आप का नाम अब्दुर्रहमान, लक़ब जलालुद्दीन और कुन्नियत यानी उपनाम अबुल फ़ज़ल है। पहली रजब 849 हि० में शहरे सुयूत में पैदा हुए जो इलाक-ए-मिस्र में दरिया-ए-नील के पश्चिमी जानिब मौजूद है।
आप पाँच साल सात माह के थे कि बाप के साए से महरूम हो गये। वसीयत के मुताविक चन्द बुजुर्गों ने आपकी सरपरस्ती की जिन में शैख कमालुद्दीन इब्ने इलहाम हनफी थे। उन्होंने आपकी तरफ पूरी तवज्जुह की तो आप ने आठ साल से कम उम्र में हिफ़्ज़े कुरआन से फारिग हो कर कई इल्मी किताबें हिफ़्ज़ कीं।
इल्म हासिल करने के बाद 871 हि० में फतवा लिखने का काम शुरू किया और 872 हि० से हदीस शरीफ के लिखने में मशगूल हुए और पढ़ाने की इजाज़त तो आप को 866 हि0 में मिल गई थी आपने खुद “हुस्नुलमुहाज़रा” में लिखा है कि अल्लाह तआला ने मुझे तफसीर, हदीस, फिक़्ह, नहव, मआनी, बयान और बदी सात उलूम में महारत व कमाल अता फरमाया था।
आप अपने ज़माने में इल्मे हदीस के सब से बड़े आलिम थे आप ने खुद फरमाया है कि मुझे दो लाख हदीसें याद हैं। अगर मुझ को इस से ज़्यादा मिलतीं तो उनको भी याद करता। आपने कुल तीन सौ किताबें लिखी हैं जिन में तफसीर जलालैन का निस्फे अव्वल,(पहला आधा) तफसीरे इतकान, बसाइसे कुबरा और तारीखे खुलफा बहुत मशहुर है।
चालीस साल की उम्र में आपने दर्स व तदरीस यानी तालीम व तरबियत इफ़्ता व कज़ा और तमाम दुनियवी तअल्लुकात से अलग होकर गोशा नशीनी (तन्हाई) इख़्तियार करली और बड़ी तवज्जुह व लगन के साथ किताबें लिखने और इबादत व रियाज़त व नसीहत व हिदायत में मश्गूल हो गए। आपने 63 साल की उम्र पाई और एक मामूली से मर्ज़ हाथ के वर्म (सुजन) में मुब्तला होकर 911 हि0 में अलमुस्तमसिक बिल्लाह के ज़माने में इन्तिक़ाल फरमाया।Allama Jalaluddin Siyuti ka Aqeeda.
आप इरशाद फरमाते हैं हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत है कि “हज़र मौत” के चन्द ज़मीनदार हुज़ूर सय्यदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की खिदमते अकदस में हाज़िर हुए, जिन में अशअस बिन कैस भी थे। उन लोगों ने कहा हमने एक बात दिल में छुपा रखी है बताइये यह क्या है? इस्लामी अख्लाक व तहज़ीब की फज़िलत।
आपने फरमाया सुबहानल्लाह यह तो काहिन (नुजूमी) का काम है। और काहिन (ज्योतिश) का मकाम दोज़ख है। “तो उन लोगों ने कहा फिर हम किस तरह जानें आप अल्लाह के रसूल है? तो आपने एक मुट्ठी कंकरी जमीन से उठा कर फरमाया कि यह गयाही देंगी कि मैं अल्लाह का रसूल हूँ। चुनांचे हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के मुकद्दस हाथ में कंकरियों ने तसबीह पढ़ी। यह सुनते ही उन लोगों ने कहा हम भी गवाही देते हैं कि आप अल्लाह के रसूल है।”(खसाहसे कुबरा जि० 2 स० 75)
बहुत सी हदीसों से साबित है कि हुज़ूर सैय्यदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम दिलों की कैफियात व हालात पर आगाह थे। लेकिन इस मौके पर जो फरमाया कि यह काहिन यानी ज्योतिशी का काम है तो उस में मसलेहत यह थी कि, जब हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम उनके दिल की बात बता देते तो हो सकता था वह कहते कि यह तो काहिन भी कर दिया करते हैं। लिहाजा हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इसके बजाए कंकरियों से अपना कलिमा पढ़या दिया। जो काहिन से मुम्किन नहीं था।
और लिखाते हैं कि हज़रत अक्काशा बिन मुहसिन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने फरमाया कि बद्र की लड़ाई में मेरी तलवार टूट गई। “पस रसूलुल्लाह सल्लल्लाह तआला अलैहि वसल्लम ने मुझे एक लकड़ी दी तो यह सफेद लम्बी तलवार हो गई और मैंने उस से लड़ाई की यहां तक कि अल्लाह तआला ने मुश्रिक को शिकस्त दी। वह तलवार हज़रत अक्काशा रज़ियल्लाहु तआला अन्हो के पास उन के इन्तिकाल तक रही।”(बेहकी, इग्ने असाकिर, बसाइसे कुबरा जि०ः 1 स०: 205)
और लिखते हैं कि हज़रत अब्दुल्लाह विन जहश रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की तलवार जंग उहूद में टूट गई। “तो नबी-ए-अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उनको खुजूर की एक टेहनी अता फरमाई जो उनके हाथ में तलवार बन गई।” (बैहकी, खसाइसे कुबरा जि० 1 एकः 217)
और बयान फरमाते हैं। हज़रत अबू उमरा अन्सारी रज़ियल्लाहु तआला अन्हो से रिवायत है। उन्होंने फरमाया कि हम एक जंग में हुज़ूर सैय्यदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के हमराह थे तो एक रोज़ बहुत प्यासे हुए। हुज़ूर ने एक छागल मंगवा कर उसको अपने सामने रखा और थोड़ा सा पानी डाल कर उस में कुल्ली की और जो कुछ अल्लाह ने चाहा” कलाम पढ़ा। “फिर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अपनी छोटी उंगली उस में डाल दी।
खुदा की क़सम मैं ने देखा कि आपकी उंगलियों से पानी के चश्मे फूट पड़े फिर आपने लोगों को हुक्म दिया तो लोगों ने खुद पिया और अपने जानवरों को पिलाया और मश्के और डोलचियाँ भर ली। यह देख कर आप मुस्कुराए यहां तक कि आपके दाँत मुबारक ज़ाहिर होगए।” (अबूनईम, खसइसे कुबरा जि० 2 स०: 42)Allama Jalaluddin Siyuti ka Aqeeda.
उंगलियां पाई वह प्यारी प्यारी जिन से दरिया-ए-करम है जारी जोश पर आती है जब गमगुसरी तिश्ने सैराब हुआ करते हैं बयान फरमाते हैं।
हज़रत अरबाज बिन सारिया रज़ियल्लाहो तआला अन्हु से रिवायत है उन्होंने फरमाया कि जंगे तबूक में एक रात हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से फरमाया ऐ बिलाल। क्या तुम्हारे पास कोई खाने की चीज़ है? उन्होंने अर्ज किया हुजूर! आपके रब की क़सम। हमारे तोशा-दान खाली हो चुके हैं।
रसूले अकरम सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया अच्छी तरह देखो और अपने तोशा-दान झाड़ो। सब ने अपने अपने तौशा-दान (खाने के बर्तन) झाड़े तो कुल सात खुजूरे मिलीं। आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने उनको एक दस्तरख्वान पर रखा। फिर उन पर अपना मुकद्दस हाथ रखा और फरमाया बिस्मिल्लाह खाओ।
हम तीनों हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के हाथ मुबारक के नीचे से एक एक उठा कर खाने लगे। हज़रत बिलाल फरमाते हैं कि में बाएं हाथ में गुठलियां रखता जाता था, पेट भर खाने के बाद जब में ने उन को गिना तो वह 54 थी। इसी तरह हमारे दोनों साथियों ने भी पेट भर खाया। जब हम लोग सैर हो गए तो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अपना हाथ उठा लिया। वह सात खजूरें उसी तरह मौजूद थीं।
सरकारे अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया। ऐ बिलाल! इन खुजूरों को संभाल कर रखो उनमें से कोई न खाए फिर काम आयेंगी। हज़रते बिलाल फरमाते हैं कि हम ने उन को नहीं खाया। फिर जब दूसरा दिन आया और खाने का वक्त हुआ तो आप ने उन्हीं सात खुजूरों को लाने का हुक्म फरमाया। आप ने फिर इसी तरह उन पर अपना दस्ते मुबारक रखा और फरमाया बिस्मिल्लाह खाओ।
अब हम दस आदमी थे सब ने पेट भर खाया। फिर जब हुज़ूर सत्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अपना हाथ मुबारक हटाया तो बदस्तूर सात खुजूरै मौजूद थीं। आपने फरमाया ऐ बिलाल “अगर मुझे अल्लाह तआला से शर्म न आती तो मदीना वापस जाने तक हम उन ही सात खुजूरो से खाते। फिर आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने वह खुजूरें एक लड़के को अता फारमादी वह उन्हें खाता हुआ चला गया।” (अबूनईम इब्ने असाकिर खसाईसे कुबरा जि०1 सo 275)Allama Jalaluddin Siyuti ka Aqeeda.
हज़रत अल्लामा जलालुद्दीन सुयूती रहमतुल्लाहि तआला ने उपर ज़िक्र कि गई हदीसों को खसाइसे कुबरा में लिख कर अपना यह अकीदा खुल्लम खुल्ला जाहिर कर दिया कि हुज़ूर सैय्यदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को अल्लाह की जानिब से हर किस्म के तसर्रूफात व इख़्तिपार अता किए गए हैं।
और देवबन्द के मौलाना मुहम्मद हनीफ गंगोही लिखते हैं कि हज़रत अल्लामा जलालुद्दीन सुयूती रहमतुल्लाहि तआला अलैह के पास खादिम मुहम्मद अली हबाक का बयान है कि एक रोज़ आप ने कैलूला (दोपहर का आराम) के वक्त फरमाया कि अगर तुम मेरे मरने से पहले इस राज़ को फाश (जाहिर) न करो तो आज असर की नमाज मक्का मुअज्जमा में पढ़वादूँ, अर्ज किया ज़रूर। फरमाया आँखें बन्द कर लो और हाथ पकड़ कर तकरीबन सताइस कदम चल कर फरमाया आँखें खोल दो। क़ब्र की फज़िलत।
देखा तो हम “बाबे मुअल्लात”पर थे। हरम पहुंच कर तवाफ किया “ज़मज़म” पिया। फिर फरमाया कि इस से तअज्जुब मत करो कि हमारे लिए ज़मीन सिमट गई बल्कि ज़्यादा तअज्जुब इस का है कि मिस्र के बहुत से मुजाविरीने हरम हमारे जानकार यहाँ मौजूद हैं मगर हमें न पहचान सके। फिर फरमाया चाहो तो साथ चलो वरना हाजियों के साथ आ जाना। अर्ज किया साथ ही चलूँगा “बाबे मुअल्लात” तक गए और फरमाया आँखें बन्द कर लो और मुझे सात कदम दौड़ाया। आँखे खोली तो हम मिस्र में थे। (अहवालुल मुसन्निफीन स० 46)
इस वाकिए से हज़रत अल्लामा जलालुद्दीन सुयूती रहमतुल्लाहि तआला अलैहि ने अपना यह अकीदा साबित कर दिया कि चन्द घड़ी में एक मुल्क से दूसरे मुल्क पहुँचने, बल्कि दूसरे को पहुँचाने की भी ताक़त खुदा-ए-तआला ने मुझे मरहमत फरमाई।
अल्लाह रबबुल इज्ज़त हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे, हमे एक और नेक बनाए, सिरते मुस्तक़ीम पर चलाये, हम तमाम को रसूल-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और इताअत की तौफीक आता फरमाए, खात्मा हमारा ईमान पर हो। जब तक हमे जिन्दा रखे इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखे, आमीन ।
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क्या पता अल्लाह ताला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए । आमीन ।
खुदा हाफिज…