आदम की पैदाइश, फ़रिश्तों को सज्दे का हुक्म, शैतान का इंकार :
अल्लाह तआला ने आदम अलैहिस्सलाम को मिट्टी से पैदा किया और उनका खमीर तैयार होने से पहले ही उसने फ़रिश्तों को यह ख़बर दी कि वह बहुत जल्द मिट्टी से एक मख्लूक़ पैदा करने वाला है जो ‘बशर’ कहलाएगी और जमीन में हमारी ख़िलाफ़त का शरफ़ हासिल करेगी।
आदम अलैहिस्सलाम का खमीर मिट्टी से गूंधा गया और ऐसी मिट्टी से गूंधा गया जो नित नई तब्दीली कुबूल कर लेने वाली थी। जब यह मिट्टी पक्की ठीकरी की तरह आवाज़ देने और खनखनाने लगी तो अल्लाह तआला ने उस मिट्टी के पुतले में रूह फूंकी और वह एक ही वक़्त में गोश्त-पोस्त, हड्डी-पुढे का ज़िंदा इंसान बन गया और इरादा, शऊर, हिस्स, अक़्ल और विज्दानी जज़्बात व कैफ़ियात का हामिल नज़र आने लगा। तब फ़रिश्तों को हुक्म हुआ कि तुम उसके सामने सज्दे में गिर जाओ, फौरन तमाम फरिश्तों ने इर्शाद की तामील की, मगर इब्लीस (शैतान) ने घमंड और सरकशी के साथ साफ़ इंकार कर दिया।
सज्दे से इन्कार करने पर इब्लीस का मुनाज़रा
अल्लाह तआला अगरचे गैब का इल्म रखने वाला और दिलों के भेदों तक को जानने वाला है और माजी, हाल और मुस्तकबिल (भूत, वर्तमान, भविष्य) सब उसके लिए बराबर हैं, मगर उसने इम्तिहान व आजमाइश के लिए इब्लीस (शैतान) से सवाल किया- ‘किस बात ने झुकने से रोका, जबकि मैंने हुक्म दिया था?'(आराफ 7/12)
इब्लीस ने जवाब दिया- ‘इस बात ने कि मैं आदम से बेहतर हूं, तूने मुझे आग से पैदा किया, इसे मिट्टी से।’ (आराफ 7/12)
शैतान का मक़्सद यह था कि मैं आदम से अफ़ज़ल हूं, इसलिए कि तूने मुझको आग से बनाया है और आग बुलन्दी और बरतरी चाहती है, और आदम ‘ख़ाकी मख़्लूक़’ भला ख़ाक को आग से क्या निस्बत? ऐ अल्लाह ! फिर यह तेरा हुक्म कि नारी (नार यानी आग से बना हुआ) ख़ाकी (ख़ाक यानी मिट्टी से बना हुआ) को सज्दा करे, क्या इंसाफ़ के मुताबिक़ है?
मैं तमाम हालतों में आदम से बेहतर हूं इसलिए वह मुझे सज्दा करे, न कि मैं उसके सामने सज्दा करूं? मगर बदबख़्त शैतान अपने घमंड में चूर होने की वजह से भूल गया कि जब तुम और आदम दोनों अल्लाह की मख़्लूक़ हो तो मख्लूक़ की हकीकत ख़ालिक़ से बेहतर, ख़ुद वह मख्लूक़ भी नहीं जान सकती, वह अपने घमंड और गुरूर में यह न समझ सका कि मर्तबा की बुलन्दी और पस्ती उस माद्दे की बुनियाद पर नहीं है, जिससे किसी मख्लूक़ का ख़मीर तैयार किया गया है, बल्कि उसकी उन सिफ़तों पर है जो कायनात के पैदा करने वाले ने उसके अन्दर रख दिए हैं।
बहरहाल शैतान का जवाब, चूंकि घमंड और गुरूर की जहालत पर क़ायम था, इसलिए अल्लाह तआला ने उस पर वाज़ेह कर दिया कि जहालत से पैदा होने वाले घमंड व गुरूर ने तुझको इतना अंधा कर दिया है कि तू अपने पैदा करने वाले के हक़ और पैदा करने वाला होने की वजह से उसके एहतराम से भी मुन्किर हो गया इसलिए मुझको ज़ालिम क़रार दिया और यह न समझा कि तुझको तेरी जहालत ने हक़ीक़त के समझने से आजिज़ बना दिया है, पस तू अब इस सरकशी की वजह से अबदी हलाकत का हक़दार है और यही तेरे अमल का कुदरती बदला है।
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अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….
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