अल्लाह वालों की ख़शियत।Allah walo ki khasiyat

20240324 005609

अल्लाह वालों का ख़ौफ़ कुछ और तरह का होता है। उनको तकलीफें तो छोटी नज़र आती हैं। उनके दिल में एक बड़ी ग़मनाक कैफियत यह होती है कि अगर गुनाह करूं तो मेरा परवरदिगार मुझसे नाराज़ हो जाएगा।

मोहतरम हजरात! जिससे रब्बे करीम नाराज़ हो गया फिर दुनिया में उसका कोई न बचा। उसने सब कुछ बर्बाद कर दिया। अल्लाह वाले अल्लाह की नाराज़गी से डरते हैं। वे अगर बढ़-चढ़ कर इबादतें भी कर रहे होते हैं तो उन्हें फिर कदम-कदम पर यही डर रहता है कि वह बेनियाज़ परवरदिगार हमारी इबादतों को कहीं मुँह पर न मार दे।

हदीस पाक में आया है कि रियाकार लोगों की इबादतों को अल्लाह तआला उनके मुँह पर फटे हुए कपड़े की तरह मार देते हैं रातों को जागने वाले कितने ही ऐसे होंगे कि रियाकारी की वजह से अल्लाह तआला क़यामत के दिन इन रातों के अंधेरों को उनके चेहरों पर मल देंगे।

कितने ही लोग ऐसे होंगे कि दुनिया में कलिमा पढ़ते होंगे मगर उनका अमल उसके ख़िलाफ़ होगा जिसकी वजह से मौत के बाद कब्रों में रुख़ किब्ले से बदल दिए ज़ाएंगे, कितने ही लोग ऐसे होंगे किं जब कब्र में पहुँचेगे तो उनसे कहा जाएगा तुम दुल्हन की नींद सो जाओ और कई ऐसे भी होंगे कि जब कब्र में पहुँचेगे तो उनसे कहा जाएगा तुम मनहूस की नींद सो जाओ।

उनके लिए सज़ाए होंगी क्योंकि परवरदिगार उनसे नाराज़ होगा, वे इबादत भी कर रहे होते हैं और दिल में यह कैफियत भी होती है कि परवरदिगार इतनी अज़मतों और किबरियाई वाला है, उसकी शान इतनी बुलंद है और मैं इतना हकीर हूँ, मैं गुनाहों में डूबा हुआ हूँ, मैं इतना आजिज़ हूँ, मैं इतना छोटा हूँ कि मेरी इबादतें नीचे रह जाएंगी।

मेरी इबादतें इस काबिल नहीं कि परवरदिगार की जनीब तक पहुँचें। उनके दिल में यह ख़ौफ़ होता है कि अगर मेरी इबादतों की तरफ परवरदिगार ने नज़र ही न उठाई तो मेरा क्या बनेगा। मेरी इबादतों के लिए आसमान के दरवाज़ों को न खोला गया तो क्या बनेगा?

इसलिए बड़ी-बड़ी इबादतें करके परवरदिगार को राज़ी करने वाले मुकर्रिबीन सारी-सारी रात इबादत करते रहे। चालीस-चालीस साल इशा के वुज़ू के साथ फज्र की नमाज़ें पढ़ते रहे। इसके बावजूद जब उनको बैतुल्लाह शरीफ की ज़ियारत के लिए जाना नसीब हुआ तो तवाफ़ करके मुकामे इब्राहीम पर दो नफ़्ल पढ़े और इसके बाद हाथ उठाकर यूँ दुआएं मांगी ऐ अल्लाह !

हमने तेरी इबादत का हक अदा नहीं किया जो हमें करना चाहिए था ऐ अल्लाह ! हमें तेरी मारिफ़त जैसे हासिल करना चाहिए थी हम उसको हासिल नहीं कर सके। सुब्हानअल्लाह ! यह उन हज़रात की मुनाजात हैं जिनकी जिंदगियाँ फूलों की नज़ाकत से भी ज़्यादा अफीफ गुज़रीं। कामिलीन हज़रात इतनी इबादतों के बाद अल्लाह तआला के सामने अपना दामन फैलाकर कहते थे।

ऐ अल्लाह ! अगर तू कुबूल कर ले तो यह तेरा फ़ज़ल और एहसान है और अगर तू रद्द फरमा दे तो यह तेरा अदल होगा। दुनिया में होने वाले वाकिआत उनकी नज़र में हर वक़्त रहते हैं। पाँच सौ साल तक इबादत करता रहा। मेरे परवरदिगार की शाने बेनियाज़ी ज़ाहिर हुई तो उसकी पाँच सौ साल की इबादत को फटकार के रख दिया।

फिर उसका हश्र कुत्ते की तरह कर दिया और उसका तज़किरा कुरआन में यूँ फ़रमाया उसकी मिसाल तो कुत्ते की तरह है। ऐ अल्लाह! तू अगर चाहे तो पाँच सौ साल की इबादत के बाद कुत्ते की तरह हश्र कर दे और अगर तेरी रहमत जोश में आ जाए तो फुजैल बिन अयाज़ रह० को डाकुओं की सरदारी से उठाकर वलियों का सरदार बना दे।

जब इंसान का नफ़्स रियाज़त की भट्टी में पककर कुंदन बनता है तो यह गुनाह करने से डरता है, ख़ौफ़ खाता है। जैसे कोई इस बात से डरता है कि बादशाह मुझ से नाराज़ न हो जाए और कोई ग़लत काम नहीं करता। इसी तरह बंदे के दिल में जब ख़शियते इलाही पैदा हो जाती है तो वह अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से डरता है

कि कहीं वह मालिक नाराज़ न हो जाए। इसी को आरिफ़ीन का ख़ौफ़ कहते हैं।

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क्या पता अल्लाह तआला को हमारी ये अदा पसंद आ जाए और जन्नत में जाने वालों में शुमार कर दे। अल्लाह तआला हमें इल्म सीखने और उसे दूसरों तक पहुंचाने की तौफीक अता फरमाए ।आमीन।

खुदा हाफिज…

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