ख़्वाब के मसाएल :-
जो शख़्स सोने का इरादा करे तो इसके लिए मुसतहब है कि पानी के बर्तन ढक दे, मश्कीज़ा का मुंह बंद कर दे, चिराग गुल कर दे, अगर कोई बू दार चीज़ खाई हो तो मुंह साफ करे यानी कुल्ली करे ताकि मूज़ी जानवर इज़ा न पहुंचाए।
बिस्मिल्लाह पढ़ कर यह दुआ जो अबू दाऊद ने अपनी असनाद के साथ हज़रत सईद बिन उबैदा रज़ियल्लाहो अन्हो से रिवायत की है कि हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने हज़रत बराअ बिन आजिब रज़ियल्लाहो अन्हो से फरमाया है कि ख़्वाबगाह में जाओ तो पहले नमाज़ की वुजु की तरह वुजु कर लो फिर दायें करवट से लेट कर यह पढ़ो और अपनी हर बात के आख़िर में इसको पढ़ो।
यानि इसके पढ़ने के बाद कोई बात न करो इलाही! मैं अपने आपको तेरा फरमा बरदार बनाता हूं और अपने काम तुझे सोंपता हूं तुझे अपना, सहारा करार देता हूं और तुझसे उम्मीद करता हूं और तुझसे डरता हूं तुझसे भाग कर सिवाये तेरे न बचने का कोई मकाम है और न पनाह लेने का। जो किताब तूने नाज़िल फरमाई उस पर मेरा यकीन है और जो नबी तूने भेजा है उस पर मेरा ईमान है।
हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया अगर इस दुआ को पढ़ने के बाद तुम सोते में मर जाओगे तो इस्लाम पर मरोगे। हज़रत बराअ रज़ियल्लाहो अन्हो फरमाते हैं कि मैंने इस दुआ को याद करना शुरु किया मगर नबी यकल्लज़ी अरसलता की जगह बे रसूलेकल्लज़ी अरसलता पढ़ा हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया नहीं व नबी यकल्लजी अरसलता पढ़ो।
सोने को लेटे तो सीधी करवट पर किबला रुख सोने को इस तरह लेटे जैसे कब्र में मुर्दे को लिटाते हैं। हदीस में इसी तरह आया है, अगर आसमान और जमीन की बादशाहत अल्लाह तआला के एकतदार पर गौर करने के लिए चित लेटे यानी आसमान की तरफ मुंह करके तो कुछ मुज़ायका नहीं! औंधा लेट कर सोना मकरुह है।
अगर सोते में डरावने ख़्वाब नज़र आयें तो ख़्वाब की बुरे असरात से अल्लाह से पनाह मांगे और बाईं तरफ तीन बार थूक करके ये दुआ पढ़ेः तर्जमाः इलाही! इस ख्वाब का नतीजा मेरे लिए अच्छा कर और इसकी शर से मुझे बचा। फिर आयतल कुर्सी, सुरह इखलास कुल होवल्लाह सूरह फलक और सूरह अन्नास पढ़े। बशर्ते कि नापाक न हो।Khwab libas aur ghar se bahar nikalne ki fazilat.
अपना ख्वाब सिर्फ नेक शख्स या दानिशमन्द दोस्त से कहे जो ख़्वाब की ताबीर अच्छी तरह जानते हो किसी दूसरे से ब्यान न करे, अगर ख़्वाब शैतानी ख्यालात देखे हों तो उन्हें बयान करने की मुतलक ज़रुरत नहीं। शैतानी किसी सूरत का जामा पहन कर ख़्वाब में दिखाई देता है। इस्लामी अख्लाक व तहज़ीब की फज़िलत।
हज़रत अबू कतादा रज़ियल्लाहो अन्हो का बयान है कि मैंने खुद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम को फरमाते हुए सुना है कि सच्चा ख़्वाब अल्लाह की तरफ से होता है और बेहूदा ख़्वाब शैतान की तरफ से। पस अगर कोई शख़्स ना पसन्दीदा और बेहूदा ख़्वाब देखे तो बेदार होने पर बाईं तरफ तीन मरतबा थूके और अल्लाह से उसकी बुराई की पनाह मांगे। ऐसा शख़्स बुरे ख्वाब से महफूज रहेगा।
मोमिन का ख्वाब :-
हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहो अन्हो से मरवी है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का यह मामूल था कि फज़र की नमाज़ से फरागत के बाद हाज़िरीन की तरफ मुतवज्जह होकर फरमाते थे क्या आज रात तुम में से किसी ने कोई ख़्वाब देखा है? फिर आप फरमाते कि मेरे बाद सिवाये सच्चे ख़्वाब के नुबूव्वत का कोई और हिस्सा बाकी नहीं रहेगा।
हज़रत उबादा बिन सामत रज़ियल्लाहो अन्हो की रिवायत है ‘हुजूरे आला ने इरशाद फरमाया है कि मोमिन का ख़्वाब नुबूव्वत का छियालिसवां हिस्सा है।
लिबास :-
लिबास पांच तरह का होता है.
(1) हर मोकल्लफ (बालिग साहबे फहम) के लिए हराम (2) बाज़ के लिए हलाल और बाज़ के लिए हराम,
(3) मकरुह,
(4) मुबाह,
(5) वह जिसके इस्तेमात की माफी है। यानी इजाज़त है।
(1) छीना हुआ लिबास हर मोकल्लफ (बालिग और फहीम) के लिए हराम है ।
(2) रेशमी लिबास औरतों के लिए हलाल है और बालिग मर्दों के लिए हराम है। नाबालिग लड़कों को रेशमी लिबास पहनाने के जवाज़ व अदमे जवाज़ की दो रिवायतें हैं। रेशमी लिबास पहनने के जवाज़ व जिहाद में मुजाहिदीन के अदम जवाज़ की भी दो मुतज़ाद रिवायतें हैं। उनमें रिवायत में इस लिबास को मुबाह लिखा है।
(3) कपड़ा इतना लम्बा पहनना कि गुरुर व तबख्तुर की हद में दाखिल हो जाए मकरुह है।
(4) इसी तरह वह लिबास भी मकरुह है जो रेशम और सूत से मिलकर बना हो लेकिन रेशम और सूत की तादाद मालूम न हो कि कितनी है यानी निस्फ निस्फ है या कम व बेश है।
(5) वह लिबास जिसकी माफी (इजाज़त) है लिबास है जो लोगों में मारूफ हो और मुस्तअमल हो। लिहाज़ा ऐसा लिबास पहने जैसा उमूमन अहले शहर पहनते हैं ताकि लिबास से बेगानगी का इज़हार न हो। रिवाज से हट कर लिबास पहनने वाले पर लोग उमूमन अंगुश्त नुमाई करते हैं और गीबत करते हैं। इस तरह यह लिबास पहनने वाले के लिए भी तकलीफ का बाइस बनता है और दूसरों के लिए गीबत का सबब ।Khwab libas aur ghar se bahar nikalne ki fazilat.
लिबास का अक्साम :-
लिबास की दो किस्में हैं। एक लिबास वाजिब है और दूसरा मुसतहब। फिर वाजिब की भी दो किस्में हैं। एक हक्कुल्लाह यानी वह जो अल्लाह तआला के हक़ की तरफ राजेअ हो। दूसरा हक्कुन्नास यानी वह जो सिर्फ इन्सान के हक की तरफ राजेअ हो।
(1) हक्कुल्लाह यह है कि अपनी बरहंगी को लोगों से इस तरह छुपाये जैसा कि छुपाने का हुक्म है।
(2) हक्कुन्नास यह है कि गर्मी सर्दी अपनी हिफाज़त के लिए इन्सान लिबास पहने। यह वाजिब है ऐसे लिबास को तर्क करना हराम है क्योंकि उसके तर्क में जान का खतरा और ऐसा करना हराम है। मुसतहब लिबास की भी दो किस्में हैं। एक हक्कुल्लाह और दूसरी हक्कुल्नास । अव्वलुज्जिक्र वह लिबास है जो चादर की तरह नमाज़ की जमाअतों, ईदैन के इजतमाआत और जुमों में लोग पहनते हैं, आदमी को चाहिए कि ऐसे इजतमाआत में खूबसूरत कपड़ों से अपने कंधों को बरहना न करे। दूसरी किस्म का लिबास यानी हक्कुन्नास यह है कि उमदा और नफीस कपड़े जो मुबाह हैं वह पहने ताकि आदमी की शराफ्ते नफ़्स में कमी न आए लेकिन ऐसे कपड़े पहन कर दूसरे लोगों को हकीर न जाने।
अमामा किस तरह बान्धे :-
अमामा यानी पगड़ी बांधते वक्त उसका एक सिरा दांतों में दबाने वाले फिर सर पर लपेटे यह तरीका मुसतहब है, लिबास की हर वह वज़अ मकरूह है जो अहले अरब की वजअ के ख़िलाफ और अजमियों से मुशाबेह हो।
तहबन्द :-
तहबन्द का दामन बहुत ज़्यादा लम्बा न रखे। हदीस शरीफ में आया है। हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया मुसलमान का तहबन्द (एज़ार) आधी पन्डली तक होता है या टखनों से नीचे हो दोज़ख में जलेगा। यानी जिस कद्र जामा टखनों से नीचे होगा वह दोज़ख़ मे जलेगा। जो एज़ार (तहबन्द) को घसीटता हुआ चलता है अल्लाह तआला उसकी तरफ रहमत की नज़र नहीं फरमाएगा। ये हदीस अबू दाउद ने अपनी असनाद के साथ हज़रत अबू सईद खुदरी रज़ियल्लाहो अन्हो से नक़्ल की है।
नमाज़ पढ़ते वक़्त चादर को इतना तंग न पहने कि हाथ बाहर निकालने में दिक्कत हो ऐसा करना मकरूह है। सदल भी मकरुह है यानी चादर के वस्ती हिस्से को सर पर रखना और इधर उधर के दोनों किनारों को पुश्त पर लटका देना। यह यहुदियों का लिबास है।
अगर अन्दुरुनी कपड़े न पहनते हो और सिर्फ तहबन्द बांधे हो तो एहतबा भी नाजाएज है। एहतबा की सूरत यह है कि दोनों जानू खड़े कर के सीने की जानिब समेट लिए जायें और सुरीन के बल बैठ जाये और चादर को पीछे से घुमा कर सामने लाकर घुटनों को घेरे में लेकर बांधा जाये ताकि कमर का सहारा हो जाए, इस सूरत में शर्मगाह के खुल जाने का ख़तरा होता है अगर कोई कंपड़ा अन्दर पहने हो तो एहतबा जायज़ है।
नमाज़ में मुंह बिल्कुल लपेट लेना चाहिए और नाक ढांक लेना मकरुह है। इसको तलतिम कहते हैं मर्दों के लिए औरतों की वज़अ इख़्तियार करना और औरतों के लिए मर्दों के मुशाबेह लिबास नहीं पहनना चाहिए। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने ऐसा करने वाले मर्द और औरत पर लानत भेजी है और अज़ाब के वईद सुनाई है।
नमाज में अक्आ भी मकरुह है, अकआ की दो सूरतें हैं। एक यह कि पांव के तलवे और ऐड़ियां उपर की तरफ और तलवे ज़मीन से लगे हों और आदमी ऐड़ियों पर बैठा हो। दूसरी सूरत यह है कि दोनों सुरीनों की नोकों पर बैठा हो और पांव कुत्ते की तरह आगे की तरफ फैले हो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया है कि यह कुत्ते की बैठक है और इस तरह बैठना मना है।
ऐसा लिबास पहनना जिससे बदन नज़र आता हो मकरूह है। अगर कसदन ऐसा लिबास पहनेगा जिससे बदन का ममनूआ हिस्सा चमकता हो तो ऐसा शख़्स फासिक है, ऐसा लिबास पहन कर नमाज भी दुरुस्त नहीं।
पायजामा (सराविल)
पायजामा की शरीयत में तारीफ की गई है, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने पायजामा को निस्फ लिबास करार दिया है और इसे मर्दों के लिए मौजूं बताया है। पायजामा के पांएचों की मोरियां ज्यादा कुशादा रखना मकरुह है। तंग मोरियां ज़्यादा पसन्द और बेहतर है। इससे बेपर्दगी नहीं होती। सतरे औरत अच्छी तरह होता है।Khwab libas aur ghar se bahar nikalne ki fazilat.
एक रिवायत में आया है किं हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि इलाही पायजामा पहनने वाली औरतों को बख़्श दे, हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने यह दुआ उस वक़्त फरमाई जब एक औरत जो पांयचे उठाए हुए थी। बलन्दी पर चढ़ते हुए गिर पड़ी। हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने उस की तरफ से मुंह फेर लिया था। उस वक़्त किसी ने अर्ज किया कि ये औरत पायजामे पहने है मुन्दर्जा जैल बाला दुआ फरमाई। बाज़ हदीसो में आया है कि हुजूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने ऐसे ढीले पायजामे कोः जिन के पांव (ऊपरी हिस्सा) को छुपा दें ना पसन्द है। कुशादा पांएचों वालों ढीले पायजामे क़ो मुखरफज कहते हैं। चुनांचे मस्ल में आया है कि ऐशुन मुखरजुन (फराख़ हाली की ज़िन्दगी।। सबसे बेहतर वह लिबास है जो पर्दा पोश हो।
सफेद कपड़े :-
हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया है कि “तुम्हारे सबसे अच्छे कपडे सफेद हैं।” एक रिवायत में आया है कि आंहज़रत सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि अपने बच्चों को सफेद कपड़े पहनाओ और मुर्दों को भी सफेद कफन दो। हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहो अन्हो की रिवायत है कि हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया “सफेद रंग के कपड़े पहनो” तुम्हारे लिए यह बेहतरीन लिबास है, इन्ही मुर्दों को कफन दो, बेहतरीन सुर्मा अशमद है, बीनाई को तेज़ करता है और पलकों के बाल लगाता है।
घर से निकलते वक्त की दुआ:-
घर से बाहर निकलते वक्त उन कलमात को पढ़े जो हज़रत उम्मे सलमा शअबी की मरवी हदीस में है कि उन्होंने फरमाया जब भी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम मेरे घर से बाहर निकले हमेशा आसमान की तरफ रुए मुबारक फरमा कर यह अल्फाज़ ज़बाने मुबारक से अदा फरमाये।
तर्जमाः- इलाही! मैं तेरी पनाह चाहता हूं उस बात से कि मैं गुमराह हो जाऊं या मुझे गुमराह कर दिया जाये, मैं फिसल जाऊ या मुझे फिसला दिया जाए, मैं खुद जुल्म करूं या मुझ पर जुल्म किया जाये, मैं खुद नादान हूं या नादान बनाया जाऊं। और फिर कुल होवल्लाह और सूरह फलक और सूरह अन्नास (मअउज़ तैन) के साथ सुबह व शाम ये दुआ पढ़े। इश्क़ व मुहब्बत के चंद बिखरे मोती।
तर्जमाः- इलाही! हम तेरे साथ सुबह करते हैं और तेरे साथ शाम करते, तेरे ही फज़्ल से जीते हैं और तेरी ही हुक्म से मरते हैं। सुबह की दुआ में आख़िर में व एलैकन्नशहूर कहे और शाम की दुआ के आख़िर में व एलैकल मसीर का इजाफा करे, इस दुआ के पढ़ने के बाद यह दुआ भी पढ़े।
तर्जमाः- इलाही! आज और आज के बाद जो खैर तू तकसीम करे तू मुझे उन बन्दों के बराबर कर दे जो तेरे नज़दीक बड़े हिस्सा वाले हैं। ख़्वाह वह तेरी तरफ से हिदायत बख्शने वाला नूर हो या तेरी रहमते आम्मा हो या तेरा दिया हुआ रिज़्के वसीअ हो या तेरी तरफ से दफा करदा तकलीफ या माफ किया हुआ गुनाह या दूर की हुई सख्ती या जाएल की हुई मुसीबत या एहसान के तौर पर दी हुई आफियत हो। बहरहाल जो खैर भी हो मुझे उसमें बड़ा हिस्सा पाने वाले बन्दों के साथ अपनी रहमत में शरीक बना दे, तू सब कुछ कर सकता है।
मस्जिद में दाखिल होने की दुआ :-
मस्जिद में दाखिल होना चाहे तो दायां कदम आगे बढ़ाये और पीछे बायां कदम रखे और कहे।
तर्जमाः-बिस्मिल्लाह, अल्लाह की तरफ से सलामती हो, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम पर। इलाही मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम पर रहमत नाज़िल फरमा और उनकी औलाद पर। इलाही! मेरे गुनाह बख़्श दे और मेरे लिए अपनी रहमत के दरवाज़े खोल दे।
मस्जिद में अगर कोई शख़्स मौजूद हो तो उसको सलामुन अलैक करे और अगर मौजूद न हो तो कहे अस्सलामो अलैना मिन रब्बेना अज़्ज़ व जल्ल (अल्लाह बुजुर्ग बरतर की तरफ से हम पर सलामती हो।) मस्जिद में दाखिल हो जाए तो दो रिकअतें पढ़े बगैर न बैठे, इस के बाद दिल चाहे तो नफ़्ल पढ़े या अल्लाह के ज़िक्र में बैठ कर मशगूल रहे या खामोश बैठ जाए। दुनिया कि किसी बात का तज़किरा न करे बात करे तो बक्द्रे जरुरत करे ज़्यादा न करे।
नमाज़ का वक्त शुरु हो जाए तो सुन्नतें पढ़ कर जमाअत के साथ फर्ज अदा करे। नमाज से फारिग हो कर जब मस्जिद से बाहर निकलना चाहे तो बायां पांव आगे रखे और दायां पीछे और कहे।
तर्जमाः-बिस्मिल्लाह। अल्लाह की तरफ से सलामती हो रसूलुल्लाह पर, इलाही मोहम्मद और आले मोहम्मद पर अपनी रहमत नाज़िल फरमा, मेरे गुनाह बख्श दे और मेरे लिए अपने फ़ज़ल के दरवाजे खोल दे।
नमाज़ के बाद 33 बार सुब्हानल्लाह 33 बार अल्हम्दो लिल्लाह और 34 बार अल्लाहो अकबर पढ़ना सुन्नत है। जब सौ की तादाद मुकम्मल हो जाए तो खातमें पर कहे।
तर्जमाः-अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं, उसका कोई शरीक नहीं, उसी की हुकूमत है, उसी के लिए हर तारीफ जेबा है वही जिन्दा करता है वही मारता वह हमेशा हमेशा के लिए ज़िन्दा है मरेगा नहीं वह अज़मत व बुजुर्गी वाला है। बेहतरी और भलाई उसी के हाथ में है और वह हर शय पर कुदरत रखने वाला है।
हर वक़्त बा वुजू रहना मुसतहब है। हज़रत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहो अन्हो से मरवी है हदीस में आया है, की रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया है कि अपनी उम्र में हर वक्त बा तहारत रहो। जितना हो सके रात और दिन में नमाज़ पढ़ते रहो, निगहबान फरिश्ते तुम से मोहब्बत रखेंगे। चाश्त की नमाज़ पढ़ा करो। क्योंकि यह नमाज़ अल्लाह की तरफ रुजूअ करने वालों की है।Khwab libas aur ghar se bahar nikalne ki fazilat.
घर में दाखिल हो तो घर वालों को सलाम किया करो, इससे घर की बरकत ज़्यादा होती है। बड़ी उम्र वाले मुसलमान की इज़्ज़त करो और छोटों पर शफकत रखो तो तुम जन्नत में मेरे रफीक बन जाओगे। इस हदीस में बकसरत (अख़लाकी और समाजी) आदाब को जमा फरमा दिया गया है।
अल्लाह रबबुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।
इस बयान को अपने दोस्तों और जानने वालों को शेयर करें। ताकि दूसरों को भी आपकी जात व माल से फायदा हो और यह आपके लिये सदका-ए-जारिया भी हो जाये।
क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।
खुदा हाफिज…