शहरों की रंगीनियाँ इनसान को अपने अंजाम से बेखबर कर देती है। मौत को याद रखने का आसान तरीक़ा यह है कि जनाज़ों के साथ क़ब्रिस्तान जाएँ। टूटी क़ब्रों पर गौर करें कि कैसे-कैसे हसीनों की मिट्टी पलीद हो रही है।
दुनिया की मदहोश कॉलोनी में रहने वाले लोगों को क़ब्रिस्तान की खामोश कॉलोनी में जाकर होश आ जाता है। शहवत की आग ठंडी हो जाती है। तबियत की मस्तियों को सुकून मिल जाता है।
मैय्यत को क़ब्र में दफ़न करने का मंज़र कितना इबरतनाक होता है। जो लोग अपने कपड़ों पर मैल धब्बा पसन्द नहीं करते थे उन्हें मनों मिट्टी के नीचे दबाया जा रहा है। जो महफ़िलों की जीनत बनते थे आज क़ब्र की ज़ीनत बन रहे हैं। जो शमाए महफ़िल बनकर ज़िन्दगी गुज़ारते थे आज इबरत का निशान बने पड़े हैं।
जो औरतों के झुरमुट में ज़िन्दगी गुज़ारते थे आज तन्हाई का शिकार हो चुके हैं। हमारे बाज़ बुजुर्गों ने अपने घर में क़ब्र खोद रखी थी, रोज़ाना उसमें लेटते और अपने नफ़्स को मुखातिब होकर फ़रमाते कि याद रख एक दिन तुम्हें क़ब्र में दफ़न होना है। लिहाज़ा अल्लाह तआला की नाफ़रमानी से बचो।
एक आदमी को हार्ट अटैक हुआ और मौत आ गई। घर के सब लोग एक हफ़्ते के लिए किसी शादी की तक़रीब में शामिल होने के लिए गए हुए थे। यह साहब घर में अकेले थे। उनकी लाश एक हफ़्ता पड़ी रही। जब घरवाले वापस आए तो पूरा घर सड़ाधं और बदबू से भरा हुआ था। कोई अन्दर दाखिल होने के लिए तैयार न था।
एक साहब ने नाक पर कपड़ा लपेटा। अन्दर दाखिल होकर देखा कि उनके जिस्म में कीड़े पड़ चुके थे। दोनों आँखों के ढेले निकलकर गालों पर आ गए थे। दोनों होंठ जिस्म से अलग हो चुके थे। मुर्दा बकरी की तरह दांत नज़र आ रहे थे। पेट में गढ़ा पड़ चुका था जो कीड़ों से भरा हुआ था। नाक से पानी बहकर कानों तक फैल गया था।
यह देखकर उनके ज़हन पर मंज़र ऐसा नक़्शा हुआ कि कई महीने तक न उनहें नींद आती थी और न खाना अच्छा लगता था। न ही लोगों की महफ़िलों में बैठने को दिल करता था। वह कहा करते थे कि मैंने दुनिया की हक़ीक़त को आँखों से देख लिया है।
जब नवजवान को शहवत गुनाह पर मजबूर करे तो उसे चाहिए कि क़ब्र के मंज़र को याद करे। नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने इरशाद फ़रमाया : लज़्ज़तों को तोड़ने वाली चीज़ यानी मौत को कसरत से याद करो।
अल्लाह तआला ने हमारे आका व सरदार सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को हमारी तरफ़ से बेहतरीन जज़ा दे जिन्होंने हक़ीक़त की तरफ रहनुमाई फ़रमाई और दुनिया की आरज़ी अय्याशियों को छोड़कर आखिरत की दाईमी ऐश पाने की राह दिखाई।
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अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….
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