07/05/2025
बेपर्दगी का बयान। 20250430 153247 0000

बेपर्दगी का बयान। Bepardagi ka bayan.

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Bepardagi ka bayan.
Bepardagi ka bayan.

मुसलमान औरतों के लिए पर्दा बहुत ज़रूरी है और बेपर्दगी इन्तिहा दर्जें की बेहयाई व बेग़ैरती का सबब है।

कुरान :- अल्लाह तआला इरशाद फरमाता हैः “और अपने घरों में ठहरी रहो और बेपर्दा न रहो जैसे अगली जाहिलियत की बेपर्दगी।”(सूरह अहजाब)

अगली जाहिलियत से मुराद कब्ले इस्लाम का जमाना है। उस ज़माने में औरतें इतराती निकलती थीं, अपनी जैब व ज़ीनत का इज़हार करती थीं ताकि गैर मर्द देखें और लिबास इस तरह पहनती थीं जिनसे जिस्म के आज़ा अच्छी तरह न छुपते थे।

आज वे औरतें जो ज़र्क बर्क यानी तड़क-भड़क लिबास में मलबूस होकर खिरामा खिरामा मटकती हुई अजनबी मर्दों की महफ़िलों, नामहरमों की मजलिसों और गैरों के मजमों में आती जाती हैं और अपनी इस आवारगी और बेहयाई पर ज़रा भी नहीं शर्मातीं। (दुखतराने इस्लाम)

हदीस :- सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशादे गिरामी है: “औरत छिपाने की चीज़ है, जब औरत निकलती है तो शैतान उसे झांक कर देखता है यानी उसे देखना शैतानी काम है।”(तिरमिज़ी जिल्द 1, पेज 140)

हदीस :- हज़रत अबू मूसा अशअरी रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमायाः”जब कोई औरत खुश्बू लगा कर लोोगों में निकलती है ताकि उन्हें खुश्बू पहुंचे तो वह औरत ज़ानिया है। (निसाई जिल्द 2, पेज 240)

हदीस :- नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः”जो औरत खुश्बू लगा कर किसी मजलिस से गुज़रती है तो ऐसी औरत बदकार है।”(तिरमिज़ी जिल्द 2, पेज 102)

इन हदीसों से वे औरतें सबक लें जो आज तरह-तरह की तेज़ खुशबूओं को लगाकर आम शाहराहों पर इतराती फिरती हैं और बन संवर कर आम महफिलों में जाती हैं, उनके लिए सख़्त मना है। वाजेह हो कि जो औरतें पर्दे में रहकर भी तेज़ खुशबू लगाएं तो इसी वईद की मुस्तहिक होंगी क्योंकि पर्दा बदन और चेहरे का है न कि खुशबू का, खुशबू तो पर्दे से भी बाहर जाती है। बीवी से अलग रहने की मुद्दत।

मसअला :- औरतों के लिए ऐसे लिबास का इस्तेमाल करना हराम है कि जिससे जिस्म चमकता हो या इतना चुस्त हो कि जिस्म की साख्त यानी बनावट और उसके नरौब व फाज़ नुमायां नज़र आते हों। हदीस शरीफ में ऐसे लिबास को नंगा लिबास फरमाया गया। (इस्लाम में पर्दा पेज 9)

पर्दा औरतों का बेहतरीन जेवर है :-

हदीस :- अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमायाः”औरत की नमाज़ अपने तहखाने में बेहतर है, कोठरी में नमाज़ पढ़ने से और उसकी कोठरी में नमाज़ बेहतर है, दालान में नमाज़ पढ़ने से और उसकी नमाज़ दालान में बेहतर है, सेहन (आंगन) में नमाज़ पढ़ने से और उसकी अपने सेहन में नमाज़ बेहतर है मस्जिद में नमाज़ पढ़ने से। (अलमलफूज़ हिस्सा 3, पेज 27)

हदीस :- मौलाए कायनात हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है कि एक रोज़ सैय्यदे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी मजलिस में सहाबा किराम से दरियाफ्त फ़रमाया औरत के लिए कौन सी चीज़ बेहतर है?

किसी ने जवाब न दिया, सब के सब खामूश रहे, यहाँ तक कि मैं भी कोई जवाब न दे सका। जब घर आया तो हज़रत फातिमा ज़ेहरा रजियल्लाहु अन्हा से पूछा औरतों के लिए कौन सी चीज़ सबसे बेहतर है? हज़रत फातिमा रजियल्लाहु अन्हा ने फौरन जवाब दिया कि औरतों के लिए सबसे बेहतर यह है कि उनको गैर मर्द न देखें। हज़रत अली इस जवाब से बहुत खुश हुए और जाकर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह जवाब सुनाया तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी खुश हुए और फरमाया ‘फातिमा मेरा एक हिस्सा है।’ (फतावा रज़विया जिल्द 9, पेज 28 जमउल फ्वाइद जिल्द 1, पेज 317)

मसअला :- ना महरम औरतों को अन्धे से पर्दा वैसा ही है जैसे आँख वाले से और उसका घर में जाना औरत के पास बैठना वैसा ही है जैसा आँख वाले का।(फतावा रज़विया जिल्द 9, पेज 270)

मसअला :- पर्दा सिर्फ उन लोगों से नहीं जो नसब के सबब औरत पर हमेशा-हमेशा के लिए हराम हों और कभी किसी हालत में उनसे निकाह नामुमकिन हो। जैसेः बाप, दादा, बेटा, पोता, चचा, मामू वगैरह। इनके सिवा जिनसे निकाह कभी दुरूस्त है, अगरचे फिलहाल नाजाइज़ हो जैसे बेहनोई जबतक बहन ज़िन्दा है या चचा, मामू, खाला, फूफी के बेटे या जेठ, देवर इनसे पर्दा वाजिब है।(फतावा रज़विया जिल्द 9, पेज 237)

मसअला :- कुछ औरतें अपने मर्दों के सामने मनीहार के हाथों से चूड़ियां पहनती हैं, यह हराम, हराम, हराम है। हाथ दिखाना गैर मर्द को हराम है। उसके हाथ में हाथ देना हराम है, जो मर्द अपनी औरतों के साथ उसे जाइज़ रखते हैं, दय्यूस हैं।
(निस्फ आखिर फतावा रज़विया जिल्द 9, पेज 208)

अल्लाह रब्बुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को नबी-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे ज़िन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।

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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।

खुदा हाफिज…

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