22/07/2025
क्या मैं मुनाफ़िक़ हूँ 20250603 180327 0000

क्या मैं मुनाफ़िक़ हूँ? Kya main munafiq hun.

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Kya main munafiq hun.
Kya main munafiq hun.

हज़रत हंज़ला रजियल्लाहु तआला अन्हु कहते हैं कि एक मर्तबा हम लोग हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की मज्लिस में थे। हुज़ूरे अक्दस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने वाज़ फ़रमाया, जिससे कुलूब’ नर्म हो गये और आंखों से आंसू बहने लगे और अपनी हक़ीक़त हमें ज़ाहिर हो गई।

हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की मज्लिस से उठकर मैं घर आया, और बीवी-बच्चे पास आ गये और कुछ दुनिया का जिक्र तज्किरा शुरू हो गया और बच्चों के साथ हंसना-बोलना, बीवी के साथ मज़ाक शुरू हो गया और वह हालत जाती रही, जो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की मज्लिस में थी। दफ़अतन’ ख्याल आया कि मैं पहले से किस हाल में था, अब क्या हो गया।

मैंने अपने दिल में कहा कि तू तो मुनाफ़िक हो गया कि ज़ाहिर में हुज़ूरे अक्दस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने तो वह हाल था और अब घर में आकर यह हालत हो गई। मैं इस पर अफ़सोस और रंज करता हुआ और यह कहता हुआ घर से निकला कि हंज़ला तो मुनाफ़िक़ हो गया। सामने से हज़रत अबूबक्र सिद्दीक रजियल्लाहु तआला अन्हु तशरीफ़ ला रहे थे। मैंने उनसे अर्ज़ किया कि हज़ला तो मुनाफ़िक हो गया।

वह यह सुन कर फ़रमाने लगे कि सुब्हानल्लाह। क्या कह रहे हो, हरगिज़ नहीं। मैंने सूरत बयान की कि हम लोग जब हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम कि ख़िदमत में होते हैं और हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम दोज़ख और जन्नत का जिक्र फरमाते हैं तो हम लोग ऐसे हो जाते हैं गोया वह दोनों हमारे सामने हैं और जब हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के पास से आ जाते हैं, तो बीवी-बच्चों, जायदाद वगैरह के धंधों में फंस कर उसको भूल जाते हैं।

हज़रत अबूबक्र सिद्दीक रजियल्लाहु तआला अन्हु ने फ़रमाया कि यह बात तो हम को भी पेश आती है, इस लिए दोनों हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में हाजिर हुए और जा कर हंज़ला ने अर्ज़ किया कि या रसूलल्लाह ! मैं तो मुनाफ़िक हो गया। हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, क्या बात हुई! हंज़ला रजियल्लाहु तआला अन्हु ने अर्ज़ किया कि जब हम लोग आपकी खिदमत में हाजिर होते हैं और आप जन्नत दोजख का ज़िक्र फ़रमाते हैं, तब तो हम ऐसे हो जाते हैं कि गोया वह हमारे सामने हैं,

लेकिन जब खिदमते अक्दस से चले जाते है तो जाकर बीवी-बच्चों और घर-बाहर के धंधों में लग कर भूल जाते हैं। हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फ़रमाया कि उस ज़ात की क़सम ! जिसके क़ब्ज़े में मेरी जान है, अगर तुम्हारा हर वक़्त वही हाल रहे जैसा मेरे सामने होता है, तो फ़रिश्ते तुम्हारे से बिस्तरों पर और रास्तों में मुसाफ़ा करने लगें, लेकिन हंज़ला ! बात यह है कि गाहे-गाहे-गाहे’।

यानी आदमी के साथ इन्सानी ज़रूरतें भी लगी हुई हैं जिन को पूरा करना भी ज़रूरी है। खाना-पीना, बीवी-बच्चे और उनकी खैर खबर लेना यह भी ज़रूरी हैं। इसलिए इस किस्म के हालात कभी-कभी हासिल होते हैं। न की हर वक़्त यह हासिल होते हैं, न इसकी उम्मीद रखनी चाहिए। यह फ़रिश्तों की शान है कि उनको कोई दूसरा काम ही नहीं।

न बीवी-बच्चे, न फ़िक्रे मआश, न दुनियावी किस्से और इन्सान के साथ चूंकि बशरी जरूरियात लगी हुई हैं इसलिए वह हर वक़्त एक सी हालत पर नहीं रह सकता लेकिन गौर की बात यह है कि सहाबा किराम रजियल्लाहु अन्हुम को अपने दीन की कितनी फ़िक्र थी कि ज़रा सी बात से हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के सामने हमारी जो हालत होती है, वह बाद में नहीं रहती, उससे अपने मुनाफ़िक़ होने का उन को बहुत फिक्र हो गया।

इश्क अस्त व हज़ार बदगुमानी। इश्क जिससे होता है, उसके मुताल्लिक हज़ार तरह की बदगुमानी और फ़िक्र हो जाती हैं। बेटे से मुहब्बत हो और वह कहीं सफ़र में चला जाए फिर देखिए हर वक़्त खैरियत की खबर का फ़िक्र रहता है और जो यह भी मालूम हो जाए कि वहां ताऊन है, या फ़साद हो गया, फिर खुदा जाने कितने, खुतूत और तार पहुंचेंगे।

अल्लाह से एक दिली दुआ…

ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।

प्यारे भाइयों और बहनों :-

अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।

क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
खुदा हाफिज़…..

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