
इंसान तमाम मख़्लूक से अशरफ है और अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की कारीगिरी का नूमाना है। रब्बे करीम की हम पर कितनी मेहरबानी है कि उस परवरदिगारे आलम ने हमें इंसान बनाया। अगर वह कोई जानवर बना देता तो उसको हक था।
मान लो अगर वह बंदर पैदा कर देता तो किसी ने नाक में नकेल डाली होती और हम गलियों के अंदर नाचते फिरते, वह गधे की शक्ल में पैदा कर देता तो किसी ने पीठ पर बोझ लादा होता और हम डंडों पर डंडे खा रहे होते और फिर हमें इसके बावजूद भी ज़बान से शिकवा करने की इजाज़त न होती।
अल्लाह का शुक्र है कि परवरदिगारे आलम ने हमें इंसान बनाया। हमने इसके लिए कोई दरख्वासत तो न दी थी।
दूसरा एहसान यह हुआ कि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने हमें नबी अलैहिस्सलातु वस्सलाम की उम्मत में ईमान के साथ पैदा किया। यह अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त की इतनी बड़ी नेमत है कि हम उसका शुक्र भी अदा नहीं कर सकते।
दुनिया में वो भी लोग हैं जो इस उम्मत में पैदा हुए मगर उनको कुफ्र का माहौल मिला, उनके माँ-बाप ने उन्हें यहूदी और ईसाई और काफिर बना दिया। हमें अल्लाह तआला ने ऐसे माँ-बाप के घर में पैदा किया कि जब हम छोटे थे और माँ दूध का फीडर लगाती थी तो बिस्मिल्लाह पढ़ा करती थी, वह हमें सुलाती थी तो ‘ला इलाहा इल्लल्लाह’ के तराने सुनाया करती थी, वह पालना हिलातती थी तो ‘हस्बी रब्बी जल्लल्लाह’ के गीत सुनाया करती थी।
अभी हम छोटे और ना समझ थे कि वह हम से अल्लाह, अल्लाह के लफ़्ज़ के साथ बातें किया करती थी। अभी हम छोटे थे कि उसी माँ और बाप ने हमारे एक कान में अज़ान दिलवाई और दूसरे कान में इकामत, उस छोटी उम्र में जब हमें समझ भी न थी, जब हम अपने मालिक व खालिक को पहचानते भी न थे, उन माँ-बाप की बरकत से हमारे कानों में इस वक़्त अपने परवरदिगार का नाम पहुँचा। यह अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की कितनी बड़ी नेमत है।
फिर जब हम चलने फिरने के काबिल हुए, अभी बचपन था, दोस्त व दुश्मन की तमीज़ न थी, नफा नुक्सान का अंदाज़ा न था। हमारे वालिद उंगली पकड़कर मस्जिद की तरफ ले जाते थे। यह अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त की कितनी बड़ी नेमत है। हम जो आज मुसलमान बनकर बैठे हैं मालूम नहीं कि कितने लोगों की मेहनत का इसमें दखल है, कितनी अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त की रहमतें हम पर बरसीं कि आज अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त ने ईमान की दौलत से माला माल फरमाया।इस्लाम में अमल की अहमियत।
जिस्मानी नेमतें तो अनगिनत हैं। परवरदिगार आलम ने हमें सही सलामत जिस्म के साथ पैदा कर दिया। वह परवरदिगार अगर चाहता तो हमें किसी उज़ के साथ पैदा कर सकता था, किसी बीमारी के साथ पैदा कर सकता था। हमें जो सही सलामत जिस्म मिला है वह परवरदिगार की हम पर कितनी बड़ी मेहरबानी है।
अल्लाह से एक दिली दुआ…
ऐ अल्लाह! तू हमें सिर्फ सुनने और कहने वालों में से नहीं, अमल करने वालों में शामिल कर, हमें नेक बना, सिरातुल मुस्तक़ीम पर चलने की तौफीक़ अता फरमा, हम सबको हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से सच्ची मोहब्बत और पूरी इताअत नसीब फरमा। हमारा खात्मा ईमान पर हो। जब तक हमें ज़िंदा रखें, इस्लाम और ईमान पर ज़िंदा रखें, आमीन या रब्बल आलमीन।
प्यारे भाइयों और बहनों :-
अगर ये बयान आपके दिल को छू गए हों, तो इसे अपने दोस्तों और जानने वालों तक ज़रूर पहुंचाएं। शायद इसी वजह से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए, और आपके लिए सदक़ा-ए-जारिया बन जाए।
क्या पता अल्लाह तआला को आपकी यही अदा पसंद आ जाए और वो हमें जन्नत में दाखिल कर दे।
इल्म को सीखना और फैलाना, दोनों अल्लाह को बहुत पसंद हैं। चलो मिलकर इस नेक काम में हिस्सा लें।
अल्लाह तआला हम सबको तौफीक़ दे – आमीन।
खुदा हाफिज़…..