गौस पाक और जिन्नात का वाक़िआ।Gaus Pak aur Jinnat ka waqia.

Gaus Pak aur Jinnat ka waqia.

नबियों के सुल्तान, रहमते आलमियान, सरदारे दो जहान, महबूबे रहमान सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम का फरमाने बरकत निशान है : “जिस ने मुझ पर रोज़े जुमुआ दो सौ 200 बार दुरूदे पाक पढ़ा उस के दो सौ 200 साल के गुनाह मुआफ़ होंगे ।”

अबू साद अब्दुल्लाह बिन अहमद का बयान है: एक बार मेरी लड़की फ़ातिमा घर की छत से यकायक गाइब हो गई। मैं परेशान हो कर सरकारे बगदाद हुज़ूर सय्यिदुना गौसे पाक रहमतुल्लाहि तआला अलैहि की खिदमते बाबरकत में हाज़िर हो कर फ़रियाद की।

आप रहमतुल्लाह तआला अलैहि ने इर्शाद फ़रमाया: कर्ख जा कर वहां के वीराने में रात के वक़्त एक टीले पर अपने इर्द गिर्द हिसार (यानी दाएरा) बांध कर बैठ जाओ, वहां बिस्मिल्लाह कह लेना और मेरा तसव्वुर बांध लेना। रात के अंधेरे में तुम्हारे इर्द गिर्द जिन्नात के लश्कर गुज़रेंगे, उन की शक्लें अजीबो गरीब होंगी,

उन्हें देख कर डरना नहीं, सहरी के वक़्त जिन्नात का बादशाह तुम्हारे पास हाज़िर होगा और तुम से तुम्हारी हाजत दरयाफ्त करेगा । उस से कहना : “मुझे शैख अब्दुल कादिर जीलानी ने बगदाद से भेजा है, तुम मेरी लड़की को तलाश करो ।”

चुनान्चे कर्ख के वीराने में जा कर मैं ने हुजूरे गौसे आज़म रहमतुल्लाहि तआला अलैहि के बताए हुए तरीके पर अमल किया, रात के सन्नाटे में ख़ौफ़नाक जिन्नात मेरे हिसार के बाहर गुज़रते रहे, जिन्नात की शक्लें इस कदर हैबत नाक थीं कि मुझ से देखी न जाती थीं, सहरी के वक़्त जिन्नात का बादशाह घोड़े पर सुवार आया, उस के इर्द गिर्द भी जिन्नात का हुजूम था।Gaus Pak aur Jinnat ka waqia.

हिसार के बाहर ही से उस ने मेरी हाजत दरयाप्त की। मैं ने बताया कि मुझे हुजूरे गौसे आज़म रहमतुल्लाहि तआला अलैहि ने तुम्हारे पास भेजा है। इतना सुनना था कि एक दम वोह घोड़े से उतर आया और ज़मीन पर बैठ गया, दूसरे सारे जिन्न भी दाएरे के बाहर बैठ गए। मैं ने अपनी लड़की की गुम शुदगी का वाकिआ सुनाया।

उस ने तमाम जिन्नात में एलान किया कि लड़की को कौन ले गया है? चन्द ही लम्हों में जिन्नात ने एक चीनी जिन्न को पकड़ कर बतौरे मुजरिम हाज़िर कर दिया। जिन्नात के बादशाह ने उस से पूछा: कुत्बे वक्त हज़रते गौसे आजम रहमतुल्लाहि तआला अलैहि के शहर से तुम ने लड़की क्यूं उठाई ? वोह कांपते हुए बोला : आलीजाह! मैं देखते ही उस पर आशिक़ हो गया था।  हज़रत गौसे पाक का अक़ीदा ।

बादशाह ने उस चीनी जिन्न की गरदन उड़ाने का हुक्म सादिर किया और मेरी प्यारी बेटी मेरे सिपुर्द कर दी। मैं ने जिन्नात के बादशाह का शुक्रिया अदा करते हुए कहा : आप सय्यिदुना गौसे आज़म रहमतुल्लाहि तआला अलैहि के बेहद चाहने वाले हैं! इस पर वोह बोला: बेशक जब हुज़ूरे गौसे आज़म रहमतुल्लाहि तआला अलैहि हमारी तरफ़ नज़र फ़रमाते हैं तो जिन्नात थरथर कांपने लगते हैं।

जब अल्लाह तबारक व तआला किसी कुत्बे वक़्त का तअय्युन फरमाता है। तो जिन्न व इन्स उस के ताबेअ कर दिये जाते हैं।

गौसे पाक का दीवाना

सगे मदीना के आबाई गांव कुतियाना (गुजरात, अल हिन्द का एक वाकिआ किसी ने सुनाया था कि वहां एक गौसे पाक का दीवाना रहा करता था जो कि ग्यारहवीं शरीफ़ निहायत ही एहतिमाम से मनाता था। एक खास बात उस में येह भी थी कि वोह सय्यिदों की बेहद ताज़ीम करता, नन्हे मुन्ने सय्यिद ज़ादों पर शफ्फ़त का येह हाल था कि उन्हें उठाए उठाए फिरता और उन्हें शीरीनी वगैरा खरीद कर पेश करता।Gaus Pak aur Jinnat ka waqia.

उस दीवाने का इन्तिकाल हो गया। मैय्यत पर चादर डाली हुई थी, सोग-वार जम्अ थे कि अचानक चादर हटा कर वोह गौसे पाक का दीवाना उठ बैठा। लोग घबरा कर भाग खड़े हुए, उस ने पुकार कर कहा: डरो मत, सुनो तो सही !

लोग जब करीब आए तो कहने लगा : बात दर अस्ल येह है कि अभी अभी मेरे ग्यारहवीं वाले आक़ा, पीरों के पीर, पीर दस्तगीर, रोशन ज़मीर, कुत्बे रब्बानी, महबूबे सुब्हानी, गौसुस्स-मदानी, क़िन्दीले नूरानी, शहबाज़े ला मकानी, पीरे पीरां, मीरे मीरां, अश्शैख अबू मुहम्मद अब्दुल कादिर जीलानी तशरीफ लाए थे, उन्हों ने मुझे ठोकर लगाई और फ़रमाया : “हमारा मुरीद हो कर बिगैर तौबा किये मर गया उठ और तौबा कर ले।”मुझ में रूह लौट आई है ताकि मै तौबा कर लूं।

इतना कहने के बाद दीवाने ने अपने तमाम गुनाहों से तौबा की और कलिमए पाक का विर्द करने लगा, फिर अचानक उस का सर एक तरफ ढलक गया और उस का इन्तिकाल हो गया ।

या गौस सरकारे बगदाद हुजुरे गौसे पाक रहमतुल्लाहि तआला अलैहि के दीवानों और मुरीदों को मुबारक हो कि सरकारे बग‌दाद रहमतुल्लाहि तआला अलैहि फ़रमाते हैं : मेरा मुरीद चाहे कितना ही गुनहगार हो वोह उस वक़्त तक नहीं मरेगा जब तक तौबा न कर ले । (ऐज़न, स. 191)

दिल मेरी मुठ्ठी में हैं

हज़रते सय्यिदुना उमर बज़्ज़ार रहमतुल्लाहि तआला अलैहि फ़रमाते हैं, एक बार जुमुअतुल मुबारक के रोज़ मैं हुज़ूरे गौसे आजम रहमतुल्लाहि तआला अलैहि के साथ जामे मस्जिद की तरफ जा रहा था, मेरे दिल में खयाल आया कि हैरत है जब भी मैं मुर्शिद के साथ जुमुआ को मस्जिद की तरफ आता हूं तो सलाम व मुसाफ़हा करने वालों की भीड़भाड़ के सबब गुज़रना मुश्किल हो जाता है,

मगर आज कोई नज़र तक उठा कर नहीं देखता ! मेरे दिल में इस ख़याल का आना ही था कि हुज़ूरे गौसे आज़म रहमतुल्लाहि तआला अलैहि मेरी तरफ देख कर मुस्कराए और बस, फिर क्या था ! लोग लपक लपक कर मुसा-फ़हा करने के लिये आने लगे, यहां तक कि मेरे और मुर्शिदे करीम रहमतुल्लाहि तआला अलैहि के दरमियान एक हुजूम हाइल हो गया। मेरे दिल में आया कि इस से तो वोही हालत बेहतर थी।Gaus Pak aur Jinnat ka waqia.

दिल में येह खयाल आते ही आप रहमतुल्लाहि तआला अलैहि ने मुझ से फरमाया: ऐ उमर ! तुम ही तो हुजूम के तलबगार थे, तुम जानते नहीं कि लोगों के दिल मेरी मुड्डी में हैं अगर चाहूं तो अपनी तरफ माइल कर लूं और चाहूं तो दूर कर दूं।

अल मदद या गौसे आज़म

हज़रते बिशर करज़ी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि का बयान है कि मैं शकर से लदे हुए 14 ऊंटों समेत एक तिजारती क़ाफ़िले के साथ था। हम ने रात एक खौफनाक जंगल में पड़ाव किया, शब के इब्तिदाई हिस्से में मेरे चार लदे हुए ऊंट ला पता हो गए जो तलाशे बिस्यार के बावजूद न मिले।

क़ाफ़िला भी कूच कर गया, शुतुर बान यानी ऊंट हांकने वाला मेरे साथ रुक गया। सुब्ह के वक्त मुझे अचानक याद आया कि मेरे पीरो मुर्शिद सरकारे बगदाद हुजुरे गौसे पाक रहमतुल्लाहि तआला अलैहि ने मुझ से फ़रमाया था : “जब भी तू किसी मुसीबत में मुब्तला हो जाए तो मुझे पुकार इन्शाल्लाह वोह मुसीबत जाती रहेगी।”

चुनान्चे मैं ने यूं फरियाद की : “या शैख अब्दल कादिर ! मेरे ऊंट गुम हो गए हैं।” यकायक जानिबे मशरिक टीले पर मुझे सफेद लिबास में मल्बूस एक बुजुर्ग नज़र आए जो इशारे से मुझे अपनी जानिब बुला रहे थे। मैं अपने शुतुर बान को ले कर जूं ही वहां पहुंचा कि वोह बुजुर्ग निगाहों से ओझल हो गए।

हम इधर उधर हैरत से देख ही रहे थे कि अचानक वोह चारों गुमशुदा ऊंट टीले के नीचे बैठे हुए नज़र आए। फिर क्या था हम ने फौरन उन्हें पकड़ लिया और अपने काफ़िले से जा मिले ।

नमाज़े गौसिय्या का तरीका

हज़रते सय्यिदुना शैख अबुल हसन अली खब्बाज रहमतुल्लाहि तआला अलैहि को जब गुमशुदा ऊंटों वाला वाकिआ बताया गया तो उन्हों ने फरमाया कि मुझे हज़रते शैख अबुल कासिम रहमतुल्लाहि तआला अलैहि ने बताया कि मैं ने सय्यिदुना शैख मुद्द्युद्दीन अब्दुल कादिर जीलानी रहमतुल्लाहि तआला अलैहि को फ़रमाते सुना है की :

जिस ने किसी मुसीबत में मुझ से फ़रियाद की वोह मुसीबत जाती रही, जिस ने किसी सख़्ती में मेरा नाम पुकारा वोह सख़्ती दूर हो गई, जो मेरे वसीले से अल्लाह तआला की बारगाह में अपनी हाजत पेश करे वोह हाजत पूरी होगी। जो शख़्स दो रक्अत नफ़्ल पढ़े और हर रक्अत में अल्हम्दु शरीफ के बाद कुलहुअलाहु शरीफ़ ग्यारह ग्यारह बार पढ़े, गौसे पाक और ग्यारहवीं शरीफ।

सलाम फेरने के बाद सरकारे मदीना सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम पर दुरूदो सलाम भेजे फिर बगदाद शरीफ़ की तरफ़ ग्यारह क़दम चल कर बगदाद शरीफ मग़रिब व शुमाल के तक़रीबन बीचों बीच है मेरा नाम पुकारे और अपनी हाजत बयान करे इन्शाल्लाह अजवजल वोह हाजत पूरी होगी ।Gaus Pak aur Jinnat ka waqia.

अल्लाह रबबूल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।

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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।

खुदा हाफिज…

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