Islamic Sawal

                अल्लाह तआला के बारे में अकीदे :-

सवाल :- अल्लह तआला के बारे मे कैसा अक़ीदा रखना चाहिए ?

जवाब :- अल्लाह तआला एक है कोई उसका शरीक नही। आसमान, ज़मीन और सारी मखलूकात का पैदा करने वाला वही है। वही इबादत के लायक़ है दूसरा कोई इबादत के लायक नहीं। वह हमेशा से है और हमेशा रहेगा, उसे कभी मौत नही आयेगी। सबकी ज़िन्दगी उसी के दस्त-ए-कुदरत में है वह जिसे जब चाहे ज़िन्दगी दे और जब चाहे मौत दे। अमीरी ग़रीबी और इज़्ज़त व ज़िल्लत सब उसी के इख्तियार में है, जिसे चाहता है इज़्ज़त देता है और जिसे चाहता है ज़िल्लत देता है। उसका हर काम हिकमत है बन्दों की समझ में आये या न आये। वह हर कमाल व खूबी वाला है। झूट, दगा, खयानत, जुल्म और जहल वगैरह से पाक है। उसके लिये किसी ऐब का मानना कुफ्र है। वह न किसी का बाप है और न किसी का बेटा और न ही उसके लिये कोई बीवी है।

सवाल :- जो शख्स सारे आलम में से किसी चीज़ को खुद से मौजूद माने या उसके हादिस होने में शक करे ऐसा शख़्स कैसा है ?

जवाब :- ऐसा शख़्स काफिर है।

सवाल :- जो शख्स यह कहे कि अल्लाह तआला झूट बोल सकता है ऐसा शख़्स कैसा है ?

जवाब :- ऐसा शख़्स गुमराह और बे दीन है।

सवाल :- जो शख्स अल्लाह तआला के लिये बाप, बेटा या बीवी बताये ऐसा शख़्स कैसा है ?

जवाब :- ऐसा शख्स काफिर है।

                           नबियों के बारे में अकीदे :-

सवाल :- नबी और रसूल किसे कहते हैं ?

जवाब :- नबी उस आदमी को कहते है जिसके पास अल्लाह तआला ने मख़लूक की हिदायत के लिये वही भेजी हो और रसूल उस इन्सान को कहते हैं जो खुदा के यहाँ से बन्दों की हिदायत के लिये उन के पास खुदा का पैग़ाम लाये और अपने साथ कोई आसमानी किताब भी लेकर आये।

सवाल :- नबियों के बारे में कैसा अक़ीदा रखना चाहिये ?

जवाब :- अम्बिया सब मर्द थे न कोई औरत नबी हुई और न कोई जिन्न। नबियों का भेजना अल्लाह तआला पर वाजिब नही उसने अपने करम से लोगों की हिदायत के लिये नबी भेजे। नबी होने के लिये उस पर वही होना ज़रूरी है यह वही चाहे फरिश्ते के ज़रिये हो या बगैर किसी वास्ते और ज़रिये के हो। नबुव्वत ऐसी चीज़ नहीं कि आदमी इबादत या मेहनत के ज़रिये हासिल कर सके बल्कि यह महज़ अल्लाह तआला की देन है जिसे चाहता है अपने करम से देता है। नबी का मासूम होना ज़रूरी है, इसी तरह मासूम होने की खुसूसियत फरिश्तों के लिये भी है, नबियों और फरिश्तों के सिवा कोई मासूम नहीं, कुछ लोग इमामों को नबियों की तरह मासूम समझते हैं यह गुमराही और बद दीनी है, नबियों के मासूम होने का मतलब यह है कि उनकी हिफाज़त के लिये अल्लाह तआला का वादा है इसलिये शरियत का फैसला है कि उन से गुनाह का होना मुहाल और नामुमकिन है। अल्लाह तआला इमामों और बड़े वलियों को भी गुनाहों से बचाता है मगर शरीयत की रौशनी में उन से गुनाह का हो जाना मुहाल नहीं। कोई उम्मती इल्म, इबादत, और नेकियों में नबी से नहीं बढ़ सकता बल्कि बराबर भी नहीं हो सकता। अल्लाह तआला ने नबियों पर बन्दों के लिये जितने अहकाम नाज़िल किये वह सब उन्होंने पहुँचा दिये। नबी अपनी कबरों में उसी तरह ज़िन्दा हैं जैसे दुनिया में थे, अल्लाह तआला का वादा पूरा होने के लिये एक आन को उन्हें मौत आई और फिर ज़िन्दा हो गये। अल्लाह तआला ने अपने नबियों को गैब की बातें बताई हैं, ज़मीन और आसमान का हर हर ज़र्रा हर नबी के नज़र के सामने है यह गैब का इल्म अल्लाह तआला के अता फरमाने से है। अम्बिया अलैहिमुस्सलाम शिर्क, कुफ्र और हर ऐसी चीज़ से पाक और मासूम हैं जिस से मखलूक को नफरत हो जैसे झूट, खयानत और जहालत वगैरह बुरी सिफतें।

सवाल :- जो शख्स यह कहे कि हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का इल्म जानवरों, पागलों और बच्चों की तरह है ऐसा शख्स कैसा है ?

जवाब :- ऐसा शख्स काफ़िर है।

सवाल :- नबियों में सबसे अफज़ल नबी कौन हैं ?

जवाब :- नबियों में सबसे अफज़ल नबी हमारे आका मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हैं, हमारे सरकार के बाद सबसे बड़ा मरतबा हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का है फिर हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का फिर हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम और हज़रत नूह अलैहिस्सलाम का मरतबा है।

            हमारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खूबियाँ :-

सवाल :- हमारे नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की कुछ खूबियाँ बयान कीजिये ?

जवाब :- हमारे नबी हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अलावा दूसरे नबियों को एक खास कौम के लिये भेजा गया और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तमाम मख़लूक, इन्सानों, जिनों, फ़िरिशतों, हैवानात, जमादात सब के लिये भेजे गये। जिस तरह इन्सान के ज़िम्मे हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की इताअत फर्ज़ और ज़रूरी है उसी तरह हर मखलूक पर हुज़ूर की फरमाबरदारी फ़र्ज़ और ज़रूरी है। हुज़ूर सल्लाहु अलैहि वसल्लम खातमुन नबिय्यीन हैं, अल्लाह तआला ने नबुव्वत का सिलसिला हुज़ूर सल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ख़त्म कर दिया, हुज़ूर के ज़माने में या उन के बाद कोई नबी नहीं हो सकता। अल्लाह तआला की तमाम मखलूकात से हुज़ूर सल्लाहु अलैहि वसल्लम अफज़ल हैं, कि औरों को जो कमालात दिये गये हुज़ूर में वह सब इकठ्ठा कर दिये गये और उनके अलावा हुज़ूर को वह कमालात मिले जिन में किसी का हिस्सा नहीं बल्कि औरों को जो कुछ मिला हुज़ूर के तुफैल में बल्कि हुज़ूर के मुबारक हाथों से मिला। हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम जैसा किसी का होना मुहाल है। हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अल्लाह तआला ने “महबूबियते कुबरा” का मरतबा दिया है यहाँ तक कि तमाम मखलूक अल्लाह तआला की रज़ा चाहती है और अल्लाह तआला हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की रज़ा चाहता है। हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अल्लाह का जमाल अपने सर की आँखों से देखा और अल्लाह का कलाम बिना किसी ज़रिये के सुना और ज़मीन व आसमान के हर ज़र्रे को तफसील से देखा। कियामत के दिन शफाअते कुबरा का मरतबा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ खास है। हुज़ूर की फरमाबरदारी अल्लाह तआला की फरमाबरदारी है। हुजूर सय्यदुल अम्बिया हैं यानि अम्बियाए किराम कीदार हैं और तमाम अम्बिया हुज़ूर के उम्मती हैंI

                   मलाइका (फ़रिशतों) का बयान :-

सवाल :- फ़रिशते क्या चीज़ हैं ?

जवाब :- फरिशते नूरी जिस्म वाले हैं, अल्लाह तआला ने उन को यह ताकत दी है कि जो शक्ल चाहें बन जायें, फ़रिशते कभी इन्सान की शक्ल बना लेते हैं कभी कोई दूसरी शक्ल । फ़रिशतें वही करते हैं जो अल्लाह तआला का हुक्म होता है, फ़रिशते अल्लाह तआला के हुक्म के खिलाफ कुछ नही करते न जान बूझ कर, न भूले से और न ग़लती से क्योंकि वह अल्लाह के मासूम बन्दें हैं और हर तरह के सगीरा (छोटे) और कबीरा (बड़े) गुनाहों से पाक हैं। फ़रिशतों के ज़िम्मे अलग अलग काम हैं, कुछ फरिश्ते बन्दों का अच्छा बुरा अमल लिखने पर मुर्कार हैं जिनको किरामन कातिबीन कहा जाता है, कुछ फरिशते कब्र में मुर्दों से सवाल करने पर मुर्कार हैं जिनको मुनकर नकीर कहा जाता है और कुछ फरिशते हुज़ूर सल्लाहु अलैहि वसल्लम के दरबार में मुसलमानों के दुरूदो सलाम पहुँचाने पर मुर्कार हैं।

सवाल :- फरिशते कितने हैं ?

जवाब :- फरिशते बेशुमार (अनगिनत) हैं उनकी गिनती अल्लाह तआला ही जानता है और अल्लाह तआला के बताये से उसके प्यारे महबूब जानते हैं। वैसे चार फरिशतें बहुत मशहूर हैं।

सवाल :- चार मशहूर फरिशतों के नाम क्या हैं ?

जवाब :-
(1) हज़रत जिब्रईल अलैहिस्सलाम ।
(2) हज़रत मीकाईल अलैहिस्सलाम ।
(3) हज़रत इसराफील अलैहिस्सलाम ।
(4) हज़रत इज़राइल अलैहिस्सलाम ।

सवाल :- जो शख्स यह कहे कि फरिशता कोई चीज़ नहीं या यह कहे कि फरिशता नेकी की कुव्वत का नाम है ऐसा शख्स कैसा है ?

जवाब :- ऐसा शख्स काफिर है।

                        जिन्न का बयान :-

सवाल :- जिन्न क्या चीज़ हैं ?

जवाब :- अल्लाह तआला ने जिन्नो को आग से पैदा किया। इनमें बाज़ को यह ताकृत दी है कि जो शक्ल चाहें बन जायें। इनकी उम्र बहुत ज़्यादा होती हैं। इनके शरीरों को शैतान कहते हैं। यह सब इन्सान की तरह अक्ल वाले, रूह वाले और जिस्म वाले हैं। इनकी औलादें भी होती हैं, खाते पीते हैं, जीते मरतें हैं। इनमें मुसलमान भी है और काफिर भी मगर कुफ्फार इनसानों की बनिसबत (मुकाबले) ज़्याद। इनमे नेक मुसलमान भी हैं और फासिक भी हैं और बदमज़हब भी। इनमे फासिकों की तादाद इन्सानों से ज़्यादा है।

सवाल :- जो शख़्स यह कहे कि जिन्न बदी की कुव्वत का नाम है ऐसा शख्स कैसा है ?

जवाब :- ऐसा शख़्स काफिर है।

                    आसमानी किताबों का बयान :-

सवाल :- आसमानी किताबें कितनी हैं ?

जवाब :- आसमानी किताबें छोटी बड़ी बहुत सी नाज़िल हुईं, बड़ी किताब को किताब और छोटी किताब को सहीफा कहतें हैं इनमें चार किताबें बहुत मशहूर हैं।

सवाल :- चार मशहूर किताबों के नाम क्या हैं और वह किन नबियों पर नाज़िल हुईं ?

जवाब :-
(1) तौरात जो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम पर नाज़िल हुई ।
(2) ज़बूर जो हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम पर नाज़िल हुई ।
(3) इन्जील जो हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम पर नाज़िल हुई ।
(4) कुरान मजीद यह सबसे अफज़ल किताब है और यह किताब सबसे अफज़ल रसूल हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर नाज़िल हुई।

सवाल :- पूरा कुरान मजीद एक बार में नाज़िल हुआ या थोड़ा थोड़ा ?

जवाब :- पूरा कुरान मजीद एक बार में नाज़िल नहीं हुआ बल्कि ज़रूरत के मुताबिक तेईस (23) साल तक थोड़ा थोड़ा नाज़िल होता रहा।

सवाल :- पहले की उम्मतों के शरीरों ने अपनी किताब में कुछ बदल डाला क्या इसी तरह कुरान मजीद में भी कुछ बदला जा सकता है ?

जवाब :- कुरान मजीद में कुछ भी नही बदला जा सकता क्योंकि इस ज़िम्मा अल्लाह तआला ने खुद ले रखा है।

सवाल :- अगर कोई शख़्स किसी आयत का इन्कार कर दे या यह कहे कि क़ुरान जैसा नाज़िल हुआ था वैसा नहीं रहा बल्कि कुछ घटा बढ़ा दिया गया है ऐसा शख़्स कैसा है ?

जवाब :- ऐसा शख़्स काफिर है।

                        क़ियामत का बयान :-

सवाल :- कियामत किसे कहते हैं ?

जवाब :- क़ियामत उस दिन को कहते हैं जिस दिन हज़रत इसराफील अलैहिस्सलाम सूर फूंकेंगें। सूर सींग के शक्ल की एक चीज़ है जिसकी आवाज़ सुनकर सब आदमी और तमाम जानवर मर जायेगें, ज़मीन, आसमान, चाँद, सूरज और पहाड़ वगैरह दुनिया की हर चीज़ टूट फूट कर फना हो जायेगी यहाँ तक कि सूर भी खत्म हो जायेगा और हज़रत इसराफील अलैहिस्सलाम भी फ़ना हो जायेगें।

सवाल :- कियामत की कुछ निशानियाँ बयान कीजिये ?

जवाब :- तीन ख़स्फ होंगें मतलब ये है कि आदमी ज़मीन में धंस जायेगें एक खस्फ पूरब में, दूसरा पश्चिम में और तीसरा अरब के जज़ीरे में। दीन का इल्म उठ जायेगा मतलब ये है कि आलिम लोग उठा लिये जायेगें ऐसा नहीं कि आलिम लोग बाकी रहें और उनके दिलों से इल्म मिट जाये और खत्म हो जाये। जिना की ज़्यादती होगी। मर्द कम होगें और औरतें इतनी ज्यादा होंगीं कि एक मर्द की मातहती में पचास पचास औरतें होंगीं। बड़े दज्जाल के अलावा तीस और दज्जाल होगें यह सब नबुव्वत का दावा करेगें जब्कि नबुव्वत खत्म हो चुकी है। माल बहुत ज़्यादा हो जायेगा यहाँ तक कि फुरात की नदी में से सोने के पहाड़ निकलेंगें। अरब जैसे मुल्क में खेती बाग़ और नहरें होंगीं। दीन पर काइम रहना इतना मुश्किल होगा जैसा कि मुठ्ठी में अंगारा लेना मुश्किल है। वक़्त में बरकत न होगी यहाँ तक कि एक साल महीने की तरह, महीना हफ्ते की तरह, हफ्ता दिन की तरह और दिन ऐसा हो जायेगा जैसे किसी चीज़ को आग लगी और जल्दी ही बुझ गई मतलब यह है कि वक़्त बहुत जल्दी गुज़रेगा। लोगों पर ज़कात देना भारी होगा लोग ज़कात को तावान (जुर्माना) समझेंगें। कुछ लोग इल्मे दीन पढ़ेंगें लेकिन दीन के लिये नहीं बल्कि दुनिया के लिए मर्द अपनी औरत का फरमाबरदार होगा। औलादें अपने माँ बाप की नाफरमानी करेंगीं। लड़के अपने दोस्तों से मेल जोल रखेंगें और माँ बाप से जुदा (अलग) हो जायेगें। लोग मस्जिदों में दुनिया की बेकार बातें करेंगें और चिल्लायेंगें। गाने बजाने की ज़्यादती होगी। लोग अगले लागों पर लानत करेगें और उन्हें बुरा कहेगें। ज़लील और गंवार लोग जिन्हें तन को कपड़ा और पाँव की जूतियाँ नसीब न थीं बड़े बड़े महलों में गुरूर के साथ रहेगें, वगैरह।

सवाल :- जो शख़्स कियामत का इनकार करे ऐसा शख्स कैसा है ?

जवाब :- ऐसा शख्स काफिर है।

                       जन्नत व दोज़ख का बयान :-

सवाल :- जन्नत क्या चीज़ है ?

जवाब :- जन्नत एक मकान है जिसे अल्लाह तआला ने ईमान वालों के लिये बनाया है, उसमें ऐसी ऐसी नेमतें रखी गई हैं जिन को न आँखों ने देखा, न कानों ने सुना और न कोई उन नेमतों का गुमान कर सकता है। जन्नत में सौ दर्जे हैं एक दर्जे से दूसरे दर्जे में इतनी दूरी है कि जैसे ज़मीन से आसमान तक।

सवाल :- दोज़ख क्या चीज़ है ?

जवाब :- दोज़ख एक ऐसा मकान है जो अल्लाह तआला की शाने जब्बारी और जलाल की मज़हर (ज़ाहिर होने की जगह) है। जिस तरह अल्लाह तआला की रहमत और नेमत की कोई हद नहीं कि इन्सान शुमार नहीं कर सकता और जो कुछ इन्सान सोचता है वह ज़रा बराबर भी नहीं उसी तरह उसके ग़ज़ब और जलाल की कोई हद नहीं, इन्सान जिस कद्र भी दोज़ख की आफतों, मुसीबतों और तकलीफों को सोच सकता है वह अल्लाह के अज़ाब का एक बहुत छोटा सा हिस्सा होगा। दोज़ख की आग हज़ार बरस तक धौंकाई गई यहाँ तक कि बिल्कुल लाल हो गई, फिर हज़ार बरस तक जलाई गई यहाँ तक कि सफेद हो गई उस के बाद फिर हज़ार बरस और जलाई गई यहाँ तक कि बिल्कुल काली हो गई और अब वह काली है और उस में रौशनी का नामो निशान नहीं।

                     ईमान और कुफ्र का बयान :-

सवाल :- ईमान किसे कहते हैं ?

जवाब :- ईमान उसे कहते हैं कि सच्चे दिल से उन तमाम बातों की तसदीक करे जो दीन की ज़रूरियात में से हैं।

सवाल :- कुफ्र किसे कहते हैं ?

जवाब :- दीन की ज़रूरियात में से किसी एक भी चीज़ के इन्कार को कुफ्र कहते हैं अगर्चे बाकी तमाम ज़रूरियाते दीन को हक़ और सच मानता हो, मतलब यह है कि अगर कोई सारी ज़रूरी दीनी बातों को मानता हो मगर किसी एक का इनकार करे तो काफिर है।

सवाल :- ज़रूरियाते दीन क्या क्या हैं ?

जवाब :- ज़रूरियाते दीन बहुत हैं उनमें से कुछ यह हैं कि खुदाए तआला को एक और वाजिबुल वुजूद मानना, उसकी ज़ात व सिफात में किसी को शरीक न समझना, जुल्म और झूट वगैरह तमाम ऐबों से उसको पाक मानना, उसके मलाइका और उसकी तमाम किताबों को मानना, कुरान मजीद की हर आयत को हक़ समझना, हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और तमाम अम्बियाए किराम की नबुव्वत तसलीम करना, इन सबको अज़मत वाला जानना, उन्हें ज़लील और छोटा न समझना, उनकी हर बात जो कतई और यकीनी तौर पर साबित हो उसे हक़ मानना हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को खातमुन नबीय्यीन मानना, उनके बाद किसी नबी के पैदा होने को जाइज़ न समझना, क़ियामत, हिसाब व किताब, जन्नत व दोज़ख को हक़ मानना, नमाज़, रोज़ा, ज़कात और हज की फर्ज़ियत को तसलीम करना, ज़िना, चोरी और शराब नोशी वगैरह हरामे कतई की हुरमत का एतिकाद करना और काफिर को काफिर जानना वगैरह।

सवाल :- शिर्क किसे कहते हैं ?

जवाब :- शिर्क उसे कहते हैं कि अल्लाह तआला के अलावा किसी दूसरे को वाजिबुल वुजूद या इबादत के लायक माना जाये यानि खुदाए तआला के अल्लाह और माबूद होने में किसी दूसरे को शरीक किया जाये और यह कुफ्र की सबसे बुरी किस्म है।

                      बिदअत का बयान :-

सवाल :- बिदअत किसे कहते हैं ?

जवाब :- जो बात रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से साबित न हो उसे बिदअत कहते हैं।

सवाल :- बिदअत की कितनी किस्में हैं ?

जवाब :- बिदअत की दो किस्में हैं (1) बिदअते हसना (अच्छी) बिदअत) (2) बिदअते सय्येआ (बुरी बिदअत) ।

सवाल :- अच्छी बिदअत किसे कहते हैं ?

जवाब :- अच्छी बिदअत उसे कहते हैं जिस से किसी सुन्नत की मुखालफत न हो जैसे पक्की मस्जिदें बनवाना।

सवाल :- बुरी बिदअत किसे कहते हैं ?

जवाब :- बुरी बिदअत उसे कहते हैं जिस से किसी सुन्नत की मुखालफत हो जैसे जुमा व ईदैन का खुतबा अरबी ज़बान के अलावा किसी और ज़बान में पढ़ना।

                       तक़लीद का बयान :-

सवाल :- तक़लीद किसे कहते हैं ?

जवाब :- दीन के चार इमामों में से किसी एक की पैरवी करने को तकलीद कहते हैं।

सवाल :- दीन के चार इमाम कौन हैं ?

जवाब :- (1) हज़रत इमाम आज़म अबू हनीफा रहमतुल्लाहि तआला अलैहि ।
(2) हज़रत इमाम मालिक रहमतुल्लाहि तआला अलैहि।
(3) हज़रत इमाम शाफेई रहमतुल्लाहि तआला अलैहि।
(4) हज़रत इमाम अहमद बिन हम्बल रहमतुल्लाहि तआला अलैहि।

सवाल :- हम सब किसकी तकलीद करते हैं ?

जवाब :- हम सब हज़रत इमाम आज़म अबू हनीफा रज़ियल्लाहो अल्लाहु अन्हु की तक़लीद करते हैं।

सवाल :- क्या इन चार इमामों के अलावा किसी और की तकलीद की जा सकती है?

जवाब :- इन चार इमामों के अलावा किसी और की तकलीद जाइज़ नही।

                     इस्तिलाहात-ए-शरइया का बयान :-

सवाल :- फर्ज़ किसे कहते हैं ?

जवाब :- फर्ज़ वह फेल यानी काम है कि जिसको जान बूझ कर छोड़ना सख़्त गुनाह है और जिस इबादत के अन्दर वह हो बग़ैर उसके वह इबादत दुरूस्त (सहीह) न हो।

सवाल :- वाजिब किसे कहते हैं ?

जवाब :- बाजिब वह फेल है कि जिसको जान बूझ कर छोड़ना गुनाह और नमाज़ में जान बूझकर छोड़ने से नमाज़ का दोबारा पढ़ना ज़रूरी है और अगर भूल कर छूट जाये तो सजदए सहव करना ज़रूरी है।

सवाल :- सुन्नते मुअक्कदा किसे कहते हैं ?

जवाब :- सुन्नते मुअक्कदा वह फेल है कि जिसको छोड़ना बुरा और करना सवाब है और कभी कभी छोड़ने पर सज़ा और छोड़ने की आदत कर लेने पर अज़ाब का मुस्तहिक है।

सवाल :- सुन्नते गैर मुअक्कदा किसे कहते हैं ?

जवाब :- सुन्नते गैर मुअक्कदा वह फेल है कि जिस का करना सवाब और न करने पर कुछ सज़ा नही अगर्चे आदत के तौर पर हो मगर शरअन ना पसन्द है।

सवाल :- मुस्तहब किसे कहते हैं ?

जवाब :- मुस्तहब वह फेल है कि जिसका करना सवाब और न करने पर कुछ गुनाह नहीं।

सवाल :- मुबाह किसे कहते हैं ?

जवाब :- मुबाह वह फेल है कि जिसका करना और न करना दोनों बराबर हों।

सवाल :- हराम किसे कहते हैं ?

जवाब :- हराम वह फेल है कि जिसको एक बार भी जान बूझ कर करना सख़्त गुनाह है और उससे बचना फर्ज़ और सवाब है।

सवाल :- मकरूहे तहरीमी किसे कहते हैं ?

जवाब :- मकरूहे तहरीमी वह फेल है कि जिसके करने से इबादत नाक्सि (अधूरी) हो जाती है और करने वाला गुनहगार हाता है अगर्चे इसका गुनाह हराम से कम है और चन्द बार इसका करना गुनाहे कबीरा (बड़ा गुनाह) है।

सवाल :- मकरूहे तनज़ीही किसे कहते हैं ?

जवाब :- मकरूहे तनज़ीही वह फेल है कि जिसका करना शरिअत को पसन्द न हो और उससे बचना बेहतर और सवाब है।

सवाल :- ख़िलाफे औला किसे कहते हैं ?

जवाब :- ख़िलाफ़े औला वह फेल है कि जिसका न करना बेहतर और करने मे कोई हरज नही है।

 

                             वुजू का बयान

सवाल : वुजू की फज़ीलत बयान कीजिये ?

जवाब : हदीस :- हज़रत अबु हुरैरह रज़िअल्लाहु अन्हु से मरवी कि हुज़ूर ए अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि कियामत के दिन मेरी उम्मत इस हालत में बुलाई जायेगी कि मूँह, हाथ और पैर वुजू की वजह से चमकते होंगें। (बुखारी)
हदीस :- हज़रत मौला अली रज़िअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जो सख्त सर्दी में कामिल वुजु करे उसके लिये दूना सवाब है। (तबरानी)

सवाल : वुजू में कितने फ़र्ज़ हैं और कौन कौन से हैं ?

जवाब :- वुजू में चार फर्ज़ हैं

(1) मूँह धोनाः लम्बाई में शुरू पेशानी से यानि बाल उगने की जगह से ठोड़ी के नीचे तक और चौड़ाई में एक कान की लौ से दूसरे कान की लौ तक।

(2) कोहनियों समेत दोनों हाथों का धोना।

(3) चौथाई सर का मसह करना।

(4) दोनों पाँव टखनों समेत धोना।

सवाल :- वुजु करने का तरीका क्या है ?

जवाब :- वुजू करने का तरीका यह है कि पहले बिस्मिल्लाह पढ़े फिर मिस्वाक करें अगर मिसवाक न हो तो उंगली से दाँत मल ले, फिर दोनों हाथों को गटटों तक तीन बार धोये पहले दाहिने हाथ पर पानी डाले फिर बायें हाथ पर, दोनों को एक साथ न धोये, फिर दाहिने हाथ से तीन बार कुल्ली करे फिर बायें हाथ की छोटी उंगली से नाक साफ करे और दाहिने हाथ से तीन बार नाक में पानी चढ़ाये, फिर पूरा चेहरा धोये यानि पेशानी पर बाल उगने की जगह से ठोड़ी के नीचे तक और एक कान की लौ से दूसरे कान की लौ तक हर हिस्से पर तीन बार पानी बहाये, इसके बाद दोनो हाथ कोहनियों समेत तीन बार धोये, उंगलियों की तरफ से कोहनियों के ऊपर तक पानी डाले कोहनियों की तरफ से न डाले, फिर एक बार दोनों हाथ से पूरे सर का मसह करे फिर कानों का और गर्दन का एक एक बार मसह करे, फिर दोनों पाँव टखनों समेत तीन बार धोये।

सवाल :- धोने का मतलब क्या है ?

जवाब :- धोने का मतलब यह है कि जिस चीज़ को धोयें उसके हर हिस्से पर पानी बह जाये।

सवाल :- अगर कुछ हिस्सा भीग गया मगर उस पर पानी बहा नही तो वुजू होगा या नही ?

जवाब :- इस तरह वुजू हरगिज़ नही होगा भीगने के साथ हर हिस्से पर पानी बह जाना ज़रूरी है।

सवाल : वुजू में कितनी सुन्नतें हैं ?

जवाब :- वुजू में यह चीजें सुन्नत हैं. नियत करना, बिस्मिल्लाह से शुरू करना, दोनों हाथों को गटटों तक तीन बार धोना, मिस्वाक करना, दाहिने हाथ से तीन कुल्लियाँ करना, दाहिने हाथ से तीन बार नाक में पानी चढ़ाना, बायें हाथ से नाक साफ करना, दाढ़ी का खिलाल करना, हाथ पाँव की उंगलियों का खिलाल करना, हर उज़्च (हिस्से) को तीन बार धोना, पूरे सर का एक बार मसह करना, कानों का मसह करना, तरतीब (यानि पहले गटटों तक हाथ धोना फिर कुल्ली करना, फिर नाक में पानी चढ़ाना आदि) से वुजू करना, दाढ़ी के जो बाल मुँह के दायरे के नीचे हैं उनका मसह करना, आज़ा को पैदरपै (एक के बाद एक लगातार) धोना, हर मकरूह बात से बचना।

सवाल :- वुजू में कितनी बातें मकरूह हैं ?

जवाब :- वुजू में ये बातें मकरूह हैं. औरत के गुस्ल या वुजू के बचे हुये पानी से वुजू करना, वुजू के लिये नजिस (नापाक) जगह बैठना, नजिस जगह वुजू का पानी गिराना, मस्जिद के अन्दर वुजू करना, वुजू के आज़ा से बरतन में पानी के कतरे टपकाना, किबला की तरफ थूक या खंखार डालना या कुल्ली करना, बे ज़रूरत दुनिया की बातें करना, ज़रूरत से ज़्यादा पानी खर्च करना, पानी इस कद्र कम खर्च करना कि सुन्नत अदा न हो, मुँह पर पानी मारना, मूँह पर पानी डालते वक्त फूंकना, सिर्फ एक हाथ से मुँह धोना, गले का मसह करना, बायें हाथ से कुल्ली करना या नाक में पानी डालना, दाहिने हाथ से नाक साफ करना, अपने लिये कोई लोटा वगैरह खास कर लेना, तीन नये पानियों से तीन बार सर का मसह करना, किसी सुन्नत को छोड़ देना।

सवाल :- किन चीज़ों से वुजू टूट जाता है ?

जवाब :- पाखाना या पेशाब करना, पाखाना या पेशब के रास्ते से किसी और चीज़ का निकलना, पाखाने के रास्ते से हवा का निकलना, बदन के किसी मकाम से खून या पीप का निकल कर ऐसी जगह बहना कि जिसका वुजू या गुस्ल मे धोना फर्ज है, खाना पानी या सफरा की मुँह भर कै (उल्टी) आना, इस तरह सो जाना कि कि जिस्म के जोड़ ढीले पड़ जायें, बेहोश होना, जुनून होना, गशी होना, किसी चीज़ का इतना नशा होना कि चलने में पाँव लड़खड़ायें, रूकु और सजदे वाली नमाज़ मे इतनी ज़ोर से हंसना कि आस पास वाले सुनें, दुखती आँख से आँसू बहना, इन तमाम बातों से वुजू टूट जाता है।

सवाल :- किस काम के लिये वुजू करना फर्ज है ?

जवाब :- नमाज़, सजदए तिलावत, नमाज़े जनाज़ा और कुरआन शरीफ छूने के लिये वुजू करना फर्ज़ है।

सवाल :- किस काम के लिये वुजू करना वाजिब है ?

जवाब :- तवाफ के लिये वुजू करना वाजिब है।

सवाल :- किस काम के लिये वुजू करना सुन्नत है ?

जवाब :- अज़ान, इकामत (तकबीर), जुमा, ईदैन, हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत, अरफा में ठहरने और सफा व मरवा के दरमियान सई के लिये वुजू करना सुन्नत है।

                             गुस्ल (नहाने) का बयान

सवाल :- गुस्ल मे कितने फर्ज़ हैं और कौन कौन से ?

जवाब :- गुस्ल में तीन फर्ज़ हैं.

(1) कुल्ली करना :-  मुँह के हर गोशे होंट से हल्क की जड़ तक हर जगह पानी बह जाये, अकसर लोग ये जानते हैं कि थोड़ा सा पानी मूँह में लेकर उगल देने को कुल्ली कहते हैं अगरचें जुबान की जड़ और हल्क के किनारे तक न पहुँचे, ऐसे में गुस्ल न होगा, बल्कि फर्ज़ है कि दाड़ी के पीछे गालों की तह में दाँतों की जड़ और खिड़कियों में जुबान की हर करवट में हल्क के किनारे तक पानी बहे।

(2) नाक मे पानी डालना :- यानि दोनों नथनों में जहाँ तक नर्म जगह है धुलना कि पानी को सूंघ कर ऊपर चढ़ाये बाल बराबर भी धुलने से न रह जाये, नहीं तो गुस्ल नहीं होगा, अगर नाक के अन्दर रेंठ सूख गई है तो उसका छुड़ाना फर्ज़ है।

(3) तमाम बदन पर पानी बहाना :- यानि सर के बालों से पाँवों के तलवों तक जिस्म के हर गोशे हर रोंगटे पर पानी बह जाना फर्ज़ है, अकसर लोग यह करते हैं कि सर पर पानी डालकर जिस्म पर हाथ फेर लेते हैं और समझते हैं कि गुस्ल हो गया, हालांकि कुछ उज़्च (हिस्से) ऐसे हैं कि जब तक उनकी खास तौर पर एहतियात न की जाये तो नही धुलेंगें तो गुस्ल न होगा।

सवाल : गुस्ल करने का तरीका किया है ?

जवाब :- गुस्ल करने का तरीका यह है कि पहले गुस्ल की नियत करके दोनों हाथ तीन बार धोये फिर इस्तिन्जा की जगह धोये उसके बाद बदन पर अगर कहीं नजासत हो तो उसे दूर करे फिर नमाज़ जैसा वुजू करे मगर पाँव न धोये अगर चौकी या पथ्थर वगैरह ऊँची चीज पर नहाये तो पाँव भी धोले, उसके बाद बदन पर तेल की तरह पानी चुपड़े फिर तीन बार दाहिने कन्धे पर पानी बहाये और फिर तीन बार बायें कन्धे पर पानी बहाये फिर सर पर और तमाम बदन पर तीन बार पानी बहाये, तमाम बदन पर हाथ फेरे और मले फिर नहाने के बाद फौरन कपड़े
पहन ले।

                             तयम्मुम का बयान

सवाल :- तयम्मुम करना कब जाएज़ है ?

जवाब :- जब पानी पर कुदरत न हो तब तयम्मुम जाएज़ है।

सवाल :- पानी पर कुदरत न होने की क्या सूरत है ?

जवाब :- पानी पर कुदरत न होने की ये सूरत है कि ऐसी बीमारी हो कि वुजू या गुस्ल से उसके ज़्यादा होने या देर में अच्छा होने का सही अन्देशा हो चाहे उसने खुद आज़माया हो कि जब वुजू और गुस्ल करता है तो बीमारी बढ़ जाती है या ये कि किसी मुसलमान अच्छे लाइक हकीम ने जो बज़ाहिर फासिक न हो यह कह दिया हो कि पानी नुकसान करेगा, या ऐसे मकाम पर मौजूद हो कि वहाँ चारों तरफ एक एक मील तक पानी का पता न हो, या इतनी सर्दी हो कि नहाने से मर जाने या बीमार होने का सख्त खतरा हो, या दुश्मन का डर हो कि अगर उसने देख लिया तो मार डालेगा या माल छीन लेगा, या प्यास का डर हो यानि उसके पास पानी मौजूद है मगर वुजू या गुस्ल के काम में लाये तो खुद या दूसरा मुसलमान या उसका जानवर अगरचें वो कुत्ता ही हो जिसका पालना जाएज़ है प्यासा रह जायेगा तो तयम्मुम जाएज़ है और अगर यह गुमान हो कि पानी तलाश करने में रेल छूट जायेगी तो भी तयम्मुम जाएज़ है।

सवाल :- तयम्मुम में कितने फर्ज़ है ?

जवाब :- तयम्मुम में तीन फर्ज़ हैं
(1) नियत करना
(2) सारे मुँह पर हाथ फेरना
(3) दोनों हाथों का कोहनियों समेत मसह करना।

सवाल :- तयम्मुम करने का तरीका क्या है ?

जवाब :- तयम्मुम करने का तरीका यह है कि दोनो हाथों की उंगलियाँ कुशादा करके यानि फैला कर किसी ऐसी चीज़ पर जो ज़मीन की किस्म से हो मारे अगर ज़्यादा गर्द लग जाये तो झाड़ ले और उससे सारे मुँह का मसह करे फिर दूसरी बार दोनों हाथ ज़मीन पर मारकर दाहिने हाथ का बायें हाथ से और बायें हाथ का दाहिने हाथ से कोहनियों समेत मसह करे।

सवाल :- तयम्मुम का यह तरीका वुजू के लिये है या गुसल के लिये ?

जवाब :- तयम्मुम का यह तरीका वुजू और गुस्ल दोनों के लिये है।

सवाल :- अगर वुजू और गुस्ल दोनों का तयम्मुम करना हो तो हर एक के लिये अलग अलग तयम्मुम करना पढ़ेगा या एक ही तयम्मुम दोनों के लिये काफी है ?

जवाब :- दोनों के लिये एक ही तयम्मुम काफी है।

                                नजासत का बयान

सवाल :- नजासत की कितनी किस्में हैं ?

जवाब :- नजासत की दो किस्में हैं
(1) नजासते गलीज़ा
(2) नजासते खफीफा ।

सवाल :- नजासते गलीज़ा क्या चीज़ हैं ?

जवाब :- इन्सान के बदन से ऐसी चीज़ निकले कि उससे वुजू या गुस्ल वाजिब हो जाता हो तो वह नजासते ग़लीज़ा है जैसे पाख़ाना, पेशाब, बहता खून, पीप मुँह भर कै, और दुखती आँख का पानी वगैरह। और हराम चौपाये जैसे कुत्ता, शेर, लोमड़ी, बिल्ली, चुहा, गधा, खच्चर, हाथी और सुअर वगैरह का पाखना पेशाब और घोड़े की लीद और हर हलाल चौपाये का पाखना जैसे गायें भैंस का गोबर, बकरी और ऊँट की मिंगनी, मुर्ग और बत्तख की बीट और शेर, कुत्ते वगैरह दरिन्दे चौपायों का लुआब यह सब चीज़े नजासते गलीज़ा हैं।

सवाल :- नजासते खफीफा क्या चीज़ हैं ?

जवाब :- जिन जानवरों का गोश्त हलाल है जैसे गाये, बैल, भैंस, बकरी और भेड़ वगैरह इनका पेशाब, घोड़े का पेशाब और जिस परिन्द का गोश्त हराम हो जैसे कौआ, चील, शिकरा, और बाज़ वगैरह की बीट ये सब नजासते खफीफा हैं।

सवाल :- अगर नजासते गलीज़ा बदन या कपड़े पर लग जाये तो क्या हुक्म है ?

जवाब :- अगर नजासते गलीज़ा कपड़े या बदन में एक दिरहम से ज़्यादा लग जाये तो उसका पाक करना फर्ज़ है अगर बगैर पाक किये नमाज़ पढ़ ली तो नमाज़ होगी ही नहीं और अगर नजासते गलीज़ा एक दिरहम के बराबर लग जाये तो उसका पाक करना वाजिब है अगर बगैर पाक किये नमाज़ पढ़ ली तो नमाज़ मकरूहे तहरीमी हुई यानि ऐसी नमाज़ का दोबारा पढ़ना वाजिब है और अगर नजासते ग़लीज़ा एक दिरहम से कम लगी है तो उसका पाक करना सुन्नत है अगर बगैर पाक किये नमाज़ पढ़ ली तो नमाज़ हो गई मगर खिलाफे सुन्नत हुई ऐसी नमाज़ का दोबारा पढ़ना बेहतर है।

सवाल :- अगर नजासते खफीफा लग जाये तो क्या हुक्म है ?

जवाब :- नजासते खफीफा कपड़े या बदन के जिस हिस्से में लगी है अगर उसकी चौथाई से कम है जैसे दामन मे लगी है तो दामन की चौथई से कम है या आस्तीन में लगी है तो आस्तीन की चौथाई से कम है तो माफ है और अगर पूरी चौथाई में लगी हो तो बगैर धोये नमाज़ न होगी।

                              नमाज़ का बयान

सवाल :- नमाज़ किस पर फर्ज़ है ?

जवाब :- नमाज़ हर आक़िल बालिग पर फर्ज है, इसकी फर्जियत का इनकार करने वाला काफिर है और जो कस्दन यानी जानबूझ कर नमाज़ छोड़े अगर्चे एक ही वक़्त की वह फासिक है और जो नमाज़ न पढ़ता हो कैद किया जाये यहाँ तक कि तौबा करे और नमाज़ पढने लगे।

सवाल :- नमाज़ की अहमियत और फ़ज़ीलत बयान कीजिये ?

जवाब :- कुरआन मजीद और अहादीसे करीमा में जगह जगह इसकी फजीलतो अहमियत बयान की गई है, अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है ” यह किताब परहेज़गारों के लिये हिदायत है जो गैब पर ईमान लाते और नमाज़ काइम रखते और हमने जो दिया उसमें से हमारी राह में खर्च करते हैं” (पाराः1, रूकूः1) और फरमाता है ” नमाज़ काइम करो और ज़कात दो और रूकू करने वालों के साथ रूकू करो” (पाराः 1, रूकू: 5) और फरमाता है ” तमाम नमाज़ों खुसूसन बीच वाली नमाज़ (अस्र) की मुहाफज़त रखो और अल्लाह के हजूर अदब से खड़े हो” (पाराः 2, रूकुः15)

नमाज़ का बिल्कुल छोड़ देना तो सख्त हौलनाक चीज़ है। उसे कज़ा करके पढ़ने वालों के बारे में फरमाता है ” खराबी है उन नमाजियों के लिये जो अपनी नमाज़ से बेखबर है वक़्त गुज़ार कर पढ़ने उठते हैं” (पारा: 30, रूकुः 32)

जहन्नम में एक वादी है जिसकी सख़्ती से जहन्नम भी पनाह माँगता है उसका नाम वैल है जान बूझ कर नमाज़ कज़ा करने वाले उसके मुस्तहिक हैं। और फरमाता है ” उनके बाद कुछ नाख़लफ पैदा हुये जिन्होंने नमाज़ें ज़ाये करदीं और नफसानी ख्वाहिशों की इत्तिबा की अनकरीब वह दोजख में गय्य का जंगल पायेंगें ” (पाराः16, रूकु:7)

गय्य जहन्नम में एक वादी है जिसकी गर्मी और गहराई सबसे ज्यादा है उसमें एक कुआँ है जिसका नाम हबहब है जब जहन्नम की आग बुझने पर आती है अल्लाह तआला उस कुएँ को खोल देता है जिससे वह बदस्तूर भड़कने लगती है।

अहादीसे करीमा मे भी नमाज़ की अहमियत और नमाज़ न पढ़ने पर सख्त वईदें सुनाई गई हैं। उनमें से कुछ हदीसें यहाँ ज़िक्र की जा रही हैं

हदीस :- हज़रत इब्ने उमर रज़ियल्लाहो अल्लाहु तआला अन्हु से मरवी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि इस्लाम की बुनियाद पाँच चीज़ों पर है इस बात की शहादत देना कि अल्लाह के सिवा कोई सच्चा मअबूद यानी इबादत के लाइक नहीं और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस के ख़ास बन्दे और रसूल है और नमाज़ काइम करना और ज़कात देना और हज करना और माहे रमज़ान के रोज़े रखना (बुखारी)

हदीस :- हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहो अल्लाहु अन्हु से मरवी है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया बताओ तो किसी के दरवाज़े पर नहर हो वह उसमें हर रोज़ पाँच बार नहाये क्या उसके बदन पर मैल रह जायेगा? अर्ज़ की न, फ़रमाया यही मिसाल पाँच नमाज़ों की है कि अल्लाह तआला इसके सबब ख़ताओ को मिटा देता है। (बुखारी)

हदीस :- हज़रत उमर रज़ियल्लाहो अल्लाहु अन्हु से मरवी है कि एक साहब ने अर्ज़ की या रसूलुल्लाह ! इस्लाम में सबसे ज़्यादा अल्लाह के नज़दीक महबूब क्या चीज़ है। फ़रमाया वक़्त में नमाज अदा करना और जिसने नमाज़ छोड़ दी उसका कोई दीन नहीं, नमाज़ दीन का सुतून है। (बैहकी)

हदीस :- हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि नमाज़ दीन का सुतून है जिसने इसे काइम रखा उसने दीन को काइम रखा और जिसने इसको छोड़ दिया उसने दीन को ढा दिया। (मुनियतुल मुसल्ली)

हदीस :- फ़रमाने नबवी है कि हर चीज़ के लिये एक अलामत (पहचान) होती है ईमान की अलामत नमाज़ है। (मुनियतुल मुसल्ली)

हदीस :- हज़रत अबू सईद रदि अल्लाहु अन्हु से मरवी कि रसूलुल्लाह सल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जिसने जान बूझ कर नमाज़ छोड़ी जहन्नम के दरवाज़े पर उसका नाम लिख दिया जाता है। (अबू नईम)

हदीस :- हज़रत नौफल इब्ने मुआविया रज़ियल्लाहो अल्लाहु अन्हु से मरवी है कि हुज़ूरे अक्दस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते है कि जिसकी नमाज़ फौत हुई (छूट गई) गोया (तो ऐसा है कि) उसके अहल व माल जाते रहे। (बुखारी)

सवाल :- नमाज़ की कितनी शर्तें हैं और कौन कौन सी ?

जवाब :- नमाज़ की छः शर्तें हैं

(1) तहारत :- यानि नमाज़ी के बदन उसके कपड़े और नमाज़ पढ़ने की जगह का पाक होना।
(2) सत्रे औरत :- यानि बदन का वह हिस्सा जिसका छुपाना फर्ज़ है उसको छुपाना।
(3) इस्तिकबाले किब्ला :- यानि नमाज़ मे किब्ले की तरफ मुँह करना।
(4) वक़्त :- यानि जिस वक़्त की नमाज़ पढ़ी जाये उस नमाज़ का वक़्त होना।
(5) नियत :- नियत दिल के पक्के इरादे को कहते है, जुबान से नियत करना मुस्तहब है।
(6) तकबीरे तहरीमा :- यानि अल्लाहु अकबर कहकर नमाज़ शुरू करना।