एक शेर और लोमड़ी का वाक्या।Ek Sher aur lomdi ka waqia.

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एक आदमी एक जंगल से गुज़र रहा था ! कि उसे एक लोमड़ी नज़र आइ एक एसी लोमड़ी जो चारो पैर से अपाहिज थी यानी उसके चारो पैर कटे हुए थे !

लेकिन हि तन्दुरुस्त और मोटी थी उसे देखकर वो आदमी सोचने लगा ! कि इसे रोज़ी किस तरह मिलती होगी, इतना सोचना था एक शेर आ गया! कही से शिकार करके मुह मे हिरन दबाए हुवे घसीटते हुवे आया उस शेर को देखकर वो शख्स एक पेड़ के पिछे छुप गया !

और मन्ज़र देखने लगा क्या देखता है! कि वो शेर उस हिरन को खाने लगा और जब उस शेर का पेट भर गया ! तो वो बचे हुवे हिरन को वही छोड़ कर चला गया !Ek Sher aur lomdi ka Waqia.

इतने में वो लोमड़ी अपने बदन को घसीटते हुवे उस हिरन के पास आइ ! और उस हिरन को खाने लगी तब उस आदमी को समझ आया कि इस अपाहिज लोमड़ी कि रोज़ी का इन्तेजाम अल्लाह ने इस तरह कर रखा है,

अब वो आदमी सोचने लगा ! जब अल्लाह इसे इतनी आसानी से रोज़ी दे सकता है। तो मै तो इन्सान हु अशरफुल मखलुक हूँ! मे क्यों रोज़ी के लिये भटकु! Ek Sher aur lomdi ka Waqia.

मुझे भी रोज़ी मिल जायेगी! इस तरह वो आदमी अपने घर जाकर सिर्फ ईबादत में लग गया और मेहनत मशक्कत छोड़ दि ! काम धंधा छोड़ दिया ! सिर्फ इबादत करने एक दिन दो दिन कुछ दिन गुज़र गये !

लेकिन रोज़ी का कोई इन्तेजाम नही दिखा एक दिन उसने अल्लाह कि बारगाह मे दुआ कि या अल्लाह तु एक मोहताज लोमड़ी को देता है मुझे रोज़ी क्यो नही अता फरमाता ?

अल्लाह कि तरफ से आवाज़ आई ऐ नादान तुने मोहताज लोमड़ी देखा लेकिन मुखतार शेर को नही देखा जो खुद भी खाता है और मोहताजो को भी खिलाता है तो तु शेर बन, लोमड़ी क्यो बन गया तेरे तो हाथ पैर सब सलामत है,

तु मेहनत कर हलाल रोज़ी कि तलाश कर हम तुझे अता करेगे और फिर हमारी इबादत भी कर ताकी तेरी रोज़ी मे बरकत भी अता हो फिर शेर कि तरह खुद भी खा और लोमड़ी कि तरह गरीबो मिस्किनो फकिरो को भी खिला ईन्सान को चाहिये कि हलाल रोज़ी के लिये मेहनत मशक्कत करे उसे तलाश करे यकीनन अल्लाह रोज़ी देने वाला है वो ज़रुर देगा ।Ek Sher aur lomdi ka Waqia.

और साथ हि साथ अल्लाह कि ईबादत यानी फर्ज वाजिब सुन्नत भी अदा करे यही ज़िन्दगी जिने का तरीका है और हलाल रोजी कमाना और बीवी बच्चो को हलाल रोज़ी खिलाना ये भी जिहाद है।

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क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।

खुदा हाफिज…

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