
किसी के यहाँ मेहमान जाएँ तो हैसियत के मुताबिक़ मेज़बान या मेजबान के बच्चों के लिए कुछ तोहफे तहाइफ़ लेते जाएँ और तोहफे में मेजबान के जौक़ और पसन्द पर ध्यान दीजिए। तोहफ़ों के लेन-देन से मुहब्बत और ताल्लुकात के जज्बे बढ़ते हैं और तोहफा देनेवाले के लिए दिल में गुंजाइश पैदा होती है।
जिसके यहाँ भी मेहमान बनकर जाएँ, कोशिश करें कि तीन दिन से ज्यादा न ठहरें अलावा इसके कि कोई ख़ास हालात पैदा हो जाएँ और मेज़बान आग्रह करे ।
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इरशाद है-“मेहमान के लिए जायज़ नहीं कि वह मेज़बान के यहाँ इतना ठहरे कि उसको परेशानी में डाल दे।”(अल-अदबुल मुफ़रद)
सही मुस्लिम में है- “मुसलमान के लिए जायज़ नहीं कि वह अपने भाई के यहाँ इतना ठहरे कि उसको गुनाहगार कर दे।” लोगों ने कहा, “ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम! गुनाहगार कैसे करेगा ?”
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “इस तरह कि वह उसके पास इतना ठहरे कि मेज़बान के पास मेज़बानी के लिए कुछ न रहे ।”
हमेशा दूसरों के ही मेहमान न बनिए, दूसरों को भी अपने यहाँ आने की दावत दीजिए और दिल खोलकर मेहमान नवाजी कीजिए ।
मेहमानी में जाएँ तो मौसम के लिहाज़ से जरूरी सामान और बिस्तर वगैरह लेकर जाएँ । जाड़े में ख़ास तौर पर बगैर बिस्तर के हरगिज़ न जाइए वरना मेज़बान को तकलीफ़ होगी और यह हरगिज़ मुनासिब नहीं कि मेहमान मेजबान के लिए वबाले जान बन जाए ।
मेजबान के कामों और जिम्मेदारियों का भी खयाल रखिए और इसका एहतिमाम कीजिए कि आपकी वजह से मेज़बान के कामों पर असर न पड़े और ज़िम्मेदारियों में खलल न पड़े ।
मेज़बान से तरह-तरह की माँगें न कीजिए। वह आपके मेहमान नवाजी के लिए और आपका दिल रखने के लिए खुद जो एहतिमाम करे उसी पर मेज़बान का शुक्रिया अदा कीजिए और उसको किसी बेजा मशक़्क़त में न डालिए ।

अगर आप मेज़बान की औरतों के लिए ‘नामहरम’ हैं तो मेजबान के न रहने पर बेवजह उनसे बातें न कीजिए, न उनकी आपस की बातों पर कान लगाइए और इस ढंग से रहिए कि आपकी बातों और तौर-तरीक़ों से उन्हें कोई परेशानी भी न हो और किसी वक़्त बेपरदगी भी न होने पाए ।
और अगर किसी वजह से आप मेज़बान के साथ न खाना चाहें या रोजे से हों तो बड़े अच्छे अन्दाज में बता दें, और मेज़बान के लिए खैर व बरकत की दुआ माँगें ।
इस्लाम की रौशनी में मेहमान नवाज़ी के आदाब।
जब हज़रत इबराहीम अलैहिस्सलाम ने आनेवाले प्यारे मेहमानों के सामने तकल्लुफ़ भरा खाना रखा और वो हाथ खींचे ही रहे तो हजरत इबराहीम अलैहिस्सलाम ने दरखास्त की, “आप लोग खाते क्यों नहीं ?” जवाब में फ़रिश्तों ने हज़रत इबराहीम अलैहिस्सलाम को तसल्ली देते हुए कहा- “आप नागवार न महसूस फ़रमाएँ । असल में हम खा नहीं सकते, हम तो सिर्फ़ आपको एक लायक़ बेटे के पैदा होने की खुशखबरी देने आए हैं।”
जब किसी के यहाँ दावत में जाएँ तो खाने-पीने के बाद मेज़बान के लिए बेहतरीन रोज़ी, खैर व बरकत और मग़फ़िरत व रहमत की दुआ कीजिए। हजरत अबुल हैसम बिन तैहान रजियल्लाहु तआला अन्हु ने नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम और आपके सहाबा की दावत की । जब आप लोग खाने से फ़ारिग़ हुए तो नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, “अपने भाई का बदला दो ।” सहाबा ने पूछा, “बदला क्या दें ? ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम!” फ़रमाया – “जब आदमी अपने भाई के यहाँ जाए और वहाँ खाए पिए तो उसके हक़ में खैर व बरकत की दुआ करे। यह उसका बदला है।” (अबू दाऊद)
नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम एक बार हजरत साद बिन उबादा रजियल्लाहु तआला अन्हु के यहाँ तशरीफ़ ले गए । हज़रत साद ने रोटी और जैतून पेश किया। आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने खाया और यह दुआ फ़रमाई- अफ़-त-र इन्दकुमुस्साइमू-न व अ-क-ल तआ-म-कुमुल अब-रारु व सल्लत अलैकुमुल मलाइकह ।
“तुम्हारे यहाँ रोजेदार रोज़ा इफ़्तार करें, नेक लोग तुम्हारा खाना खाएँ और फ़रिश्ते तुम्हारे लिए रहमत व मग़फ़िरत की दुआ करें ।” (अबू दाऊद)
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
खुदा हाफिज़…..