
कुरआन और हदीस पुकार-पुकार कर कह रहे हैं कि नेक आमाल अपनाने पर ही अज्र मिलता है चीजें ज़मीन से निकलती हैं और ज़मीन ही पर रहती हैं, लेकिन आमाल आगे भी काम आएंगे। दाएं जानिब अच्छे आमाल लिखने वाला और बाएं जानिब बुरे आमाल लिखने वाला फरिश्ता मुकर्रर है।
जब इंसान अच्छा अमल करता है, तो इसकी रूह के अन्दर खुशबू और राहत पैदा होती है। और जब बुरे अमल किए जाते हैं तो इनके अन्दर बदबू और जुल्मत पैदा होती है। अगर आसमानों पर ख़राब अमल पहुंचाए जा रहे हैं तो वहां से हमारे किए धरे का बदला ही मिलेगा।
कलाम मतकलम में से निकलता है। अल्लाह तआला की बात अल्लाह तआला में से निकलती है, इसलिए जमाअत अहले सुन्नत कहते हैं कि कुरआन मख्लूक नहीं है जब तुम कुरआन पर अमल करोगे तो वह आसमानों पर जाएगा, और वहां से कामियाबी के अहकामात आएंगे। अगर तुम सैकड़ों भी हुए और तुम्हारे पास कोड़ियां भी हुईं तो तुम चमकोगे।
ऐसे चाहे जितने भी नक़्शे बनाओ बनते रहेंगे बिगड़ते रहेंगे, मगर इंसानों को कामियाबी नसीब न होगी। जब चीज़ों की मेहनत करते हैं तो चीज़ों के म्यार बढ़ते हैं। जब अमल का म्यार कायम होगा तो लोग मामूली-मामूली मकान बनाएंगे, झूठा-मूंटा खाएंगे।
दुनिया में एक ज़बरदस्त मेहनत की ज़रूरत है कि चीज़ों को यकीन हटे, खुदा की जात का यकीन जमे, और इसके जमाने के लिए मेहनत करोगे कि चीज़ों की तुम्हारी नज़रों में कुछ हैसियत बाकी नहीं रहेगी। आमाल की हैसियत है। और अगर आमाल अच्छे होंगे खुदा तआला ज़िंदगी को कामियाब बना देंगे। फिर नमाज़ों की, इल्म की,ज़िक्र की, अख़्लाक की, मुजाहेदों की मश्क करनी होगी।
इस बात की तहकीक करके चलेंगे कि खुदा किस बात के करने से खुश होंगे। जब अल्लाह वाले तरीकों को इख़्तियार करके चलोगे तो तुम्हारी मुलाज़मत, तिजारत, खेती-बाड़ी वगैरह सब दीन का काम शुमार होगा। इस तरह अपने खंगी हकूक पूरे करने में भी खुदा की रजामंदी हासिल करोगे। आज हम अपने मेहनतों में चीजें समझ बैठते हैं।
यह ज़ेहन कारून और अबू लहब का था। सही ज़ेहन यह है कि अगर हमारे अच्छे अमल होंगे तो हम कामियाब होंगे। इसलिए कहा जा रहा है कि अपनी ज़िदंगी के दिन-रात में से कुछ वक़्त निकाला जाए। इसके अन्दर ईमान और अमल की आवाज़ बुलंद की जाए कि अच्छे यकीन और अच्छे अमल से क्या होगा। चीज़ों की आवाज़ तो रात-दिन बुलन्द की जा रही है, आमाल की आवाज़ बुलन्द की जाए। चोरी, तौबा और एक बुज़ुर्ग की मोहब्बत-ए-रसूल।
जिस तरह से चीज़ों पर मेहनत की जाती है, इसी तरह से आमाल भी दुनिया में मेहनत से आते हैं। ये तो सब कहते है कि अच्छे अमल से जिंदगी बनती है, मगर मैं यों कहता हूं कि अच्छा अमल मेहनत से वजूद में आता है, अगर थोड़े दिन अल्लाह की ज़ात पर यकीन करते हुए इस मेहनत पर सर्फ करते हैं तो इसके लिए तीन चिल्ले (चार महीने) मांगते हैं।
और हर साल चिल्ले (चालीस दिन) देते रहो। जब इस तरह से दावत अमल का यह झंडा बुलन्द करते रहोगे, तो मुल्क और माल वाले भी कुबूल करेंगे हां कि अमलों को दुरूस्त करना ज़रूरी है। हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का एक लतीफ म्यार था। आमाल के सही होने से रूह में ताक़त पैदा होती है। और आमाल के खराबी से रूह में कमज़ोरी आती है। रूह वाली चीजें अच्छे आमाल हैं, इन्हीं से रूह के अन्दर पाकी पैदा होती है।
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
खुदा हाफिज़…..