-अरब से निकाल देना। मलूक व उमरा के एलची जो तुम्हारे पास आया करें उनको जाएजा व ईनाम दिया करना।

हज़रत आयशा रजिअल्लाहो अन्हा के हुजरे में जिस जगह आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफात हुई थी वहीं आपकी कब्र शरीफ बनायी गयी।

अल्लाह रब्बुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक़ आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे ज़िन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।

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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।

खुदा हाफिज…

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