माँ-बाप की दुआओं के असरात।Maa baap ki duaon ke asrat.

Maa baap ki duao ke asrat

आम तौर पर लोग समझ लेते हैं कि माँ की गोद बच्चे की पहली दर्सगाह होती है । यह बात शरीअत ने नहीं बताई बल्कि यह बताया कि माँ की गोद में आने से पहले ही बच्चे पर असरात आने शुरू हो जाते हैं।

चुनाँचे बच्चे की पैदाईश से पहले ही माँ-बाप की दुआओं का असर होता है। माँ-बाप की नेकियों का असर होता है। यह असर तो पहले से ही शुरू हो जाता है। सुनिये इस्लाम ने पहले से ही निशानदेही कर दी।  मां-बाप की नाफरमानी का अंजाम।

चुनाँचे हज़रत नोमान एक बुजुर्ग गुज़रे हैं। उन्होंने अपने बेटे साबित को एक बार हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु की खिदमत में हाज़िर किया और कहा कि ऐ अमीरुल मोमिनीन ! मेरे बेटे के औलाद नहीं आप इसके लिये दुआ फरमा दें।

हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने दुआ फरमा दी। साबित को बेटा मिला उसने अपने वालिद के नाम पर उसका नाम नोमान रखा। चुनाँचे यह बच्चा नोमान बिन साबित बिन नोमान जब बड़ा हुआ तो यह अपने वक्त का इमामे आज़म अबू हनीफा बना ।

मालूम हुआ कि माँ-बाप ने दुआयें करवाईं, अल्लाह वाले के हाथ उठ गये, अल्लाह ने उनको हीरे-मोती जैसा बेटा अता फरमा दिया। तो यह उस वक़्त से असरात शुरू हो जाते हैं।Maa baap ki duaon ke asrat

चुनाँचे एक बुजुर्ग गुज़रे हैं पहली सदी जब मुकम्मल हुई तो उससे तकरीबन पन्द्रह बीस साल पहले की बात है। जिनका नाम अब्दुल अज़ीज़ था। वह एक बुजुर्ग के पास जाते थे जिनका नाम अबू हाज़िम था। बड़े अल्लाह वाले थे।

यह उनकी ख़िदमत में आते जाते, नियाज़मन्दी से बैठते । चुनाँचे अबू हाज़िम ने एक मर्तबा खुश होकर अपनी रोटी का एक खुश्क टुक्डा बचा हुआ उनको भी दे दिया कि यह आप ले लें। उन्होंने उसको तबर्रुक बरकत की चीज़ समझा कि यह अल्लाह वाले का बचा हुआ खाना है I एक मां को गुनहगार बेटे की वसीयत।

वैसे ही मोमिन के खाने में शिफा होती है। फिर एक नेक बन्दे ने खाना दिया तोहफा दिया यह तो तबर्रुक बरकत की चीज़ था । हज़रत अब्दुल अज़ीज़ उस टुक्डे को लेकर अपने घर आये।

अब सोचने लगे कि मैं क्या करूँ। बीवी से भी मश्विरा किया सोचा कि इसको इस तरह से इस्तेमाल करना चाहिये कि इसकी बरकतें हासिल कर सकें। चुनाँचे उन्होंने नीयत कर ली कि मैं इसके तीन टुकड़े करता हूँ रोज़ाना रोज़ा रखूँगा और मैं रोज़ाना इस रोटी के टुकड़े से रोज़ा खोलूँगा।Maa baap ki duaon ke asrat

यह इसका बेहतरीन इस्तेमाल है। दिल के अन्दर अदब था, अन्दर नेकी थी, चुनाँचे उन्होंने तीन रोज़े रखे, पहला रोज़ा पहले टुकड़े से इफ़्तार किया और दूसरा रोज़ा दूसरे टुकड़े से इफ़्तार किया और तीसरा रोज़ा तीसरे टुकड़े से इफ़्तार किया। औरत के हुकूक।

अल्लाह की शान जब तीसरा रोज़ा मुकम्मल हुआ तो रात को मियाँ- बीवी आपस में इकट्ठे हुए। अल्लाह ने उस रात में उनको बरकत अता फरमा दी और उनके यहाँ एक बेटा हुआ जिसका नाम उन्होंने उमर रखा। यह उमर जब जवान हुआ तो अल्लाह ने इसको उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ बना दिया। तो ये असरात होते हैं।

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क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।

खुदा हाफिज…

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