ज़िना की इब्तिदा गैर-महरम को देखने से होती है। इसीलिए शरिअत ने औरतों को घरों में रहने का हुक्म दिया है। अगर शरई ज़रूरत की वजह से घर से बाहर निकलना पड़े तो बापर्दा हालत में निकलने का हुक्म है।
मर्दो और औरतों को हुक्म दिया गया कि अपनी निगाहें पस्त रखें ताकि एक-दूसरे पर नज़र ही न पड़े और ज़िना का ख्याल ही दिल में पैदा न हो। जहाँ पर्दे में कोताही और ग़फ़लत होगी और गैर-महरम मर्द और औरत एक-दूसरे को देखेंगे तो तबियतों में शहवत बेदार हो जाएगी।
नफ़्स और शैतान घोड़े की डाक का काम करेंगे और ज़िना करवाकर रहेंगे। अजनबी गैर-महरम से मेल मिलाप मे बहुत रुकावटें होती हैं लेकिन क़रीबी रिश्तेदार गैर-महरम से मेल मिलाप में बहुत आसानियाँ होती है। इसीलिए हदीस पाक में फ़रमाया गया है (देवर तो मौत है) शरिअत ने देवर और बहनोई से भी पर्दे का हुक्म दिया है।
आमतौर पर खलाज़ाद, मामूज़ाद, फूफ़ीज़ाद और चचाज़ाद चार बड़े रिश्ते होते हैं। बिलाशक बहुत नांजुक ही नहीं होते बल्कि इंतिहाई खतरनाक भी होते हैं। औरतें उन्हें भाई कहती हैं हालाँकि दर हक़ीक़त वह क़साई होते हैं। आम लोग कहते हैं कि साली आधी घरवाली होती है जबकि साली ही तो सवाली होती है।
औरत की कमज़ोरी है कि जब भी किसी की शख्सियत, हुस्न, गुफ्तगू और अख़लाक़ वगैरह से मुतास्सिर होती है तो उसके लिए नर्म हो जाती है औरत के लिए आफ़ियत इसी में है कि न गैर-महरम को देखे और न अपने आपको किसी गैर-महरम को दिखाए। मर्द के लिए भी इसी में भलाई है कि अपनी निगाहें पस्त रखे। ऐसा न हो कि फित्ने में पड़ जाए और क़यामत के दिन उसे जहन्नम में औंधा फेंक दिया जाए।
जिस तरह गैर-महरम को देखना हराम है इसी तरह उसकी तस्वीर देखना भी हराम है अख़बरों के फ़िल्मी सफ़्हे या सड़कों के किनारे लगे हुए इश्तेहार की तरफ़ भी न देखना चाहिए। पतंग की रस्सी ढीली छोड़ेंगे तो कहीं न कहीं पेच लग जाएगा। अल्लाह तआला बचाए।
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बस जो आदमी जिना से बचना चाहे तो अपनी ताक़त भर गैर-महरम को देखने से ही बचे। जब काम की शुरूआत ही नहीं होगी तो फिर आखिर भी नहीं होगा।
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
जज़ाकल्लाह ख़ैर….
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