हुज़ूर-ए-अकरम (स.व)का इर्शाद है कि एक फाहिशा औरत की इतनी बात पर बख्शिश कर दी गयी कि वह चली जा रही थी।
उसने एक कुएं पर देखा कि एक कुत्ता खड़ा हुआ है जिसकी ज़बान प्यास की शिद्दत की वजह से बाहर निकली पड़ी है। और वह मरने को है। उस औरत ने अपने पांव का (चमड़े का ) मोज़ा निकाला और उस को अपनी ओढ़नी में बांध कर कुएं से पानी निकाला और उस कुत्ते को पिलाया।
हुज़ूरे अकदस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से किसी ने पूछा क्या हम लोगों को जानवरों के सिलसिले में भी सवाब मिलता है? हुज़ूर सल्ल. ने फ़रमाया, हर जिगर रखने वाले (यानी जानदार) पर एहसान करने पर सवाब है। (मुसलमान हो या काफ़िर, आदमी हो या जानवर । ) (मिश्कात)Ek Fahisha Aurat aur Kutte ka waqia.
बुखारी शरीफ वगैरह में एक और किस्सा इसी किस्म का एक मर्द का भी आया है। हुज़ूर सल्ल० ने इर्शाद फ़रमाया कि एक शख़्स जंगल में चला जा रहा था। उसको प्यास की शिद्दत ने बहुत परेशान किया। हारून रशीद और जुबैदा का अजीब वाक्या।
वह एक कुएं में उतरा और जब पानी पी कर बाहर निकला तो उसने देखा कि एक कुत्ता प्यास से बेताब है और प्यास की शिद्दत कि वजह से गारे में मुंह मार रहा है। उस शख़्स को ख़्याल हुआ कि उसको भी प्यास की वही तक्लीफ हो रही है जो मुझे थी।
कोई चीज़ पानी निकालने की थी नहीं, इसलिए अपने पांव का मोज़ा निकाला और दोबारा कुएं में उतर कर उसको भरा और अपने मोज़े को मुंह से पकड़ कर दोनों हाथों की मदद से ऊपर चढ़ा और यह पानी उस कुत्ते को पिलाया।
हक तआला शानुहू ने उसके इस कारनामे की कद्र फ़रमायी और उस शख़्स की मगफिरत फ़रमा दी। सहाबा रजि० ने अर्ज़ किया, या रसूलल्लाह जानवरों में भी अज्र होता है? हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया कि हर जिगर रखने वाले (यानी जानदार) में अज्र है। – (बुख़ारी)Ek Fahisha Aurat aur Kutte ka waqia.
एक और हदीस में है कि हर गरम जिगर वाले में अज्र है। (कन्ज़) मोज़े में पानी भरने का मतलब यह है कि अरब में चमड़े के मोज़ों का आम रिवाज है और उनमें पानी भरने से कम गिरता है और मुंह से पकड़ने की ज़रूरत इसलिए पेश आयी कि जंगल के कुओं में आमतौर से कुछ ईंटें वगैरह इस तरह बाहर को निकाल देते हैं,
कि जिनकी मदद से आदमी अगर उसके पास डोल रस्सी न हो तो नीचे उतर सकता है, लेकिन उतरने चढ़ने के लिए हाथों से मदद लेने की ज़रूरत ज़रूर पेश आया करती है इसलिऐ मोज़े को मुंह से संभालना पड़ा। हज़रत ओवैस करनी का वाक्या।
एक ज़ालिम का किस्सा भी ऐसा ही है, जिसने एक ख़ारिशी कुत्ते को पनाह दी थी, उसकी वही बात पसंद आ गयी।
इन दोनों हदीसों में कुत्ते जैसे ज़लील जानवर पर एहसान करने का जब यह बदला है तो आदमी जो अशरफुल मख़्लूकात है उस पर एहसान करने का क्या कुछ बदला होगा।
कुछ उलमा ने लिखा है कि ऐसे जानवर जिनको मारना मुस्तहब है जैसे सांप, बिच्छू वगैरह इससे मुस्तस्ना (अलग) हैं, लेकिन दूसरे अहले इल्म हज़रात फ़रमाते हैं कि इनके मारने के हुक्म का मतलब यह नहीं है कि अगर इनका प्यासा होना मालूम जो जाए तो इनको पानी न पिलाया जाये,
इसलिए कि हम मुसलमानों को यह हुक्म है कि जिसको किसी वजह से कत्ल किया जाए उसमें बेहतरी की रियायत रखी जाए। इसी वजह से जिसको कत्ल करना ज़रूरी है उसके भी हाथ पांव वगैरह काटने की मनाही है।
इन दोनों हदीसों से और इनके अलावा और भी बहुत सी अहादीस से एक लतीफ चीज़ यह भी मालूम हुई है कि हक तआला शानुहू को किसी शख़्स का कोई एक अमल भी अगर पसंद आ जाए तो उसकी बरकत से उम्र भर के गुनाह बख़्श देते हैं।Ek Fahisha Aurat aur Kutte ka waqia.
उसके लुत्फ़ व करम के मुकाबले में यह कोई भी चीज़ नहीं है। अलबत्ता क़ुबूल हो जाने और पसंद आ जाने की बात है। यह ज़रूरी नहीं कि हर गुनाहगार के सारे गुनाह पानी पिलाने से या किसी एक नेकी से बख़्श दिए जायेंगे, हां कोई चीज़ किसी की क़ुबूल हो जाए तो कोई मानेअ ( रूकावट ) नहीं।
इसलिए आदमी को निहायत इख़्लास से कोशिश करते रहना चाहिए। अल्लाह जाने कौन सा अमल वहां पसंद आ जाए। फिर बेड़ा पार है। बड़ी चीज़ इख्लास है। यानी ख़ालिस अल्लाह के लिए कोई काम करना, जिसमें दुनिया की कोई ग़रज़ शामिल न हो,
न उससे दुनिया कमाना मक्सूद हो. न शोहरत व वजाहत मतलूब हो, इनमें से कोई चीज़ शामिल हो जाती है तो वह सारा किया कराया बर्बाद कर देती है और महज़ उसके लिए कोई काम हो तो मामूली से मामूली काम भी पहाड़ों से वज़न में बढ़ जाता है। हज़रत उमर रजि० का कबूले इस्लाम।
हज़रत लुक्मान अलै० ने अपने साहबज़ादे को नसीहत की कि जब तुझ से कोई गुनाह सादिर हो जाए तो सदक़ा किया कर । इसलिए कि यह गुनाह को धोता है और अल्लाह जल्ल शानुहू के गुस्से को दूर करता है।Ek Fahisha Aurat aur Kutte ka waqia.
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क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।
खुदा हाफिज…