20/08/2025
बीमारी नहीं अल्लाह का तोहफा है येरूहानी नुस्खे। 20250611 001031 0000

बीमारी नहीं, अल्लाह का तोहफा है ये! Bimari nahin Allah Ka tohfa Hai yah.

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Bimari nahin Allah Ka tohfa Hai yah.
Bimari nahin Allah Ka tohfa Hai yah.

हदीस शरीफ़ में फरमाया गया कि क़यामत के दिन हक़ तआला शानहु कुछ बन्दों से पूछेंगे कि ऐ बन्दे ! मैं बीमार हुआ तो मुझे पूछने न आया? मैं मरीज़ हुआ तू मेरी मिज़ाज पुर्सी को न हाज़िर हुआ? बन्दा कहेगाः ऐ अल्लाह ! आप तो रब हैं, आपको बीमारी से क्या ताल्लुक़ ? बीमारी तो ऐब और नुक़्स की चीज़ है। आप हर नुक्स और बुराई से बरी हैं।

अल्लाह पाक फरमाएंगेः मेरा फ़्लां बन्दा बीमार हुआ था, अगर तू बीमार पुर्सी के लिए जाता मुझे उसकी चारपाई की पट्टी पर मौजूद पाता। (मिश्कात शरीफ, पेज 134)

बीमार का दिल बढ़ गया तो मेरी वह खुसूसियत है कि बीमारी में हक़ तआला का कुर्ब नसीब होता है, किसी तन्दुरुस्ती की चारपाई पर हक़ तआला नहीं है और बीमार की चारपाई पर मौजूद है। यानी ख़ास तजल्ली, लुत्फ व करम और इनायत मौजूद है।

किसी तन्दुरुस्त के बारे में हक़ तआला ने यह नहीं फरमाया कि तन्दरुस्ती अपने ऊपर लेकर कहा हो कि मैं तन्दुरुस्त था तू मेरे पास क्यों नहीं आया। बीमार के बारे में अपने ऊपर लेकर फरमाया कि मैं बीमार हुआ तू मुझे पूछने न आया। तो बीमार का दिल बढ़ गया कि ऐसी तन्दुरुस्ती को सलाम है जिससे इतना कुर्ब न हो मुझे यह बीमारी अज़ीज़ और मुबारक है, मैं इस बीमारी को छोड़ना नहीं चाहता। यह तवज्जोह इलल्लाहु का ज़रिया बन रही है और दरजात व मरातिब तै हो रहे हैं।

हज़रत इमरान बिन अल्-हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु जलीलुल क़द्र सहाबी हैं। एक नासूर फोड़े के अन्दर बत्तीस साल मुब्तला रहे जो पहलू में था और चित लेटे रहते थे करवट नहीं ले सकते थे, बत्तीस बरस तक चित लेटे-लेटे खाना भी, पीना भी, इबादत भी, क़ज़ाए-हाजत करना भी। आप अंदाज़ा कीजिए बत्तीस साल एक शख़्स एक पहलू पर पड़ा रहे उस पर कितनी अज़ीम तक्लीफ होगी? कितनी बड़ी बीमारी है?

यह तो बीमारी की कैफियत थी। लेकिन चेहरा इतना हश्शास-बश्शास, किसी तन्दुरुस्त को वह चेहरा हासिल नहीं, लोगों को हैरत थी कि बीमारी इतनी शदीद कि बरस गये करवट नहीं बदली और चेहरा देखो तो ऐसा खिला हुआ कि तन्दुरुस्तों को भी नसीब नहीं। लोगों ने अर्ज़ किया कि हज़रत ! यह क्या बात है कि बीमारी तो इतनी शदीद और इतनी मुम्तद और लम्बी चौड़ी और आपके चेहरे पर इतनी बशाशत और ताज़गी कि किसी तन्दुरुस्त को भी नसीब नहीं।

फरमायाः जब बीमारी मेरे ऊपर आई तो मैंने सब्र किया, मैंने यह कहा कि अल्लाह की तरफ से मेरे लिए तोहफा है, अल्लाह ने मेरे लिए यही मस्लहत समझी, मैं भी इस पर राज़ी हूँ। इस सब्र का अल्लाह ने मुझे यह फल दिया कि मैं अपने बिस्तर पर रोज़ाना मलाइका अलैहिमुस्सलाम से मुसाफा करता हूँ, मुझे आलमे गैब की ज़ियारत नसीब होती है। आलमे ग़ैब मेरे ऊपर खुला हुआ है।

तो जिस बीमार के ऊपर आलमे गैब का इन्किशाफ हो जाये, मलाइका का आना जाना महसूस हो उसे क्या मुसीबत है कि वह तन्दुरुस्ती चाहे ? उसके लिए तो बीमारी हज़ार दर्जे की नेमत है।

हासिल यह कि इस्लाम की यह खुसूसियत है कि उसने तन्दुरुस्त को तन्दुरुस्ती दी, बीमार को कहा कि तेरी बीमारी अल्लाह तक पहुंचने का ज़रिया है तू अगर इसमें सब्र और एहतिसाब करेगा, इस हालत पर साबिर और राज़ी रहेगा, तेरे लिए दरजात ही दरजात हैं।जब जिन्न ने इस्लाम की दावत दी।

फिर यह भी नहीं फरमाया कि इलाज मत कर, इलाज भी कर, दवा भी कर, मगर नतीजा जो भी निकले उसपर राज़ी रह, अपनी जद्दोजहद किए जा, बाक़ी कामे खुदावन्दी में मुदाख़िलत न कर, तेरा काम दवा करना है, तेरा यह काम नहीं कि दवा के ऊपर नतीजा भी मुरत्तब कर दे कि सेहत होनी चाहिए।

यह अल्लाह का काम है तू अपना काम कर, अल्लाह के काम में दखल मत दे, दवा-दुआ कर मगर अल्लाह की तरफ से जो, कुछ हो जाये उस पर राज़ी रह कि जो कुछ हो रहा है मेरे लिए खैर हो रहा है, इसपर सब्र करोगे वही बीमारी तरक़्क़ी-ए-दरजात और अख़लाक़ की बुलन्दी का ज़रिया बनती जाएगी, इससे आदमी के रूहानी मक़ामात तै होते होंगे।

तन्दुरुस्त को रूहानियत के वो मक़ामात नहीं मिलते जो बीमार को मिलते हैं तो बीमार यूँ कहेगा, मुझे मेरी बीमारी मुबारक मुझे तन्दुरुस्ती की ज़रूरत नहीं। तन्दुरुस्ती में मुझे यह मक़ामात मिल नहीं सकते थे जो बीमारी में मिले।

तो इस्लाम ने तन्दुरुस्त को तन्दुरुस्ती में तसल्ली दी कि तू इसको मुझतक पहुंचने का ज़रिया बना, बीमार को बीमारी में तसल्ली दी कि तू बीमारी को मुझ तक पहुंचने का ज़रिया बना, तू बीमारी की वजह से महरूम नहीं रह सकता। यह ख़याल मत कर कि जो कुछ मिलना था, तन्दरुस्त को मिल गया मेरे लिए कुछ नहीं रहा। तेरी बीमारी में तेरे लिए सब कुछ है।
बहरहाल हर एक को अपने दायरे और अपने मक़ाम पर तसल्ली देना यह इस्लाम का काम है।

नोटः-

(1) सूरः फातिहा 21 मर्तबा पढ़कर अपने ऊपर दम कर लीजिए।

(2) सूरः फातिहा 21 मर्तबा पढ़कर पानी पर दम करके पी लिया कीजिए।

(3) या सलामु 143 मर्तबा पढ़कर दम कर लिया कीजिए ।

(4) सद्का कर लिया कीजिए।

(5) ख़ालिस शहद इस्तेमाल किया कीजिए।

(6) आप जैसी बीमारी में कोई दूसरा मुब्तिला हो उसकी शिफाअत की दुआ कीजिए।

(7) जो भी साथी आपकी अयादत के लिए आए उसे दीन की मेहनत की दावत दीजिए।

(8)आपके लिए ज़मज़म रवाना कर रहा हूँ इस्तेमाल कीजिए ।

(9) अपने रिश्तेदारों के साथ सिला-रहमी कीजिए। हदीस में आता है कि सिला-रहमी में शिफा है।

(10) हदीस में आता है कुरआन में शिफा है अगर आप पढ़ सकते हो तो पढ़ें और न पढ़ सकते हो तो अपने बेटे या बेटी से सुनें।

(11) कोई सुनाने वाला मौजूद न हो तो सिर्फ कुरआन की तरफ देख लिया करें।

(12) कलौंजी आपके लिए भेज रहा हूँ इस्तेमाल कीजिए।

(13) हदीस में आता है कि बीमार की दुआ अल्लाह क़बूल करता है, आपकी दुआ हमारी ब-निस्बत ज़्यादा क़बूल होगी।

(14) हदीस में आता है सफर में शिफा दे। अपने घर में दर्जा ब-दर्जा सबको सलाम किजिए ।

अल्लाह से एक दिली दुआ…

ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।

प्यारे भाइयों और बहनों :-

अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।

क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
खुदा हाफिज़…..

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